15062023
विवाह (पति और पत्नी) का कर्तव्य
1 पतरस 3:1-7 -
[1]हे पत्नियों, तुम भी अपने पति के अधीन रहो।
[2]इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हो जो वचन को न मानते हों, तौभी तुम्हारे भय सहित पवित्र चालचलन को देख कर बिना वचन के अपनी अपनी पत्नी के चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।
[3]और तुम्हारा सिंगार, दिखावटी न हो, अर्थात् बाल गूंथने, और सोने के गहने, या भांति भांति के कपड़े पहिनना।
[4] वरन् तुम्हारा छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व, नम्रता और मन की दीनता की अविनाशी सजावट से सुसज्ज़ित रहे, क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा है।
[5]और पूर्वकाल में पवित्र स्त्रियां भी, जो परमेश्वर पर आशा रखती थीं, अपने आप को इसी रीति से संवारती और अपने अपने पति के अधीन रहती थीं।
[6]जैसे सारा इब्राहीम की आज्ञा में रहती और उसे स्वामी कहती थी: सो तुम भी यदि भलाई करो, और किसी प्रकार के भय से भयभीत न हो तो उस की बेटियां ठहरोगी।
[7]वैसे ही हे पतियों, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जान कर उसका आदर करो, यह समझ कर कि हम दोनों जीवन के वरदान के वारिस हैं, जिससे तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं।
Wives and Husbands
1 Wives, in the same way be submissive to your husbands so that, if any of them do not believe the word, they may be won over without words by the behavior of their wives,
2 when they see the purity and reverence of your lives.
3 Your beauty should not come from outward adornment, such as braided hair and the wearing of gold jewelry and fine clothes.
4 Instead, it should be that of your inner self, the unfading beauty of a gentle and quiet spirit, which is of great worth in God’s sight.
5 For this is the way the holy women of the past who put their hope in God used to make themselves beautiful. They were submissive to their own husbands,
6 like Sarah, who obeyed Abraham and called him her master. You are her daughters if you do what is right and do not give way to fear.
7 Husbands, in the same way be considerate as you live with your wives, and treat them with respect as the weaker partner and as heirs with you of the gracious gift of life, so that nothing will hinder your prayers.
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प्रस्तावना –
इस पत्री का लेखक “पतरस, यीशु मसीह का प्रेरित” है ( 1 पतरस 1:1 )।
“पतरस मूल रूप से शिमोन या शमौन ( 2 पत. 1:1 ) के रूप में जाना जाता था, जो अपनी पत्नी के साथ कफरनहूम में रहने वाले बेथसैदा का एक मछुआरा था। ... पतरस को उसके भाई अन्द्रियास के साथ यीशु मसीह का चेला बनने के लिए बुलाया गया था ( मत्ती 4:18-22 ; मरकुस1:16-18 ; लूका 5:1-11 )। …
“… परमेश्वर ने पतरस को पृथ्वी पर स्वर्ग के राज्य की कुंजियां रखने के लिये चुना ( मत्ती 16:13-18 )। …
“पतरस अपने समय का प्रमुख प्रेरित था”
पतरस का लेखन एक साधारण मछुआरे से एक शक्तिशाली प्रेरित के रूप में उसके विकास को प्रदर्शित करता है।
पतरस ने इस पहली पत्री को संभवतः 62 और 64 ईस्वी सन् के बीच लिखा था ।
यह आम तौर पर स्वीकार किया जाता है कि पतरस की मृत्यु रोमन सम्राट नीरो के शासनकाल के दौरान हुई थी – संभवतः 64 ईस्वी के बाद, जब नीरो ने ईसाइयों को सताना शुरू किया।
पतरस ने इस पत्र को एशिया माइनर के पांच रोमन प्रांतों (1Pe1:1 - पुन्तुस, गलातिया, कप्पदुकिया, आसिया, और बिथुनिया) में रहने वाले चर्च के सदस्यों को संबोधित किया, जो आधुनिक तुर्की में स्थित है (1 पतरस 1:1 )। पतरस, यीशु के लहू से छिड़कें हुए लोगों को परमेश्वर का “चुना हुआ” मानता था ( 1 पतरस 1:2 )। उसने संतों को “[उनके] विश्वास की परीक्षा” ( 1 पतरस 1:7 ) में मजबूत करने और प्रोत्साहित करने के लिए और उन्हें भविष्य के “ज्वलंत परीक्षण” ( 1 पतरस 4:12 ) के लिए तैयार करने के लिए लिखा। पतरस के संदेश ने उन्हें यह भी सिखाया कि सताव का जवाब कैसे दिया जाए (1पतरस 2:19–23 ;3:14–15; 4:13 )।
