•03.03.2021•इब्रानियों 9:1-10.
[1] उस पहली वाचा में भी सेवा के नियम थे, और ऐसा पवित्रस्थान था जो इस जगत का था।
[2] क्योंकि एक तम्बू बनाया गया, पहले तम्बू में दीवट, और मेज, और भेंट की रोटियां थी; और वह पवित्र स्थान कहलाता है।
[3] दूसरा, परदे के पीछे वह तम्बू था, जो परमपवित्रस्थान कहलाता है।
[4]उसमें सोने की धूपदानी, और चारों ओर सोने से मढ़ा हुआ वाचा का सन्दूक और इसमें मन्ना से भरा हुआ सोने का मर्तबान और हारून की छड़ी जिसमें फूल फल आ गए थे और वाचा की पटियाॅं थीं।
[5]उसके ऊपर दोनों तेजोमय करूब थे, जो प्रायश्चित्त के ढकने पर छाया किए हुए थे: इनका का एक-एक करके वर्णन करने का अभी अवसर नहीं है।
[6]ये वस्तुएं इस रीति से तैयार हो चुकीं। उस पहले तम्बू में तो याजक हर समय प्रवेश करके सेवा के कार्य सम्पन्न करते हैं।
[7]पर दूसरे में केवल महायाजक वर्ष भर में एक ही बार जाता है, और बिना लहू लिये नहीं जाता; जिसे वह अपने लिये और लोगों की भूल चूक के लिये चढ़ाता है।
[8]इस से पवित्र आत्मा यही दिखाता है कि जब तक पहला तम्बू खड़ा है, तब तक पवित्र स्थान का मार्ग प्रगट नहीं हुआ।
[9] यह तम्बू वर्तमान समय के लिये एक दृष्टान्त है; जिसमें ऐसी भेंट और बलिदान चढ़ाए जाते हैं, जिनसे आराधना करनेवालों के विवेक सिद्ध नहीं हो सकते।
[10] क्योंकि वे केवल खाने पीने की वस्तुओं और भांति-भांति के स्नान-विधि के आधार पर शारीरिक नियम हैं, जो सुधार के समय तक के लिये नियुक्त किए गए हैं।
Worship in the Earthly Tabernacle.
1.Now the first covenant had regulations for worship and also an earthly sanctuary. 2. A tabernacle was set up. In its first room were the lampstand and the table with its consecrated bread; this was called the Holy Place.
3.Behind the second curtain was a room called the Most Holy Place,
4.which had the golden altar of incense and the gold-covered ark of the covenant. This ark contained the gold jar of manna, Aaron’s staff that had budded, and the stone tablets of the covenant.
5.Above the ark were the cherubim of the Glory, overshadowing the atonement cover. But we cannot discuss these things in detail now.
6 When everything had been arranged like this, the priests entered regularly into the outer room to carry on their ministry.
7. But only the high priest entered the inner room, and that only once a year, and never without blood, which he offered for himself and for the sins the people had committed in ignorance.
8.The Holy Spirit was showing by this that the way into the Most Holy Place had not yet been disclosed as long as the first tabernacle was still functioning.
9.This is an illustration for the present time, indicating that the gifts and sacrifices being offered were not able to clear the conscience of the worshiper.
10. They are only a matter of food and drink and various ceremonial washings—external regulations applying until the time of the new order.
-----------------------------------------------------------------
•पार्थिव पवित्रस्थान(Earthly Sanctuary)-
•निर्गमन 3:14-15 -
[14]परमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं जो हूॅं सो हूॅं। फिर उस ने कहा, तू इस्राएलियों से यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूॅं है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।
[15]फिर परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, कि तू इस्राएलियोंसे यह कहना, कि तुम्हारे पितरोंका परमेश्वर, अर्थात् इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर, यहोवा उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है। देख सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा।
•यशायाह 41:4 -
[4]किस ने यह काम किया है और आदि से पीढिय़ों को बुलाता आया है? मैं यहोवा, जो सब से पहिला, और अन्त के समय रहूंगा; मैं वहीं हूॅं।
•लैव्यवस्था 17:11-
[11]क्योंकि शरीर का प्राण लोहू में रहता है; और उसको मैं ने तुम लोगों को वेदी पर चढ़ाने के लिये दिया है, कि तुम्हारे प्राणों के लिये प्रायश्चित्त किया जाए; क्योंकि प्राण के कारण लोहू ही से प्रायश्चित्त होता है।
•उपासना करें(Worship)-
परमेश्वर की स्तुति, महिमा, प्रशंसा आदर और सम्मान देना।
•भजन संहिता 100:1-5 -
[1]हे सारी पृथ्वी के लोगों, यहोवा का जयजयकार करो!
