पौलुस की कैद से सुसमाचार का प्रचार
फिलिप्पियों(Philippians) 1:12-18 -
[12]हे भाइयों, मैं चाहता हूॅं कि तुम यह जान लो कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
[13]यहाॅं तक कि कैसर के राजभवन की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूॅं।
[14]और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से अधिकांश मेरे कैद होने के कारण, हियाव बाॅंध कर, परमेश्वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी साहस करते हैं।
[15] कुछ तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कुछ भली इच्छा से।
[16]कई एक तो यह जान कर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूॅं, प्रेम से प्रचार करते हैं।
[17]और कई एक तो सीधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह सोचकर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्लेश उत्पन्न करें।
[18] तो क्या हुआ? केवल यह कि हर प्रकार से, चाहे बहाने से चाहे सच्चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इससे आनन्दित हूॅं, और आनन्दित रहूॅंगा भी।
Paul’s Chains Advance the Gospel
Philippians 1:12-18
[12]Now I want you to know, brothers and sisters, that what has happened to me has actually served to advance the gospel.
[13]As a result, it has become clear throughout the whole palace guard and to everyone else that I am in chains for Christ.
[14]And because of my chains, most of the brothers and sisters have become confident in the Lord and dare all the more to proclaim the gospel without fear.
[15]It is true that some preach Christ out of envy and rivalry, but others out of goodwill.
[16]The latter do so out of love, knowing that I am put here for the defense of the gospel.
[17]The former preach Christ out of selfish ambition, not sincerely, supposing that they can stir up trouble for me while I am in chains.
[18]But what does it matter? The important thing is that in every way, whether from false motives or true, Christ is preached. And because of this I rejoice. Yes, and I will continue to rejoice,
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Php1:12 - हे भाइयों, मैं चाहता हूॅं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
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पवित्र बाइबल के नया नियम में हम पाते हैं कि पौलुस एक शिक्षित, अनुभवी और प्रभावशाली प्रेरित था। हम यह भी जानते हैं कि पौलुस का जब से मन परिवर्तन हुआ और ईश्वर की बुलाहट हुई तब से पौलुस ने अपने जीवन का प्रेरणा-स्त्रोत यीशु मसीह को माना । पौलुस ने धर्मशास्त्र में कहा है कि मैंने प्रभु को देखा है और मसीह मुझे अपने अधिकार में ले लिया। मैं मसीह के साथ क्रुस पर मर गया हूॅं, मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित है। (1Co9:1,Php3:12,Gal2:19;20.)
पौलुस,यीशु मसीह के सुसमाचार प्रचार के कारण बंदीगृह में कैद है,बंदीगृह में कैद होने के बावजूद भी
मसीह की सुगन्ध अर्थात् सुसमाचार को फैला रहा है जैसा कि आज के वचन में हम पाते हैं।
✓ मुझ पर जो बीता है -- अर्थात् पौलुस पर अत्याचार और उनकी गिरफ्तारी और मुकदमा।
• उस समय रोम का एक बंदीगृह फिलिप्पी में पाया जाता था,हो सकता है यह उस कैदखाने का हिस्सा हो जिसमें पौलुस को बंधी बना कर रखा गया था।
Ac.16:22-26 -
[22]तब भीड़ के लोग उन के विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उन के कपड़े फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी।
[23]और बहुत बेंत लगवाकर उन्हें बन्दीगृह में डाला; और दारोगा को आज्ञा दी, कि उन्हें चौकसी से रखे।
[24]उस ने ऐसी आज्ञा पाकर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उन के पांव काठ में ठोक दिए।
[25]आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, और बन्धुए उन की सुन रहे थे।
[26]कि इतने में एकाएक बड़ा भुईडोल हुआ, यहां तक कि बन्दीगृह की नेव हिल गईं, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल पड़े।
•पौलुस पर अत्याचार -
2Co.11:24-29 -
[24]पांच बार मैं ने यहूदियों के हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए।
[25]तीन बार मैं ने बेंतें खाई; एक बार पत्थरवाह किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात दिन मैं ने समुद्र में काटा।
[26]मैं बार बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में; डाकुओं के जोखिमों में; अपने जाति वालों से जोखिमों में; अन्यजातियों से जोखिमों में; नगरों में के जाखिमों में; जंगल के जोखिमों में; समुद्र के जाखिमों में; झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में;
[27]परिश्रम और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख-पियास में; बार बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में।
[28]और और बातों को छोड़कर जिन का वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रति दिन मुझे दबाती है।
[29]किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता? किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता?
