नासरत में यीशु का अनादर [ लूका4:16-30 ]
[16] और वह नासरत में आया; जहां पाला पोसा गया था; और अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिये खड़ा हुआ। He went to Nazareth, where he had been brought up, and on the Sabbath day he went into the synagogue, as was his custom. He stood up to read,
[17] यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक उसे दी गई, और उसने पुस्तक खोलकर, वह जगह निकाली जहां यह लिखा था: and the scroll of the prophet Isaiah was handed to him. Unrolling it, he found the place where it is written:
[18] “प्रभु का आत्मा मुझ पर है, इसलिये कि उसने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिये भेजा है कि बन्दियों को छुटकारे का और अन्धों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूं और कुचले हुओं को छुड़ाऊं, “The Spirit of the Lord is on me, Because he has anointed me To proclaim good news to the poor. He has sent me to proclaim freedom for the prisoners And recovery of sight for the blind, To set the oppressed free.
[19] और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार करूं।” to proclaim the year of the Lord’s favor.”
[20] तब उसने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथ में दे दी और बैठ गया; और आराधनालय के सब लोगों की आंखें उस पर लगी थीं। Then he rolled up the scroll, gave it back to the attendant and sat down. The eyes of everyone in the synagogue were fastened on him.
[21] तब वह उनसे कहने लगा, “आज ही यह लेख तुम्हारे साम्हने पूरा हुआ है। He began by saying to them, “Today this scripture is fulfilled in your hearing.”
[22] सब ने उसे सराहा, और जो अनुग्रह की बातें उसके मुंह से निकलती थीं, उनसे अचम्भित हुए; और कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?” All spoke well of him and were amazed at the gracious words that came from his lips. “Isn’t this Joseph’s son?” they asked.
[23] उसने उनसे कहा, “तुम मुझ पर यह कहावत अवश्य कहोगे, कि ‘हे वैद्य, अपने आप को अच्छा कर ! जो कुछ हम ने सुना है कि कफरनहूम में किया गया है, उसे यहां अपने देश में भी कर'।” Jesus said to them, “Surely you will quote this proverb to me: ‘Physician, heal yourself!’ And you will tell me, ‘Do here in your hometown what we have heard that you did in Capernaum.’ ”
[24] और उस ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूं, कोई भविष्यद्वक्ता अपने देश में मान-सम्मान नहीं पाता। “Truly I tell you,” he continued, “no prophet is accepted in his hometown.
[25] मैं तुम से सच कहता हूं कि एलिय्याह के दिनों में जब साढ़े तीन वर्ष तक आकाश बन्द रहा, यहां तक कि सारे देश में बड़ा अकाल पड़ा, तो इस्राएल में बहुत सी विधवाएं थीं। I assure you that there were many widows in Israel in Elijah’s time, when the sky was shut for three and a half years and there was a severe famine throughout the land.
[26] पर एलिय्याह उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, केवल सैदा के सारफत में एक विधवा के पास। Yet Elijah was not sent to any of them, but to a widow in Zarephath in the region of Sidon.
[27] और एलीशा भविष्यद्वक्ता के समय इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे, पर सीरियावासी नामान को छोड़ उनमें से कोई शुद्ध नहीं किया गया।” And there were many in Israel with leprosy in the time of Elisha the prophet, yet not one of them was cleansed—only Naaman the Syrian
[28] ये बातें सुनते ही जितने आराधनालय में थे, सब क्रोध से भर गए, All the people in the synagogue were furious when they heard this.
[29] और उठकर उसे नगर से बाहर निकाला, और जिस पहाड़ पर उनका नगर बसा हुआ था, उसकी चोटी पर ले चले कि उसे वहां से नीचे गिरा दें। They got up, drove him out of the town, and took him to the brow of the hill on which the town was built, in order to throw him off the cliff.
[30] परन्तु वह उनके बीच में से निकलकर चला गया। But he walked right through the crowd and went on his way.
