|| यीशु ने कहा, "देखो, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ। मेरा पुरस्कार मेरे पास है और मैं प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों का प्रतिफल दूँगा। मैं अल्फा और ओमेगा; प्रथम और अन्तिम; आदि और अन्त हूँ।" Revelation 22:12-13     
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संत पतरस का परिचय।


 

संत पतरस का परिचय 
शमौन पतरस यीशु के आरम्भिक विश्वासियों में से एक था। अपने भाई अन्द्रियास के समान सम्भवतः वह भी यूहन्ना बपतिस्ता का चेला उस समय तक बना रहा जब तक कि स्वयं यूहन्ना ने उनका परिचय यीशु से न कराया था।
यूहन्ना 1:40-41
[40]उन दोनों में से जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे, एक तो शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास था।
[41]उस ने पहिले अपने सगे भाई शमौन से मिलकर उस से कहा, कि हम को ख्रिस्तुस अर्थात मसीह मिल गया।
प्रेरितों के काम 1:15,21-22
[15]और उन्हीं दिनों में पतरस भाइयों के बीच में जो एक सौ बीस व्यक्ति के लगभग इकट्ठे थे, खड़ा होकर कहने लगा।
[21]इसलिये जितने दिन तक प्रभु यीशु हमारे साथ आता जाता रहा, अर्थात यूहन्ना के बपतिस्मा से लेकर उसके हमारे पास से उठाए जाने तक, जो लोग बराबर हमारे साथ रहे।
[22]उचित है कि उन में से एक व्यक्ति हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह हो जाए।
यीशु ने पतरस में अगवाई करने की विशेषताओं को तुरंत पहिचानकर उसे एक नया नाम पतरस या कैफा दिया इन दोनों का नामों के अर्थ यूनानी और अरामी भाषा में चट्टान है।
यूहन्ना 1:42
[42]वह उसे यीशु के पास लाया: यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा कि तू यूहन्ना का पुत्र शमौन है, तू कैफा अर्थात पतरस कहलाएगा।
यीशु से पतरस की भेंट यरदन की घाटी में हुई थी।
यूहन्ना 1:28-29,35.
[28]ये बातें यरदन के पार बैतनिय्याह में हुई, जहां यूहन्ना बपतिस्मा देता था।
[29]दूसरे दिन उस ने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है।
[35]दूसरे दिन फिर यूहन्ना और उसके चेलों में से दो जन खड़े हुए थे।
अधिक दिन न बीते थे कि गलील में फिर भेंट होने पर पतरस अपने पैतृक व्यवसाय को छोड़कर यीशु के आरम्भिक चेलों में सम्मिलित हो गया।
मत्ती 4:18-22
[18]उस ने गलील की झील के किनारे फिरते हुए दो भाइयों अर्थात शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवे थे।
[19]और उन से कहा, मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़ने वाले बनाऊंगा।
[20]वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
[21]और वहां से आगे बढ़कर, उस ने और दो भाइयों अर्थात जब्दी के पुत्र याकूब और उसके भाई यूहन्ना को अपने पिता जब्दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधारते देखा; और उन्हें भी बुलाया
[22]वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए‌।
जब यीशु ने अपने 12चेलों को चुना और प्रेरित ठहराया तो पतरस का नाम इस सूची में सबसे आगे था।
मत्ती 10:2-4 –
[2]और बारह प्रेरितों के नाम ये हैं: पहिला शमौन, जो पतरस कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रियास; जब्दी का पुत्र याकूब, और उसका भाई यूहन्ना;
[3]फिलिप्पुस और बर-तुल्मै थोमा और महसूल लेनेवाला मत्ती, हलफै का पुत्र याकूब और तद्दै।
[4]शमौन कनानी, और यहूदा इस्करियोती, जिस ने उसे पकड़वा भी दिया।


निवास-स्थान-
यूहन्ना [योना] नाम के व्यक्ति [मत्ती16:17, यूह.1:42,21:15] का पुत्र पतरस खलील की झील के किनारे के बैतसैदा का रहनेवाला था। [यूह.1:44] उसका या उसकी पत्नी के माता-पिता का एक घर झील के पास के एक नगर कफरनहूम में भी था जो बाद में यीशु के कार्यक्षेत्र का केन्द बन गया। [मर.1:21,29-30,2:1]


