गलातियों 5:22-26 -
[22]पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास,
[23] नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं।
[24]और जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उस की लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है॥
[25]यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी।
[26]हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें।
*****"*****
Galatians 5:22-26 -
[22]But the fruit of the Spirit is love, joy, peace, forbearance, kindness, goodness, faithfulness,
[23]gentleness and self-control. Against such things there is no law.
[24]Those who belong to Christ Jesus have crucified the flesh with its passions and desires.
[25]Since we live by the Spirit, let us keep in step with the Spirit.
[26]Let us not become conceited, provoking and envying each other.
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√ भूमिका--
लेखक --- पौलुस।
तिथि --- 49-55 ईस्वी।
* भौगोलिक अर्थ में ---- उत्तर- मध्य एशिया माइनर में पिसिदिया का अन्ताकिया,इकुनियुम, लुस्त्रा और दिरबे नगरों के उत्तरी क्षेत्र आते थे।
* राजनैतिक अर्थ में --- रोमी उपनिवेश (२५ ई.पू.में संगठित किया गया) जिसमें दक्षिणी जिले और ऊपर दिए/लिखे गए शहर सम्मिलित थे --
कलीसियाएं स्थापित की --Ac13:13-14:23,
फिर वह सीरिया के अन्ताकिया में अपने केन्द्र पर लौट आया -- Ac14:26-28.
संभव है कि इस समय पौलुस ने सीरिया के अन्ताकिया से गलातिया के नाम अपना पत्र लिखा था।
√ पत्र का अभिप्राय --
* पौलुस उस समय विचलित हो गया जब यरूशलेम से अन्ताकिया आये हुये कुछ यहूदी शिक्षा देने लगे कि गैर यहूदियों में से जिन्होंने धर्मपरिवर्तन किया है उन्हें खतना करवाना और मूसा की व्यवस्था का पालन करना आवश्यक है -- Ac15:1,5.
*कुछ यहूदी ने इस प्रकार जोर देकर आग्रह किया कि पतरस और पतरस जैसे परिपक्व मसीहियों ने भी गैर यहूदियों में से मसीही बनने वालों के साथ भोजन करना इस डर से बन्द कर दिया कि इससे यहूदियों की भोजन संबंधी व्यवस्था का उल्लघंन होगा। पौलुस ने देखा कि इस प्रकार का व्यवहार उस सुसमाचार के विपरीत है जिसका वह प्रचार करता है और इस कारण उसने पतरस को खुलेआम झिड़का -- Gal2:11-13.
* परन्तु इससे भी अधिक बुरा तब हुआ जब यहूदी शिक्षकों ने भी गलातिया में जाकर नई स्थापित कलीसियाओं में भी अपनी शिक्षा का प्रचार करना आरम्भ किया। पौलुस यह सुनकर यहूदी शिक्षकों पर क्रोधित हुआ और उसे यह जानकर दुःख हुआ कि गलातिया की कलीसियाओं ने उन पर विश्वास कर लिया है -- Gal1:6,3:1.
* उसने गलातिया के लोगों को झिड़की भरा पत्र लिखा जो बाद में नया नियम का एक भाग बन गया। उसने इसमें बतलाया कि सुसमाचार एक ही है जिसका वह प्रचार करता है और मूसा की व्यवस्था यीशु मसीह में विश्वास करने वालों पर लागू नहीं होती। विश्वासी जो यीशु मसीह में विश्वास करने के द्वारा धार्मिकता को पा चुका है वह उसी के द्वारा विश्वास में बना रहता है।
* यद्यपि वह यहूदी व्यवस्था से स्वतंत्र है फिर भी वह अराजक नहीं है परन्तु वह मन में निवास करनेवाले यीशु मसीह के आत्मा से नियंत्रित होता है।
√ पत्र की विषय-वस्तु --
*मूल विषय में -- विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने का बचाव किया गया है, उसकी व्याख्या की गई है एवं इसकी प्रायोगिकता को व्यक्तिगत जीवन में लागू किया गया है।
* अन्य महत्वपूर्ण विषयों में -- पौलुस के अरब में व्यतीत किए गए 03 वर्ष [Gal1:17];
उसके द्वारा पतरस का सुधार [Gal2:11] ;
व्यवस्था एक शिक्षक के रूप में[Gal3:24] और
आत्मा का फल[Gal5:22-23] सम्मिलित है।
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आत्मा [Spirit]
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Spirit = Hebrew-->Ruach(रूआख)
The word spirit is rendered as ruach in Hebrew-language parts of the Old Testament. In its Aramaic parts, the term is rûacḥ. The Greek translation of the Old Testament, the Septuagint, translates the word as pneuma - "breath".
Spirit= Greek-->Pneuma(प्न्यूमा)
Pneuma is an ancient Greek word for "breath", and in a religious context for "spirit" or "soul". ... In classical philosophy, it is distinguishable from psyche, which originally meant "breath of life", but is regularly translated as "spirit" or most often "soul".