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वचन का व्याख्यान
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[16] और वह नासरत में आया; जहां पाला पोसा गया था; और अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिये खड़ा हुआ।
यीशु, यूहन्ना बपतिस्ता से यरदन नदी में बपतिस्मा लिया और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर यरदन नदी से लौटा। इसके बाद यीशु आत्मा की प्रेरणा से 40 [चालीस] दिन तक जंगल में फिरता रहा और शैतान ने यीशु का परीक्षा करता रहा जिसमें यीशु ने शैतान के हर सवाल का जवाब वचन से देकर निरुत्तर किया, इस प्रकार शैतान पराजित होकर यीशु को छोड़कर चला गया।
यीशु आत्मा की सामर्थ्य से भरा हुआ गलील प्रदेश को लौटकर नासरत नगर आया; जहां पर यीशु का पालन-पोषण हुआ था और उसने अपनी साढ़े तीन वर्ष की सेवा में से अधिकतम समय गलील में ही बिताया था [मत्ती 2:22-23,3:13,4:12-16,23,15:29, 17:22, 19:1,21:11,26:32,69,27:55,28:7,16]। गलील के कुछ नगर जिनका वर्णन यीशु से सम्बन्धित है वे ये हैं—उत्तर में कैसरिया फिलिप्पी [मत्ती 16:13], कफरनहूम, बैतसैदा, खुराजीन और गलील के झील के आसपास का क्षेत्र, मगदला और तिबिरियास [मत्ती 4:13, 11:21-23,27:56, मर.6:45, यूह.6:23] और झील के दक्षिण में बसे हुए नासरत, काना और नाइन [लूका2:39,4:16,7:11, यूह.2:1-11,4:46,21:2]।
नासरत [Nazareth]-
नासरत एक पहाड़ी देश में स्थित था जो पलस्तीन के उत्तर में था जो गलील कहलाता था [यूह.1:43-46]। यह नगर आजकल इस्राएल के क्षेत्र में है और यह यीशु के समय से अधिक बड़ा और महत्वपूर्ण स्थान हो गया है।
नासरत की मुख्य विशेषता यह है कि इस स्थान पर यीशु ने अपने जीवन का सर्वाधिक समय व्यतीत कर किया था। इसका उल्लेख हमें ‘नया नियम’ में मिलता है।
यीशु के माता-पिता मूलतः नासरत के रहने वाले थे परन्तु उसके जन्म से पूर्व वे यहूदिया के बैतलहम को चले गए थे [लूका2:4]। यीशु के जन्म के पश्चात् यह परिवार, हेरोदेश राजा जो शिशुओं की हत्या निर्दयता से करवा रहा था, उसके भय से मिस्र को चला गया था और सम्भवतः दो वर्ष पश्चात् लौट कर पलस्तीन में आकर नासरत में बस गया था [मत्ती 2:19-23,लूका 2:39]। यीशु ने अपनी बाल्यावस्था नासरत में ही बिताई [लूका2:40,51;4:16], और ऐसा लगता है कि वह 30 वर्ष की आयु तक वहां रहा और इसके बाद उसने आम जनता में अपनी सेवा आरम्भ की [मरकुस 1:9, लूका 3:23]।
यहूदी लोगों की साधारण आदत थी कि वे व्यक्ति का परिचय उसके मूल नगर बतलाकर करते थे। यीशु का परिचय उसके प्रायः मित्रों, शत्रुओं द्वारा तथा स्वर्गदूतों,दुष्टात्माएं, साधारण लोगों, सरकारी अधिकारियों के द्वारा यीशु शास्त्री के नाम से दिया जाता था और उसने भी अपना परिचय इसी नगर से दिया था [मत्ती 26:71,मरकुस 1:23-24, 16:5-6; लूका 24:19, यूहन्ना 18:5, 19:19, प्रेरितों 2:22,22: 8]
सब्त के दिन [Sabbath Day] –
सब्त शब्द इब्रानी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ है – रुकना या विश्राम करना। यह सप्ताह के सातवें दिन की ओर संकेत करता है, शुक्रवार सूर्यास्त से शनिवार सूर्यास्त तक। यहूदियों में यह प्रचलन रहा है कि शनिवार को आराधना करते और कार्य से विश्राम लेते थे। सृष्टि की उत्पत्ति के वृत्तान्त में परमेश्वर ने छ: दिन कार्य करने के पश्चात् सातवें दिन विश्राम किया था [उत्प.2:1-3]। आरम्भिक दिनों ही से प्रायः लोग सप्ताह में छ: दिन ही कार्य करते थे [उत्प.8:10,12; 29:27] और परमेश्वर के लोग सात दिन में एक दिन विश्राम करते थे। ऐसा करने के दो उद्देश्य थे –
[1] प्रथम तो यह कि इससे परमेश्वर के लिए एक दिन पूर्णतः समर्पित हो और
[2] दूसरा यह कि इससे विश्राम मिले। जिससे कि लोग फिर से उत्साहित होकर कार्य करने में सक्षम हो सकें [निर्ग.16:22-30]।
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[17] यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक उसे दी गई, और उसने पुस्तक खोलकर, वह जगह निकाली जहां यह लिखा था:
[18] “प्रभु का आत्मा मुझ पर है, इसलिये कि उसने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिये भेजा है कि बन्दियों को छुटकारे का और अन्धों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूं और कुचले हुओं को छुड़ाऊं,
यीशु एक अद्भुत शिक्षक एवं लोकप्रिय उपदेशक रहे हैं, वे सरल शब्दों में उत्कृष्ट सत्य की व्याख्या करते रहे हैं। इसलिए जब वह अपने गृहनगर वापस लौटा, तब उसके लिए आराधनालयों में उपदेश देना स्वाभाविक था। आराधनालय की प्रथा थी कि पवित्र शास्त्र पढ़ते समय एक पुरूष को खड़ा रहना होता था। परन्तु फिर बैठ कर उस पाठ को समझाना होता था जिसे उसने पढ़ा था। पवित्र शास्त्र के जिस पाठ को यीशु ने पढ़ा था वह यशायाह 61:1-2 था, जो कि एक मसीहा पाठ था अर्थात् उद्धार का शुभ संदेश, जिसमें चंगाई और स्वतंत्रता भी सम्मिलित है। उसने अपने पठन को इन शब्दों में समाप्त किया, “प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार करूं” – यशायाह 61:2 वचन के बीच में रूककर बिना अगली पंक्ति को पढ़े जो कि परमेश्वर के पलटा लेने के विषय में है।
