02.05.2021.
अंधकारमय शक्तियों से लड़ने के लिए परमेश्वर के हथियार।
इफिसियों 6:14-18-
[14]सो सत्य से अपनी कमर कसकर, और धार्मिकता की झिलम पहिन कर।
[15]और पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिन कर।
[16]और उन सब के साथ विश्वास की ढाल लेकर स्थिर रहो जिस से तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको।
[17]और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार जो परमेश्वर का वचन है, ले लो।
[18]और हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो, और इसी लिये जागते रहो, कि सब पवित्र लोगों के लिये लगातार बिनती किया करो।
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पृष्ठभूमि -
संत पौलुस,पहली सदी के बारे में बतलाता है कि जब रोम इस संसार का सबसे शक्तिशाली देश था। उस समय रोम के सैन्य शक्ति के कारण लगभग सारा संसार उसके अधिकार में था। एक इतिहासकार ने रोम के सैन्य शक्ति को “इतिहास का सबसे सफल सैन्य बल कहा। रोम की सेना में सैनिकों को अनुशासन का कड़ाई से पालन करना होता था और उन्हें कठिन सैन्य प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता था। यह भी अत्यंत ही आवश्यक था कि युद्ध में सफलता पाने के लिए उनके पास अच्छे हथियार हों। इसके साथ ही रोम के सैनिकों के लिए अपने सेनापति का आदेशों को भी पालन करना अनिवार्य था।
प्रेरित पौलुस ने रोम के सैनिकों के अस्त्र-शस्त्रों का उदाहरण देकर यह समझाया कि शैतान की युक्तियों के सामने खड़े रहने के लिए हम मसीहियों को परमेश्वर के सारे हथियार बांधने की आवश्यकता है।
पौलुस, हमें आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र की जानकारी के बारे में बतलाया है जैसा कि इफिसियों 6:14-17 में लिखा है –
1.सत्य से अपनी कमर कसकर [इफि6:14]-
•बाइबल में ‘सत्य' शब्द का प्रयोग प्रायः ईमानदार, सच्चा और विश्वासयोग्य के लिए किया गया है
• सत्य परमेश्वर का स्वभाव है। वह मूल सत्य है अर्थात् वह प्रत्येक वस्तु की मूल स्रोत है।
• यीशु द्वारा कहा गया सत्य लोगों को बचाता है क्योंकि यह यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर की पूर्ण उद्धार की क्रिया का प्रतिनिधित्व करता है।
✓रोमी साम्राज्य में सैनिक, 5 से 15 सेंटीमीटर चौड़ा चमड़े का पट्टा या कमरबंद पहनते थे। सैनिक का यह पट्टा उसकी कमर की सुरक्षा करता था और तलवार लटकाने के काम भी आता था। जब एक सैनिक जंग की तैयारी करता था, तो कमर पर पट्टा बाँधता था।
पौलुस कहता हैं कि “सच्चाई” को एक पट्टे की तरह कमर पर कसकर बाँधे हुए तैयार रहना है। पौलुस ने सैनिक के इस पट्टे का उदाहरण देकर समझाया कि सच्चाई का हमारी ज़िंदगी पर कितना प्रभाव पड़ना चाहिए। हमें अपने चारों तरफ कसकर बाँधना चाहिए, ताकि हम इस सच्चाई के अनुसार जीएँ और किसी भी कठिनाइयों पर इसके पक्ष में बोलने के लिए तैयार रहें।
भजन संहिता 3:3 - परन्तु हे यहोवा, तू तो मेरे चारों ओर मेरी ढ़ाल है, तू मेरी महिमा और मेरे मस्तिष्क का ऊंचा करने वाला है।
1पतरस 3:15 - पर मसीह को प्रभु जान कर अपने अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ।
•इसके लिए हमें मन लगाकर बाइबल का अध्ययन करने और इसकी सच्चाइयों पर मनन करने की ज़रूरत है। परमेश्वर की व्यवस्था यीशु के “हृदय में बसी” थी।
भजन संहिता 40:8 - हे मेरे परमेश्वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूं; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्त:करण में बनी है॥