• यरुशलेम की महासभा--
Ac 15:26 - ये ऐसे मनुष्य हैं जिन्होंने अपने प्राण हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम के लिये जोखिम में डाले हैं।
• बंधुवाई एवं कैद--
Ac 21:33 - तब पलटन के सरदार ने पास आकर उसे पकड़ लिया; और दो जंजीरों से बांधने की आज्ञा देकर पूछने लगा, "यह कौन है और इसने क्या किया है ।
Ac 22:24 - तो पलटन के सरदार ने कहा," इसे गढ़ में ले जाओ, और कोड़े मारकर जांचों, कि मैं जानूँ कि लोग किस कारण उसके विरोध में ऐसा चिल्ला रहे हैं।
Ac 28:31- और जो उसके पास आते थे,उन सब से मिलता रहा और बिना रोक-टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा।
• सुसमाचार -- एक यूनानी शब्द का हिन्दी अनुवाद - सुसमाचार है। मूल यूनानी का विकृत रूप "इंजील"है।
बाइबल में इसका अर्थ है -- यीशु का सन्देश अर्थात् मुक्ति की खुशखबरी।,
• सुसमाचार (शुभ-सन्देश) यीशु मसीह के बारे में समाचार और वह सन्देश भी है जिसे परमेश्वर के राज्य के बारे में यीशु लेकर आया।
• Ac.13:47-50 -
[47]क्योंकि प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है; कि मैने तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराया है; ताकि तू पृथ्वी की छोर तक उद्धार का द्वार हो।
[48]यह सुनकर अन्यजाति आनन्दित हुए, और परमेश्वर के वचन की बड़ाई करने लगे: और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्वास किया।
[49]तब प्रभु का वचन उस सारे देश में फैलने लगा।
[50]परन्तु यहूदियों ने भक्त और कुलीन स्त्रियों को और नगर के बड़े लोगों को उकसाया, और पौलुस और बरनबास पर उपद्रव करवाकर उन्हें अपने सिवानों से निकाल दिया।
•Ac.19:19-20 -
[19]और जादू करने वालों में से बहुतों ने अपनी अपनी पोथियां इकट्ठी करके सब के साम्हने जला दीं; और जब उन का दाम जोड़ा गया, जो पचास हजार रूपये की निकलीं।
[20]यों प्रभु का वचन बल पूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।
• पौलुस के जीवन का प्ररेणा- स्त्रोत- मसीह।
पौलुस ने प्रभु को देखा- 1Co9:1.
मसीह ने मुझे अपने अधिकार में ले लिया - Php3:12. मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ। मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित है-- Gal2:19-20.