यशायाह भविष्यद्वक्ता – ई.पू. 740 से 701 के लगभग यशायाह यहूदा में एक भविष्यवक्ता था।
1.“प्रभु का आत्मा मुझ पर है – आत्मा का अर्थ है –त्रिएकता में तीसरा व्यक्ति। लूका लिखता है कि एक स्वर्गदूत ने मरियम से कहा कि पवित्र आत्मा उस पर उतरेगा और परमेश्वर की सामर्थ्य उस पर छाया करेगी और उसका पुत्र, यीशु परमेश्वर का पवित्र पुत्र कहलाएगा [लूका1:35]। परमेश्वर के साथ यीशु का सम्बन्ध बपतिस्मा के समय फिर से दोहराया गया है, “पवित्र आत्मा शारीरिक रूप में कबूतर के समान उस पर उतरा” [लूका3:32]। अपनी सेवा के आरम्भ में यीशु ने सब्त के दिन लोगों के समक्ष यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक से अध्याय-61:1 का एक पाठ पढ़ा और घोषणा की कि प्रभु का आत्मा उस पर है और कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिए उसको चुना गया है [लूका4:16-19]। यद्यपि यीशु के शत्रुओं ने उस पर दोष लगाया कि उसमें एक अशुद्ध आत्मा है [मर.3:28-30], तथापि यीशु ने दावा किया कि वह शैतान के द्वारा नहीं अपितु परमेश्वर के आत्मा द्वारा दुष्टात्माएं को निकालता है [मत्ती 12:28]। मत्ती के लेखक ने दावा किया कि यीशु “चुना हुआ सेवक” था। यशायाह ने कहा कि उसको परमेश्वर का आत्मा दिया जाएगा और वह राष्ट्रों के लिये धर्म से न्याय करेगा [मत्ती 12:15-21]।
यशायाह 42:1-4 -
[1]मेरे दास को देखो जिसे मैं संभाले हूं, मेरे चुने हुए को, जिस से मेरा जी प्रसन्न है; मैं ने उस पर अपना आत्मा रखा है, वह अन्यजातियों के लिये न्याय प्रगट करेगा।
[2]न वह चिल्लाएगा और न ऊंचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपनी वाणी सुनायेगा।
[3]कुचले हुए नरकट को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुझाएगा; वह सच्चाई से न्याय चुकाएगा।
[4]वह न थकेगा और न हियाव छोड़ेगा जब तक वह न्याय को पृथ्वी पर स्थिर न करे; और द्वीपों के लोग उसकी व्यवस्था की बाट जाहेंगे॥
2. कंगालों [गरीब या निर्धन] को सुसमाचार सुनाने के लिये यीशु का अभिषेक किया गया है –
अभिषेक-
“अभिषेक” शब्द का अर्थ है – रगड़ना या छिड़कना।
बाइबल के पुराने नियम के समय में याजकों, राजाओं और कभी-कभी नबियों को उनके पद पर नियुक्त करने के लिए अभिषेक की धार्मिक रीति सम्पन्न करने का उत्सव मनाया जाता था। अभिषेक पाने व्यक्ति के सिर पर पवित्र तेल को उण्डेला जाता था। यह तेल इस बात का चिन्ह था कि इस व्यक्ति को परमेश्वर की सेवा के लिए पवित्र ठहरा कर अलग किया गया है। इस प्रकार अभिषेक के बाद उसे अधिकार मिल जाता था कि वह अपने पद के अनुसार अपने कर्तव्य और उत्तरदायित्व को निभा कर पूरा सकें [निर्ग.28:14, गिनती 3:23, 1राजा 1:39,19:16, 2राजा9:3, भजन 18:50, 28:8,105:15]।
अभिषेक इस बात का प्रतीक था कि जिस व्यक्ति का अभिषेक किया गया है उसे परमेश्वर की सेवा हेतु तैयार करने के लिए उस पर परमेश्वर का आत्मा उण्डेला गया है [यशा.61:1, प्रेरितों10:38]।
अभिषेक और संस्कार करना – पवित्र करने का अर्थ था “विशेष अभिप्राय के लिए चुनना और अलग करना”। जिसका भी अभिषेक किया जाता या जिसे चुन लिया जाता था उसके सिर पर जैतून का तेल उण्डेला जाता था [निर्ग.28:41,29:7]। तेल के इस प्रकार उण्डेले जाने को “अभिषेक किया जाना” के रुप में जाना जाता था।
बाद में, जब इस्राएली कनान में बस गए, उन्होंने अपने ऊपर शासन करने के लिए एक राजा की मांग की। सामान्यतः इन राजाओं का लोगों या लोगों के अगुओं द्वारा अभिषेक यह दर्शाने के लिए किया जाता था कि नया राजा प्रभु यहोवा की ओर से चुना गया है।
पुराने नियम में व्यक्तियों का अक्सर तेल से अभिषेक किया जाता था। उदाहरण के लिए, याजकों का अभिषेक यहोवा की विशेष सेवा के लिए किया गया था (निर्गमन 28:41)। लेकिन उनके जीवन और सेवा पर पवित्र आत्मा के संकेत के रूप में तेल का उपयोग किया गया था। सिर पर तेल उनके भीतर चल रहे वास्तविक, आध्यात्मिक कार्य का केवल बाहरी प्रतिनिधित्व था।
इस भविष्यवाणी में, मसीहा ने घोषणा की कि वह पाप से होने वाली आध्यात्मिक एवं शारीरिक क्षति को ठीक करने आया है। हमारे जीवन में पाप बहुत ही बुरा प्रभाव डालता है जो बहुत ही कष्टदायक और दु:खदायक होता है। मनुष्य, मानसिक और शारीरिक, दोनों रूप में पाप करता है। इससे नैतिकता का हनन एवं मनुष्य का मन कलुषित तथा वातावरण दूषित-कलंकित होता है। इसका परिणाम जीवन और समाज में अशांति, दुख, अनाचार, अत्याचार, प्राकृतिक आपदा के रूप में दृष्टिगोचर होता है। क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है इसलिए पाप से छुटकारे के लिये सुसमाचार का प्रचार करना आवश्यक है।