•इसलिए जब यीशु के दुश्मन उससे सवाल करते थे, तो वह शास्त्र के हवालों को ज़बानी दोहराकर जवाब देता था।
•अपनी पत्नी को त्यागने के संबंध में फरीसी को धर्म-शास्त्र के सन्दर्भ में यीशु ने जवाब देकर उन्हें निरुत्तर किया कि परमेश्वर ने आरम्भ से नर और नारी बनाकर कहा कि मनुष्य अपने माता पिता से अलग होकर अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे। [मत्ती 19:3-5]
•सदूकियों को मरे हुओं का पुनरुत्थान के संबंध में वचन के सन्दर्भ में यीशु ने उन्हें उत्तर दिया कि मरे हुओं के जी उठने पर वे स्वर्ग में परमेश्वर के दूतों के समान होंगे तथा जी उठने पर उनमें शादी-ब्याह न होगी। संत मत्ती बतलाता है कि परमेश्वर, मरे हुओं का नहीं, पर जीवितों का परमेश्वर है। [मत्ती 22:23-32]
•जब हम बाइबल की शिक्षा के अनुसार सच्चाई से चलते हैं, तो यह गलत सोच-विचार से हमारी रक्षा कर सकती है और सही फैसले करने में मदद देती है। जब हम मुसीबत में होते हैं या गलत काम करने की परीक्षा हम पर आती है, तब बाइबल के वचन, सही काम करने के हमारे इच्छा को और भी पक्का करेगी।
यशायाह 30:20-21 -
[20]और चाहे प्रभु तुम्हें विपत्ति की रोटी और दु:ख का जल भी दे, तौभी तुम्हारे उपदेशक फिर न छिपें, और तुम अपनी आंखों से अपने उपदेशकों को देखते रहोगे।
[21]और जब कभी तुम दाहिनी वा बाईं ओर मुड़ने लगो, तब तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानों में पड़ेगा, मार्ग यही है, इसी पर चलो।
2.धार्मिकता की झिलम पहिन कर [इफि6:14]-
•परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वभाव में बनाया है इसलिए मनुष्य में भी धार्मिकता का विचार पाया जाता है। यदि लोगों का व्यवहार ठीक होता है और नैतिकता के अनुसार वे ठीक होते हैं तो बाइबल उन्हें धर्मी कहती है।
✓सैनिक के लिए झिलम उसके शरीर की प्रमुख अंग हृदय की सुरक्षा करता है। हृदय यानी हमारे अंदर के इन्सानियत को विशेष रुप से सुरक्षित रखने की आवश्यकता है,क्योंकि स्वभाव से यह गलत काम करना चाहता है।
उत्पत्ति 8:21- इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, कि मनुष्य के कारण मैं फिर कभी भूमि को शाप न दूंगा, यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही होता है; तौभी जैसा मैं ने सब जीवों को अब मारा है, वैसा उन को फिर कभी न मारूंगा।
इसलिए यह आवश्यक है कि हम यहोवा के धार्मिकता के बारे में जानें और उनसे प्रेम करें।
भजन संहिता 119:97,105-
[97]अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।
[105]तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।
भजन संहिता 119:99-101-
[99]मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूं, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है।
[100]मैं पुरनियों से भी समझदार हूं, क्योंकि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए हूं।
[101]मैं ने अपने पांवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिस से मैं तेरे वचन के अनुसार चलूं।
आमोस 5:15 - बुराई से बैर और भलाई से प्रीति रखो, और फाटक में न्याय को स्थिर करो; क्या जाने सेनाओं का परमेश्वर यहोवा यूसुफ से बचे हुओं पर अनुग्रह करे॥
इब्रानियों 1:9 - तू ने धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखा; इस कारण परमेश्वर तेरे परमेश्वर ने तेरे साथियों से बढ़कर हर्ष रूपी तेल से तुझे अभिषेक किया।
