|| यीशु ने कहा, "देखो, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ। मेरा पुरस्कार मेरे पास है और मैं प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों का प्रतिफल दूँगा। मैं अल्फा और ओमेगा; प्रथम और अन्तिम; आदि और अन्त हूँ।" Revelation 22:12-13     
Home

My Profile

Topics

Words Meaning

Promises of God

Images

Songs

Videos

Feed Back

Contact Us

Visitor Statistics
» 1 Online
» 11 Today
» 2 Yesterday
» 13 Week
» 137 Month
» 5628 Year
» 41442 Total
Record: 15396 (02.03.2019)

आदि शिक्षा से मुक्ति की ओर बढ़ें


 

23.02.2021. धर्म और विश्वास में उन्नति करें *
•इब्रानियों 5:11-14 -
[11]इसके विषय में हमें बहुत सी बातें कहनी हैं, जिनका समझाना भी कठिन है, इसलिये कि तुम ऊॅंचा सुनने लगे हो।
[12]समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी यह आवश्यक हो गया है कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए। तुम तो ऐसे हो गए हो कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए।
[13]क्योंकि दूध पीने वाले बच्चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्योंकि वह बालक है।
[14]पर अन्न सयानों के लिये है, जिनकी ज्ञानेन्द्रियाॅं अभ्यास करते करते भले-बुरे में भेद करने में निपुण हो गई हैं।

Hebrews 5:11–14-
[11]We have much to say about this, but it is hard to make it clear to you because you no longer try to understand.
[12]In fact, though by this time you ought to be teachers, you need someone to teach you the elementary truths of God’s word all over again. You need milk, not solid food!
[13]Anyone who lives on milk, being still an infant, is not acquainted with the teaching about righteousness.
[14]But solid food is for the mature, who by constant use have trained themselves to distinguish good from evil.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------•महा उपवास काल (प्रथम सप्ताह - 23/02/2021)
•इन्वोकावित - Invocabit (उसने मुझे पुकारा) ---
Ps. 91:15 - जब वह मुझ को पुकारे, तब मैं उसकी सुनूंगा; संकट में मैं उसके संग रहूंगा, मैं उसको बचा कर उसकी महिमा बढ़ाऊंगा।

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- • पृष्ठभूमि -
• लेखक -- अज्ञात।
• तिथि - सन् 64-68।
• इब्रानी में अधिकतर लोग विश्वासी थे(3:1) यद्यपि हर कलीसिया की तरह, निसंदेह यहां भी कुछ ऐसे थे जो केवल नामधारी मसीह थे। कुछ लोग मसीह में अपने विश्वास को त्यागकर वापस यहूदी धर्म की ओर फिरने के खतरे में थे। लेखक से इस पत्री को "उपदेश की बातें"(13:22) कहने की मांग की। पाठकगण सताए जा रहे थे, यद्यपि शहीद होने की हद तक नहीं। (10:32-34,12:4) और ऐसी परिस्थिति में कुछ लोगों के विधर्मी होने का ख़तरा था।यह पत्री याजकीय प्रथा और बलिदान के सन्दर्भ में मसीह मसीहत की यहूदी धर्म से श्रेष्ठता को  सिद्ध करने वाली एक भावोत्तेजक तर्कशास्त्र है।

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[11]इसके विषय में हमें बहुत सी बातें कहनी हैं, जिन का समझाना भी कठिन है; इसलिये कि तुम ऊॅंचा सुनने लगे हो।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
1.इसके विषय अर्थात् "यीशु के मलिकिसिदक याजकीय" विषय के सन्दर्भ में ।
"मलिकिसिदक" का अर्थ है- "धार्मिकता का राजा "‌। शालेम अर्थात् शांति का राजा और सर्वोच्च शिरोमणि परमेश्‍वर का याजक था। 
 
