|| यीशु ने कहा, "देखो, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ। मेरा पुरस्कार मेरे पास है और मैं प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों का प्रतिफल दूँगा। मैं अल्फा और ओमेगा; प्रथम और अन्तिम; आदि और अन्त हूँ।" Revelation 22:12-13     
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बड़े भोज का दृष्‍टान्‍त [ Parable of the Great Banquet]


 

                                                बड़े भोज का दृष्‍टान्‍त [Parable of the Great Banquet]                                                                                                                    लूका [Luke]14:15-24 –

[15] उसके साथ भोजन करने वालों में से एक ने ये बातें सुनकर उस से कहा, धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य में रोटी खाएगा।

[16] उस ने उस से कहा; किसी मनुष्य ने बड़ी जेवनार की और बहुतों को बुलाया।

[17] जब भोजन तैयार हो गया, तो उस ने अपने दास के हाथ नेवतहारियों को कहला भेजा, कि आओ; अब भोजन तैयार है।

[18] पर वे सब के सब क्षमा मांगने लगे, पहिले ने उस से कहा, मैं ने खेत मोल लिया है; और अवश्य है कि उसे देखूं: मैं तुझ से बिनती करता हूं, मुझे क्षमा करा दे।

[19] दूसरे ने कहा, मैं ने पांच जोड़े बैल मोल लिए हैं: और उन्हें परखने जाता हूं : मैं तुझ से बिनती करता हूं, मुझे क्षमा करा दे।

[20] एक और ने कहा; मै ने ब्याह किया है, इसलिये मैं नहीं आ सकता।

[21] उस दास ने आकर अपने स्वामी को ये बातें कह सुनाईं, तब घर के स्वामी ने क्रोध में आकर अपने दास से कहा, नगर के बाजारों और गलियों में तुरन्त जाकर कंगालों, टुण्डों, लंगड़ों और अन्धों को यहां ले आओ।

[22] दास ने फिर कहा; हे स्वामी, जैसे तू ने कहा था, वैसे ही किया गया है; फिर भी जगह है।

[23 ]स्वामी ने दास से कहा, सड़कों पर और बाड़ों की ओर जाकर लोगों को बरबस ले ही आ ताकि मेरा घर भर जाए।

[24] क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि उन नेवते हुओं में से कोई मेरी जेवनार को न चखेगा।

[15] When one of those at the table with him heard this, he said to Jesus, “Blessed is the one who will eat at the feast in the kingdom of God.”

[16] Jesus replied: “A certain man was preparing a great banquet and invited many guests.

[17] At the time of the banquet he sent his servant to tell those who had been invited, ‘Come, for everything is now ready.’

[18] “But they all alike began to make excuses. The first said, ‘I have just bought a field, and I must go and see it. Please excuse me.’

[19] “Another said, ‘I have just bought five yoke of oxen, and I’m on my way to try them out. Please excuse me.’

[20] “Still another said, ‘I just got married, so I can’t come.’

[21] “The servant came back and reported this to his master. Then the owner of the house became angry and ordered his servant, ‘Go out quickly into the streets and alleys of the town and bring in the poor, the crippled, the blind and the lame.’

[22] “ ‘Sir,’ the servant said, ‘what you ordered has been done, but there is still room.’

[23] “Then the master told his servant, ‘Go out to the roads and country lanes and compel them to come in, so that my house will be full.

[24] I tell you, not one of those who were invited will get a taste of my banquet.’ ”

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प्रस्तुत बड़े भोज के दृष्टांत में पात्रों का परिचय इस प्रकार है:---

1.स्वामी – परमेश्वर है;

2.भोज – मसीह के आध्यात्मिक राज्य की सुख-शान्ति है;

3.नौकर – नबी और यीशु के शिष्य हैं;

4.निमंत्रण अस्वीकार करने वाले लोग – यीशु के विरोधी यहूदी हैं; और

5.बाजारों और गलियों से बुलाये गये अतिथि – पापी और गैर-यहूदी हैं।

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------                                                                                    वचन का व्याख्यान

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[15] उसके साथ भोजन करने वालों में से एक ने ये बातें सुनकर उस से कहा, धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य में रोटी खाएगा।