3.पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिन कर [इफि6:15]-
•परमेश्वर के अनुग्रहपूर्ण कार्य से यीशु मसीह की मृत्यु के कारण मनुष्यों का मेल-मिलाप परमेश्वर के साथ हुआ है।
•शान्ति शत्रुता को समाप्त कर देती है। शत्रुता के अभाव से शान्ति अधिक महत्वपूर्ण है।यह आत्मिक लाभ की स्थिति है जो परमेश्वर से उचित सम्बन्ध या मेल-मिलाप से स्थापित होती है।यह ऐसी शान्ति है जो मसीह द्वारा पाप पर विजयी होने से परमेश्वर द्वारा प्राप्त होती है और यह परमेश्वर विरोधी जगत में आश्वासन और शान्ति देती है।
✓रोमी सैनिकों को मज़बूत और टिकाऊ जूतों की ज़रूरत होती थी, क्योंकि जंग के दौरान वे अक्सर हर दिन लगभग 27 किलो वज़न के हथियार या दूसरा सामान लेकर 30 किलोमीटर तक पैदल चलते थे। हर सुननेवाले को राज्य का संदेश प्रचार करने की हमारी तैयारी के लिए, पौलुस ने जूतों का बिलकुल सही उदाहरण चुना। ऐसी ही तैयारी की हमें भी बहुत आवश्यकता है। यदि हम लोगों तक प्रचार करने के लिए तैयार नहीं होंगे तो वे यहोवा को कैसे जानेंगे ?
रोमियो 10:13-15-
[13]क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।
[14]फिर जिस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें? और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें?
[15]और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें? और यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें? जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सुहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं।
सुसमाचार के प्रचार करते हुए हम यीशु के पीछे चल सकते हैं –
यीशु ने ज़िंदगी में सबसे महत्वपूर्ण काम किया कि उसने रोमी गवर्नर पुन्तियुस पीलातुस से कहा: “मैं इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।” यीशु को जहाँ कहीं सुननेवाले मिले, उसने उन्हें प्रचार किया। उसको अपनी सेवा से इतनी खुशी मिलती थी कि वह अपनी भूख-प्यास या दूसरी आवश्यकताओं से ज़्यादा इस सेवा को महत्व देता था। [यूहन्ना 4:5-34]
अगर हमारे अंदर भी यीशु की तरह लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए भली मनसा हो, तो ऐसा करने के हमें बहुत सारे अवसर मिलेंगे। और जब हम अपनी सेवा में डूबे रहेंगे तो आध्यात्मिक रूप से मज़बूत बने रहेंगे।
प्रेरितों के काम 18:5 - जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस वचन सुनाने की धुन में लगकर यहूदियों को गवाही देता था कि यीशु ही मसीह है।
4.विश्वास की बड़ी ढाल लेकर स्थिर रहो [इफि6:16]-
•मसीह के पहले के समय में या बाद के समय में लोग सर्वशक्तिमान प्रभु में विश्वास द्वारा बचाए गए हैं जो अपनी करुणा और अपने अनुग्रह के द्वारा पापों को क्षमा करता है - यीशु मसीह की मृत्यु है। परमेश्वर केवल अपने अनुग्रह के द्वारा लोगों को बचाता है और वे इस उद्धार को विश्वास के द्वारा पाते हैं।
✓‘बड़ी ढाल’ के लिए इस्तेमाल हुए यूनानी शब्द का मतलब इतनी बड़ी ढाल है जिससे लगभग पूरे शरीर की सुरक्षा होता है। यह ढाल, “जलते हुए तीरों” से एक मनुष्य की रक्षा कर सकती है।
•सैनिक खोखली डंडियों के तीर बनाते थे जिनमें लोहे के छोटे-छोटे खानों में नैफ्था भरकर जलाया जाता था और ये जलते हुए तीर छोड़े जाते थे। इन तीरों को “प्राचीन युद्धों के सबसे खतरनाक हथियार” बतलाया गया है। अगर एक सैनिक के पास इन तीरों से बचने के लिए बड़ी ढाल न होती, तो वह बहुत बुरी तरह ज़ख्मी हो सकता था या मारा भी जा सकता था।