कंगाल –
•गरीब, निर्धन , दरिद्र, भुक्खड़, जिसके पास कुछ खाने को न हो,
•वह व्यक्ति, जिसके पास कुछ भी धन न हो या न रह गया हो, अत्यंत निर्धन, बहुत गरीब।
•गरीबी या निर्धनता जीवन जीने के साधनों या इस हेतु धन के अभाव की स्थिति है।
•“गरीबी उन वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति का अभाव है जो व्यक्ति तथा उसके परिवार के स्वास्थ्य और कुशलता को बनाये रखने में आवश्यक है।” इस प्रकार केवल भोजन, वस्त्र और आवास के प्रबन्ध से ही निर्धनता की समस्या समाप्त नहीं हो जाती. बल्कि व्यक्तियों के लिए ऐसी वस्तुएँ भी प्राप्त होना आवश्यक है जिससे स्वास्थ्य और कुशलता का एक सामान्य स्तर बनाये रखा जा सके।
यशायाह नबी की पुस्तक में इस शब्द प्रयोग “ गरीब या विनम्र” के लिए किया गया है; जो आत्मिक रूप से गरीब हैं, और वे आध्यात्मिक गरीबी के बारे में नहीं जानते हैं। इसलिए उन्हें अपने बारे में और अपनी धार्मिकता के बारे में दीन और नम्र विचारधारा रखना है। हमें स्वर्गीय धन और सच्ची धार्मिकता के लिए मसीह पर विश्वास करना है और यह स्वीकार करना है कि जिनके पास जो कुछ भी है, या बहुत कुछ है, वह ईश्वर की कृपा से है। आम तौर पर हम सुनते और बोलते हैं कि अमुक व्यक्ति हमारे बीच में, अपने संगी साथियों में, रिश्तेदारों तथा समाज में बहुत ही गरीब है। जिनके पास प्राकृतिक ज्ञान और बुद्धि है, उनके द्वारा परमेश्वर के प्रेम, अनुग्रह, दया, शांति, क्षमा, धार्मिकता, जीवन का शुभ-सन्देश या मसीह में प्रचार किया गया। किन्तु मसीह द्वारा उद्धार की खुशखबरी का प्रचार पूरे अधिकार और सामर्थ्य के साथ किया गया जो इससे पहले इतना स्पष्ट तरीके से कभी किसी के द्वारा नहीं किया गया।
3. बन्दियों (कैदियों, गुलामों) को छुटकारे का उपदेश देना ;
वह व्यक्ति जो लिए हुए ऋण को चुकाने के बदले ऋणदाता के लिए श्रम करता है या सेवाएँ देता है, बँधुआ मजदूर (Debt bondage या bonded labor) कहलाता है। इन्हें ‘अनुबद्ध श्रमिक’ या ‘बंधक मज़दूर’ भी कहते हैं। कभी-कभी बंधुआ मजदूरी एक पीढी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती है।
बंधुआ मज़दूरी का सबसे अधिक प्रचलन कृषि क्षेत्र में है। परंपरागत रूप से भूमि का स्वामित्व उच्च सामजिक-आर्थिक स्तर वाले लोगों के पास है, जबकि निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर वाले लोगों के पास भूमि बहुत कम या न के बराबर होती है। परिणामस्वरूप ऐसे लोगों को विवश होकर बंधुआ मजदूर के रूप में दूसरे के खेतों में कार्य करना पड़ता है।
बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 को लागू करके बंधुआ मजदूरी प्रणाली को २५ अक्टूबर १९७५ से संपूर्ण देश से खत्म कर दिया गया। इस अधिनियम के जरिए बंधुआ मजदूर गुलामी से मुक्त हुए साथ ही उनके कर्ज की भी समाप्ति हुई। यह गुलामी की प्रथा को कानून द्वारा एक संज्ञेय दंडनीय अपराध बना दिया।
एक कैदी (एक कैदी या बंदी के रूप में भी जाना जाता है) एक ऐसा व्यक्ति है जो अपनी इच्छा के विरुद्ध स्वतंत्रता से वंचित है। यह कारावास, कैद या जबरन संयम से हो सकता है। यह शब्द विशेष रूप से जेल में जेल की सजा काटने के लिए लागू होता है ।
जो पाप, शैतान और व्यवस्था के बन्धुआई में हैं; जिससे उसके द्वारा ही छुटकारा है; जो अपरिपक्व प्रजा को उनके पापों से छुड़ाता, और व्यवस्था से छुड़ाता, और बन्धुआई में ले चलने से बचाता है; और जो स्वतंत्रता और छुटकारे का प्रचार किया जाता है और मसीह के सुसमाचार में प्रकाशित किया जाता है।
4. अंधे को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार –
बंदीगृह में बंद व्यक्ति अन्धकार में हैं, और प्रकाश को नहीं देखते हैं, इसलिए वे अंधे के रूप में दर्शाए गए हैं; और दोनों पापियों के मामले में हैं, वे पाप और व्यवस्था के बंदीगृह में हैं, और अंधे, अज्ञानी, और कैदी अपनी स्थिति से बेखबर हैं; जब तक कि मसीह दोनों बन्दीगृह को खोलकर उन्हें स्वतंत्र न कर दें, और उनकी आंखें खोलकर उन्हें आत्मिक दृष्टि न दें; जब वह बंदियों से कहता है, निकल जाओ, तो जो अन्धकार में हैं, अपने आप को दिखाओ।
यशायाह 49:9 - और जो अन्धियारे में हैं उन से कहे, अपने आप को दिखलाओ! वे मार्गों के किनारे किनारे पेट भरने पाएंगे, सब मुण्डे टीलों पर भी उन को चराई मिलेगी।
5. कुचले (उत्पीड़ित, शोषित,कष्ट या पीड़ा पहुंचाई गई हों) हुओं को छुड़ाऊं –
यशायाह 58:6- जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहने वालों का जुआ तोड़कर उन को छुड़ा लेना, और, सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?