पुराना नियम में इब्रानी भाषा के शब्द - रूआख (Ruach) का हिन्दी अनुवाद आत्मा है। इसी के समान नया नियम में यूनानी भाषा के शब्द - प्न्यूमा (Pneuma) का हिन्दी अनुवाद आत्मा है। Ruach और Pneuma दोनों के विस्तृत अर्थ है। अन्य बातों के अतिरिक्त उनका अर्थ ----
* हवा --
1 राजा 18:45 - थोड़ी ही देर में आकाश वायु से उड़ाई हुई घटाओं, और आन्धी से काला हो गया और भारी वर्षा होने लगी; और अहाब सवार हो कर यिज्रेल को चला।
यूहन्ना 3:8 - हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।
* श्वास -
उत्पत्ति 7:15,22 -
[15]जितने प्राणियों में जीवन की आत्मा थी उनकी सब जातियों में से दो दो नूह के पास जहाज में गए।
[22]जो जो स्थल पर थे उन में से जितनों के नथनों में जीवन का श्वास था, सब मर मिटे।
*मानवीय भावना -
यूहन्ना 13:21 - ये बातें कहकर यीशु आत्मा में व्याकुल हुआ और यह गवाही दी, कि मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।
प्रेरितों के काम 18:25 - उस ने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक ठीक सुनाता, और सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मा की बात जानता था।
*मानवीय समझ -
यशायाह 29:24 - उस समय जिनका मन भटका हो वे बुद्धि प्राप्त करेंगे, और जो कुड़कुड़ाते हैं वह शिक्षा ग्रहण करेंगे॥
मरकुस 2:8 - यीशु ने तुरन्त अपनी आत्मा में जान लिया, कि वे अपने अपने मन में ऐसा विचार कर रहे हैं, और उन से कहा, तुम अपने अपने मन में यह विचार क्यों कर रहे हो?
*इच्छा शक्ति -
यिर्मयाह 51:11 - तीरों को पैना करो! ढालें थामे रहो! क्योंकि यहोवा ने मादी राजाओं के मन को उभारा है, उसने बाबुल को नाश करने की कल्पना की है, क्योंकि यहोवा अर्थात उसके मन्दिर का यही बदला है।
प्रेरितों के काम 19:21- जब ये बातें हो चुकीं, तो पौलुस ने आत्मा में ठाना कि मकिदुनिया और अखाया से होकर यरूशलेम को जाऊं, और कहा, कि वहां जाने के बाद मुझे रोम को भी देखना अवश्य है।
*मानवीय जीवन -
उत्पत्ति 45:27 - तब उन्होंने अपने पिता याकूब से यूसुफ की सारी बातें, जो उसने उन से कहीं थी, कह दीं; जब उसने उन गाडिय़ों को देखा, जो यूसुफ ने उसके ले आने के लिये भेजीं थीं, तब उसका चित्त स्थिर हो गया।
लूका 8:55 - तब उसके प्राण फिर आए और वह तुरन्त उठी; फिर उस ने आज्ञा दी, कि उसे कुछ खाने को दिया जाए।
*अदृश्य जगत के दुष्ट जीव/अशुद्ध आत्माएं -
1 शमूएल 16:23 - और जब जब परमेश्वर की ओर से वह आत्मा शाऊल पर चढ़ता था, तब तब दाऊद वीणा ले कर बजाता; और शाऊल चैन पाकर अच्छा हो जाता था, और वह दुष्ट आत्मा उस में से हट जाता था।
मरकुस 1:23 - और उसी समय, उन की सभा के घर में एक मनुष्य था, जिस में एक अशुद्ध आत्मा थी।
इन दोनों शब्दों का प्रयोग परमेश्वर के आत्मा अर्थात् परमेश्वर के जीवित सामर्थ की कार्यशीलता के लिए भी प्रयोग किया गया है -
* न्यायियों 6:34 - तब यहोवा का आत्मा गिदोन में समाया; और उसने नरसिंगा फूंका, तब अबीएजेरी उसकी सुनने के लिये इकट्ठे हुए।
प्रेरितों के काम 8:39 - जब वे जल में से निकलकर ऊपर आए, तो प्रभु का आत्मा फिलेप्पुस को उठा ले गया, सो खोजे ने उसे फिर न देखा, और वह आनन्द करता हुआ अपने मार्ग चला गया।
इस वचन में आत्मा अर्थात् पवित्र आत्मा से है। स्वर्ग और पृथ्वी पर केवल एक परमेश्वर है और यह परमेश्वर सदैव परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र और परमेश्वर पवित्र आत्मा में विद्यमान रहता है। अतः पवित्र आत्मा के बारे में विचार करते समय मनुष्य का ध्यान त्रिएकत्व पर जाता है और फिर यह यीशु मसीह के जीवन और उसकी सेवाओं पर जाता है। यद्यपि प्रकटीकरण मसीह में सर्वोच्च स्थान पाता है और फिर भी इसका स्त्रोत पुराना नियम में मिलता है --
उत्पत्ति 1:2 - और पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी; और गहरे जल के ऊपर अन्धियारा था: तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता था।
उत्पत्ति 2:7 - और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया।
किसी निश्चित अवसर पर परमेश्वर का आत्मा या परमेश्वर की शक्ति उसके चुने हुए लोगों पर विशेष उद्देश्य से आती थी और वे नबी जो परमेश्वर की ओर से सन्देश ग्रहण करके उसके लोगों तक पहुंचाते थे, वे परमेश्वर के इसी आत्मा के द्वारा प्रेरणा पाकर कार्य करते थे।
2Sa23:2, 2Ch24:20, Ne9:30, Isa61:1, Zec7:12.