व्यवसाय-
पतरस और अन्द्रियास झील से मछली पकड़ने का धन्धा करते थे।इस व्यवसाय में उनकी साझेदारी याकूब और युहन्ना नाम के दो भाईयों के साथ थी।[मत्ती 4:18, लूका5:10]


शिक्षा-
ये सब व्यक्ति यीशु के प्रेरित बन गए थे। यद्यपि उन्होंने यहूदी आराधनालयों में कभी शिक्षा नहीं पाई थी फिर भी यीशु के साथ रहने के कारण उनमें शिक्षक के गुण थे और वे शिक्षा देने में कुशल हो गए थे। [प्रे.क्र.4:13]


स्वभाव व गुण -
आरम्भ से ही पतरस ने अपने आपको उत्साही, विश्वास में दृढ़ और निर्णय लेकर तुरन्त कार्य करनेवाला प्रमाणित किया। कभी कभी वह बहुत जल्दी बोलता और कार्य भी करता था इसलिए उसे झिड़का जाता था। [मत्ती14:28-31; 16:22-23;19:27-28, मर.9:5-7, लूका 5:4-5] परन्तु वह कभी निराश नहीं होता था उसे अपने आप पर अधिक भरोसा रखने के कारण कभी कभी कटु-अनुभव प्राप्त होता था,इसके पश्चात् ही वह अपनी कमज़ोरी को पहिचानता था।
गैरयहूदियों के प्रति पतरस के स्वभाव के बदलने का एक कारण उस पर पौलुस का  प्रभाव था। ये दोनों व्यक्ति यरूशलेम में पौलुस के मन-परिवर्तन के 03 वर्ष पश्चात् फिर मिले। [गला.1:18]
पतरस एक कट्टर यहूदी धर्म पालन करनेवाले परिवार में पाला-पोसा गया था। अतः उसने तुरन्त अपनी यहूदी रीति-विधियों को नहीं त्यागा। [प्रेरितो3:1,5:12-170]
यीशु जानता था कि पतरस में कई ऐसे गुण हैं जिनके द्वारा वह बाद में एक साहसी और सामर्थी अगुवा बन सकता है।[मर.14:29,66-72 लूका22:31-34]
यीशु की सेवा के बढ़ने के साथ पतरस, याकूब और यूहन्ना इस छोटे झुण्ड में प्रसिद्ध हो गए और यीशु ने इन्हें विशेष उत्तरदायित्व और विशेषाधिकार सौंपे।[मर.5: 37,9:2,14:33.] पतरस इन 12 चेलों का अगुवा और इनकी ओर से बोलनेवाला हो गया। [मर.1:36-37, 10:27-28,लूका12:41,यूह.6:67-68, 13:24,21:2-3.


यीशु ने चेलों से प्रश्न किया कि “मसीह” कौन है ?
एक बार यीशु ने अपने चेलों से प्रश्न करके जानना चाहा कि क्या वे उसे मसीह मानते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है कि यीशु ने इस छोटे झुण्ड की ओर से पतरस के उत्तर को स्वीकार किया। पतरस को उत्तर देते हुए यीशु ने इन चेलों से कहा कि वे ऐसी नींव बनेंगे जिस पर  वह अपनी अजेय कलीसिया का निर्माण करेगा। [मत्ती16:13-18,इफि2:20]


परीक्षा-
जब पतरस की परीक्षा का महान अवसर आया तो उसने यीशु का 03 बार इन्कार किया। [लूका 22:61-62]