यशायाह 42:7 – बंधुओं को बन्दीगृह से निकाले और जो अन्धियारे में बैठे हैं उन को काल कोठरी से निकाले।
उसने मुझे टूटे मनवालों को चंगा करने के लिए भेजा है ;
•यहोवा टूटे मन वालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है॥ (भजन संहिता 34:18)
•वह खेदित मन वालों को चंगा करता है, और उनके शोक पर मरहम- पट्टी बान्धता है। (भजन संहिता 147:3)
•टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता॥ (भजन संहिता 51:17)
•क्योंकि वह दुष्ट, कृपा करना भूल गया वरन् दीन और दरिद्र को सताता था और मार डालने की इच्छा से खेदित मन वालों के पीछे पड़ा रहता था। (भजन संहिता 109:16)
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[19] और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार करूं।”
प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार-
यशायाह ग्रंथ के प्रस्तुत उदाहरण में जयन्ती-वर्ष [लैव्य.25:10-17] का संकेत है वह प्रत्येक 50वें वर्ष पड़ता था। उस वर्ष पुराने ऋण माफ हो जाते थे, पैतृक भूसम्पत्ति लौटा दी जाती थी और दास मुक्त हो जाते थे। वह वर्ष यहां पर यीशु मसीह द्वारा लाती हुई मुक्ति का प्रतीक माना गया है।
लैव्यवस्था 25:10-17
[10]और उस पचासवें वर्ष को पवित्र करके मानना, और देश के सारे निवासियों के लिये छुटकारे का प्रचार करना; वह वर्ष तुम्हारे यहां जुबली कहलाए; उस में तुम अपनी अपनी निज भूमि और अपने अपने घराने में लौटने पाओगे।
[11]तुम्हारे यहां वह पचासवां वर्ष जुबली का वर्ष कहलाए; उस में तुम न बोना, और जो अपने आप ऊगे उसे भी न काटना, और न बिन छांटी हुई दाखलता की दाखों को तोड़ना।
[12]क्योंकि वह जो जुबली का वर्ष होगा; वह तुम्हारे लिये पवित्र होगा; तुम उसकी उपज खेत ही में से ले लेके खाना।
[13]इस जुबली के वर्ष में तुम अपनी अपनी निज भूमि को लौटने पाओगे।
[14]और यदि तुम अपने भाईबन्धु के हाथ कुछ बेचो वा अपने भाईबन्धु से कुछ मोल लो, तो तुम एक दूसरे पर अन्धेर न करना।
[15]जुबली के पीछे जितने वर्ष बीते हों उनकी गिनती के अनुसार दाम ठहराके एक दूसरे से मोल लेना, और शेष वर्षों की उपज के अनुसार वह तेरे हाथ बेचे।
[16]जितने वर्ष और रहें उतना ही दाम बढ़ाना, और जितने वर्ष कम रहें उतना ही दाम घटाना, क्योंकि वर्ष की उपज जितनी हों उतनी ही वह तेरे हाथ बेचेगा।
[17]और तुम अपने अपने भाईबन्धु पर अन्धेर न करना; अपने परमेश्वर का भय मानना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
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[20] - तब उस ने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथ में दे दी, और बैठ गया: और आराधनालय के सब लोगों की आंख उस पर लगी थीं।
पुस्तक:- ये यहूदी पवित्रशास्त्र की पुस्तकें हैं, जिसे मसीही पुराना नियम के नाम से जानते हैं। यहूदी पवित्रशास्त्र की पुस्तकें लम्बे कुण्डल-पत्रों या चर्मपत्रों पर लिखी जाती थी।
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[21] - तब वह उन से कहने लगा, कि आज ही यह लेख तुम्हारे साम्हने पूरा हुआ है।
यशायाह 61:1- 2 –
[1] प्रभु यहोवा का आत्मा मुझ पर है; क्योंकि यहोवा ने सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया और मुझे इसलिये भेजा है कि खेदित मन के लोगों को शान्ति दूं; कि बंधुओं के लिये स्वतंत्रता का और कैदियों के लिये छुटकारे का प्रचार करूं;
[2] कि यहोवा के प्रसन्न रहने के वर्ष का और हमारे परमेश्वर के पलटा लेने के दिन का प्रचार करूं; कि सब विलाप करने वालों को शान्ति दूं।
जब यीशु ने यह कहा कि “आज ही यह पवित्र शास्त्र का यह वचन तुम्हारे सामने में पूरा हुआ है, अर्थात् प्रभु यीशु मसीह ने यशायाह नबी की भविष्यवाणी के वचन को सब्त के दिन नासरत नगर के आराधनालय में लोगों के सामने पूरा किया। तब इसका अभिप्राय स्पष्ट था कि यीशु मसीहा होने का दावा कर रहा था जो परमेश्वर के राज्य को ला सकता था जिसकी प्रतिज्ञा इतने लम्बे समय से की गई थी – परन्तु उसका प्रथम आगमन उसके न्याय का समय नहीं था।
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[22] सब ने उसे सराहा, और जो अनुग्रह की बातें उसके मुंह से निकलती थीं, उनसे अचम्भित हुए; और कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?”