उत्पत्ति ग्रंथ में हम पाते हैं कि मलिकिसिदक का अचानक से प्रगट होना और फिर लुप्त हो जाना --- एक रहस्य भरी विषय जान पड़ता है, क्योंकि धर्मग्रंथ में मलिकिसिदक के बारे में और अधिक वर्णन नहीं किया गया है।
मलिकिसिदक और अब्राहम की पहली मुलाकात अब्राहम के द्वारा कदोर्लाओमेर और उसके तीन साथी राजाओं की पराजय के पश्चात् हुई थी। मिलिकिसिदक ने अब्राहम और उसके थके हुए लोगों को मित्रता प्रगट करते हुए दाखरस और रोटी खाने के लिए परोसा था। उसने अब्राहम के ऊपर एल-एल्योन अर्थात् "परमप्रधान परमेश्‍वर" (El Elyon= The Most High God) के नाम से आशीष दी थी और अब्राहम की युद्ध में हुई जीत के लिए परमेश्‍वर की प्रशंसा की थी।

अब्राहम ने मिलिकिसिदक को उसके द्वारा एकत्र की हुई सभी वस्तुओं का दसवाँ अंश दिया था। इस कार्य के द्वारा अब्राहम ने संकेत दिया कि उसने मिलिकिसिदक को एक ऐसे याजक के रूप में स्वीकार किया था जो पदवी में उससे आत्मिक रीति से उच्च था।

•उत्पत्ति 14:17-20 -
[17]जब वह कदोर्लाओमेर और उसके साथी राजाओं को जीत कर लौटा आता था तब सदोम का राजा शावे नामक तराई में, जो राजा की तराई भी कहलाती है, उससे भेंट करने के लिये आया।
[18]जब शालेम का राजा मलिकिसिदक, जो परमप्रधान ईश्वर का याजक था, रोटी और दाखमधु ले आया।
[19]और उसने अब्राम को यह आशीर्वाद दिया, "परमप्रधान ईश्वर की ओर से, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, तू धन्य हो।
[20]और धन्य है परमप्रधान ईश्वर, जिसने तेरे द्रोहियों को तेरे वश में कर दिया है।" तब अब्राम ने उसको सब वस्तुओं का दशमांश दिया।

•इब्रानियों 5:6–11; 6:20—7:28.

हमारा प्रभु यीशु मसीह कभी भी लेवीय रीति के अनुसार याजक नहीं हो सकता था क्योंकि उसका जन्म लेवीय गोत्र में नहीं वरन् यहूदा के गोत्र में हुआ था •Heb.7:14.
इसलिए उसे अन्य रीति के याजक अर्थात् मलिकिसिदक के साथ सम्बध्द होना चाहिए। 
•मसीह और मलिकिसिदक दोनों मनुष्य थे ---                                               Heb.7:4, 1Ti2:5. 
•दोनों राजा-याजक थे-Ge14:18, Jac.6:12-13.
•दोनों प्रत्यक्ष रुप से परमेश्वर की ओर से नियुक्त किए गए थे---  Heb.7:21.
•दोनों को धार्मिकता का राजा और शांति का राजा कहा गया --- Heb.7:2,Isa11:5-9.


भजन संहिता 110:4 में दाऊद के द्वारा प्रतिज्ञात् मसीह के लिए एक भजन लिखा गया है-
भजन संहिता 110:4 -
[4]यहोवा ने शपथ खाई और न पछताएगा :" तू मलिकिसिदक की रीति पर सर्वदा का याजक है।"
मत्ती 22:43-
[43]उस ने उन से पूछा, तो दाऊद आत्मा में होकर उसे प्रभु क्यों कहता है?

मलिकिसिदक को मसीह के प्रतीक के रूप में प्रगट किया गया है। इस विषय को इब्रानियों की पुस्तक में दुहराया गया है, जहाँ दोनों ही, मलिकिसिदक और मसीह को धार्मिकता और शान्ति के राजा के रूप में स्वीकार किया गया है। मलिकिसिदक और उसके याजक होने के विशेष पद का उदाहरण देते हुए लेखक यह प्रगट करता है कि मसीह का नया याजकीय पद पुरानी लेवीय व्यवस्था और हारून के याजकीय पद से सर्वोच्च है।