पतरस की पहली पत्री को एशिया माइनर में रहने वाले उन मसीहियों को संबोधित किया गया था जो सताव और पीड़ा का सामना कर रहे थे। पतरस विशेष रूप से उन मसीही स्त्रियों को ध्यान में रखता है जो अविश्वासी पतियों से विवाहित हैं (1 पतरस 3:1)। यह पहली शताब्दी में एक चुनौतीपूर्ण स्थिति रही ।
फिलिस्तीन में महिलाएं पितृ-सत्तात्मक के व्यवस्था में सहभागिता रखती थीं, एशिया माइनर में महिलाओं को समाज में अधिक स्वतंत्रता थी। महिलाएं मतदान करने और सार्वजनिक पद धारण करने में सक्षम थीं। उन्हें कुछ संपत्ति अधिकारों की अनुमति दी गई थी, वे अपने स्वयं के व्यवसाय भी चलाते थे।
इसके बावजूद भी गैर-ईसाई पुरुषों से शादी करने वाली ईसाई महिलाएं कमजोर स्थितियों में थीं। एशिया माइनर में ईसाइयों ने उत्पीड़न और अविश्वास का अनुभव किया, केवल इसलिए कि मसीह के अनुयायी के रूप में पहचान होने पर एक महिला को खतरे में डाल दिया। और यदि उसका विवाह एक अविश्वासी (गैर-ईसाई पुरुष) से हुआ था, तो उसकी स्थिति और भी जटिल थी। जबकि एशिया माइनर में महिलाओं को समाज में अधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी, इसके बावजूद उनसे अपने पति के धर्म में भाग लेने की अपेक्षा की जाती थी। एक पत्नी द्वारा एक नया धर्म अपनाने को अवज्ञा के रूप में देखा जाता था। ऐसी परिस्थिति में प्राचीन लोगों ने परिवार के साझा धर्म को उन कारकों में से एक के रूप में देखा जो एक परिवार को एक साथ बांधते हैं। अंधविश्वासों का पालन करने वाली महिलाओं ने अनैतिक व्यवहार किया और घर को अस्थिर कर दिया। एशिया माइनर के समुदायों के भीतर कई लोगों ने पत्नी द्वारा ईसाई धर्म की खोज को एक खतरे के रूप में माना। प्रेरित पतरस ने पत्नियों को अपने अच्छे व्यवहार और अपने पतियों के सम्मान को सांस्कृतिक अविश्वास और अंधविश्वास को दूर करने के लिए प्रोत्साहित किया। संभवतया ये महिलाएं प्रभु यीशु मसीह के अधीनता के सिद्धांत को पालन करते हुए अपने पतियों के प्रति समर्पित होकर अपने पतियों को भी प्रभु के लिए जीत सकती हैं।
उत्पत्ति 2:7,18,21-24 -
[7]और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।
[18]फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उससे मेल खाए।
[21]तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भारी नीन्द में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उसने उसकी एक पसली निकाल कर उसकी सन्ती मांस भर दिया।
[22]और यहोवा परमेश्वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया।
[23]और आदम ने कहा अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है: सो इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।
[24]इस कारण पुरूष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बने रहेंगे।
उत्पत्ति 5:1-2 -
[1]आदम की वंशावली यह है। जब परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की तब अपने ही स्वरूप में उसको बनाया;
[2]उसने नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की और उन्हें आशीष दी, और उनकी सृष्टि के दिन उनका नाम आदम रखा।
उत्पत्ति 6:1-6,13-
[1]फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, और उनके बेटियां उत्पन्न हुई,
[2]तब परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्होंने जिस जिस को चाहा उनसे ब्याह कर लिया।
[3]और यहोवा ने कहा, मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लों विवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है: उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी।
[4]उन दिनों में पृथ्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्चात जब परमेश्वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियों के पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्पन्न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्ति प्राचीन काल से प्रचलित है।
(Rev12:4,1Pe18:19,Eph4:9,2Pe2:4,Job1:6;2:1,Mt22:30,Gen19:1-5,Mk16:5.)