इफिसियों 6:16 - और उन सब के साथ विश्वास की ढाल लेकर स्थिर रहो जिस से तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको।
हमारे विश्वास को कमज़ोर करने के लिए शैतान किन “जलते हुए तीरों” को हमारी तरफ फेंकता है? वह लोगों को हमारे खिलाफ भड़का सकता है ताकि परिवार में, काम या स्कूल की जगह हम पर ज़ुल्म ढाए जाएँ या हमारा विरोध किया जाए। यही नहीं, ज़्यादा-से-ज़्यादा ऐशो-आराम की चीज़ें हासिल करने की चाहत और अनैतिक कामों का फंदा बहुतों के लिए आध्यात्मिक पतन का कारण बन जाता है। ऐसे खतरों से अपनी रक्षा करने के लिए, हमें सबसे बढ़कर ‘विश्वास की बड़ी ढाल लेनी’ चाहिए। विश्वास पैदा करने के लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा के बारे में जानें, प्रार्थना में नित परमेश्वर से बातें करें, और यह समझें कि वह कैसे हमारी रक्षा करता है और हमें आशीष देता है।
यहोशू 23:14 - सुनो, मैं तो अब सब संसारियों की गति पर जाने वाला हूं, और तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं, उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।
लूका 17:5- तब प्रेरितों ने प्रभु से कहा, हमारा विश्वास बढ़ा।
रोमियो 10:17- सो विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है।
यीशु अपने जीवन-काल में कठिन दुःख या मुसीबतों के समय में अपने पिता पर पूर्ण विश्वास रखा और उसे अपने पिता के फैसलों पर पूरा-पूरा भरोसा था और परमेश्वर की इच्छा पूरी करने से उसे खुशी मिलती थी।
मत्ती 26:42,53-54 –
[42]फिर उस ने दूसरी बार जाकर यह प्रार्थना की; कि हे मेरे पिता, यदि यह मेरे पीए बिना नहीं हट सकता तो तेरी इच्छा पूरी हो।
[53]क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से बिनती कर सकता हूं, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा?
[54]परन्तु पवित्र शास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, क्योंकर पूरी होंगी?
यूहन्ना 6:38 – क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूं।
गतसमनी के बाग में जब वह बहुत बड़ी वेदना से गुज़र रहा था, तब भी यीशु ने अपने पिता से कहा: “जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।”
मत्ती 26:39 – फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, कि हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।
यीशु ने हर पल यह याद रखा कि उसे किसी भी कीमत पर अपनी खराई बनाए रखनी है और अपने पिता का दिल खुश करना है।
नीतिवचन 27:11– हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान हो कर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करने वाले को उत्तर दे सकूंगा।
अगर यीशु की तरह हमें भी यहोवा पर पूरा भरोसा हो, तो चाहे हम पर तानाकशी की जाए या हमारा विरोध किया जाए फिर भी हमारा विश्वास कमज़ोर नहीं होगा। इसके बजाय, अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, उसके लिए प्यार दिखाएँ और उसकी आज्ञाएँ मानें, तो हमारा विश्वास मज़बूत होगा।
भजन संहिता 19:7-11
[7]यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; यहोवा के नियम विश्वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं;
[8]यहोवा के उपदेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं; यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आंखों में ज्योति ले आती है;
[9]यहोवा का भय पवित्र है, वह अनन्तकाल तक स्थिर रहता है; यहोवा के नियम सत्य और पूरी रीति से धर्ममय हैं।