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आत्मा के द्वारा चलित जीवन -[Gal 5: 22 - 26]
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पाप पर विजय के लिये सामर्थ [Gal5:23-24] -
एक विश्वासी को शरीर के कामों कि प्रर्दशन करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि आत्मा की सामर्थ से सूची में दिये आत्मा के 09 फलों का प्रगटीकरण करना चाहिए। यह ध्यान देना आवश्यक है कि आत्मा के फल जिनका यहां वर्णन है मनुष्यों के द्वारा उत्पन्न नहीं किये जाते, परन्तु पवित्र आत्मा के द्वारा एक विश्वासी के भीतर काम करने के द्वारा उत्पन्न होते हैं।
यूहन्ना 15:1-8 -
[1]सच्ची दाखलता मैं हूं; और मेरा पिता किसान है।
[2]जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले।
[3]तुम तो उस वचन के कारण जो मैं ने तुम से कहा है, शुद्ध हो।
[4]तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते।
[5]मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।
[6]यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली की नाईं फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं।
[7]यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा।
[8]मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरो I
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आत्मा -
* पुराना नियम में इब्रानी भाषा के शब्द - रुआख (Ruach) का हिन्दी अनुवाद आत्मा है।
* इसी के समान नया नियम में यूनानी भाषा के शब्द - प्न्यूमा (Pneuma) का हिन्दी अनुवाद आत्मा है। Ruach और Pneuma दोनों के विस्तृत अर्थ है। अन्य बातों के अतिरिक्त उनका अर्थ ----
* हवा [1Ki 18:45, Jn3:18],
* श्वास [Ge 7:15,22]
आत्मा का फल -
* शब्द-फल, एक वचन है और इस बात का संकेत करता है कि यह गुण एकता के संघटक है जो कि सभी विश्वासी में पाए जाने चाहिए जो कि आत्मा के नियंत्रण में रहता है। यह फल साधारणतः मसीह का जीवन है जो एक मसीही जीता है --
2 कुरिन्थियों 3:18 -
[18]परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं।
फिलिप्पियों 1:21
[21]क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।
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* आत्मा का 09 फल - Gal. 5:22-23.
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प्रथम तीन गुण - विवेक की आदतें हैं जो अपने स्त्रोत परमेश्वर से पाते हैं।
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√ [1] प्रेम[Love]-
* प्रेम(अगापे) सूची में प्रथम स्थान है क्योंकि वह सभी अनुग्रहों का आधार है। परमेश्वर प्रेम है और संसार से प्रेम करता है।
* यहोवा में जितने भी गुण पाए जाते हैं, उनमें सबसे श्रेष्ठ है -- प्रेम। परमेश्वर का यही गुण हमें सबसे ज्यादा उसकी तरफ खींचता है।
1Jn4:18 -
[18]प्रेम में भय नहीं होता, वरन सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है, क्योंकि भय से कष्ट होता है, और जो भय करता है, वह प्रेम में सिद्ध नहीं हुआ।
Jn3:16 -
[16]क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
ऐसा स्वयं बलिदान स्वरूप प्रेम जिसने मसीह को पापियों के खातिर मरने को भेजा, उसी प्रकार का प्रेम है जो कि उन विश्वासियों के द्वारा दर्शाया जाता है जो आत्मा से नियंत्रित हैं।
* जब हम इस गुण के अलग-अलग पहलुओं की जांच करेंगे तो हम जान पाएंगे कि ---
1 कुरिन्थियों 13:13 - पर अब विश्वास, आशा, प्रेम थे तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।
1 यूहन्ना 4:8 - जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।
1 यूहन्ना 4:9 - जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं।
1 यूहन्ना 4:19 - हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।
यूहन्ना 3:16 - क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
मत्ती 22:36-40
[36]हे गुरू; व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?
✓[37]उस ने उस से कहा, तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।
[38]बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।
✓[39]और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
[40]ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।
रोमियो 5:5 - और आशा से लज्ज़ा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।
®1 पतरस 4:8 - और सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।
®1 यूहन्ना 3:16-18 -
[16]हम ने प्रेम इसी से जाना, कि उस ने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाइयों के लिये प्राण देना चाहिए।
[17]पर जिस किसी के पास संसार की संपत्ति हो और वह अपने भाई को कंगाल देख कर उस पर तरस न खाना चाहे, तो उस में परमेश्वर का प्रेम क्योंकर बना रह सकता है?
[18]हे बालकों, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें।
गलातियों 5:14 - क्योंकि सारी व्यवस्था इस एक ही बात में पूरी हो जाती है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
कुलुस्सियों 3:14 - और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।
1 कुरिन्थियों 16:14 - जो कुछ करते हो प्रेम से करो।
®यूहन्ना 15:13 - इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।
®यूहन्ना 13:34 - मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो।
रोमियो 12:9 - प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई मे लगे रहो।
1Jn14:19, Ro8:38-39, Jn14:21-24, 1Jn4:11, 1Jn4:21.
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√ [2] आनन्द[Joy] -
* आनन्द एक गहन और अन्दर वास करने वाला आनन्द है जो कि मसीह में वास करने वालों के लिए प्रतिज्ञा किया गया था -
Jn15:11-
[11]मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।
यह परिस्थितियों पर आश्रित नहीं होता, क्योंकि वह सभी वस्तुओं के ऊपर परमेश्वर के सार्वभौमिक नियंत्रण में रहता है -
Ro8:28 -
[28]और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।
* बाइबल में आनन्द, प्रसन्नता, संतोष और सुख आदि विभिन्न प्रकारों को प्रकट करने के लिए कई शब्दों का प्रयोग किया गया है। परमेश्वर का एक गुण आनन्द है और वह चाहता है कि सम्पूर्ण सृष्टि, विशेषकर उसके लोगों में यह गुण प्रकट रूप से दिखाई दे।
Job38:7,Ps16:11;104:31, Lk2:10,14, Jn15:11, Php4:4.
* मनुष्य जाति के प्रति परमेश्वर की इच्छा है कि आनन्द और प्रसन्नता मनुष्य के प्रतिदिन के जीवन का एक भाग हो। परमेश्वर चाहता है कि लोग उसमें और उस सब कुछ में जिसे उसने इस जगत में उन्हें दिया है,आनंदित हों।
Dt14:26, Ecc5:18-19;9:7-9, Lk1:14;15:22-24, 1Ti6:17.
फिर भी यह सब आनन्द उचित व्यवहार और आत्मानुशासन के साथ संबंधित होना चाहिए।
Prov23:16-21, Amos6:4-7, Ro13:13;14:17,
1Th5:7-8, 1Pe4:3.