[2]आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ!
[3]निश्चय जानो कि यहोवा ही परमेश्वर है। उसी ने हम को बनाया, और हम उसी के हैं; हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं॥
[4]उसके फाटकों से धन्यवाद, और उसके आंगनों में स्तुति करते हुए प्रवेश करो, उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो!
[5]क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करूणा सदा के लिये, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
-----------------------------------------------------------------
[1] उस पहली वाचा में भी सेवा के नियम थे, और ऐसा पवित्रस्थान था जो इस जगत का था।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
•वाचा (Covenant)-
सामान्यत: दो पक्षों के मध्य में एक समझौता या अनुबंध होता है - उसे वाचा कहा जाता है। जैसे - परमेश्वर और उनकी प्रजा। यह वह व्यवस्था है जिसका परमेश्वर के साथ मानव व्यवहार करता है।
•पहली वाचा (First Covenant) --
(Heb8:7; Ex19:1-20:17; Deu5:6-21.)
पहली वाचा की शुरूआत परमेश्वर और आदम के साथ था। परमेश्वर ने अदन वाटिका के बीचों-बीच में जीवन वृक्ष और भले या बुरे का वृक्ष लगाया और आदम को आज्ञा दिया कि तुम वाटिका के सभी वृक्षों के फल बेखटके का सकते हो किन्तु भले या बुरे वृक्ष
का फल को कभी भी नहीं खाना- यहाॅं पर आदम ने फल खाकर परमेश्वर के आज्ञा का उल्लघंन किया।
इस प्रकार अदन-वाटिका से परमेश्वर ने आदम को निकाल दिया कि संसार में अपना जीवन स्वतंत्र रूप से जीएं। Ge2:15-17; 3:1-23)
परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों को सुरक्षा और आशीष देने तथा एक देश देने की प्रतिज्ञा की थी,जिसे वे अपना कह सकें। इसके बदले, लोगों को व्यवस्था को मानना था, जिसमें सही रूप से आराधना करने के नियम (Heb9:1) तथा शान्ति और न्याय से एक समाज के रूप में कैसे रहा जाए -- से सम्बन्धित निर्देश थे। इस सबसे बढ़कर, लोगों को मात्र परमेश्वर के प्रति ही विश्वासयोग्य बने रहना था। परन्तु लोग पहली वाचा के अनुसार जीवन जीने में असमर्थ रहे थे, अतः परमेश्वर ने नई वाचा स्थापित की जो पत्थर की तख्तियों पर नहीं अपितु सीधे उनके हृदयों और मनों पर लिखी गई थी।
और सीनै पर्वत पर परमेश्वर ने मूसा को "दस आज्ञा" की दो पटियाॅं जीवन जीने के लिए दिया गया है।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[2] क्योंकि एक तम्बू बनाया गया, पहले तम्बू में दीवट, और मेज, और भेंट की रोटियां थी; और वह पवित्र स्थान कहलाता है।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
•एक तम्बू [A Tabernacle] -
[Ex25:1-27:21; Ex36:1-38:3]
मूल तम्बू साधारण था जो कपड़े तथा पशु के चमड़े से बना था।यह इतना छोटा था कि मूसा स्वयं इसको सज्जित कर सकता था,जिसे उसने छावनी के बाहर उस समय बनाया था जब इस्राएली एक स्थान से दूसरे स्थान को वाचा के देश में जाने के लिये यात्रा कर रहे थे(Ex33:7-11)। सम्भवतः शीलो में(1Sa2:1-4) पुराने तम्बू के स्थान पर नये तम्बू को स्थापित किया गया था जो अधिक स्थाई था, तथा पुराने सामान (सन्दूक,दीवट,मेज़) को नये तम्बू में रख दिया गया था।