इब्रानियों 7:1-10 -
[1]यह मलिकिसिदक शालेम का राजा और परमप्रधान परमेश्वर का याजक, सर्वदा याजक बना रहता है; जब इब्राहीम राजाओं को मार कर लौटा जाता था, तो इसी ने उस से भेंट करके उसे आशीष दी।
[2]इसी को इब्राहीम ने सब वस्तुओं का दसवां अंश भी दिया: यह पहिले अपने नाम के अर्थ के अनुसार धर्म का राजा, और फिर शालेम अर्थात शांति का राजा है।
[3]जिस का न पिता, न माता, न वंशावली है, जिस के न दिनों का आदि है और न जीवन का अन्त है; परन्तु परमेश्वर के पुत्र के स्वरूप ठहरा॥
[4]अब इस पर ध्यान करो कि यह कैसा महान था जिस को कुलपति इब्राहीम ने अच्छे से अच्छे माल की लूट का दसवां अंश दिया।
[5]लेवी की संतान में से जो याजक का पद पाते हैं, उन्हें आज्ञा मिली है, कि लोगों अर्थात अपने भाइयों से चाहे वे इब्राहीम ही की देह से क्यों न जन्मे हों, व्यवस्था के अनुसार दसवां अंश लें।
[6]पर इसने जो उनकी वंशावली में का भी न था इब्राहीम से दसवां अंश लिया और जिसे प्रतिज्ञाएं मिली थी उसे आशीष दी।
[7]और उस में संदेह नहीं कि छोटा बड़े से आशीष पाता है।
[8]और यहां तो मरनहार मनुष्य दसवां अंश लेते हैं पर वहां वही लेता है, जिस की गवाही दी जाती है कि वह जीवित है।
[9]तो हम यह भी कह सकते हैं कि लेवी ने भी जो दसवां अंश लेता है, इब्राहीम के द्वारा दसवां अंश दिया।
[10]क्योंकि जिस समय मलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय यह अपने पिता की देह में था।

कुछ लेखक प्रस्ताव देते हैं कि मलिकिसिदक वास्तव में यीशु मसीह के देहधारण का पूर्व-प्रगटीकरण या मसीह-प्रकाशन है।
उत्पत्ति 17 अध्याय पर विचार करें जहाँ पर अब्राहम ने प्रभु (एल शदैए) को देखा और उससे एक व्यक्ति के रूप में बात की थी।

इब्रानियों 6:20-
[20]जहां यीशु मलिकिसिदक की रीति पर सदा काल का महायाजक बन कर, हमारे लिये अगुआ के रूप में प्रवेश किया है। 
शब्द "सदा काल का महायाजक" सामान्य रूप से याजक के पद के चलते रहने वाले उत्तराधिकार वाले क्रम को दिखाता है तथापि मलिकिसिदिक से लेकर मसीह के मध्य में एक लम्बे अन्तराल में किसी अन्य याजक का कोई उल्लेख नहीं किया गया है, जो एक ऐसी विसंगति है, जिसका समाधान यह मानते हुए स्वीकार किया जा सकता है कि मलिकिसिदक और मसीह वास्तव में एक ही व्यक्ति हैं। इस प्रकार यह "व्यवस्था" शाश्‍वतकाल से उसी पर और केवल उसी पर ही ठहराई गई है।

इब्रानियों 7:3 -
जिसका (मलिकिसिदक) न पिता, न माता, न वंशावली है, जिसके दिनों का न आदि है और न जीवन का अन्त है; परन्तु परमेश्‍वर के पुत्र के स्वरूप ठहर कर वह सदा के लिये याजक बना रहता है।

यह देखना सचमुच ही कठिन है, कि कैसे यह उचित रीति से प्रभु यीशु मसीह को छोड़ किसी अन्य व्यक्ति के ऊपर लागू किया जा सकता है। कोई भी पार्थिव "राजा सदा के लिए याजक नहीं बने" रहे हैं, और कोई भी मनुष्य "बिना माता और पिता" के नहीं रहा है। यदि उत्पत्ति 14 मसीह-के-प्रकाशन का विवरण कर रही है, तब तो परमेश्‍वर पुत्र अब्राहम को अपनी आशीष देने के लिए आते हुए (उत्पत्ति 14:17–19), धार्मिकता के राजा (प्रकाशितवाक्य 19:11,16), शान्ति के राजा (यशायाह 9:6), और मनुष्य और परमेश्‍वर के मध्य में मध्यस्थक के रूप में प्रगट हुआ (1 तीमुथियुस 2:5)।
•प्रकाशित वाक्य 19:11,16-
[11]फिर मैं ने स्वर्ग को खुला हुआ देखा; और देखता हूं कि एक श्वेत घोड़ा है; और उस पर एक सवार है, जो विश्वास योग्य, और सत्य कहलाता है; और वह धर्म के साथ न्याय और लड़ाई करता है।
[16]और उसके वस्त्र और जांघ पर यह नाम लिखा है, राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु॥
•यशायाह 9:6-
[6]क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत युक्ति करने वाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा।
 •1तीमुथियुस 2:5 -
[5]क्योंकि परमेश्वर एक ही है: और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है।