ये बातें सुनकर – अर्थात् एक सब्‍त के दिन प्रभु यीशु मसीह फरीसियों के सरदारों में से किसी के घर भोजन करने गया था (लूका 14:1)। किसी ने यीशु से निमंत्रण देने वाले को यह कहते हुए सुना कि – “पर जब तुम भोज दो, तो कंगालों, लूलों, लंगड़ों, और अन्धों को बुलाओ। तुम धन्य होंगे कि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है, क्योंकि धर्मियों के पुनरुत्थान के समय तुम्हारा बदला चुका दिया जायेगा” (लूका 14:13,14)। तब किसी ने यीशु से यह कहा कि ‘‘धन्‍य है वह जो परमेश्‍वर के राज्‍य में रोटी खाएगा।’’--- इसका तात्पर्य यह है कि परमेश्वर ने समस्त मानव जाति के लिए उद्धार का संदेश दिया और प्रभु यीशु मसीह ने हम सबों के पापों से मुक्ति के लिए स्वयं को क्रूस पर बलिदान दे दिया। परमेश्वर हम मानव जातियों को स्वर्ग राज्य में प्रवेश हेतु आमंत्रित किया है तो हम अपने पापों से पश्चाताप करें और प्रभु यीशु मसीह के सम्मुख आयें और उसका अनुकरण करें। प्रभु यीशु मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है ताकि हम स्वर्गीय भोज में परमेश्वर के साथ शामिल हो सकेंगे।

‘‘धन्‍य है वह जो परमेश्‍वर के राज्‍य में रोटी खाएगा।’’--- उस व्यक्ति के इसी कथन के पश्‍चात् प्रभु यीशु मसीह ने उसे बड़े भोज का दृष्‍टान्‍त सुनाया।

परमेश्वर ने मानव जाति के लिए मुक्ति विधान के कार्य को यीशु मसीह के द्वारा सम्पन्न किया। प्रस्तुत दृष्टांत में परमेश्वर ने जगत के सारे लोगों के लिए अनन्त जीवन का आमंत्रण नम्रतापूर्वक निवेदन किया है और आदेश भी दिया है जिससे कि कोई भी व्यक्ति अनन्त जीवन के राज्य में प्रवेश होने से वंचित न हों सके। इसके लिए कोई भी बहानें स्वीकार्य नहीं है-- चाहे वे जानें-अनजानें में हों, अज्ञानतावश में हों, या फिर मिथ्यात्मकता के आधार पर हों।

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[16] उस ने उस से कहा; किसी मनुष्य ने बड़ी जेवनार की और बहुतों को बुलाया।

[17] जब भोजन तैयार हो गया, तो उस ने अपने दास के हाथ नेवतहारियों को कहला भेजा, कि आओ; अब भोजन तैयार है।

जब कोई भी व्यक्ति किसी विशेष उत्सव (विवाहोत्सव, सेमीनार एवं कार्यशाला का आयोजन, बड़े भोज, बाइबल क्लास, अन्य धार्मिक उत्सव आदि) को मनाने के लिए बहुत दिन पहले से ही कार्यक्रम की होने वाली व्यवस्था की तैयारी में लग जाता है ताकि आयोजित होने वाली कार्यक्रम सफल हो सके।

उस समय में यह परम्‍परा थी कि भोज के आयोजन के काफी समय पूर्व नेवताहारियों को नेवते की सूचना दी जाती थी और फिर भोज के दिन सभी तैयारी के पश्‍चात् पुनः उन्‍हें अन्तिम सूचना भेजी जाती थी। इस आमंत्रण को ठुकराना आतिथ्य (मेज़बान) की बेइज्‍जती करना माना जाता था और सामाजिक रूप से भी आमंत्रण को ठुकराने वाले लोगों को घृणा (हिकारत) की दृष्टि से देखा जाता था। अतः निमंत्रण को ठुकराना कोई हल्‍की बात नहीं थी किन्‍तु यह जान बूझकर की जाने वाली गलती थी।

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[18] पर वे सब के सब क्षमा मांगने लगे, पहिले ने उस से कहा, मैं ने खेत मोल लिया है; और अवश्य है कि उसे देखूं: मैं तुझ से बिनती करता हूं, मुझे क्षमा करा दे।