वर्षों बाद राजा दाऊद ने आराधना के प्रमुख स्थान को यरूशलेम में स्थापित नये तम्बू में स्थानांतरित कर दिया था, जिसमें सन्दूक तथा सभी याजकीय उपकरण रखे गए थे (2Sa6:1-9)। इस तम्बू को स्थाई मन्दिर में बदल दिया गया,जिसे दाऊद के पुत्र सुलैमान ने बनवाया और लगभग ई.पू.945 में समर्पित किया था (1Ki5:1-6:8;7:13-8:66)।
पवित्र तम्बू तथा बाद में यरूशलेम का मन्दिर इस्राएल के लोगों के बीच परमेश्वर की उपस्थिति के स्पष्ट प्रतीक थे। पवित्र बलिदानों को चढ़ाने तथा इस्राएलियों की आराधना विधि के भी ये मुख्य केन्द्र थे। ये उसके भाग थे जिसे इब्रानियों का लेखक, "पहली वाचा" कहता है (8:7;9:1)जो परमेश्वर ने अपने लोगों से बाॅंधी थी। परन्तु इब्रानियों के अनुसार, परमेश्वर ने एक नई वाचा बाॅंधी जो यीशु मसीह, सच्चा महायाजक,के कार्यों तथा बलिदान पर आधारित थी। यीशु को पवित्र तम्बू में पाप के लिये बलिदान चढ़ाने को जाने की आवश्यकता नहीं थी। इसके बदले, वह सीधे स्वर्ग में परमेश्वर की उपस्थिति में अपना लहू चढ़ाने सभी मनुष्यों के पापों को सदैव के लिये एक ही बार दूर करने को गया(Heb9:11-28)।
प्राचीन इस्राएली आराधना के लिये जिस पवित्र तम्बू का प्रयोग करते थे (Ex25:27)। उसमें एक पर्दा "पवित्र स्थान" को "परमपवित्र स्थान" से अलग करता था, जिसमें मात्र महायाजक ही प्रवेश कर सकता था। "परदे के भीतर तक पहुंचने वाली आशा" मसीहियों की आशा है क्योंकि यीशु महायाजक बना, उनके पापों के लिये अपना बलिदान दिया तथा स्वर्ग में प्रवेश किया।
यद्यपि परमपवित्र स्थान के अन्दर था (बाद में मन्दिर में), लेखक कहता है कि अब यह परमपवित्र स्थान सच्चे तम्बू अर्थात् स्वर्ग में है।
I.पहला तम्बू [पवित्र स्थान] -
1.दीवट,
2.मेज़, और
3.भेंट की रोटियाॅं।
[Ex16:2-26,Nu11:4-9]
•परमेश्वर ने मूसा को सीनै पर्वत पर व्यवस्था दी थी, परमेश्वर ने उसे मिलापवाला तम्बू बनाने के निर्देश भी दिए थे (Ex25:1-27:21; 36:1-38:3)। यह पवित्र तम्बू इस्राएलियों के लिये आराधना का स्थान था, जहाॅं लोग परमेश्वर के लिये भेंट और बलिदान लाते थे। लोग तम्बू के पहले भाग में एकत्रित हो सकते थे, परन्तु मात्र याजक ही पहले परदे के पार पवित्र स्थान में जा सकते थे।
वहाॅं याजक दीवट की देखभाल करता था, जो परमेश्वर की उपस्थिति के प्रकाश का प्रतीक था।
उन्हें मेज पर ताज़ी भेंट की रोटियाॅं अवश्य ही रखनी होती थी जो इस बात का स्मरण करवाती थी कि परमेश्वर ने इस्राएलियों को जंगल में यात्रा के दौरान जीवन-दायिनी रोटी दी थी (Ex16:2-26; Nu11:4-9)।
और याजक सोने की वेदी पर सुगन्ध-द्रव्य जलाते थे। सुगन्ध-द्रव्य का धुॅंआ प्रार्थनाओं अभिव्यक्त करता था जो परमेश्वर के पास पहुॅंचती थी।
•परमेश्वर ने मूसा को 619 विभिन्न नियम दिए हैं-
•नैतिक शिक्षा के नियम -
Ex20:1-17.