इफिसियों 5:19-20 -
[19]और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने अपने मन में प्रभु के साम्हने गाते और कीर्तन करते रहो।
[20]और सदा सब बातों के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्वर पिता का धन्यवाद करते रहो।
प्रेरितों के काम 16:25 - आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, और बन्धुए उन की सुन रहे थे।
1 पतरस 1:8-9 -
[8]उस से तुम बिन देखे प्रेम रखते हो, और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनन्दित और मगन होते हो, जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है।
[9]और अपने विश्वास का प्रतिफल अर्थात आत्माओं का उद्धार प्राप्त करते हो।
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√ [3] शान्ति [मेल,Peace] -
* शान्ति, मसीह का एक वरदान है -
Jn14:27 -
[27]मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूं, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।
यह एक आंतरिक विश्राम और खामोशी है, असमान्य परिस्थितियों के सामने भी यह मानवीय समझ के भी परे है -
Php4:7 -
[7]तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।
दूसरा त्रिएक अर्थात् परमेश्वर पुत्र (यीशु मसीह) - प्रेम, आनन्द और शान्ति को हमारे मध्य में लाया है।
* पुराना नियम में शान्ति (इब्रानी शब्द शालोम) शब्द में कई विचार या अर्थ निहित थे जैसे सिध्दता, पूर्णता और कुशल- क्षेम। इब्रानी लोगों की समझ के अनुसार शान्ति में ऐसा कुशल- क्षेम निहित था जिसमें अच्छा स्वास्थ्य, सम्पन्नता, संतोष, सुरक्षा और मेल मिलाप का सम्बन्ध पाया जाता है- Ps29:11,37:37,85:8-9, Isa26:1-4,32:17-18,60:17, La3:17 Zec6:13,8:12, Lk11:21, 1Co14:33, Eph4:3.
किसी व्यक्ति, राष्ट्र या कलीसिया के लिए परमेश्वर की शान्ति की प्रार्थना का अर्थ परमेश्वर की आशीष को बहुतायत से पाने के लिए प्रार्थना करना होता है - Nu6:26,Ps122:6,Lk2:14,Ro15:33.
√ इसलिए कि शान्ति का सम्बन्ध प्राय: परमेश्वर की आशीषों से है अत: यह परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले उध्दार से भी संबंधित हो गई है - Isa26:11-13, Lk1:79,19:42, Ac10:36, Ro5:1,16:20.
उध्दार की परिपूर्णता शान्ति के राजकुमार अर्थात् प्रभू यीशु मसीह के द्वारा आनेवाली थी --Isa9:6,Lk1:79.
यशायाह 9:6 - क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत, युक्ति करने वाला, पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा।
लूका 1:79 - कि अन्धकार और मृत्यु की छाया में बैठने वालों को ज्योति दे, और हमारे पांवों को कुशल के मार्ग में सीधे चलाए।
वह जो शान्ति लेकर आया वह अनन्तकाल की शान्ति थी - Lk2:14, Jn14:27,16:33,20:21-22.
√ शान्ति की यह सिध्दता, परिपूर्णता और सम्पन्नता के्वल यीशु की मृत्यु के द्वारा ही सम्भव है जो पापी संसार को पापों से छुटकारा दिलाने के लिए हुई। यीशु ने परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले पाप के दण्ड को अपने ऊपर उठा लिया जिससे कि पाप के कारण होनेवाली दूरी समाप्त हो जाए और पश्चातापी पापी लोगों का मेल फिर से परमेश्वर के साथ हो जाए - Isa53:5-6,Ro5:1-2, Col1:20-22.
मसीही लोगों का मेल मसीह के द्वारा न केवल परमेश्वर से हो गया है वरन् उन्हें परमेश्वर की शान्ति भी मसीह के द्वारा प्राप्त हो चुकी है।इस शान्ति का यह अर्थ नहीं कि वे जीवन की कठिनाईयों से दूर रहेंगे। परन्तु इसका अर्थ यह है कि वे आत्मिक परिपूर्णता और कुशलता की ऐसी स्थिति में है जो उन्हें दुःख व कठिनाईयों में भी शान्ति और सामर्थ्य देती है - Jn14:27,16:33, Col3:15, Php4:7.
यूहन्ना 14:27 - मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूं, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।
यूहन्ना 16:33 - मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।
कुलुस्सियों 3:15 - और मसीह की शान्ति जिस के लिये तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो।
फिलिप्पियों 4:7 - तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।
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* मध्य के तीन गुण - कर्म, जो हमारे अपने कर्त्तव्य पालन से परमेश्वर से प्राप्त किया जाना संभाव्य है ।
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√ [4] धीरज[सहनशीलता,Patience,Forbearance] -
धीरज, भड़काये जाने पर सहने का गुण है -
2Co6:6 -
[6]पवित्रता से, ज्ञान से, धीरज से, कृपालुता से, पवित्र आत्मा से।
Col1:11; 3:12 -
कुलुस्सियों 1:11
[11]और उस की महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ से बलवन्त होते जाओ, यहां तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको।
कुलुस्सियों 3:12
[12]इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।
यह उन सभी विचारों का इंकार करता है, जो गलत व्यवहार करने पर विद्रोह या पलटकर जवाब देने के हो सकते हैं।
* धैर्य चरित्र का वह गुण है जो विश्वासियों में तब उत्पन्न होता है जब वे लोगों के साथ रहते हुए परीक्षाओं और दुःख देनेवाली परीस्थितियों का सामना सहनशीलता से करते हैं - Ro5:3-4, Eph4:1-2, James1:3-4.