यीशु का पतरस पर अनुग्रह-
यीशु ने पुनरूत्थान के पश्चात् पतरस पर विशेष ध्यान दिया। यीशु ने अन्य शिष्यों को दर्शन देने से पहिले पतरस को दर्शन दिया। [लूका 24:34,1कुरि.15:5, मर.6:7] और बाद में पतरस ने प्रभु के प्रति अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति सब लोगों के सामने की। [यूह.21:15]
यीशु ने पतरस की बात को स्वीकार करके उसके हाथ में परमेश्वर के लोगों को सौंप दिया कि वह उनकी देखभाल करे।इस प्रकार यीशु ने यह भी प्रकट किया कि उसने पतरस को क्षमा कर दिया है। यीशु ने इसी समय पतरस को यह भी बतलाया कि वह महान भक्ति क्यों चाहता है। कलीसिया के आरम्भ के कठिनाई भरे समय में महान अगुवा होने के कारण पतरस को बड़े विरोध की आशा थी। [युह.21: 17-19,लूका22:32]


आरम्भिक कलीसिया-
कलीसिया के आरम्भिक दिनों में पतरस में बहुत बदलाव आया। वह महत्वपूर्ण झगड़ों को सुलझाने में अंगों के समान काम करता था।[प्रे.क्र.1:15,5:3,9] और वह मुख्य प्रचारक भी था। [प्रेरितों2:14,3:12,8:20] परन्तु बाद में वह यीशु के प्रति भक्ति के कारण परखे जाने पर भी असफल नहीं हुआ। वह मसीह के जी उठने की जीवित सामर्थ्य में विश्वास रखता था। [प्रेरितों2:33, 3:6,16, 4:10,29-30]


पतरस की पत्रियां [Letters of Peter] –
पतरस की पहली पत्री में काला सागर की सीमा पर स्थित एशिया माइनर के उत्तरी प्रान्त मसीहियों को सम्बोधित किया गया है।
1 पतरस 1:1-
[1]पतरस की ओर से जो यीशु मसीह का प्रेरित है, उन परदेशियों के नाम, जो पुन्तुस, गलतिया, कप्पदुकिया, आसिया, और बिथुनिया में तित्तर बित्तर होकर रहते हैं।
ये वे स्थान थे जहां पौलुस को प्रवेश की अनुमति नहीं थी।
प्रेरितों के काम 16:7-8 –
[7]और उन्होंने मूसिया के निकट पहुंचकर, बितूनिया में जाना चाहा; परन्तु यीशु के आत्मा ने उन्हें जाने न दिया।
[8]सो मूसिया से होकर वे त्रोआस में आए।
परन्तु इस स्थान पर पतरस ने अपने सहयोगी यूहन्ना,मरकुस के साथ अधिक सुसमाचार प्रचार किया था।
1 पतरस 5:13 –
[13]जो बाबुल में तुम्हारी नाईं चुने हुए लोग हैं, वह और मेरा पुत्र मरकुस तुम्हें नमस्कार कहते हैं।