•दैनिक जीवन के लिए नियम -
Ex21-33; Lev11:15, 17:20.
•आत्मिक जीवन के नियम-
Ex25:1-40, Ex38, Ro8:3, Mt5:17.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[3] दूसरा, परदे के पीछे वह तम्बू था, जो परमपवित्रस्थान कहलाता है।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
•दूसरा परदा पवित्र स्थान को उस अन्दरूनी स्थान से अलग करता था जिसे "परमपवित्र स्थान" कहा जाता था।"परमपवित्र स्थान" में मात्र महायाजक ही वर्ष में एक बार लोगों के पापों के लिये चढ़ाए गए बलिदान के लहू को लेकर प्रवेश कर सकता था (Lev16;Heb9:7)।
•सोने से मढ़ा हुआ पवित्र सन्दूक (वाचा का सन्दूक) परमपवित्र स्थान में रखा जाता था।
•सन्दूक में तीन वस्तुएं थीं ---
1.मन्ना से भरा सोने का मर्तबान Ex25:16;16:1-36,
Nu11:7;Deu8:3.,
2.हारून की छड़ी (Nu17:1-11-5.8.10.) जिसमें फूल-फल आ गये थे, Ac20:28,Php2:14,Heb13:17 तथा
3.पत्थर की पट्टियों पर लिखी हुई दस आज्ञाएं Ex20:1-17;Deu5:6-21;Jn14:15।
II.दूसरा तम्बू [परमपवित्र स्थान] -
[Lev16; Heb9:7]
1.सोने की धूपदानी(सुगन्ध-द्रव्य)।
2.सोने से मढ़ा हुआ वाचा का सन्दूक -
१. मन्ना से भरा हुआ सोने का मर्तबान-
[Ex25:16,Ex16:1-36,Nu11:7,Deu8:3]
२.हारून की छड़ी जिसमें फूल-फल आ गये थे -
[Nu16:1-50,Nu11:7,Deu8:3, Nu17:1-11, Ac20:28, Php2:14,Heb13:17]
३.वाचा की पट्टियां -
[Ex20:1-17]
•वाचा की पटियाॅं-
Ex19:19,20:1
•वाचा की पटियाॅं दो बार लिखा गया है -
i.Ex24:12[निर्गमन 24:12]-
[12]तब यहोवा ने मूसा से कहा, पहाड़ पर मेरे पास चढ़, और वहां रह; और मैं तुझे पत्थर की पटियाएं, और अपनी लिखी हुई व्यवस्था और आज्ञा दूंगा, कि तू उन को सिखाए।
ii.Ex34:1,4,28[निर्गमन 34:1,4,28]-
[1]फिर यहोवा ने मूसा से कहा, पहिली तख्तियों के समान पत्थर की दो और तख्तियां गढ़ ले; तब जो वचन उन पहिली तख्तियों पर लिखे थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, वे ही वचन मैं उन तख्तियों पर भी लिखूंगा।
[4]तब मूसा ने पहिली तख्तियों के समान दो और तख्तियां गढ़ी; और बिहान को सवेरे उठ कर अपने हाथ में पत्थर की वे दोनों तख्तियां ले कर यहोवा की आज्ञा के अनुसार पर्वत पर चढ़ गया।
[28]मूसा तो वहां यहोवा के संग चालीस दिन और रात रहा; और तब तक न तो उसने रोटी खाई और न पानी पिया। और उसने उन तख्तियों पर वाचा के वचन अर्थात दस आज्ञाएं लिख दीं।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[4]उसमें सोने की धूपदानी, और चारों ओर सोने से मढ़ा हुआ वाचा का सन्दूक और इसमें मन्ना से भरा हुआ सोने का मर्तबान और हारून की छड़ी जिसमें फूल फल आ गए थे और वाचा की पटियाॅं थीं।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
सन्दूक में तीन वस्तुएं थीं --- मन्ना से भरा सोने का मर्तबान, हारून की छड़ी (Nu17:1-11), तथा पत्थर की पटियाॅं पर लिखी हुई दस आज्ञाएं।
गिनती 17:1-11
[1]तब यहोवा ने मूसा से कहा,
[2]इस्त्राएलियों से बातें करके उन के पूर्वजों के घरानों के अनुसार, उनके सब प्रधानों के पास से एक एक छड़ी ले; और उन बारह छडिय़ों में से एक एक पर एक एक के मूल पुरूष का नाम लिख,
[3]और लेवियों की छड़ी पर हारून का नाम लिख। क्योंकि इस्त्राएलियों के पूर्वजों के घरानों के एक एक मुख्य पुरूष की एक एक छड़ी होगी।