मसीहियों के धैर्य का एक विशेष गुण यह है कि वे प्रेम, आनन्द, नम्रता और क्षमा की भावना से धैर्य रखतें हैं - 1Co13:4,7, Col1:11,3:12-13, Mt18:23-35.
परमेश्वर का भी एक गुण धैर्य है। वह पापियों के प्रति धैर्य रखता है,और उन्हें दण्ड देने से रोकता तथा दण्ड के बदले उन्हें उध्दार का मार्ग देता है - Ps103:8-9, Jnh4:2, Ro3:25-26 1Pe 3:20.
जो लोग उसके धैर्य का उत्तर विश्वास और पश्चाताप से देते हैं वे उससे क्षमा पाते हैं परन्तु इससे बैर रखने वाले और उसकी अवहेलना करने वाले जो उन पर ध्यान नहीं देते वे दण्ड के अधीन हो जाते हैं - Ge34:6-7, Ro2:3-4,9:22, 1Ti1:16, 2Pe3:9.
परमेश्वर के लोगों को हर प्रकार के अपमान, दुःख, विपत्ति,अन्याय,सताव, आदि सहने के लिए अवश्य तैयार रहना चाहिए - 1Co4:12,6:7, 2Co1:6, 2Th1:3-4, Heb11:25-27, James1:12,5:10-11.
इस प्रकार का धैर्य उन लोगों में होना अत्यंत आवश्यक है जो परमेश्वर की सेवा, सुसमाचार प्रचार और कलीसिया की देखभाल करने के द्वारा करते हैं - 1Th5:14, 2Ti2:10,24,3:10-11,4:2.
मसीहियों को यीशु मसीह के लौटने की प्रतीक्षा बड़े धैर्य के साथ करनी चाहिए। इस प्रतीक्षा के समय उन्हें जीवन में आने वाली विपत्तियों को धैर्य से सहना चाहिए। मसीह के लौट आने की उनकी प्रतीक्षा उनके धैर्य का अभिप्राय बन जाती है। यही उनकी मसीही आशा है - Heb6:11-12, James5:7-8.
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√ [5] कृपा [दया, दयालुता, Kindness, Friendliness] -
दया, कार्य करने में प्रगट होती है जैसा कि परमेश्वर ने मनुष्य के प्रति प्रगट किया। चूंकि परमेश्वर पापियों के प्रति दयावान है -
Ro 2:4 -
[4]क्या तू उस की कृपा, और सहनशीलता, और धीरज रूपी धन को तुच्छ जानता है और क्या यह नहीं समझता, कि परमेश्वर की कृपा तुझे मन फिराव को सिखाती है?
एक मसीही को भी यही गुण प्रदर्शित करना चाहिए -
2 Co 6:6 -
[6]पवित्रता से, ज्ञान से, धीरज से, कृपालुता से, पवित्र आत्मा से।
Col 3:12 -
[12]इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।
*कृपा ईश्वर से है और यह मानव जाति के लिए उनकी देखभाल और सुरक्षा,दया और प्रेम को दर्शाता है। इसमें भौतिक आर्शीवाद और जीवन की जीविका भी शामिल है।जब से परमेश्वर ने हम मनुष्यों को बनाया है,उनकी कृपा हमेशा हमारे साथ रही है। परमेश्वर की कृपा के सहारे हमारे बिमारियों और विपदाओं से बचाते हैं उन्होंने रोटी, कपड़ा और मकान आदि दैनिक उपयोग की चीजें बहुतायत से दी है और किसी चीज की कमी नहीं है.....यह सभी परमेश्वर की कृपा है। जब तक हम परमेश्वर के वचनों पर जीते हैं, हम जीवन और परमेश्वर की कृपा और आर्शीवाद प्राप्त करेंगे और परमेश्वर के प्रकाश में रहेंगे और शैतान के कहर से दूर रहेंगे।
मसीहियों को दयालु होना चाहिए, विशेषकर लोगों के साथ धैर्य से बर्ताव करना चाहिए और जो परिस्थितियां उन्हें संकट में डाल देती है उन्हें देख-समझ कर कार्य करना चाहिए - 2Co6:6, Eph4:32, Col3:12-13.
मसीह की नम्रता उसी दयालुता का उदाहरण है -
मत्ती 11:28-30 -
[28]हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।
[29]मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।
[30]क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हल्का है।
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√ [6] भलाई [अच्छाई, Goodness] -
*अच्छाई, आत्मा की सिध्दता और दूसरों की भलाई करने की क्रिया करने के समान समझा जाना चाहिये चाहे उसकी जरूरत न भी हो।
*भलाई का अर्थ - नैतिक उत्तमता या सद्गुण है लेकिन इसका अर्थ सिर्फ हर तरह की बुराई से दूर रहना ही नहीं है, परन्तु भलाई के सिध्दांत पर विचार करते जाना है जो भली है।
बाइबल के शब्द भलाई में कई अर्थ सम्मिलित हैं जैसे - सुखदायक, लाभदायक, उपयुक्त, सुन्दर और आदरयोग्य ---
उत्पत्ति 1:4 - और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्वर ने उजियाले को अन्धियारे से अलग किया।
व्यवस्थाविवरण 6:18 - और जो काम यहोवा की दृष्टि में ठीक और सुहावना है वही किया करना, जिससे कि तेरा भला हो, और जिस उत्तम देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाई उसमें तू प्रवेश करके उसका अधिकारी हो जाए।
इफिसियों 5:9 - (क्योंकि ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धामिर्कता, और सत्य है)।
वह भलाई जिसकी शिक्षा बाइबल देती है वह पूर्णतः परमेश्वर में पायी जाती है --
भजन संहिता 100:5 - क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करूणा सदा के लिये, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
यह भलाई प्रभु यीशु मसीह के जीवन और उसकी सेवा के द्वारा दर्शाई गई है --
प्रेरितों के काम 10:38 - कि परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ से अभिषेक किया: वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा; क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था।
तथा पवित्र आत्मा की इच्छा है कि मसीहियों के जीवन में भी इसे उत्पन्न करे।
परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह भला है- Ps119:68,136:1, AC,14:17, 1Ti4:4. उसके लोगों को विषमताओं और कठिनाईयों के समय में भी ऐसा ही विचार रखना चाहिए - Mt7:11.Ro8:28, Heb12:10,James1:17.