• वह रोम में जेल में था, एक मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहा था जिसके परिणामस्वरूप उसका छुटकारा हो सकता है। वह सबसे कठिन कारावास में नहीं था, एक कालकोठरी में (जैसा कि वह बाद में था)। वह अपने स्वयं के किराए के मकान में था, और उसके दोस्तों को उसे जाने की अनुमति थी ।
• Ac. 28:30-31-
[30]और वह पूरे दो वर्ष अपने भाड़े के घर में रहा।
[31]और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा और बिना रोक टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा।
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Php 1:13 - यहाॅं तक कि कैसर के राजभवन की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूॅं।
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• राजभवन -- अर्थात् राज्यपाल का अथवा यदि सन्त पौलुस रोम में लिखते हैं तो सम्राट के अंगरक्षकों का भवन।
• राजभवन की सारी पलटन -- ये विशेष सैनिक थे जो रोमी राजा और उसके प्रमुख कर्मचारियों की सुरक्षा के लिये रोम के बाहर कुछ नगरों में नियुक्त किए गए थे। सम्भवतः पौलुस ने इन सुरक्षाकर्मियों को यीशु के बारे में उस समय बतलाया गया होगा जब वे अपनी अपनी पारी में उसके पास उसकी सुरक्षा के लिये आते होंगे।
• मेरी कैद में -- हो सकता है कि पौलुस पूर्वी भूमध्य सागर के किसी ऐसे नगर से यह पत्र लिख रहा था जहाॅं रोमी सैनिक अड्डा था(Php1:13),या फिर वह रोम ही के उस घर से लिख रहा था जहाॅं वह गृह-कैद में था (Ac.28:16,30,31)।
•ईसाई धर्म के इतिहास में कई बार, बाधाओं, कठिनाइयों और उत्पीड़न ईसाई संदेश के अधिक से अधिक प्रसारण के अवसर बन गए। उदाहरण के लिए, जब शुरुआती दौर में कलीसियों को बहुत सताया जा रहा था, स्टीफन के पत्थर मारने के तुरंत बाद, ईसाइयों ने यरूशलेम छोड़ दिया और सुसमाचार को आगे बढ़ाया।
• प्रेरितों के काम 1:4
[4]और उन से मिलकर उन्हें आज्ञा दी, कि यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहते रहो, जिस की चर्चा तुम मुझ से सुन चुके हो।
• कारावास के बावजूद, पौलुस ने कभी भी उद्धार के संदेश को घोषणा करना नहीं छोड़ा। उनके जेल प्रहरियों ने सुसमाचार को सुना, उनके आगंतुकों ने सुसमाचार को सुना ( प्रेरितों के काम 28:16 , 30-31 ), और जिन कलीसियों के साथ उनके संबंध थे, उन्हें सुसमाचार में अपने पत्रों के माध्यम से और कुछ लोगों के माध्यम से प्रोत्साहित किया गया था, जिन्हें पौलुस ने उन्हें भेजा था।
✓Ac. 28:16,30-31-
[16]जब हम रोम में पहुंचे, तो पौलुस को एक सिपाही के साथ जो उस की रखवाली करता था, अकेले रहने की आज्ञा हुई।
[30]और वह पूरे दो वर्ष अपने भाड़े के घर में रहा।
[31]और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा और बिना रोक टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा।
• पौलुस का अपराध यह था कि वह यीशु मसीह के नाम से उद्धार के संदेश का प्रचार करता रहा। यहूदी नेता पौलुस के संदेश से नाराज़ थे, जिसे वे निन्दात्मक और विभाजनकारी मानते थे। रोम के लोगों को नए धर्मों के बारे में संदेह था, जिनसे उन्हें डर था कि वे उनके जीवन के तरीके को परेशान कर सकते हैं। कई मौकों पर पौलुस के उपदेशों के कारण नागरिक गड़बड़ी और यहाॅं तक कि दंगे भी किए थे। हालाँकि, पौलुस शत्रुता और उत्पीड़न से निर्लिप्त था और उसने लगातार सुसमाचार प्रचार के अवसर तलाश करता रहा।
• Php1:13 -
रोम में उन सभी लोगों ने जो पौलुस के सम्पर्क में आए मसीह के बारे में सुना। यह सर्वविदित था कि वह कानून तोड़ने के लिये कैद में नहीं था, परन्तु वह मसीह के कारण जंजीरों से बंधा था (पद13)। लोगों को शांत करने के एक प्रयास में, अधिकारी उसे क़ैद में डालते थे जो उसे बोलता था। परन्तु उनकी योजना सफल नहीं हुई।