[4]और उन छडिय़ों को मिलापवाले तम्बू में साक्षीपत्र के आगे, जहां मैं तुम लोगों से मिला करता हूं, रख दे।
[5]और जिस पुरूष को मैं चुनूंगा उसकी छड़ी में कलियां फूट निकलेंगी; और इस्त्राएली जो तुम पर बुड़बुड़ाते रहते हैं, वह बुड़बुड़ाना मैं अपने ऊपर से दूर करूंगा।
[6]सो मूसा ने इस्त्राएलियों से यह बात कही; और उनके सब प्रधानों ने अपने अपने लिये, अपने अपने पूर्वजों के घरानों के अनुसार, एक एक छड़ी उसे दी, सो बारह छडिय़ां हुई; और उन की छडिय़ों में हारून की भी छड़ी थी।
[7]उन छडिय़ों को मूसा ने साक्षीपत्र के तम्बू में यहोवा के साम्हने रख दिया।
[8]दूसरे दिन मूसा साक्षीपत्र के तम्बू में गया; तो क्या देखा, कि हारून की छड़ी जो लेवी के घराने के लिये थी उस में कलियां फूट निकली, अर्थात उस में कलियां लगीं, और फूल भी फूले, और पके बादाम भी लगे हैं।
[9]सो मूसा उन सब छडिय़ों को यहोवा के साम्हने से निकाल कर सब इस्त्राएलियों के पास ले गया; और उन्होंने अपनी अपनी छड़ी पहिचानकर ले ली।
[10]फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून की छड़ी को साक्षीपत्र के साम्हने फिर धर दे, कि यह उन दंगा करने वालों के लिये एक निशान बनकर रखी रहे, कि तू उनका बुड़बुड़ाना जो मेरे विरुद्ध होता रहता है भविष्य में रोक रखे, ऐसा न हो कि वे मर जाएं।
[11]और मूसा ने यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार ही किया।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[5]उसके ऊपर दोनों तेजोमय करूब थे, जो प्रायश्चित्त के ढकने पर छाया किए हुए थे: इनका का एक-एक करके वर्णन करने का अभी अवसर नहीं है।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
•वाचा का सन्दूक के ऊपर बने दो करूबों के
प्रायश्चित का ढाकना -
पवित्र सन्दूक के ऊपर पंख वाले दो प्राणी, या "करूब" बने थे। पवित्र सन्दूक के ढकने पर बने करूबों के बीच के स्थान को "दया का स्थान" कहा जाता था तथा पृथ्वी पर परमेश्वर के सिंहासन को अभिव्यक्त करता था (Ex25:8;2Ki18:14,15; Isa6:1-8)।
•Ex25:8[निर्गमन 25:8]-
[8]और वे मेरे लिये एक पवित्रस्थान बनाए, कि मैं उनके बीच निवास करूं।
•2 राजा 18:14-15
[14]तब यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने अश्शूर के राजा के पास लाकीश को कहला भेजा, कि मुझ से अपराध हुआ, मेरे पास से लौट जा; और जो भार तू मुझ पर डालेगा उसको मैं उठाऊंगा। तो अश्शूर के राजा ने यहूदा के राजा हिजकिय्याह के लिये तीन सौ किक्कार चान्दी और तीस किक्कार सोना ठहरा दिया।
[15]तब जितनी चान्दी यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारों में मिली, उस सब को हिजकिय्याह ने उसे दे दिया।
•यशायाह 6:1-8
[1]जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया।
[2]उस से ऊंचे पर साराप दिखाई दिए; उनके छ: छ: पंख थे; दो पंखों से वे अपने मुंह को ढांपे थे और दो से अपने पांवों को, और दो से उड़ रहे थे।
[3]और वे एक दूसरे से पुकार पुकारकर कह रहे थे: सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।
[4]और पुकारने वाले के शब्द से डेवढिय़ों की नेवें डोल उठीं, और भवन धूंए से भर गया।
[5]तब मैं ने कहा, हाय! हाय! मैं नाश हूआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठ वाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठ वाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है!