जिनका समझाना भी कठिन है, इसलिये कि तुम ऊॅंचा सुनने लगे हो अर्थात् लेखक इब्रानियों को कहता है यह समझाना कठिन और मुश्किल है कि  आप अब सुसमाचार को  समझने की कोशिश नहीं करते हैं और न ही सुनने के लिए उत्सुक होते हैं क्योंकि आप आध्यात्मिक रूप से सुस्त हैं।  इस प्रकार सुस्त श्रोता, सुसमाचार के प्रचार को कठिन बनाते हैं जबकि उनके लिए बहुत कुछ दिया जाता है और उनके लिए बहुत कुछ रखा भी जाता है।
ईसाई अनुभव का एक आध्यात्मिक अर्थ है - स्वाद, या सुसमाचार की सच्चाइयों की अच्छाई, मिठास और उत्कृष्टता की प्रतिज्ञा। और कोई भी जीभ उस संतुष्टि को व्यक्त नहीं कर सकती है जो आत्मा को मिलती है । 
जैसे ईश्वरीय अच्छाई, अनुग्रह, और मसीह में उसके प्रति प्रेम की भावना से‌।

यह मसीहियों को "सुनने की नीरसता" के रूप में व्यक्त करता है जो आलसी या सुस्त होने का भाव रखता है। यहाँ आलोचना यह नहीं है कि ये ईसाई विवेकी नहीं हैं, या समझने में समर्थ नहीं हैं। बल्कि, वे अपने विश्वास के प्रति लापरवाह हैं। यह इब्रानियों के नाम पत्री (2:1-4) में दी गई चेतावनी है, जहाँ लेखक ने अपने श्रोताओं को इन बातों पर "अधिक ध्यान देने" की आज्ञा दी है।

•इसलिए हमें जो सुसमाचार मिला है,उस पर अच्छी तरह ध्यान दें कि हम मार्ग से भटक न जाएं।
•हम जो स्वर्गीय बुलाहट के सहभागी हैं, हमारे विश्वास के प्रवर्तक और महायाजक यीशु पर ध्यान करें।
•हम अपने मन को कठोर न करें कि हम पर चुनौतियाॅं और परीक्षाएं आ पड़े।
•हम चौकस रहें कि हमारा मन अविश्वासी न हों कि हम  परमेश्वर से दूर हो जाएं।
•हम सर्तक रहें कि परमेश्वर के विश्रामस्थान अर्थात् स्वर्ग में प्रवेश करने की वह प्रतिज्ञा जो अब तक क़ायम है, हममें से कोई भी उसमें प्रवेश करने से वंचित न रह जाएं।
•हम उस विश्राम में प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करें, ऐसा न हो कि कोई भी आज्ञा न मानकर गिर पड़े।

✓इब्रानियों 2:1-
[1]इस कारण चाहिए, कि हम उन बातों पर जो हम ने सुनी हैं और भी मन लगाएं, ऐसा न हो कि बहक कर उन से दूर चले जाएं।

✓इब्रानियों 3:1,8,12-
[1]सो हे पवित्र भाइयों तुम जो स्वर्गीय बुलाहट में भागी हो, उस प्रेरित और महायाजक यीशु पर जिसे हम अंगीकार करते हैं ध्यान करो।
[8]तो अपने मन को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय और परीक्षा के दिन जंगल में किया था।
[12]हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीवते परमेश्वर से दूर हट जाए।

✓इब्रानियों 4:1,11-
[1]इसलिये जब कि उसके विश्राम में प्रवेश करने की प्रतिज्ञा अब तक है, तो हमें डरना चाहिए ऐसा न हो कि तुम में से कोई जन उससे वंचित रह जाए।
[11] अतः हम उस विश्राम में प्रवेश करने का प्रयत्न करें, ऐसा न हो कि कोई जन उनके समान आज्ञा न मानकर गिर पड़े।