[19] दूसरे ने कहा, मैं ने पांच जोड़े बैल मोल लिए हैं: और उन्हें परखने जाता हूं : मैं तुझ से बिनती करता हूं, मुझे क्षमा करा दे।

[20] एक और ने कहा; मै ने ब्याह किया है, इसलिये मैं नहीं आ सकता।

आमंत्रित लोगों के क्षमा याचना का वर्णन –

प्रस्तुत दृष्टांत में किसी मनुष्य ने बड़े भोज का आयोजन की तैयारी को पूरी कर लिया तो वह मनुष्य सभी नेवताहारियों को भोजन के लिए अपने दासों को बुलवाने भेजा। किन्तु सभी नेवताहारियों ने कोई न कोई बहाने करके स्वामी के बड़े भोज में शामिल नहीं हुए।

इस प्रकार सभी निमंत्रित लोगों ने एक-एक बहाने करके बड़े भोज में अपनी उपस्थिति हेतु असमर्थता प्रगट कर दास से विनती की कि उनकी ओर से वह अपने स्‍वामी से क्षमा मांग ले।

1.पहले व्‍यक्ति के बड़े भोज में उपस्थित नहीं होने का यह कारण बताया कि उसने खेत मोल लिया है और उसे देखने जाना आवश्‍यक है। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि जब कोई व्‍यक्ति खेत या कोई भूखण्ड क्रय का योजना बनाता है तो सबसे पहले ठीक रीति से देखता और परखता है और पूर्ण रूप से संतुष्ट होने पर ही सम्पत्ति की खरीददारी करता है। चूंकि पहले व्यक्ति ने तो खेत खरीद चुका है जिसे वह बड़े भोज के बाद भी देख सकता था। दरअसल, पहले व्यक्ति को बड़े भोज में शामिल होने की इच्‍छा ही नहीं थी। अतः पहले व्यक्ति का बड़े भोज में शामिल नहीं होने का यह कारण बहानेबाजी के सिवाय कुछ और नहीं है। उस पहले व्यक्ति ने स्‍वामी के इस आमंत्रण को ठुकराया और उसका निरादर किया, जिसके प्रति उसके दिल में ग़लती करने का एहसास भी नहीं था। वह केवल औपचारिकतावश क्षमा मांग रहा था। इससे स्पष्ट है कि सम्‍पत्ति के मोह में पहले व्यक्ति ने स्‍वामी के आमंत्रण को ठुकरा दिया क्योंकि सम्‍पत्ति उसके जीवन में अधिक महत्व रखता था। अस्तु, पहले व्यक्ति ने स्वामी के निमंत्रण में उपस्थित होने के बजाय सम्पत्ति को प्रा‍थमिकता दिया।

2. दूसरे व्‍यक्ति ने आयोजित बड़े भोज में उपस्थित न होने का कारण बताया कि उसने पांच जोड़े बैल मोल लिये हैं और उन्‍हें परखना आवश्‍यक है। यहां पर भी यह ध्यान देने वाली बात है कि पहले व्यक्ति ने जैसा बहाना बनाया वैसे ही दूसरे व्यक्ति ने भी आयोजित बड़े भोज में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करने के संबंध में बताया। दूसरे व्यक्ति ने बैल खरीदा जिसे वह पूर्व निर्धारित बड़े भोज में शामिल होने के पश्चात् भी परखने के लिए बैल को खेत में ले जा सकता था। किन्तु दूसरे व्यक्ति ने भी पहले व्यक्ति के भांति स्वामी के निमंत्रण को नजरंदाज किया और आतिथ्य का आदर मान नहीं रखा। केवल आयोजित बड़े भोज में शामिल न होकर औपचारिकता को पूरा करते हुए क्षमा याचना की मांग स्वामी के दास से किया कि अपने स्वामी से निवेदन करें। दूसरे व्यक्ति ने स्वामी के बड़े भोज में शामिल न होने के लिए अपने व्यवसाय की उन्नति को महत्त्वपूर्ण समझा।