[6]तब एक साराप हाथ में अंगारा लिए हुए, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से उठा लिया था, मेरे पास उड़ कर आया।
[7]और उसने उस से मेरे मुंह को छूकर कहा, देख, इस ने तेरे होंठों को छू लिया है, इसलिये तेरा अधर्म दूर हो गया और तेरे पाप क्षमा हो गए।
[8]तब मैं ने प्रभु का यह वचन सुना, मैं किस को भेंजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा? तब मैं ने कहा, मैं यहां हूं! मुझे भेज।
•प्रायश्चित का ढाकना-
[Ex25;Ro3:25,Heb2:17,1Jn2:2]
• रोमियो 3:25-
[25]उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित्त ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से आनाकानी की; उन के विषय में वह अपनी धामिर्कता प्रगट करे।
•इब्रानियों 2:17-
[17]इस कारण उस को चाहिए था, कि सब बातों में अपने भाइयों के समान बने; जिस से वह उन बातों में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, एक दयालु और विश्वास योग्य महायाजक बने ताकि लोगों के पापों के लिये प्रायश्चित्त करे।
•1यूहन्ना 2:2-
[2]और वही हमारे पापों का प्रायश्चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन सारे जगत के पापों का भी।
पवित्र सन्दूक के ऊपर पंख वाले दो प्राणी, या "करूब" बने थे। पवित्र सन्दूक के ढकने पर बने करूबों के बीच के स्थान को "दया का स्थान" कहा जाता था तथा पृथ्वी पर परमेश्वर के सिंहासन को अभिव्यक्त करता था (Ex25:8;2Ki18:14,15; Isa6:1-8)।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[6]ये वस्तुएं इस रीति से तैयार हो चुकीं। उस पहले तम्बू में तो याजक हर समय प्रवेश करके सेवा के कार्य सम्पन्न करते हैं।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
भले ही सभी लोग याजकों के समान थे, फिर भी परमेश्वर लेवी गोत्र में से विशेष याजकों चुनने की आज्ञा दी थी (Nu1:49-50;3:5-13)। जिन्हें पहले तम्बू में, तथा बाद में यरूशलेम में बनने वाले मन्दिर में सेवकाई करनी थी।इन याजकों का वर्णन उनके कार्यों के अनुसार किया गया है --
1.लेवीय, वे बलिदान को चढ़ाने की तैयारी करते तथा पवित्र स्थान को साफ करने का काम करते थे।
2.याजक, वे बलिदान और भेंट चढ़ाते तथा अन्य रीतियों को पूरा करते थे।
याजक - बलिदान चढ़ाते,दीवट को जलाए रखते, तथा भेंट को रोटियों को बदलते थे।(२:१७ का टिप्पणी) है
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[7]पर दूसरे में केवल महायाजक वर्ष भर में एक ही बार जाता है, और बिना लहू लिये नहीं जाता; जिसे वह अपने लिये और लोगों की भूल चूक के लिये चढ़ाता है।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
•महायाजक -
महायाजक, वह पवित्र स्थान का प्रमुख था तथा वहीं एकमात्र व्यक्ति था जो मंदिर के अन्दरूनी भाग में (परमपवित्र स्थान) में जा सकता था, जहाॅं परमेश्वर वास करता था,ऐसा विश्वास था (Ex28:29)।
महायाजक केवल प्रायश्चित के दिन ही परमपवित्र स्थान में प्रवेश कर सकते थे।(Lev16:2-34)
नया नियम बताता है कि यीशु ने अपने को क्रूस पर बलिदान कर दिया(Mk10:45) तथा परमेश्वर ने यीशु को बलिदान के रूप में भेजा था ताकि वह लोगों को उनके पापों से छुड़ाए (Ro3:25,36)। इब्रानियों में यीशु को एक महायाजक के रूप में देखा गया है, क्रूस पर जिसकी मृत्यु संसार के पापों के लिये चढ़ाया गया एक पूर्ण एवं सिद्ध बलिदान था(Heb4:14-5:7; Heb10:1-18)