[5]और यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है।
[6]और यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ।
[13]तब परमेश्वर ने नूह से कहा, सब प्राणियों के अन्त करने का प्रश्न मेरे साम्हने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृथ्वी उपद्रव से भर गई है, इसलिये मैं उनको पृथ्वी समेत नाश कर डालूंगा।
उत्पत्ति 9:1 - फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी और उन से कहा कि फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृथ्वी में भर जाओ।
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1Pe3:1- हे पत्नियों, तुम भी अपने पति के अधीन रहो।
अधीन रहो – प्रभुत्व के अधीन रहो। यही शब्द 1पतरस 2:17 में नागरिकों के और 1पतरस 2:18 में दासों के कर्तव्य के लिए प्रयोग किया गया है,जैसा कि लिखा है –
1 पतरस 2:17 (नागरिकों के कर्तव्य) –
सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्वर से डरो, राजा का सम्मान करो।
1 पतरस 2:18 (दासों के कर्तव्य) –
हे सेवकों, हर प्रकार के भय के साथ अपने स्वामियों के अधीन रहो, न केवल उनके जो भले और नम्र हों, पर उनके भी जो कुटिल हों।
‘अधीन' शब्द का तात्पर्य अधीनस्थ से सम्बद्ध है।
अधीनता- गुलामी, दासता या निम्न स्तर या योग्यता का प्रतिबिम्ब नहीं है। स्वयं, यीशु मसीह हमेशा से ही पिता की इच्छा के अधीन रहा और परमेश्वर पिता के अधीनता में रहकर परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ही यीशु मसीह ने मुक्ति योजना को पूरा किया। (लूका 22:42; यूहन्ना 5:30),
इफिसियों 5:21-24 -
[21]और मसीह के भय से एक दूसरे के अधीन रहो।
[22]हे पत्नियों, अपने अपने पति के ऐसे अधीन रहो, जैसे प्रभु के।
[23] क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और स्वयं ही देह का उद्धारकर्ता है।
[24]पर जैसे कलीसिया मसीह के अधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपने अपने पति के अधीन रहें।
एक पत्नी को अपने पति के अधीन होना चाहिए, इसलिए नहीं क्योंकि स्त्रियाँ निर्बल हैं, परन्तु इसलिए क्योंकि इसी तरह से परमेश्वर ने वैवाहिक सम्बन्धों को कार्य करने के लिए बनाया है।
पवित्र आत्मा से भरे हुए विश्वासियों को आराधना (इफिसियों 5:19), धन्यवाद (इफिसियों 5:20) और अधीनता (इफिसियों 5:21) से भरे हुए होना चाहिए।
पत्नी को यह याद रखना चाहिए कि परमेश्वर की नज़रों में नम्रता और मन की दीनता का बड़ा मूल्य है। (1पतरस3:4) ऐसे गुण दिखाने से एक पत्नी, मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी परमेश्वर के इच्छा पर चलकर पति के अधीन रह सकेगी। इसके अलावा इफिसियों 5:33 का दूसरा खण्ड के अनुसार पत्नी को अपने पति के लिए गहरा आदर होना चाहिए।