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Php1:14 - और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से अधिकांश मेरे कैद होने के कारण, हियाव बाॅंध कर, परमेश्वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी साहस करते हैं।
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पौलुस की कैद का दूसरा प्रभाव था, इसने उन्हें उत्साहित किया जो मसीह के बारे में बोलने से हिचकिचाते थे (पद 14)। विशाल संख्या में विश्वासी मसीह के लिये साहसी बन गये,जब उन्होंने देखा कि कैसे परमेश्वर,पौलुस के द्वारा सुसमाचार को फैला रहा था। विरोधियों के सामने जो घनात्मक प्रतिउत्तर पौलुस ने पाया, उसके कारण बहुत से लोग अधिक साहस और निर्भीकता से मसीह के बारे में बोलने लगे। पौलुस की कैद ने वह काम किया जो बंदीगृह से बाहर की परिस्थितियों में कभी नहीं कर सकती थी।
पौलुस ने फिलिपिंसियों को बताया कि उनके कारावास ने कई ईसाई भाइयों और बहनों को परमेश्वर के वचन बोलने में अधिक साहसी और निडर होने के लिए प्रोत्साहित किया है। इन भाई-बहनों ने पौलुस की स्थिति को सहने की क्षमता देखी थी और उन्होंने वह अनुग्रह देखा था जो ईश्वर ने उसे दिया था। पौलुस के उदाहरण से प्रसन्न होकर, वे ईसाई धर्म के संदेश को अधिक साहसपूर्वक बोलने में सक्षम थे
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Php1:15 - कुछ तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कुछ भली इच्छा से।
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• डाह और झगड़े (envy and rivalry) --- ईर्ष्या एवं प्रतिस्पर्धा (प्रतिद्वंद्वी)।
✓लोग जो परमेश्वर के वचन को बोलने हेतु साहसी थे वे दो प्रकार के थे। कुछ मसीह का प्रचार डाह और झगड़े(envy and rivalry) --- ईर्ष्या एवं प्रतिस्पर्धा (प्रतिद्वंद्वी) से करते थे, परन्तु दूसरे अच्छी इच्छा से सुसमाचार का प्रचार करते थे (पद१५)।
✓Gal.1:6-10 -
[6]मुझे आश्चर्य होता है, कि जिस ने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे।
[7]परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं।
[8]परन्तु यदि हम या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो श्रापित हो।
[9]जैसा हम पहिले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूॅं, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो श्रापित हो। अब मैं क्या मनुष्यों को मनाता हूॅं या परमेश्वर को? क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूॅं?
[10]यदि मैं अब तक मनुष्यों को ही प्रसन्न करता रहता, तो मसीह का दास न होता।
✓Gal. 5:11 -
[11]परन्तु हे भाइयो, यदि मैं अब तक खतना का प्रचार करता हूॅं, तो क्यों अब तक सताया जाता हूॅं; फिर तो क्रूस की ठोकर जाती रही।
पौलुस से ईर्ष्या एवं प्रतिस्पर्धा करने वाले उन पादरी व प्रचारकों के संदेश से पौलुस आनन्दित थे कि वे आलोचक जो उपदेश दे रहे थे, उनका यह संदेश सत्य था, भले ही उनके उद्देश्य गलत थे।
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Php1:16 - कई एक तो यह जान कर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूॅं, प्रेम से प्रचार करते हैं।
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वे जो सुइच्छा से सुसमाचार का प्रचार करते थे, वे प्रेम से करते थे (पद१६)। यह जानते हुए कि पौलुस जंजीरों में, सुसमाचार के बचाव के लिए है। "बचाव" यूनानी में अपोलोजिया है, जो पद 7 में भी उपयोग किया गया है। यहां पर सुसमाचार प्रचार के लिए हम ईसाईयों के सच्चे एवं ईमानदार पादरी व प्रचारक गण अपना उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर रहे थे।