[10]वे तो सोने से और बहुत कुन्दन से भी बढ़कर मनोहर हैं; वे मधु से और टपकने वाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं।
[11]और उन्हीं से तेरा दास चिताया जाता है; उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है।
1यूहन्ना 5:3 – और परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।
दुनिया की कीमती चीज़ें या कुछ पल का शारीरिक सुख, यहोवा की उन आशीषों के सामने कुछ भी नहीं जो उसने अपने प्यार करनेवालों के लिए रख छोड़ी हैं।
नीतिवचन10:22 – धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दु:ख नहीं मिलाता।
5.उद्धार का टोप [इफि6:17]-
•पुराना नियम के अनुसार परमेश्वर के द्वारा प्राप्त होने वाले उद्धार का अर्थ --- बीमारी, ख़तरों, दुखों, मत्यु और बुराई के परिणामों से छुटकारा पाना या बचाना है। [निर्ग.14:30, न्या.2:11-16,भ.सं.न24:6,37:40, यिर्म.4:14,17:14] परन्तु उद्धार के सबसे महान विचार में परमेश्वर सदैव विद्यमान रहा है। [1शमू.14:23,यशा.33:22,43:3,11:15, हब.3:18]
•नया नियम के अनुसार उद्धार का अर्थ --- पाप तथा इसके परिणाम से छुटकारा देने के सम्बन्ध में है, यह उद्धार यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर से प्राप्त होता हहै [मत्ती1:21, लूका 2:11,19:10,यूह.3:17,12:47,प्रेरितों4:12, 1तिम.1:15] और यह केवल इसी कारण सम्भव है क्योंकि प्रभु यीशु मसीह ने हमारे पापों के लिये क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा प्रायश्चित किया। [1कुरि.1:18,तीतुस2:14]
•बाइबल हमें उद्धार के सम्बन्ध में बहुत से चित्र प्रस्तुत करती है जैसे –
[1] पहला न्यायालय का चित्र है जिसमें परमेश्वर विश्वासियों को धर्मी ठहराकर उन्हें मुक्त कर देता है। [रोमियों 3:26,8:33]
[2] दूसरा चित्र दासत्व से सम्बन्धित है जो यह दर्शाता है कि परमेश्वर ने विश्वासियों को पाप के बन्धन से मुक्त कर दिया है।[1पत.118-19]
[3] नए जन्म का चित्र दर्शाता है कि परमेश्वर उन लोगों के लिए अपना जीवन देता है जो आत्मिक रूप से मृतक है।[1पत.1:23]
[4] लेपालकपन का चित्र दर्शाता है कि परमेश्वर किस प्रकार विश्वासियों को अपने परिवार में रखता है और उन्हें पुत्रत्व का पूरा अधिकार देता है। [रोम.8:15]
[5] एक अन्य चित्र यह भी है कि परमेश्वर किस प्रकार अपने शत्रुओं को अपना मित्र बना लेता है।[रोम.5:10-11]
[6] बलिदान का चित्र उद्धार के अन्य पहलुओं को भी प्रकट करता है अर्थात् इससे यह प्रकट होता है कि बलिदान होने वाले की मृत्यु एक पापी के स्थान पर होने से [इब्रा.9:26] और बलिदान के चढ़ाए जाने से,पाप के प्रति परमेश्वर के क्रोध को शान्त करती है। [रोम.3:25]
•भविष्य का पहलू यह है कि विश्वासी लोग यीशु मसीह के पुनः आगमन पर अपने उद्धार का पूर्ण अनुभव करेंगे। [रोम.8:24,13:11,फिलि.3:20,1थिस्स.5:9,इब्रा.9:28,1पत.1:5]
✓टोप से एक सैनिक के ज्ञान के भंडार यानी दिमाग और सिर की रक्षा होती थी। मसीही होने के नाते हमारी आशा की बराबरी एक टोप से की गयी है क्योंकि इस आशा से हमारा दिमाग सुरक्षित रहता है।
1थिस्सलुनीकियों 5:8 – पर हम तो दिन के हैं, विश्वास और प्रेम की झिलम पहिनकर और उद्धार की आशा का टोप पहिन कर सावधान रहें।
हालाँकि हमने परमेश्वर के वचन के सही ज्ञान से अपनी बुद्धि या मन को नया कर लिया है। यदि हम अभी-भी कमज़ोर और अपरिपक्व ही हैं तो हमारा मन बड़ी आसानी से भ्रष्ट हो सकता है। इस दुनिया में लोग जिन चीज़ों के पीछे भाग रहे हैं, वे चीज़ें हमारा भी ध्यान भटका सकती हैं यहाँ तक कि परमेश्वर ने हमें जो आशा दी है उसकी जगह ले सकती हैं।