परमेश्वर सब लोगों की भलाई चाहता है इसलिए वह चाहता है कि सब लोग भलाई करें - Isa1:17,5:20, Gal6:10. यद्यपि भले कार्यों से मनुष्य अपना उद्धार नहीं कमा सकता है क्योंकि उध्दार परमेश्वर का एक दान है जिसे विश्वास से स्वीकार किया जाता है।
भलाई आत्मा का एक फल है और यह दूसरों के प्रति अच्छे काम करने के द्वारा दिखाया जाता है। जब हम दूसरों के लिए अच्छे और लाभप्रद कार्य करते हैं तो हम भलाई का गुण दिखाते हैं। लेकिन इस दुनिया में जिस काम को कुछ लोग भला समझते हैं वही दूसरों की नजरों में बुरा होता है। इसलिए यदि हम शान्ति और खुशी पाना चाहते हैं तो भलाई का एक स्तर होना जरूरी है।
भलाई का स्तर, परमेश्वर निर्धारित करता है। दुनिया के आरम्भ में यहोवा ने ही पहले आदम को यह आज्ञा दी थी - तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना आपके का सकता है,पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है,उसका फल तू कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा---
उत्पत्ति 2:16-17
[16]तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, कि तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है:
[17]पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा।
यिर्मयाह 33:11
[11]इन्हीं में हर्ष और आनन्द का शब्द, दुल्हे-दुल्हिन का शब्द, और इस बात के कहने वालों का शब्द फिर सुनाईं पड़ेगा कि सेनाओं के यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि यहोवा भला है, और उसकी करुणा सदा की है। और यहोवा के भवन में धन्यवादबलि लाने वालों का भी शब्द सुनाईं देगा; क्योंकि मैं इस देश की दशा पहिले की नाईं ज्यों की त्यों कर दूंगा, यहोवा का यही वचन है।
रोमियो 15:14 - हे मेरे भाइयो; मैं आप भी तुम्हारे विषय में निश्चय जानता हूं, कि तुम भी आप ही भलाई से भरे और ईश्वरीय ज्ञान से भरपूर हो और एक दूसरे को चिता सकते हो।
रोमियो 15:2 - हम में से हर एक अपने पड़ोसी को उस की भलाई के लिये सुधारने के निमित प्रसन्न करे।
इफिसियों 2:10 - क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया।
रोमियो 8:28
[28]और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।
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* अंतिम तीन गुण - अनुग्रह जो हमें परमेश्वर से मिलता है।
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√ [7]विश्वास [ईमानदारी, Faithfulness] -
* एक विश्वासी के सामान्य आचरण का मार्गदर्शन करते हैं जो आत्मा के अनुसार चलता है। विश्वासयोग्यता [पिस्टिस] वह गुण है जो एक व्यक्ति को भरोसे मंद या विश्वासी बनाता है - लूका 16:10-12 के विश्वास योग्य सेवक के समान।
Lk 16:10-12 -
[10]जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है।
[11]इसलिये जब तुम अधर्म के धन में सच्चे न ठहरे, तो सच्चा तुम्हें कौन सौंपेगा।
[12]और यदि तुम पराये धन में सच्चे न ठहरे, तो जो तुम्हारा है, उसे तुम्हें कौन देगा?
* इब्रानियों 11:1 - अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।
√ विश्वास का अर्थ भरोसा रखना है अर्थात् किसी अनदेखी वस्तु या व्यक्ति में विश्वास रखने का अर्थ अपने पर नहीं वरन् उस वस्तु या व्यक्ति में पूरा भरोसा रखना है।
√ बाइबल प्राय: विश्वास के संबंध में लोगों के भरोसे के प्रति या परमेश्वर और उसके कार्यों पर निर्भर रहने के प्रति कहती है। यह निर्भरता भौतिक जीवन के संबंध में हो सकती है जैसे परमेश्वर के उस प्रबन्ध पर निर्भर रहना जिसे वह हमारे स्वास्थ्य,भोजन, हानि है बचाव और शत्रुओं पर विजय आदि के लिए करता है - Ps22:4-5,37:3-4,46:1-3, Mt6:30, Heb11:3-35.
परन्तु इससे अधिक यह आत्मिक जीवन को महत्त्व देता है, जैसे उध्दार और अनन्त जीवन के प्रति परमेश्वर के प्रबन्ध के प्रति - Ps18:2,40:4,71:5, Prov3:5, Jr17:7, Jn3:16, Ro1:16,5:1.