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[12]समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था, तौभी क्या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए। तुम तो ऐसे हो गए हो कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए था अर्थात् उस समय के सन्दर्भ से है- जब से हम मसीही विश्वासी बनते हैं,तो हमारा नया जन्म होता है। मसीही जीवन का आरम्भ हम मसीह में बालकों के रूप में करते हैं, परन्तु कलीसिया में अपने जीवन में बने रहते हुए हमें बढ़ना अर्थात् परिपक्व होना यानि कि आत्मिक रूप में व्यस्क होना चाहिए।    
2 पतरस 3:18 -
[18]पर हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाओ। उसी की महिमा अब भी हो, और युगानुयुग होती रहे। आमीन।

परिपक्वता अर्थात् आत्मिक रूप में व्यस्कता को हम तभी पा सकते हैं जब हम परमेश्वर के वचनों पर मनन करके आगे बढ़ते हैं।
1 पतरस 2:2 -
[2]नये जन्मे हुए बच्चों के समान निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ।

परमेश्वर का वचन हमारे लिये बहुमूल्य होना चाहिए यानि कि हमें सबसे अच्छे खाने की तरह इसकी भूख होनी चाहिए।
•भजन संहिता 19:10 का खण्ड में लिखा है -
[10] वे मधु से और टपकने वाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं।
•मत्ती 5:6 -
[6]धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जाएंगे।

कोई मसीही बिना परमेश्वर के वचन को खाए आत्मिक रूप में परिपक्व नहीं हो सकता। परन्तु आत्मिक परिपक्वता में बढ़ने के लिए आवश्यक है कि हम अपने बाइबल अध्ययन को सुसमाचार की ABC अर्थात् आरम्भिक शिक्षा तक सीमित न रहें।
जैसा कि परमेश्वर की प्रेरणा पाए लेखक ने कहा कि हममें वचन के "अन्न" को समझने के लिए अध्ययन करना और कोशिश करना आवश्यक है। यदि हम नये नियम की "आरम्भिक शिक्षा" के अलावा और कुछ नहीं जानते तथा हमें और सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं है तो हम अपने आपको आत्मिक रूप में परिपक्व नहीं कह सकते। कलीसियाओं और लोगों को सुसमाचार  सुनना आवश्यक है। कई मण्डलियों में सदस्य या तो सुनना नहीं चाहते या हो सकता है कि उन्हें "परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा" के अलावा और कुछ सुनने का अवसर ही नहीं मिला हो।
जब लेखक ने कहा कि हमें "आदि शिक्षा" को छोड़ देना चाहिए तो उसके यह कहने का अर्थ बिल्कुल नहीं था कि जैसे प्रचारकों को मसीहियत की बुनियादी सच्चाइयों का प्रचार नहीं करना चाहिए। इसके बजाय वह कह रहा था कि उन बुनियादी सच्चाइयों पर ही जोर न दिया जाए या मसीही लोगों को केवल वही न बताई जाएं। इसके बजाय मसीही लोगों को स्वयं बाइबल की उन सच्चाइयों को जिन्हें "आदि शिक्षा" नहीं कहा जाएगा और सीखने का अवसर ढूंढने चाहिए।
इस प्रकार हम देखते हैं कि लेखक ने हर मसीही को आत्मिक रूप में परिपक्व होने की कोशिश करने का आग्रह किया।

•दूध अर्थात् प्रारंभिक सत्य।
अतः वचन के गहरे (गंभीर) सत्य: उदाहरण के लिए मलिकिसिदक के संबंध में शिक्षाएं।
1Co.3:1-3-
[1]हे भाइयों, मैं तुम से इस रीति से बातें न कर सका जैसे आत्मिक लोगों से, परन्तु जैसे शारीरिक लोगों से, और उनसे जो मसीह में बालक हैं।
[2]मैं ने तुम्हें दूध पिलाया, अन्न न खिलाया; क्योंकि तुम उसको नहीं खा सकते थे; वरन अब तक भी नहीं खा सकते हो।
[3]क्योंकि अब तक शारीरिक हो। इसलिये कि जब तुम में डाह और झगड़ा है, तो क्या तुम शारीरिक नहीं? और क्या मनुष्य की रीति पर नहीं चलते?