रोमियो 7:18 – क्योंकि मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्थात मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।
रोमियो 12:2 – और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो॥
इब्लीस ने यीशु के आगे “सारे जगत के राज्य और उसका विभव” देने की पेशकश रखकर उसे गुमराह करना चाहा मगर नाकाम रहा। [मत्ती 4:8-11]
इब्रानियों 12:2 – और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करने वाले यीशु की ओर ताकते रहें; जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्ज़ा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा।
यीशु को परमेश्वर पर जैसा भरोसा था वह अपने आप ही पैदा नहीं हुआ था। अगर हम दिन-रात इस दुनिया में कुछ हासिल करने के सपने देखते रहें और आगे के लिए अपनी आशा पर ध्यान न लगाएँ, तो परमेश्वर के वादों पर हमारा विश्वास कमज़ोर होता जाएगा। कुछ वक्त के बाद, हो सकता है हम अपनी आशा से पूरी तरह हाथ धो बैठें। इसके बजाय, अगर हम लगातार परमेश्वर के वादों पर मनन करते रहें, तो हम आगे के लिए अपनी आशा से खुशी पाते रहेंगे।
रोमियो 12:12 – आशा मे आनन्दित रहो; क्लेश मे स्थिर रहो; प्रार्थना मे नित्य लगे रहो।
6.आत्मा की तलवार अर्थात् परमेश्वर का वचन [इफि6:17]-
• पुराना नियम के समय में इस्राएलियों के लिए परमेश्वर का वचन केवल लिखित या कहा हुआ वचन नहीं वरन् क्रियाशील वचन था। इसमें परमेश्वर का सामर्थ्य था जिससे कि जब परमेश्वर अपनी इच्छा को अभिव्यक्त करता था तो वह इच्छा पूरी होती थी जब परमेश्वर ने कहा कि उजियाला हो उजियाला हो गया। [उत्प.1:3] परमेश्वर के क्रियाशील वचन के द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति हुई। [इब्रा.11:3, उत्प.1:3,6,9,14,20,24,26, 2पत.3:5] •परमेश्वर का वचन व्यर्थ नहीं होता। यह जो कुछ कहता है वह अवश्य पूरा होता है।[यशा. 55:10-11] परमेश्वर के वचन में ऐसी शक्ति थी,ऐसा जीवन था कि लोग प्रायः इसे एक ऐसे व्यक्ति के समान समझते थे जो परमेश्वर का जीवित प्रतिनिधि या सन्देश वाहक था।[भजन 33:6,107:20,147:15,18]
•नया नियम में यीशु को वचन कहा गया है।[1यूह.1:1-3] वह जीवित वचन है अर्थात् परमेश्वर की जीवित अभिव्यक्ति है।उसका वचन और उसके कार्य परमेश्वर के वचन और कार्य हैं।[यूह.1:1-4,14, उत्प,.1:1-3,कुलु.1:15-17, इब्रा.1:1-3,प्रका.19:13,16]
✓बाइबल के अनुसार परमेश्वर का वचन या संदेश, दोधारी तलवार की तरह बहुत तेज़ है और झूठे धर्म की शिक्षाओं को काटकर तहस-नहस कर सकता है और सच्चे दिल के लोगों को आध्यात्मिक आज़ादी पाने में मदद दे सकता है।
यूहन्ना 8:32 – और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।
इब्रानियों 4:12 – क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।
यह आध्यात्मिक तलवार उस समय भी हमारा रक्षा कर सकता है, जब हमें गलत काम के लिए बार-बार लुभाया जाता है या जब हमारा विश्वास मिटाने की कोशिश में लगातार हम पर हमला करते हैं।
2कुरिन्थियों 10:4-5 –
[4]क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं।
[5]सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।
हम कितने एहसानमंद हैं कि पूरा ‘पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और हर एक भले काम के लिये हमें सिद्ध बनाता है’!