1 कुरिन्थियों 4:2 -फिर यहां भण्डारी में यह बात देखी जाती है, कि विश्वास योग्य निकले।
विश्वास का उदाहरण [Heb11:3-35] -
[1] सारी सृष्टि की रचना- परमेश्वर ने वचन की सृजनात्मक शक्ति से सारी सृष्टि की रचना की।
[2] हाबिल ने कैन से उत्तम भेंट चढ़ाया, जिसे परमेश्वर ने स्वीकार किया।
[3] परमेश्वर को प्रसन्न करने के कारण मृत्यु को देखे बिना हनोक स्वर्ग पर उठा लिया गया।
[4] महा जल-प्रलय से नूह ने चितौनी पाकर भक्ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, और नूह और उसका परिवार का बचाया गया।
[5] इब्राहीम ने प्रतिज्ञाओं को सच मानकर एकलौते पुत्र इसहाक को बलिदान पर चढ़ाया जिसे यहोवा यिरे ने उपाय कर इसहाक को बचाया।
[6]इस्त्राएली लाल समुद्र के पार ऐसे उतर गए, जैसे सूखी भूमि पर से;और जब मिस्रियों ने वैसा ही करना चाहा, तो सब डूब मरे।
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√ मसीह के पहले के समय में या बाद के समय में लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास के द्वारा बचाए गए हैं जो अपनी करूणा और अपने अनुग्रह के द्वारा पापों को क्षमा करता है; और वह आधार जिसके कारण परमेश्वर क्षमा करता है यीशु मसीह की मृत्यु है --Ro3:24-26,4:16,22-25, 2Co4:13, Gal3:11.
√ भले कामों और व्यवस्था का पालन करने के आधार पर न तो लोगों के पाप कभी क्षमा हो सकते हैं और न ही परमेश्वर के द्वारा उसे कभी स्वीकार किया जा सकता है। वे परमेश्वर की आशीष को किसी भी कार्य से अर्जित नहीं कर सकते - Ro4:1-5,9:30-32,10:3-4.
परमेश्वर केवल अपने अनुग्रह के द्वारा लोगों को बचाता है और वे इस उध्दार को विश्वास के द्वारा पाते हैं --
Eph2:8-9.
केवल विश्वास ही अपने आप नहीं बचाता। यह केवल साधन है जिसके द्वारा पापी उस उध्दार को ग्रहण करता है जिसे परमेश्वर प्रस्तुत करता है। परमेश्वर का उद्धार व्यक्ति के विश्वास का एक पुरस्कार नहीं है।यह ऐसा पुरस्कार है जिसे कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार से कमा नहीं सकता। परन्तु वह इसे विश्वास से ग्रहण कर सकता है - Ro3:25.
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√ [8] नम्रता [सौम्यता,Gentleness, Humility] -
✓Gal5:23 -
* नम्रता उस व्यक्ति का चिन्ह है जो परमेश्वर के वचन के ताबे रहता है। और जो दूसरों के प्रति चिंतित है जबकि अनुशासन की आवश्यकता हो -
याकूब 1:21(नम्रता)
[21]इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।
गलातियों 6:1(नम्रता पूर्वक)
[1]हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो।
2 तीमुथियुस 2:25
[25]और विरोधियों को नम्रता से समझाए, क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे, कि वे भी सत्य को पहिचानें।
1 कुरिन्थियों 4:21
[21]तुम क्या चाहते हो क्या मैं छड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊं या प्रेम और नम्रता की आत्मा के साथ?
इफिसियों 4:2
[2]अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो।
Col 3:12 (नम्रता) -
[12]इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।
1 पतरस 3:6
[6]जैसे सारा इब्राहीम की आज्ञा में रहती और उसे स्वामी कहती थी: सो तुम भी यदि भलाई करो, और किसी प्रकार के भय से भयभीत न हो तो उस की बेटियां ठहरोगी।
* नम्रता मानव व्यवहार और प्रकृति की एक विशेषता है। इसका शाब्दिक अर्थ मृदुता होता है। इसे नीति परायणता, विनम्रता और धैर्य के रूप में देखा जाता है। हमारे धर्म ग्रन्थों का एक मूलमंत्र है-- जो नम्र होकर झुकते हैं, वही ऊपर उठते हैं ।विनम्र होकर ही हम पात्रता विकसित कर सकते हैं ।
नम्रता शब्द साधारणत: सज्जनता, निस्वार्थ भावना, दीनता, अनुग्रह और संयम के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। इस दृष्टिकोण से नम्रता का गुण परमेश्वर को बहुत पसंद है। इसके विपरीत घमण्ड एक ऐसी बुराई है जिसे परमेश्वर अत्यंत घृणा करता है--Nu12:3,Prov6:16-17, Daniel 5:22-23, Mica6:8, James 4:6, 1Pe5:5.
मत्ती 11:29 - मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।
2 कुरिन्थियों 10:1- मैं वही पौलुस जो तुम्हारे साम्हने दीन हूं, परन्तु पीठ पीछे तुम्हारी ओर साहस करता हूं; तुम को मसीह की नम्रता, और कोमलता के कारण समझाता हूं।
फिलिप्पियों 2:3 - विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
1 कुरिन्थियों 13:4-5
[4]प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
[5]वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
प्रभु यीशु नम्रता का एक बड़ा उदाहरण है। पूर्ण आत्मत्याग के कार्य में परमेश्वर के अनन्त पुत्र ने स्वयं को इतना नम्र बना दिया कि उसने मानवीय देह धारण की और पापी मनुष्य जाति को बचाने के लिए अपना प्राण भी दे दिया -- Php2:5-11.
उसने कभी घमण्ड नहीं किया और न ही ऐसा ही कोई कार्य किया जिससे उसे व्यक्तिगत लाभ हुआ हो। उसने सैदव अपने आपको पिता की इच्छा के अधीन किया और अपने साथियों/शिष्यों की सेवा की - Mt12:19-20,20:28, Jn5:30-32.
जिस प्रकार यीशु मसीह ने इस जीवन में अपने आपको
नम्र बनाया और पापियों के लिए अपना प्राण दिया, उसी प्रकार पापियों को भी अपने पापों के लिए पश्चाताप करने हेतु नम्र बनना चाहिए जिससे कि वे परमेश्वर से पापों की क्षमा पा सके।
नम्रता मसीह के राजा होने का एक चिन्ह है -Mt21:5.
नम्रता के द्वारा ही उसके राज्य में प्रवेश किया जा सकता है- Mt18:1-4.