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1Pe3:2- इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हो जो वचन को न मानते हों, तौभी तुम्हारे भय सहित पवित्र चालचलन को देख कर बिना वचन के अपनी अपनी पत्नी के चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।
बिना वचन के अर्थात् एक उद्धार न पाया हुआ पति, अपनी पत्नी के मुख मसीहत के विषय में हर समय सुनने की अपेक्षा, उसके भक्तिपूर्ण जीवन में भले कार्यों को करते देखकर,मसीहत के लिए बेहतर तरीके से जीता जा सकता है।
यह कहा गया है कि किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत आदर्श बनने की सामर्थ किसी भी तर्क से अधिक मजबूत है। इसीलिए बाइबल कहती है कि पत्नियां अपने पति को उनके चाल-चलन से प्रभु के लिए जीत सकती है।
कुछ पुरुषों और स्त्रियों को अपने जीवनसाथी के अच्छे चाल-चलन को देखने के लिए वास्तव में अंधा होना आसान नहीं है।
आपके, असफलताओं और निराशाओं का सामना करने की क्षमता परमेश्वर के वचन में विश्वास और भरोसा का एक सही मापदंड है।
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1Pe3:3,4- [3] और तुम्हारा सिंगार, दिखावटी न हो, अर्थात् बाल गूंथने, और सोने के गहने, या भांति भांति के कपड़े पहिनना।
[4] वरन् तुम्हारा छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व, नम्रता और मन की दीनता की अविनाशी सजावट से सुसज्ज़ित रहे, क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा है।
3:3- इस पद में सब आभूषणों की मनाही नहीं है; यदि ऐसा होगा तो सारे वस्त्रों की भी मनाही होगी! यह आडम्बर का विरोध और मर्यादा एवं नम्रता के लिए उद्बोधित करता है।
असली सुंदरता ब्रांडेड कम्पनी के कपड़े, बैग, जूता, इत्यादि पहनने से नहीं आती। और न ही यह नवीनतम तकनीकी वस्तुएं (Gadgets) जैसे -- लैपटॉप और स्मार्टफोन, एक नई एसयूवी, या फैशन डिजाइनिंग वाले महंगे-महंगे जींस की पसंदीदा जोड़ी से आता है।
असली सुंदरता प्रभु के साथ नम्रता और मन की दीनता के संबंध से आता है। एक “कोमल और शांत आत्मा” प्रभु में उस प्रकार के भरोसे से बहती है जो केवल समय के साथ परमेश्वर के साथ संबंध द्वारा निर्मित होता है। यह मार्ग हमें सैलून या गहनों की दुकान पर जाने से मना नहीं करता है, लेकिन यह हमें याद दिलाता है कि आधुनिक जीवन के प्रतिष्ठा का प्रतीक (Symbol of Status) को अपने मूल्य के रूप में नहीं देखना चाहिए।
हमारे जीवनसाथी के साथ हमारा रिश्ता परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते को प्रभावित करता है।
यदि एक पति जो अपनी पत्नी के साथ असंगत तरीके से रहता है, उसकी प्रार्थनाओं में बाधा आ सकती है, तो क्या हमें पत्नियों के रूप में कुछ अलग ही उम्मीद करनी चाहिए।
यदि हम अपने पतियों के प्रति स्वार्थी व्यवहार कर रहे हैं? क्या हम भी अपनी प्रार्थनाओं को बाधित होते नहीं पाएंगे।
यदि हम अपने पतियों को गाली दे रहे हैं, अपमानित कर रहे हैं, शिकायत कर रहे हैं या उनके साथ तिरस्कार का व्यवहार कर रहे हैं?