2तीमुथियुस 3:16-17 –
[16]हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।
[17]ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।
जब शैतान ने यीशु को वीराने में लुभाने की कोशिश की, तब यीशु ने आत्मा की तलवार को बड़े असरदार तरीके से चलाकर उसके झूठे तर्क और धूर्त चालों को काट दिया। शैतान की हर चुनौती का सामना करते हुए यीशु ने परमेश्वर के वचन के सन्दर्भ में जवाब दिया कि इब्लीस को छोड़कर जाना पड़ा। [मत्ती 4:1-11]
उत्पत्ति 39:10-12 -
[10]और ऐसा हुआ, कि वह प्रति दिन यूसुफ से बातें करती रही, पर उसने उसकी न मानी, कि उसके पास लेटे वा उसके संग रहे।
[11]एक दिन क्या हुआ, कि यूसुफ अपना काम काज करने के लिये घर में गया, और घर के सेवकों में से कोई भी घर के अन्दर न था।
[12]तब उस स्त्री ने उसका वस्त्र पकड़कर कहा, मेरे साथ सो, पर वह अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया।
यीशु ने लोगों को शैतान के चंगुल से छुड़ाने के लिए भी आत्मा की तलवार चलायी। यीशु ने कहा: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।”
यूहन्ना 7:16-18-
[16]यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजने वाले का है।
[17]यदि कोई उस की इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूं।
[18]जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बड़ाई चाहता है; परन्तु जो अपने भेजने वाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उस में अधर्म नहीं।
अगर हम यीशु की तरह सिखाने में निपुण होना चाहते हैं, तो हमें प्रशिक्षण की ज़रूरत है। रोमी सैनिकों के बारे में यहूदी के किसी इतिहासकार ने लिखा: “हर सैनिक रोज़ कसरत करते वक्त जी-जान लगा देता है, मानो वह सचमुच कोई जंग लड़ रहा हो। यही वजह है कि असल में जब वह युद्ध में होता है, तो उससे होनेवाली थकान को वह बड़ी आसानी से सहन कर पाता है।” अपनी आध्यात्मिक लड़ाई में हमें बाइबल इस्तेमाल करनी चाहिए।
2तीमुथियुस 2:15 – अपने आप को परमेश्वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्ज़ित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।
हर परिस्थिति में प्रार्थना करने की सलाह [इफि6:18] –
•प्रार्थना, हम विश्वासियों का परमेश्वर से बातचीत करना, उसकी आराधना करना, प्रशंसा करना, उसे धन्यवाद देना तथा उसके सम्मुख अपने पापों मान लेना और अपने पापों से क्षमा करने के लिए निवेदन करना है। प्रार्थना के द्वारा हम अपने लिए या दूसरों के लिए परमेश्वर से निवेदन करना भी है।
•विश्वासी लोग इसलिए प्रार्थना करते हैं क्योंकि वे जानते है कि परमेश्वर सब भलाई का मूल स्रोत है।वह घटनाओं पर नियंत्रण करता और सर्वोच्च तथा सर्वसामर्थी है।[नहे.1:4-5,9:6,मत्ती 6:9]
•जब विश्वासी अपनी असहाय दशा को पहिचान लेता है तभी वह अपनी सच्ची आत्मा से प्रार्थना कर सकता है क्योंकि उसी समय वह जानता है कि परमेश्वर वह कर सकता है जिसे वह नहीं कर सकता।[यूह.15:5]
•परमेश्वर अपने लोगों की प्रार्थनाओं का उत्तर देता है परन्तु वह उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर तभी देता है जबकि प्रार्थनाओं को परमेश्वर की इच्छा के अनुसार शुद्ध और भले उद्देश्य से तथा परमेश्वर की महिमा की इच्छा से मांगते हैं। [गिन.14:13-20, मत्ती6:10,18:19, यूह.14:13,1यूह.5:14-15]