3. एक और अर्थात् तीसरे व्‍यक्ति ने कहा कि मैंने ब्याह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता - बड़ा विचित्र किस्म का बहाना बनाया ताकि उन्हें बड़े भोज में शामिल न होना पड़े। इस बहाने से स्पष्ट है कि उस व्‍यक्ति की स्‍वामी के बड़े भोज में शामिल होने की इच्‍छा ही नहीं था। वास्‍तव में, यदि उसे आयोजित बड़े भोज में उपस्थित होने की चाहत होती तो वह अपनी पत्‍नी को साथ लेकर वहां उपस्थित हो सकता था‌। सम्भवतः तब उसका स्‍वामी उसके इस व्‍यवहार से और भी प्रसन्‍न होता। क्योंकि बड़े भोज में शामिल होना तो एकाध-दो घण्टे अर्थात् कुछ ही समय व्यतीत करने की बात थी। जिस पर वास्‍तव में स्‍वामी का अधिकार बनता था, परन्तु पारिवारिक कारणों का बहाना बनाकर स्वामी के बड़े भोज के निमंत्रण को तुच्छ जाना और आयोजित बड़े भोज में शामिल नहीं हुआ। इस प्रकार तीसरे व्यक्ति ने आयोजित बड़े भोज में उपस्थित होने से ज्यादा महत्व अपने परिवार को दिया।

कतिपय लोग कलीसियाई जिम्‍मेदारियों को इसी तरह के बहानें का हवाला देकर पूरा करने से मना कर देते हैं। यह सुनना बड़ी सहज की बात है कि एक रविवार का दिन ही तो मिलता है जिसमें कामकाज से छुट्टी पाकर पारिवारिक जिम्‍मेदारियां पूर्ण करने का समय मिलता है। प्रायः लोगों के लिए रविवार का दिन आराम से परिवार के साथ बिताने के लिए, या पिकनिक मनाने के लिए भी उपयुक्‍त समय होता है। ऐसे ही विचारधारा के लोग आराधनालय भी उपस्थित नहीं हो पाते हैं। जबकि वे विश्राम दिवस का महत्व को समझकर आराधनालय में सपरिवार उपस्थित होते और इसके पश्चात् परिवार के साथ समय व्यतीत कर पाते तो उन सभों का भला होता। बहरहाल, परमेश्वर पिता के ठहराये हुए पवित्र विश्राम दिन में हम विश्वासियों को पिता के भवन में अनिवार्यत: अपनी उपस्थिति दर्ज करना है। यह उसका आमंत्रण है कि सप्‍ताह के प्रथम दिन हम शिक्षा पाने, संगति रखने और प्रार्थना करने के लिए उसके आराधनालय में उपस्थित हों। (प्रेरितों 2:42 ) कुछ लोग धन कमाने की धुन में तथा व्‍यवसायिक जिम्‍मेदारियों को पूरा करने में उलझकर रह जाते हैं कि परमेश्‍वर के प्रति उनके हृदय में न ही कोई भय रह जाता है न ही कोई आदर मान। अतः उनके जीवन में परमेश्‍वर के लिए प्रथम स्‍थान देने का महत्व ही नहीं रह जाता है।

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[21] उस दास ने आकर अपने स्वामी को ये बातें कह सुनाईं, तब घर के स्वामी ने क्रोध में आकर अपने दास से कहा, नगर के बाजारों और गलियों में तुरन्त जाकर कंगालों, टुण्डों, लंगड़ों और अन्धों को यहां ले आओ।

[22] दास ने फिर कहा; हे स्वामी, जैसे तू ने कहा था, वैसे ही किया गया है; फिर भी जगह है।

[23] स्वामी ने दास से कहा, सड़कों पर और बाड़ों की ओर जाकर लोगों को बरबस ले ही आ ताकि मेरा घर भर जाए।

दास ने आकर अपने स्‍वामी को आमंत्रित लोगों की बातें कह सुनायीं। तब स्‍वामी क्रोधित हुआ और उसने अपने दास को आज्ञा दी कि बाज़ार और गलियों में जाकर तुरन्‍त कंगालों, टुण्‍डों, लंगड़ों और अन्‍धों को यहां ले आओ। दास ने वैसा ही किया फिर भी और जगह बच गई। तब स्‍वामी ने दास को दूसरी बार पुनः भेजा कि और भी लोगों को बुला लाए जिससे उसका घर भर जाए और फिर यदि कोई आमंत्रि‍त लोग बाद में पछताकर आना भी चाहे तो भी वह घर में प्रवेश न कर पाए।