[23] उसने उनसे कहा, “तुम मुझ पर यह कहावत अवश्य कहोगे, कि ‘हे वैद्य, अपने आप को अच्छा कर ! जो कुछ हम ने सुना है कि कफरनहूम में किया गया है, उसे यहां अपने देश में भी कर'।”
[24] और उस ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूं, कोई भविष्यद्वक्ता अपने देश में मान-सम्मान नहीं पाता।
नासरत के लोग जिन्होंने यीशु को अपने गांव में बचपन से उसकी युवावस्था तक देखा था वे आश्चर्य करते थे कि रब्बियों की किसी भी पाठशाला में शिक्षा न पाने पर भी यीशु इतनी अच्छी रीति से कैसे उपदेश देता है। वे इस बात से भी अप्रसन्न थे कि वह उन्हें खुश करने के लिए आश्चर्यकर्म नहीं दिखाता है। एक बार उन्होंने अप्रसन्न होकर यीशु को नासरत के पास एक पहाड़ी पर से नीचे गिरा देने का प्रयत्न किया [मत्ती 13:53-58, लूका4:16-30, मरकुस 6:1-6]।
‘नया नियम’ के समय में अविश्वासी यहूदियों ने यीशु को उसके मसीह होने का इन्कार किया और उसे ‘ख्रिस्त' नहीं कहा। उन्होंने उसे केवल नासरत का यीशु या यीशु शास्त्री कहा तथा उसके चेलों को केवल शास्त्री कहा [प्रेरितों 24:5]। आज भी इब्रानी भाषा में और अरबी बोली में मसीहियों को शास्त्री कहा जाता है।
यीशु के अनुग्रह के वचनों से लोग चकित थे (2:18 पर टीका)। परन्तु तुरन्त ही वे उस अधिकार के विषय में बातें करने लगे कि यूसुफ का पुत्र- यीशु जिस बालक को उन्होंने अपने नगर में बढ़ते हुए देखा था – वह मसीहा कैसे हो सकता था? उनके विरोध का एहसास करते हुए यीशु ने दो अवसरों का उल्लेख किया– पहला, एलिय्याह और सारपत की विधवा और दूसरा, एलीशा और सीरियावासी नामान कोढ़ी का।
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[25] मैं तुम से सच कहता हूं कि एलिय्याह के दिनों में जब साढ़े तीन वर्ष तक आकाश बन्द रहा, यहां तक कि सारे देश में बड़ा अकाल पड़ा, तो इस्राएल में बहुत सी विधवाएं थीं।
[26] पर एलिय्याह उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, केवल सैदा के सारफत में एक विधवा के पास।
यहोवा ने निश्चय किया कि इस्राएल के दुष्ट राजा अहाब के राज में एक लंबे समय तक अकाल पड़ेगा। एलिय्याह के इस अकाल का भविष्यवाणी करने के बाद, परमेश्वर ने उसे अहाब की नज़रों से छिपाकर रखा, और चमत्कार करके इस भविष्यवक्ता के खाने का इंतज़ाम किया। कैसे ? कौए इस भविष्यवक्ता के लिए रोटी और माँस लाया करते थे। फिर यहोवा ने एलिय्याह से कहा: “चलकर सीदोन के सारपत नगर में जाकर वहीं रह: सुन, मैं ने वहां की एक विधवा को तेरे खिलाने की आज्ञा दी है।”—1 राजा 17:1-9.
जब एलिय्याह सारपत पहुँचा, तो उसने एक गरीब विधवा को लकड़ी बीनते हुए देखा। क्या यही वह स्त्री थी जो इस भविष्यवक्ता को खाना देती ? मगर क्या वह ऐसा कर पाती, क्योंकि वह खुद इतनी गरीब थी ? उस वक्त एलिय्याह के मन में जो भी चिंताएँ रही हों, इसके बावजूद वह इस स्त्री से बात करने लगा। एलिय्याह ने उससे कहा: “किसी पात्र में मेरे पीने को थोड़ा पानी ले आ।” जब वह उसके लिए पानी लेने जा रही थी, तो एलिय्याह ने उससे यह भी कहा: “अपने हाथ में एक टुकड़ा रोटी भी मेरे पास लेती आ।” (1 राजा 17:10, 11) एक अनजान व्यक्ति को पानी देना तो ठीक था, लेकिन जब रोटी देने की बात आयी, तो वह चिंता में पड़ गयी।
जवाब में स्त्री ने उससे कहा: “तेरे परमेश्वर यहोवा के जीवन की शपथ मेरे पास एक भी रोटी नहीं है केवल घड़े में मुट्ठी भर मैदा और कुप्पी में थोड़ा सा तेल है, और मैं दो एक लकड़ी बीनकर लिए जाती हूं कि अपने और अपने बेटे के लिये उसे पकाऊं, और हम उसे खाएं, फिर मर जाएं।” (1राजा 17:12)
एलिय्याह उस विधवा स्त्री से क्या करने के लिए कहता है। अभी-अभी उस स्त्री ने एलिय्याह को बताया था कि वह अपने और अपने बेटे के लिए आखिरी बार खाना बनाने जा रही है, ताकि वे दोनों उसे खाएँ और फिर मर जाएँ। इसके बावजूद, एलिय्याह ने उससे क्या कहा? “मत डर; जाकर अपनी बात के अनुसार कर, परन्तु पहिले मेरे लिये एक छोटी सी रोटी बनाकर मेरे पास ले आ, फिर इसके बाद अपने और अपने बेटे के लिये बनाना। क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि जब तक यहोवा भूमि पर मेंह न बरसाएगा तब तक न तो उस घड़े का मैदा चुकेगा [समाप्त होगा], और न उस कुप्पी का तेल घटेगा।”—1 राजा 17:11-14.