•विश्वासियों को अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए परमेश्वर पास आने का कोई अधिकार नहीं है। परमेश्वर के पास नम्रता और दीनता, विश्वास और निश्चय तथा भरोसा के साथ आ सकतें हैं।[इब्रा.4:14-16,10:19-22]
•परमेश्वर विश्वासियों की प्रार्थना को सुनकर कभी कभी उन्हें तुरंत उत्तर नहीं देता है क्योंकि उसके मन में कुछ और ऐसी आशीष हों जो बाद में उनके लिए अधिक भली सिद्ध हो और उससे परमेश्वर की अधिक महिमा हो।
✓सभी आध्यात्मिक अस्त्र-शस्त्र पर ध्यान देने के बाद, पौलुस एक और ज़रूरी सलाह देता है। शैतान का विरोध करते वक्त, मसीहियों को “हर प्रकार की प्रार्थना, और बिनती करते” रहना चाहिए। पौलुस ने लिखा: ‘हर समय आत्मा में प्रार्थना करते रहो।’
इब्रानियों 6:18 – ताकि दो बे-बदल बातों के द्वारा जिन के विषय में परमेश्वर का झूठा ठहरना अन्होना है, हमारा दृढ़ता से ढाढ़स बन्ध जाए, जो शरण लेने को इसलिये दौड़े है, कि उस आशा को जो साम्हने रखी हुई है प्राप्त करें।
जब हम परीक्षाओं, मुसीबतों या निराशा का सामना करते हैं, तब प्रार्थना हमें चट्टान की तरह मज़बूत कर सकती है।
मत्ती 26:41- जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो: आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।
यीशु ने “ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई।”
इब्रानियों 5:7 – उस ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकार कर, और आंसू बहा बहा कर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई।
मगर बार-बार यहोवा से प्रार्थना करते रहें तो हममें नई जोश नई उमंग आता है, हमारे हौसले भी बुलंद होते हैं।”
शैतान जानता है कि उसका थोड़ा ही समय बाकी रह गया है, इसलिए हम पर काबू पाने के लिए वह एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है।
प्रकाशित वाक्य 12:12,17-
[12]इस कारण, हे स्वर्गों, और उन में के रहने वालों मगन हो; हे पृथ्वी, और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है॥
[17]और अजगर स्त्री पर क्रोधित हुआ, और उसकी शेष सन्तान से जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं, लड़ने को गया। और वह समुद्र के बालू पर जा खड़ा हुआ।
हमें चाहिए कि इस ताकतवर दुश्मन का विरोध करें और “विश्वास की अच्छी कुश्ती” लड़ें।
1तीमुथियुस 6:12- विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले, जिस के लिये तू बुलाया, गया, और बहुत गवाहों के साम्हने अच्छा अंगीकार किया था।
इसके लिए असीम सामर्थ की ज़रूरत है।
2कुरिन्थियों 4:7 – परन्तु हमारे पास यह धन मिट्ठी के बरतनों में रखा है, कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे।
इतना ही नहीं, हमें परमेश्वर की पवित्र आत्मा की मदद की भी ज़रूरत है और इसलिए इसे पाने के लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए। यीशु ने कहा: “सो जब तुम बुरे होकर अपने लड़केबालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा”। [लूका 11:13]
हम मसीहियों को इस संसार की अंधकारमय शक्तियों के प्रधानों, अधिकारियों, हाकिमों और दुष्टता की आत्मिक सेनाओं तथा शैतान की युक्तियों से मल्लयुद्ध के लिए आत्मिक युद्ध के हथियार अर्थात् परमेश्वर के सारे हथियार को बांधना अवश्य है कि हम बुरे दिन में उनका सामना कर सके।
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