Php 1:7- उचित है, कि मैं तुम सब के लिये ऐसा ही विचार करूॅं क्योंकि तुम मेरे मन में आ बसे हो, और मेरी कैद में और सुसमाचार के लिये उत्तर और प्रमाण देने में तुम सब मेरे साथ अनुग्रह में सहभागी हो।
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Php1:17 - और कई एक तो सीधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह सोचकर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्लेश उत्पन्न करें।
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वह समूह जो मसीह को डाह और झगड़े (envy and rivalry) ईर्ष्या एवं प्रतिस्पर्धा (प्रतिद्वंद्वी) से सुसमाचार प्रचार करता था (पद15) उनका उद्देश स्वार्थी था (पद17)।
वे पौलुस के लिए जानबूझकर संकट उत्पन्न करना चाहते थे, जबकि वह कैद में था। सम्भवतः वे यहूदीवादी नहीं थे जैसा कि कुछ समझते हैं क्योंकि पौलुस ने कहा कि वे मसीह का प्रचार कर रहे हैं,चाहे अनिच्छा से।यहूदीवादी विश्वास करते थे कि पुराने नियम के विधानों को मानने पर उध्दार मिलता था।पौलुस ने उन्हें कड़ाई से एक दूसरे सुसमाचार के प्रचारक कहकर डांटा था(Gal.1:6)। तौभी चूंकि उसने फिलिप्पी में उन पर दूसरे सुसमाचार को प्रस्तुत करने का दोष नहीं लगाया था, ऐसा प्रतीत होता है कि वे विश्वासी थे जोकि अनजान कारण से , प्रेरित को प्रेम नहीं करते थे या उसके काम को पसंद नहीं करते थे। यद्यपि वे धर्मशास्त्र के सिध्दांतों में निपुण थे, वे अपने स्वयं को ऊंचा उठाते थे।
✓Gal. 2:4 -
[4]और यह उन झूठे भाइयों के कारण हुआ, जो चोरी से घुस आए थे, कि उस स्वतंत्रता का जो मसीह यीशु में हमें मिली है, भेद लेकर हमें दास बनाएं।
जाहिर है कि ये आलोचक रोम के ईसाई पादरी थे जिनका सिद्धांत सही था, लेकिन उनके इरादे गलत थे। वे अपने स्वार्थी महत्वाकांक्षी को बढ़ावा देने के लिए पौलुस से ईर्ष्या करते थे। लेकिन उन्होंने जो उपदेश दिया, वह सच्चा सुसमाचार था। पौलुस झूठे सिद्धांत के प्रचार पर कभी भी खुश नहीं हुआ होगा, क्योंंकि उनका सुसमाचार प्रचार करने में महत्वपूर्ण योगदान है।
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Php1:18 - तो क्या हुआ? केवल यह कि हर प्रकार से, चाहे बहाने से चाहे सच्चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इससे आनन्दित हूॅं, और आनन्दित रहूॅंगा भी।
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मसीह का प्रचार किया जाना पौलुस के हृदय को आनंदित करता था,चाहे वह गलत उद्देश्यों के कारण कुछ के द्वारा किया जाता था (Php1:18)। क्योंकि प्रचार का सार दोनों समूहों के लिये समान था, प्रेरित आनंदित होता था। वह इस कारण आनंदित नहीं था कि मसीह के देह में सदस्यों के बीच एक विभाजन था क्योंकि इससे उसे दुःख होता था। इसके बदले मसीह का प्रचार ही उसे आनंदित करता था।
सुसमाचार का रहस्य घोषित करने के लिए सबसे पहले, हम अपने स्वयं के स्वार्थी जीवन का अपना रास्ता, अपनी खुशी, अपनी इच्छाओं को त्याग करें।
और दूसरा, हम अपने जीवन में परमेश्वर को प्रथम स्थान देते हुए सुसमाचार को फैलाने में अथक प्रयास करते रहें।
जैसा कि मरकुस 8:34 एवं 35 में यीशु कहता है, जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आपे से इन्कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले। 35. क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा।
और इस संसार की विषम परिस्थितियों से, संसार की अंधकारमय शक्तियों से और शैतान की युक्तियों से सामना करने के लिए हम परमेश्वर के वचन को अपने हृदय में सम्भालें रखें कि हम निर्भाकता से सुसमाचार का प्रचार कर सकें। (Eph6:13-17) । क्योंकि प्रभु यीशु मसीह न केवल सृष्टिकर्ता है बल्कि हमारे मुक्तिदाता भी है, तो आइए, हम पौलुस के समान सुसमाचार प्रचार के लिए सहभागी बनें।
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