अगर किसी के पास सिर्फ एक वक्त का खाना बचा होता, और कोई उससे वह भी माँग लेता, तो शायद वह व्यक्ति कहता, ‘आप मज़ाक तो नहीं कर रहे हैं?’ लेकिन उस विधवा ने ऐसा नहीं कहा। हालाँकि वह यहोवा के बारे में थोड़ा-बहुत ही जानती थी, फिर भी उसने एलिय्याह की बात पर भरोसा किया और वही किया, जो एलिय्याह ने उससे करने के लिए कहा था। वाकई यह उसके विश्वास की एक बड़ी परीक्षा थी, लेकिन उसने कितना बुद्धि-भरा फैसला लिया!
सारपत की विधवा भविष्यवक्ता एलिय्याह को खाना देते हुए परमेश्वर ने उस गरीब विधवा को उसके हाल पर यूँ ही नहीं छोड़ दिया। ठीक जैसे एलिय्याह ने वादा किया था, यहोवा ने उस गरीब विधवा के थोड़े से तेल और मैदा को कई गुना बढ़ाया, ताकि अकाल के खत्म होने तक एलिय्याह, गरीब विधवा और उसके बेटे, तीनों को खाने का मुहताज न होना पड़े। बेशक, “यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने एलिय्याह के द्वारा कहा था, न तो उस घड़े का मैदा चुका, और न उस कुप्पी का तेल घट गया।” (1 राजा 17:16; 18:1) अगर उस स्त्री ने एलिय्याह की बात न मानी होती, तो उसके पास बचे थोड़े-से तेल और मैदे से बनी वह रोटी शायद उसके जीवन का आखिरी खाना साबित होती। इसके बजाय, उसने अपने कामों से अपना विश्वास व्यक्त किया। उसने यहोवा पर भरोसा रखा और एलिय्याह को पहले खाना खिलाया।
जब हम परीक्षाओं का सामना करते हैं, तो हमें बाइबल और बाइबल पर आधारित वचनों से यहोवा का मार्गदर्शन पाने की कोशिश करनी चाहिए। फिर हमें उसके मार्गदर्शन के अनुसार काम करना चाहिए, फिर चाहे उसे स्वीकारना हमें कितना ही मुश्किल क्यों न लगे। अगर हम इस बुद्धि-भरे नीतिवचन के मुताबिक काम करेंगे, तो हमें ज़रूर आशीष मिलेगी: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।”—नीति. 3:5, 6.
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[27] और एलीशा भविष्यद्वक्ता के समय इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे, पर सीरियावासी नामान को छोड़ उनमें से कोई शुद्ध नहीं किया गया।”
•2 राजा 5:1-19 में नामान का कोढ़ से चंगाई का वर्णन है।
2 राजा 5:1-19 -
[1]अराम के राजा का नामान नाम सेनापति अपने स्वामी की दृष्टि में बड़ा और प्रतिष्ठित पुरुष था, क्योंकि यहोवा ने उसके द्वारा अरामियों को विजयी किया था, और यह शूरवीर था, परन्तु कोढ़ी था।
[2]अरामी लोग दल बान्ध कर इस्राएल के देश में जा कर वहां से एक छोटी लड़की बन्धुवाई में ले आए थे और वह नामान की पत्नी की सेवा करती थी।
[3]उसने अपनी स्वामिन से कहा, जो मेरा स्वामी शोमरोन के भविष्यद्वक्ता के पास होता, तो क्या ही अच्छा होता! क्योंकि वह उसको कोढ़ से चंगा कर देता।
[4]तो किसी ने उसके प्रभु के पास जा कर कह दिया, कि इस्राएली लड़की इस प्रकार कहती है।
[5]अराम के राजा ने कहा, तू जा, मैं इस्राएल के राजा के पास एक पत्र भेजूंगा; तब वह दस किक्कार चान्दी और छ:हजार टुकड़े सोना, और दस जोड़े कपड़े साथ ले कर रवाना हो गया।
[6]और वह इस्राएल के राजा के पास वह पत्र ले गया जिस में यह लिखा था, कि जब यह पत्र तुझे मिले, तब जानना कि मैं ने नामान नाम अपने एक कर्मचारी को तेरे पास इसलिये भेजा है, कि तू उसका कोढ़ दूर कर दे।
[7]इस पत्र के पढ़ने पर इस्राएल का राजा अपने वस्त्र फाड़ कर बोला, क्या मैं मारने वाला और जिलाने वाला परमेश्वर हूँ कि उस पुरुष ने मेरे पास किसी को इसलिये भेजा है कि मैं उसका कोढ़ दूर करूं? सोच विचार तो करो, वह मुझ से झगड़े का कारण ढूंढ़ता होगा।
[8]यह सुनकर कि इस्राएल के राजा ने अपने वस्त्र फाड़े हैं, परमेश्वर के भक्त एलीशा ने राजा के पास कहला भेजा, तू ने क्यों अपने वस्त्र फाड़े हैं? वह मेरे पास आए, तब जान लेगा, कि इस्राएल में भविष्यद्वक्ता तो है।
[9]तब नामान घोड़ों और रथों समेत एलीशा के द्वार पर आकर खड़ा हुआ।
[10]तब एलीशा ने एक दूत से उसके पास यह कहला भेजा, कि तू जा कर यरदन में सात बार डुबकी मार, तब तेरा शरीर ज्यों का त्यों हो जाएगा, और तू शुद्ध होगा।
[11]परन्तु नामान क्रोधित हो यह कहता हुआ चला गया, कि मैं ने तो सोचा था, कि अवश्य वह मेरे पास बाहर आएगा, और खड़ा हो कर अपने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना कर के कोढ़ के स्थान पर अपना हाथ फेर कर कोढ़ को दूर करेगा!