स्वामी के क्रोध का वर्णन –

लोगों ने तो स्‍वामी का आमंत्रण को ठुकराना बड़ी हल्‍की बात समझ लिये थे। उन्‍हें स्‍वामी के क्रोध का उस क्षण अहसास भी नहीं हुआ होगा। उनके क्रियाकलाप में स्‍वामी के क्रोध से कोई अन्‍तर नहीं पड़ा क्‍योंकि उन्‍होंने उसके न्‍याय एवं अनन्‍त दण्‍ड को अपने सांसारिक जीवन में लापरवाही से जानबूझकर नज़राअन्‍दाज़ कर दिया था। सम्‍मानित आमंत्रि‍तों के द्वारा भोज में उपस्थित होने की असमर्थता प्रगट करने के द्वारा प्रभु यीशु मसीह ने प्रमुख रूप से इस्राएलियों तथा उनके धार्मिक अगुवों की ओर इशारा किया। इन्‍हें परमेश्‍वर ने चुना था। इनसे परमेश्‍वर ने वाचा बांधी थी कि वे उसकी प्रजा होंगे और वह उनका परमेश्‍वर होगा। इस्राएलियों ने इस वाचा पर अपनी सहमति प्रगट की थी किन्‍तु फिर उन्‍होंने यह वाचा अपने स्‍वार्थ के कारण तोड़ दी। परमेश्‍वर ने उद्धार की योजना पूर्ण की। उसने अपने पुत्र प्रभु यीशु मसीह को दास के रूप में इस संसार में भेज दिया। परमेश्‍वर चाहता था कि प्रभु यीशु मसीह के द्वारा वह अन्तिम बार इस्राएलियों को स्‍वर्ग राज्‍य में प्रवेश करने के लिए निमंत्रण दे। उसके इस अन्तिम आग्रह को भी इस्राएलियों ने तुच्‍छ जानकर ठुकरा दिया।

परमेश्वर का समस्त मानवजाति के लिए उद्धार का आमंत्रण –

परमेश्‍वर तो चाहता है कि हम उससे अपने सारे मन, सारी बुद्धि‍ और सारे प्राण और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखें (मरकुस12:33)। परन्‍तु हम भी इन्‍हीं लोगों के समान मनगढ़ंत बहाने बना बनाकर उसे तुच्‍छ जानते हैं। उसका निरादर करते हैं, उसके निमंत्रण को ठुकराते हैं तथा उसकी आज्ञाओं की जानबूझकर अवहेलना करते हैं। क्योंकि धन-सम्पत्ति का मोह, व्‍यवसाय की व्‍यस्‍तता एवं पारिवारिक जिम्‍मेदारियां हमें परमेश्‍वर से दूर कर देती है। इसलिए हमें संसारिक मोह-माया त्यागना है और कोई मनगढ़ंत बहानेबाजी नहीं करना है बल्कि हमें परमेश्वर के आमंत्रण व उसकी बुलाहट का सम्मान करते हुए सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर स्वीकार करना है।

इस दृष्‍टान्‍त के द्वारा प्रभु यीशु मसीह ने यह स्‍पष्‍ट किया कि परमेश्‍वर ने मनुष्‍य के उद्धार के लिए सब कुछ किया है। अब उसका आमंत्रण समस्त मानव जाति के लिए है। परमेश्वर का यह आमंत्रण हम लोगों के लिए नम्रतापूर्वक निवेदन है साथ ही यह आमंत्रण हमारे लिए उसका आदेश भी है। परमेश्वर हमसे यह अपेक्षा रखता है कि कोई भी मनुष्‍य उसके निमंत्रण की तैयारी को ना ही अज्ञानतावश, ना ही मनगढ़ंत बहाने बनाकर और ना ही बाद में फिर कभी समय के लिए टालकर तुच्‍छ ठहराएं।

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[24] क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि उन नेवते हुओं में से कोई मेरी जेवनार को न चखेगा।

प्रभु यीशु मसीह ने यह भी प्रगट किया कि जो मनुष्‍य इस संसार में परमेश्‍वर के आमंत्रण को ठुकराएगा या किसी भी कारण से उसकी अवहेलना करेगा, उसे परमेश्‍वर भी अपने राज्‍य में स्‍थान नहीं देगा।