पतरस की पहली पत्री को लिखने का उद्देश्य-                                                                         यह ई.सन् 54 से 68 के मध्य में रोमी सम्राट नीरो के राज्य का समय था और मसीहियों पर सब जगह सताव बढ़ रहा था। इस पत्री के लिखे जाते समय पतरस रोम में था। यह राज्य का मध्य भाग में था और यही वह भाग था जिसे मसीही लोग बेबीलोन कहते थे क्योंकि इसी स्थान पर परमेश्वर के लोगों को सबसे बुरी रीति से सताया जाता था। पौलुस को कुछ ही समय पहिले दण्डित किया गया था।
2 तीमुथियुस 4:6 –
[6]क्योंकि अब मैं अर्घ की नाईं उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा है।
और पतरस का विचार था कि इससे भी भयंकर स्थान पड़नेवाला है।
अतः पौलुस ने मसीहियों को लिखा कि सताव आने पर  आश्चर्यचकित और लज्जित न हो।
1 पतरस 4:12,16 –
[12]हे प्रियों, जो दुख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझ कर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है।
[16]पर यदि मसीही होने के कारण दुख पाए, तो लज्ज़ित न हो, पर इस बात के लिये परमेश्वर की महिमा करे।
उन्हें अपने सताव को सहनशीलता के साथ रहना था और मृत्यु तक धैर्य रखकर मसीह में अपने विश्वास की गवाही देनी थी।
1 पतरस 2:20-23 –
[20]क्योंकि यदि तुम ने अपराध करके घूंसे खाए और धीरज धरा, तो उस में क्या बड़ाई की बात है? पर यदि भला काम करके दुख उठाते हो और धीरज धरते हो, तो यह परमेश्वर को भाता है।
[21]और तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठा कर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।
[22]न तो उस ने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली।
[23]वह गाली सुन कर गाली नहीं देता था, और दुख उठा कर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौपता था।
1 पतरस 3:14-15 –
[14]और यदि तुम धर्म के कारण दुख भी उठाओ, तो धन्य हो; पर उन के डराने से मत डरो, और न घबराओ।
[15]पर मसीह को प्रभु जान कर अपने अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ।
1 पतरस 4:19 –
[19]इसलिये जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार दुख उठाते हैं, वे भलाई करते हुए, अपने अपने प्राण को विश्वासयोग्य सृजनहार के हाथ में सौंप दें।
फिर भी उन्हें जीवित और अच्छे तथा महिमामय भविष्य की आशा का आश्वासन सदैव मिलता रहता था।
1 पतरस 1:3-8 –
[3]हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद दो, जिस ने यीशु मसीह के हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया।
[4]अर्थात एक अविनाशी और निर्मल, और अजर मीरास के लिये।
[5]जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है, जिन की रक्षा परमेश्वर की सामर्थ से, विश्वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आने वाले समय में प्रगट होने वाली है, की जाती है।
[6]और इस कारण तुम मगन होते हो, यद्यपि अवश्य है कि अब कुछ दिन तक नाना प्रकार की परीक्षाओं के कारण उदास हो।
[7]और यह इसलिये है कि तुम्हारा परखा हुआ विश्वास, जो आग से ताए हुए नाशमान सोने से भी कहीं, अधिक बहुमूल्य है, यीशु मसीह के प्रगट होने पर प्रशंसा, और महिमा, और आदर का कारण ठहरे।
[8]उस से तुम बिन देखे प्रेम रखते हो, और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो, जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है।
सच्चे विश्वास से मसीह के अनुयायियों में पवित्रता और प्रेम उत्पन्न होता है और एक नया समाज का निर्माण होता है। जहां पर जीवन और उत्साह से सब स्थान के लोग आशीषित होते हैं।


पतरस की दूसरी पत्री पतरस ने प्रथम पत्री को लिखने के लगभग एक वर्ष पश्चात् उन्हीं लोगों को दूसरा पत्र लिखा। [1पत.1:1,2पत.3:1] पतरस रोम में कैद था और मृत्यु दण्ड की आशा रखता था। [2पत.1:14-15] जब उसने सुना कि झूठे शिक्षक कलीसिया में गड़बड़ी फैला रहे हैं तब उसने तुरन्त इस पत्र को भेजकर लोगों को इन झूठे शिक्षकों से सतर्क रहने का आग्रह किया।
पतरस बतलाता है कि मसीह का पुनरागमन निश्चित है और इस सत्य की हंसी उड़ानेवाले अपने आपको धोखा दे रहे हैं। [2पत.3:1-7] उसके आने में देर का स्पष्ट कारण यह है कि वह पापियों को पश्चाताप करने का और आनेवाले दण्ड से बचने का अवसर देना चाहता है। मसीहियों को भी इसी प्रकार उसके पुनरागमन के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि उन्हें भी परमेश्वर के समक्ष अपना लेखा देना है। [2पत.3:8-18]


मृत्यु-
अपनी दूसरी पत्री को लिखते समय उसे जेल में डाल दिया गया था और वह अपने उस दण्ड की प्रतीक्षा कर रहा था जिसकी भविष्यवाणी यीशु ने लगभग 30 वर्ष पहिले कर दी थी। [2पत.1:13-15, यूह.21:18-19] परम्परागत रीति से माना जाता है कि पतरस को रोम में ई.सन् 65-69 के मध्य क्रूस पर उलटा लटका कर प्राण दण्ड दिया गया था।प्रेरितों के प्रमुख शमौन केफा का उल्टा सूली पर चढ़ाए जाने का उनका अनुरोध इसी उद्देश्य से था कि "प्रतीकात्मक रूप से यीशु के पैरों के स्थान को चूमते हुए" मरना।
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