पति और पत्नी दोनों को जीवन के अनुग्रह के सह-वारिस के रूप में एक दूसरे से प्यार करना, सम्मान करना, संजोना और सम्मान करना है।
1शमूएल16:7 - परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके डील की ऊंचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।
1तीमुथियुस2:9-10 -
[9]वैसे ही स्त्रियां भी संकोच और संयम के साथ सुहावने वस्त्रों से अपने आप को संवारे; न कि बाल गूंथने, और सोने, और मोतियों, और बहुमोल कपड़ों से, पर भले कामों से।
[10]क्योंकि परमेश्वर की भक्ति ग्रहण करने वाली स्त्रियों को यही उचित भी है।
पौलुस ने स्त्रियों को गहने पहनने, मेक-अप करने या बालों को गूँथने से मना नहीं किया है – इसके अपेक्षा वह कहता है, कि स्त्रियों का बाहरी दिखावा उनकी आन्तरिक सुन्दरता से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हो जाना चाहिए।
प्रेरित पतरस हमें इसी आत्मिक सच्चाई का स्मरण दिलाता है: “तुम्हारा श्रृंगार दिखावटी न हो, अर्थात् बाल गूँथना और सोने के गहने, या भाँति-भाँति के कपड़े पहिनना, वरन् तुम्हारा छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व, नम्रता और मन की दीनता की अविनाशी सजावट से सुसज्जित रहे, क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा है। पूर्वकाल में पवित्र स्त्रियाँ भी, जो परमेश्वर पर आशा रखती थीं, अपने आप को इसी रीति से संवारती थी और अपने-अपने पति के अधीन रहती थीं” (1 पतरस 3:3-5)। श्रृंगार के लिए गहने पहनने, मेक-अप करने या गुँथे हुए बालों में तब तक कुछ भी ऐसा नहीं है, जब तक इसे शालीन तरीके से किया जाए। एक स्त्री को अपनी बाहरी दिखावे के ऊपर इतना अधिक केन्द्रित नहीं हो जाना चाहिए, कि उसकी आन्तरिक आत्मिक जीवन ही अनदेखा होने लगे। बाइबल मन के ऊपर ध्यान केन्द्रित करती है। यदि एक स्त्री अपने दिखावे के ऊपर बहुत अधिक समय और धन को व्यय कर रही है, तब तो समस्या यह है, कि उसकी प्राथमिकताएँ गलत हैं। मंहगे गहने और कपड़े समस्या का परिणाम है, न कि स्वयं में समस्या है।
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1Pe3:5,6 -[5]और पूर्वकाल में पवित्र स्त्रियां भी, जो परमेश्वर पर आशा रखती थीं, अपने आप को इसी रीति से संवारती और अपने अपने पति के अधीन रहती थीं।
[6]जैसे सारा इब्राहीम की आज्ञा में रहती और उसे स्वामी कहती थी: सो तुम भी यदि भलाई करो, और किसी प्रकार के भय से भयभीत न हो तो उस की बेटियां ठहरोगी।
3:5,6 – क्योंकि सारा इब्राहिम के अधीन रही थी।
उत्पत्ति 18:12 - सो सारा मन में हंस कर कहने लगी, मैं तो बूढ़ी हूं, और मेरा पति भी बूढ़ा है, तो क्या मुझे यह सुख होगा?