इस्राएली धार्मिक अगुवे प्रगट रूप में तो बड़ी ही सतर्कता से धार्मिक परम्‍पराएं एवं रीति-रिवाज पूरे करते थे किन्‍तु जिस आदर के योग्‍य केवल परमेश्‍वर ही था उस आदर के योग्‍य वे स्‍वयं को ही समझने लगे थे। उनके जीवन एवं हृदयों में परमेश्‍वर का स्‍थान पूर्ण रूप से इन्‍हीं परम्‍पराओं ने ले लिया था। उन्‍होंने परमेश्‍वर के आमंत्रण को जान बूझकर सभी प्रमाणों के बावजूद ठुकराया। उन्‍हें परमेश्‍वर का अपमान करने का कोई पश्‍चाताप नहीं था। उनके हृदय की कठोरता के कारण परमेश्‍वर ने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा यह खुला निमंत्रण सम्‍पूर्ण मानव जाति के लिए दिया। यहां कंगालों, टुण्‍डों, लंगड़ों और अंन्‍धों से तात्‍पर्य यह है कि संसार के सभी मनुष्‍यों के लिए आशा है। चाहे वे कितनी भी पतित अवस्‍था में क्‍यों न हों परमेश्‍वर उन्‍हें स्‍वीकार करने को तैयार है। जो परमेश्‍वर के आमंत्रण को ठुकराते हैं उन्‍हें परमेश्‍वर भी अस्‍वीकार करेगा। वह उनके बदले यह आमंत्रण किसी दूसरे को देगा जो उसके आमंत्रण को स्‍वीकार कर उसके राज्‍य में शामिल हो सकें। जैसा कि लिखा है कि ‘‘हे भाइयों, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत जानवान और न बहुत सामर्थी और न बहुत कुलीन बुलाए गये। परन्‍तु परमेश्‍वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है, कि ज्ञानवालों को लज्जित करे, और परमेश्‍वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्जित करे। और परमेश्‍वर ने जगत के नीचों और तुच्‍छों को, वरन जो हैं भी नहीं उनको भी चुन लिया, कि उन्‍हें जो हैं, व्‍यर्थ ठहराए। ताकि कोई प्राणी परमेश्‍वर के सामने घमण्‍ड न करने पाए’’(1कुरि.1:26-29)।

व्‍यवहारिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा -

1.परमेश्‍वर, आज भी प्रत्‍येक मनुष्‍य को प्रभु यीशु मसीह के नाम से सुमाचार प्रचार के विभिन्‍न माध्‍यमों से अपने राज्‍य में शामिल होने का आमंत्रण देता है। यह आमंत्रण ऐसा नहीं कि कोई भी व्यक्ति इसे अपनी इच्‍छानुसार स्‍वीकार करें या ठुकरा दें। किन्‍तु, यह परमेश्‍वर का आदेश है जिसे हर एक मनुष्‍य को अपने ही अनन्‍त जीवन के लिए स्‍वीकार करना है।

2.विभिन्‍न बहानों एवं जिम्‍मेदारियों का हवाला देकर परमेश्‍वर के आमंत्रण को ठुकराना भी परमेश्‍वर के क्रोध को बुलावा देना है।

3.हमें परमेश्‍वर को अपने जीवन में प्रथम, सर्वोच्‍च एवं सर्वप्रमुख स्‍थान देना नितांत आवश्‍यक है।

प्रभु यीशु मसीह चाहता है कि लोग केवल होठों से जय मसीह, यीशु सहाय बोलने, हालेलूय्याह के नारे लगाने, अथवा प्रभु की स्‍तुति हो (Praise the Lord) के अभिवादन द्वारा परमेश्‍वर को प्रसन्‍न नहीं किया जा सकता है। उसको प्रसन्‍न करने के लिए तथा उसके राज्‍य में प्रवेश पाने के लिए परमेश्वर को अपने जीवन में सर्व प्रमुख स्‍थान देना है और उसके आमंत्रण को जो प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हम मानव जाति को दिया गया है, स्‍वीकार करना है। हमें अपने जीवन को उसकी आराधना, स्‍तुति और गवाही के अनुरूप बनाना है। समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए परमेश्वर के आमंत्रण को स्वीकार करके ही हम स्वर्ग राज्य में प्रवेश पाने योग्य फल लाने वाले बन सकेंगे।

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