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[8]इस से पवित्र आत्मा यही दिखाता है कि जब तक पहला तम्बू खड़ा है, तब तक पवित्र स्थान का मार्ग प्रगट नहीं हुआ।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
•पवित्र आत्मा-
पवित्र आत्मा परमेश्वर का वह स्वरूप है जो संसार में परमेश्वर के लक्ष्यों को पूरा करता है। आत्मा परमेश्वर के लोगों को सिखाता एवं मार्गदर्शन करता है ताकि वे वैसे लोग बन सकें जैसा परमेश्वर उन्हें बनाना चाहता है।
-----------------------------------------------------------------
[9] यह तम्बू वर्तमान समय के लिये एक दृष्टान्त है; जिसमें ऐसी भेंट और बलिदान चढ़ाए जाते हैं, जिनसे आराधना करनेवालों के विवेक सिद्ध नहीं हो सकते।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
परमेश्वर ने मूसा को पहला पवित्र तम्बू बनाने की योजना का निर्देश दिया था (Ex25:40)। इस्राएल के याजक इस तम्बू में तथा बाद में मन्दिर में बलिदान चढ़ाया करते थे। परन्तु मन्दिर और तम्बू दोनों ही स्वर्ग में सच्ची आराधना के स्थान की तुलना में अपूर्ण है।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[10] क्योंकि वे केवल खाने पीने की वस्तुओं और भांति-भांति के स्नान-विधि के आधार पर शारीरिक नियम हैं, जो सुधार के समय तक के लिये नियुक्त किए गए हैं।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
•शारीरिक नियम-
इन नियमों का अभिप्राय मूसा की व्यवस्था के नियमों से है जो खाने-पीने के सही ढंग,और व्यक्ति के विशेष
शुध्दिकरण के लिये जो रीतिनुसार शुद्धता को बनाए रखने के लिये आवश्यक थे (Lev111-15:32)।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
•नई वाचा[अनुग्रह का वाचा]-
[Mt.5:17.Ro3:31.Gal3:1-14.Heb9:11-28]
"अनुग्रह की वाचा" पिता और पुत्र के मध्य में दो मुख्य वाचाएं हैं-
1.पिता ने पुत्र को नियुक्त किया।
2.पुत्र ने संसार के समस्त मानव-जाति को पाप से मुक्ति का मार्ग प्रदान किया है।
[Mt10:45. Ro3:25,36.Heb10:1-18. Heb4:14-5:7]
परमेश्वर की नई वाचा यीशु पर आधारित है जिसका बलिदान पापों की क्षमा के लिये हुआ था। इसका अर्थ यह नहीं है कि मूसा की व्यवस्था पर आधारित पुरानी वाचा अर्थहीन है (Mt5:17;Ro3:31)।इसका अर्थ है कि यीशु में विश्वास,जो कि सिद्ध महायाजक है, बचने का एक मार्ग है (Gal3:1-14;Heb9:11-28)।
•मत्ती 5:17-
[17]यह न समझो, कि मैं व्यवस्था था भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूं।
रोमियो 3:31
[31]तो क्या हम व्यवस्था को विश्वास के द्वारा व्यर्थ ठहराते हैं? कदापि नहीं; वरन व्यवस्था को स्थिर करते हैं।
•1यूहन्ना 2:1b -2-
[1]तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात धार्मिक यीशु मसीह।
[2]और वही हमारे पापों का प्रायश्चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन सारे जगत के पापों का भी।
•इब्रानियों 9:11-12 -
[11]परन्तु जब मसीह आने वाली अच्छी अच्छी वस्तुओं का महायाजक होकर आया, तो उस ने और भी बड़े और सिद्ध तम्बू से होकर जो हाथ का बनाया हुआ नहीं, अर्थात इस सृष्टि का नहीं।
[12]और बकरों और बछड़ों के लोहू के द्वारा नहीं, पर अपने ही लोहू के द्वारा एक ही बार पवित्र स्थान में प्रवेश किया, और अनन्त छुटकारा प्राप्त किया।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------