इसलिए पतियों के अधीन रहने वाली स्त्रियां सारा की बेटियां ठहरती है।
याकूब 1:23-24-
[23]क्योंकि जो कोई वचन का सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है।
[24]इसलिये कि वह अपने आप को देख कर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि मैं कैसा था।
परिवार में कुछेक मामले ऐसे होते हैं जिनमें पत्नी की राय पति से नहीं मिलती। ऐसे में पत्नी अगर व्यवहार-कुशलता से अपनी राय पेश करे, तो यह पति की बेइज़्ज़ती करना नहीं होगा, फिर चाहे पति सच्चाई में हो या न हो। शायद पत्नी सही राय दे रही हो, इसलिए यदि पति उसकी बात सुनें तो पूरे परिवार को लाभ हो सकता है। याद कीजिए कि सारा ने परिवार की एक समस्या को समाधान करने के लिए सही सुझाव दिया था, फिर भी उसके पति इब्राहीम को उसकी बात पसंद नहीं लगी। परन्तु परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा: “जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान।” (उत्पत्ति 21:9-12) बेशक, पत्नी की सलाह सुनने के बाद भी आखिरकार फैसला लेनेवाला उसका पति ही होगा। उसका फैसला यदि परमेश्वर के नियम के विपरीत नहीं है, तो पत्नी को उसका पूरा साथ देना चाहिए। इससे वह दिखाएगी कि वह अपने पति के अधीन है।—प्रेरितों 5:29; इफिसियों 5:24.
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1Pe3:7 - वैसे ही हे पतियों, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जान कर उसका आदर करो, यह समझ कर कि हम दोनों जीवन के वरदान के वारिस हैं, जिससे तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं।
निर्बल पात्र – शारीरिक रुप से। जिससे तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं। जो पति अपनी पत्नी का उचित ध्यान देने में असफल रहता है वह उसके साथ प्रार्थना भी नहीं कर सकता।
यह सत्य है कि प्रार्थना करना उन तरीकों में से एक है, जिन्हें परमेश्वर ने हमारे जीने के तरीके में मदद करने के लिए नियुक्त किया है (कुलिस्सियों 1:9,10)। लेकिन साथ ही, सही जीने से भी हमें सही प्रार्थना करने में मदद करेगा।
यह वचन न केवल अपनी पत्नियों के साथ सही व्यवहार करने के लिए पुरुषों पर लागू होता है बल्कि उनके पतियों के साथ सही व्यवहार करने लिए स्त्रियों पर भी लागू होता हो। दोनों पक्षों को यह समझने का प्रयास करना चाहिए। यह आपके आत्मिक प्रभाव को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
मत्ती 25:40 - तब राजा उन्हें उत्तर देगा; मैं तुम से सच कहता हूं, कि तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।
अपने जीवनसाथी के साथ आपका रिश्ता आपके आत्मिक विकास को भी निर्धारित करता है।
अपने जीवनसाथी के साथ आपका रिश्ता यह भी निर्धारित करता है कि आप परमेश्वर के साथ अपने चलने में कितनी दूर तक जायेंगे।
आप दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, यह आपके चरित्र और परमेश्वर के साथ आपके रिश्ते को निर्धारित करता है।
1 पतरस 3:10 - क्योंकि जो कोई जीवन की इच्छा रखता है, और अच्छे दिन देखना चाहता है, वह अपनी जीभ को बुराई से, और अपने होंठों को छल की बातें करने से रोके रहे।
जीवन में आनंद और तृप्ति आपके होठों (वाणी) की ईमानदारी (पवित्रता) पर बहुत निर्भर करता है।
1 पतरस 3:12 - क्योंकि प्रभु की आंखे धमिर्यों पर लगी रहती हैं, और उसके कान उन की बिनती की ओर लगे रहते हैं, परन्तु प्रभु बुराई करने वालों के विमुख रहता है।
सारांश -
इस प्रकार प्रेरित पतरस ने पत्नियों के कर्तव्य पालन के लिए यह निर्देश दिये है कि -
1.अपने स्वयं के पति के अधीन रहें।
2.अपने अपने पतियों से विनम्र तथा शांत स्वभाव का आचरण करें।
3.अपने अपने पतियों के समक्ष जो कार्य सही हों उसका बिना भय के सुझाव व प्रस्ताव दें व कार्य करें।
इसके अलावा पतियों को आदेश दिए हैं कि पति-पत्नी दोनों ही जीवन के वरदान के वारिस हैं इसलिए वे आपस में परस्पर प्रेम के साथ रहें।
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