✓परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा(बुनियादी शिक्षा)-
>पुराना नियम-
1.परमेश्वर ने अदन की वाटिका के बीच में "जीवन के वृक्ष"और "भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष" को भी लगाया।
यहोवा परमेश्वर ने "भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष" के फल को खाने से मना किया।
•उत्पत्ति 2:9-
[9]और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए, और वाटिका के बीच में "जीवन के वृक्ष" को और "भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष" को भी लगाया।
•उत्पत्ति 2:16-17-
[16] और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी "तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है:
[17]पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।"

2.दस आज्ञाएं-  (Ex.20:1-17)
परमेश्वर ने सीनै पर्वत के पास इस्राएलियों को दस आज्ञाएं दिया।

3.दशमांश का नियम-
व्यवस्थाविवरण 14:22-23-
[22]"बीज की सारी उपज में से जो प्रतिवर्ष खेत में उपजे उसका दशमांश अवश्य अलग करके रखना।
[23]और जिस स्थान को तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने के लिये चुन ले उसमें अपने अन्न, और नये दाखमधु, और टटके तेल का दशमांश, और अपने गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के पहिलौठे अपने परमेश्वर यहोवा के सामने खाया करना; जिस से तुम उसका भय नित्य मानना सीखोगे।

>नया नियम-

1.यीशु ने प्रचार करना और सेवा-कार्य यह कहते हुए आरम्भ किया।
•Mt.4:17-
पश्चाताप करो क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।

2.सबसे बड़ी आज्ञा-
•मत्ती 22:37-40-
[37]उसने उससे कहा, "तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।
[38]बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।
[39]और उसी के समान यह दूसरी भी है कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
[40]ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।"

3.व्यवस्था की शिक्षा -
•मत्ती 5:17-20-
[17]"यह न समझो, कि मैं व्यवस्था था भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूॅं,लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूॅं।
[18] क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूॅं, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
[19]इसलिये जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उन का पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।
[20]क्योंकि मैं तुम से कहता हूॅं, कि यदि तुम्हारी धामिर्कता शास्त्रियों और फरीसियों की धामिर्कता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे‌

4.नई आज्ञा-
•यूहन्ना 13:34
[34]मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूॅं कि एक दूसरे से प्रेम रखो; जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो।


1.मसीह की आरम्भिक शिक्षा अर्थात् मसीह और मसीही पंथ की आधारभूत शिक्षाएं।
2.समय और अवसरों को गवाएं बिना हमें मसीही परिपक्वता की ओर आगे बढ़ें।
3.विभिन्न प्रकार के बपतिस्मों के बीच भेद करना आधारभूत मसीही शिक्षा का एक आवश्यक अंग है। उदाहरण- यहूदी धर्मांतरितों का बपतिस्मा, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का बपतिस्मा, मसीही बपतिस्मा।
4.नयी आज्ञा--एक दूसरे से प्रेम करना। 

•कलीसियाई छोटा कटेकिसम-
1.दस आज्ञा।
2.प्रेरितों का विश्वास दर्पण।
3.प्रभु की प्रार्थना।
4.बपतिस्मा का सक्रामेन्त(वाचा)।
5.प्रभुभोज अथवा वेदी का सक्रामेन्त।
6.पाप स्वीकार(वेदी के सक्रामेन्त के सम्बन्ध में )।
7.बपतिस्मा की वाचा।
8.पाप स्वीकार(एतवार गिरजे की आराधना के सम्बन्ध में )।
9.विविध नियम (नैतिक शिक्षा, दैनिक जीवन के , आत्मिक अनुशासन के सम्बन्ध में...)।

परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा से मुक्ति की ओर 
 बढ़ें -
1.Hear(परमेश्वर का वचन सुनना)-

•लूका 11:27-28
[27]जब वह ये बातें कह ही रहा था तो भीड़ में से किसी स्त्री ने ऊंचे शब्द से कहा, "धन्य वह गर्भ जिसमें तू रहा और वे स्तन जो तू ने चूसे।"
[28]उसने कहा, "हां; परन्तु धन्य वे हैं जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।"

•रोमियो 10:14-15,17 -
[14]फिर जिस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम कैसे लें? और जिसके विषय सुना नहीं  उस पर कैसे विश्वास करें?और प्रचारक बिना कैसे सुनें?
[15] और यदि भेजे न जाएं, तो कैसे प्रचार करें? जैसा लिखा है, "उनके पांव क्या ही सुहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं।"
[17] अतः विश्वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से होता है।