[12]क्या दमिश्क की अबाना और पर्पर नदियां इस्राएल के सब जलाशयों से अत्तम नहीं हैं? क्या मैं उन में स्नान कर के शुद्ध नहीं हो सकता हूँ? इसलिये वह जलजलाहट से भरा हुआ लौट कर चला गया।
[13]तब उसके सेवक पास आकर कहने लगे, हे हमारे पिता यदि भविष्यद्वक्ता तुझे कोई भारी काम करने की आज्ञा देता, तो क्या तू उसे न करता? फिर जब वह कहता है, कि स्नान कर के शुद्ध हो जा, तो कितना अधिक इसे मानना चाहिये।
[14]तब उसने परमेश्वर के भक्त के वचन के अनुसार यरदन को जा कर उस में सात बार डुबकी मारी, और उसका शरीर छोटे लड़के का सा हो गया; उौर वह शुद्ध हो गया।
[15]तब वह अपने सब दल बल समेत परमेश्वर के भक्त के यहां लौट आया, और उसके सम्मुख खड़ा हो कर कहने लगा सुन, अब मैं ने जान लिया है, कि समस्त पृथ्वी में इस्राएल को छोड़ और कहीं परमेश्वर नहीं है। इसलिये अब अपने दास की भेंट ग्रहण कर।
[16]एलीशा ने कहा, यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थित रहता हूँ उसके जीवन की शपथ मैं कुछ भेंट न लूंगा, और जब उसने उसको बहुत विवश किया कि भेंट को ग्रहण करे, तब भी वह इनकार ही करता रहा।
[17]तब नामान ने कहा, अच्छा, तो तेरे दास को दो खच्चर मिट्टी मिले, क्योंकि आगे को तेरा दास यहोवा को छोड़ और किसी ईश्वर को होमबलि वा मेलबलि न चढ़ाएगा।
[18]एक बात तो यहोवा तेरे दास के लिये क्षमा करे, कि जब मेरा स्वामी रिम्मोन के भवन में दण्डवत करने को जाए, और वह मेरे हाथ का सहारा ले, और यों मुझे भी रिम्मोन के भवन में दण्डवत करनी पड़े, तब यहोवा तेरे दास का यह काम क्षमा करे कि मैं रिम्मोन के भवन में दण्डवत करूं।
[19]उसने उस से कहा, कुशल से बिदा हो।
•विश्वास करने से नामान ने चंगाई को पाया -
यीशु ने नामान की कहानी का उपयोग यहूदियों के अविश्वास को दर्शाने के लिए किया था जब उसने कहा था, “और एलीशा भविष्यद्वक्ता के समय इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे, पर नामान सीरियावासी को छोड़ उन में से कोई शुद्ध नहीं किया गया ”(लुका 4:27)। यीशु पाप की कोढ़ से जाति की परवाह किए बिना सभी लोगों को शुद्ध करने के लिए आया था (रोमियों 2:11)। और केवल उसकी योग्यता में विश्वास के माध्यम से और उसकी आज्ञा के अनुसार उसकी सक्षम कृपा से लोग ईश्वर के साथ अनुग्रह पा सकते हैं (प्रकाशितवाक्य 14:14)।
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[28] ये बातें सुनते ही जितने आराधनालय में थे, सब क्रोध से भर गए,
[29] और उठकर उसे नगर से बाहर निकाला, और जिस पहाड़ पर उनका नगर बसा हुआ था, उसकी चोटी पर ले चले कि उसे वहां से नीचे गिरा दें।
[30] परन्तु वह उनके बीच में से निकलकर चला गया।
परमेश्वर की आशीषों का यहूदियों की अपेक्षा अन्यजातियों द्वारा प्राप्त करने के विषय में यीशु की बातें सुनकर लोग क्रोध से भर गये। उन्होंने उसे मार डालने का प्रयास किया, परन्तु वह भीड़ के बीच में से होकर निकल गया। नि:संदेह लूका ने उस क्रोधित भीड़ से एक चमत्कारी बचाव का वर्णन किया। यह नमूना यीशु की शेष सेवकाई में लगातार देखा गया है। यीशु यहूदियों के पास गया, उन्होंने उसका तिरस्कार किया, उसने राज्य में अन्यजातियों के सहभागी होने की बात की, कुछ यहूदी उसे मार डालना चाहते थे। परन्तु वह नहीं मार डाला गया, क्योंकि उनका मरने का उचित समय नहीं आया था।
जब यीशु ने मरने का चुनाव किया -
लूका 23:46 - और यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा; हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं: और यह कहकर प्राण छोड़ दिए।
यूहन्ना 10:15,17-18 -
[15]इसी तरह मैं अपनी भेड़ों को जानता हूं, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं, और मैं भेड़ों के लिये अपना प्राण देता हूं।
[17]पिता इसलिये मुझ से प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूं, कि उसे फिर ले लूं।
[18]कोई उसे मुझ से छीनता नहीं, वरन मैं उसे आप ही देता हूं: मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है: यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।
भविष्यवाणी के उन शब्दों में ध्यान करें कि प्रभु यीशु किसको छुड़ाने आया था – कंगालों, बंदियों, अन्धों, और कुचले हुओं को। वे पाप, दुःख, सताव, और शोषण के कारण अमानवीय हो गए लोगों को, और हमें बचाने के लिए आए थे।
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