2.Believe(प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना)-

•यूहन्ना 3:16-
[16]क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।

•यूहन्ना 3:35-36-
[35]पिता पुत्र से प्रेम रखता है, और उस ने सब वस्तुएं उसके हाथ में दे दी हैं।
[36]जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।"

•प्रेरितों के काम 16:29-31-
[29]तब वह दीया मंगवाकर भीतर लपका, और कांपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा।
[30]और उन्हें बाहर लाकर कहा, "हे सज्जनों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूं?
[31]उन्होंने कहा, "प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।"

3.Repent(पश्चाताप करना)-

•प्रेरितों के काम 20:21-
[21] वरन् यहूदियों और यूनानियों के सामने गवाही देता रहा कि परमेश्वर की ओर मन फिराना और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना चाहिए।

प्रेरितों के काम 3:19 -
[19]इसलिये, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं, जिससे प्रभु के सम्मुख से विश्रान्ति के दिन आएं।

•2 पतरस 3:9 -
[9]प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता कि कोई नष्ट हो, वरन् यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।

4.Confess(अपराध अंगीकार करना)-

•फिलिप्पियों 2:10-11-
[10]कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है, वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
[11]और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।

•रोमियो 10:9-10 -
[9]कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे, और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा।
[10]क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है।

•1 यूहन्ना 4:14-15 -
[14]और हम ने देख भी लिया और गवाही देते हैं कि पिता ने पुत्र को जगत का उद्धारकर्ता करके भेजा है।
[15]जो कोई यह मान लेता है कि यीशु परमेश्वर का पुत्र है, परमेश्वर उस में बना रहता है, और वह परमेश्वर में।

5. Be Baptized(बपतिस्मा लें)-

•यूहन्ना 3:5 -
[5]यीशु ने उत्तर दिया, " मैं तुझ से सच सच कहता हूॅं, जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।

•प्रेरितों के काम 2:38-
[38]पतरस ने उनसे कहा, "मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।

•तीतुस 3:4-7-
[4]पर जब हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की कृपा और मनुष्यों पर उसका प्रेम प्रगट हुआ।
[5]तो उस ने हमारा उद्धार किया: और यह धर्म के कामों के कारण नहीं, जो हम ने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार नए जन्म के स्नान और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ।
[6]जिसे उसने हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा हम पर अधिकाई से उंडेला।
[7]जिस से हम उसके अनुग्रह से धर्मी ठहरकर, अनन्त जीवन की आशा के अनुसार वारिस बनें।


---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[13]क्योंकि दूध पीने वाले बच्चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्योंकि वह बालक है।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

अपरिपक्व विश्वासी धार्मिकता की शिक्षाओं को नहीं जानते अथवा व्यवहार में नहीं लाते हैं।

 


---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
[14]पर अन्न सयानों के लिये है, जिनके ज्ञानेन्द्रियाॅं अभ्यास करते करते भले-बुरे में भेद करने में निपुण हो गई हैं।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

सयानों-- मसीही परिपक्वता में ये बातें सम्मिलित हैं-
1.समय(पद12)
2.परमेश्वर के वचन के ज्ञान में उन्नति (पद13) और
3.भले और बुरे में भेद करने के लिए परमेश्वर के वचन को प्रयोग करने का अनुभव (पद13,14)


इब्रानियों का लेखक हमें बताता है कि यीशु के द्वारा विश्वासी --- पाप,भय और मृत्यु से बचा लिया गया है और यीशु,महायाजक के रूप में सच्चा उध्दार प्रदान करता है।
जैसा कि इब्रानियों  4:14 में लिखा है -
(14)इसलिए जब हमारा ऐसा बड़ा महायाजक है, जो स्वर्गों से होकर गया है, अर्थात् परमेश्वर का पुत्र यीशु, तो आओ, हम अपने अंगीकार को दृढ़ता से थामें रहें। 

आइए, हम परमेश्वर के वचनों की बुनियादी शिक्षा अर्थात् मसीह संबंधी प्रारंभिक शिक्षा से सिध्दता की ओर आगे बढ़ते जाएं। आमीन।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
                    


Disclaimer     ::     Privacy     ::     Login
Copyright © 2019 All Rights Reserved