मसीहियों का उत्तरदायित्व है कि वे अपने जीवन में नम्रता को विकसित करें।यह उस जीवन का एक भाग है जिसके लिए परमेश्वर ने हमें बुलाया है - Eph4:1-2,
Col3:12. ऐसा जीवन परमेश्वर के राज्य की एक विशेषता है - Mt20:20-27.और व्यक्ति के जीवन में यह पवित्र आत्मा के कार्य की एक उपज है- Gal5:23.
यदि मसीही लोग नम्रता की शिक्षा पाना चाहते हैं तो उन्हें सबसे छोटे स्थान को पाने और दूसरों की सेवा करने के लिए तैयार रहना चाहिए - Lk22:24-27, Jn13:3-27. इस प्रकार की कलीसिया में सच्ची सहभागिता के लिए सहायक सिद्ध होगी।
जो लोग स्वयं को नम्र बनाते हैं परमेश्वर उन्हें ऊंचा उठाता है परन्तु वह उन लोगों को नीचा दिखाता है जो अपने आपको ऊंचा उठाते हैं -
नीतिवचन 3:34 - ठट्ठा करने वालों से वह निश्चय ठट्ठा करता है और दीनों पर अनुग्रह करता है।
नीतिवचन 15:33 - यहोवा के भय मानने से शिक्षा प्राप्त होती है, और महिमा से पहिले नम्रता होती है
नीतिवचन 18:12 - नाश होने से पहिले मनुष्य के मन में घमण्ड, और महिमा पाने से पहिले नम्रता होती है।
यशायाह 2:11 - क्योंकि आदमियों की घमण्ड भरी आंखें नीची की जाएंगी और मनुष्यों का घमण्ड दूर किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊंचे पर विराजमान रहेगा।
यशायाह 5:15 - साधारण मनुष्य दबाए जाते और बड़े मनुष्य नीचे किए जाते हैं, और अभिमानियों की आंखें नीची की जाती हैं।
मत्ती 23:12 - जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।
लूका 1:48-53
[48]क्योंकि उस ने अपनी दासी की दीनता पर दृष्टि की है, इसलिये देखो, अब से सब युग युग के लोग मुझे धन्य कहेंगे।
[49]क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
[50]और उस की दया उन पर, जो उस से डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
[51]उस ने अपना भुजबल दिखाया, और जो अपने आप को बड़ा समझते थे, उन्हें तित्तर-बित्तर किया।
[52]उस ने बलवानों को सिंहासनों से गिरा दिया; और दीनों को ऊंचा किया।
[53]उस ने भूखों को अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया, और धनवानों को छूछे हाथ निकाल दिया।
याकूब 4:10
[10]प्रभु के साम्हने दीन बनो, तो वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा।
1 पतरस 5:6
[6]इसलिये परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए।
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√ [9]संयम[आत्मनियंत्रण, Self-Control] -
* आत्मनियंत्रण स्वयं स्वामित्व को दर्शाता है, बिना शंका प्राथमिकता से पूर्व वर्णित शारीरिक अभिलाषाओं को मार डालने से संबंधित है। परमेश्वर की आत्मा की सामर्थ के बिना इस गुण को पाना असंभव है -
गलातियों 5:16
[16]पर मैं कहता हूं, आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे।
अंत में, वचन के सारांश में पौलुस ने प्रमाणित किया कि इन गुणों के विरुद्ध में कोई भी नियम या कानून या विधि-विधान या संहिता नहीं है। एक नयूनोक्ति के द्वारा उसने दृढ़ किया कि कदाचित इस गुणों के अभ्यास करने वाले लोगों के विरूद्ध कोई भी कानून नहीं बना सकता था।
* संयम मुक्त भौतिक भोग और पूर्ण त्याग के मध्य आत्मनियंत्रण की स्थिति है। व्यवहारिक जीवन और आध्यात्मिक साधनाओं में सफलता के लिए इसे अनिवार्य माना गया है। आध्यात्मिक दृष्टि से संयम आत्मा का गुण है। इसे आत्मा का सहज स्वभाव माना गया है। संयम शून्य अबाध भोग से इन्द्रिय की तृप्ति संभव नहीं है। संयम मुक्त इंद्रिय व्यक्ति एवं समाज को पतन की ओर अग्रसर करती है।
√ संयम परमेश्वर का एक गुण है - Gal 5:22, 23. यहोवा परिपूर्ण है और पूरी तरह संयम रखता है। लेकिन हम अपरिपूर्ण हैं इसलिए हमारे लिए संयम रखना आसान नहीं। देखा जाए तो आज ज़्यादातर परेशानियों की वजह यही है कि लोगों में संयम नहीं। इस वजह से लोग अपने कर्त्तव्य स्थल पर अपने काम को टालते हैं या अपना काम अच्छे से नहीं करते। संयम न रखने के और भी बुरे परिणाम हो सकते हैं जैसे, किसी को बुरा-भला कहना, हद-से-ज़्यादा शराब पीना, हिंसा करना, कोई बुरी लत लगना, मन को चोट पहुँचना - Ps34:11-14.
1 कुरिन्थियों 7:8-9 -
[8]परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूं, कि उन के लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूं।
[9]परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है।
1 कुरिन्थियों 9:2,25 -
[2]यदि मैं औरों के लिये प्रेरित नहीं, तौभी तुम्हारे लिये तो हूं; क्योंकि तुम प्रभु में मेरी प्रेरिताई पर छाप हो।
[25]और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरझाने वाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं, जो मुरझाने का नहीं।
तीतुस 1:7-8 -
[7]क्योंकि अध्यक्ष को परमेश्वर का भण्डारी होने के कारण निर्दोष होना चाहिए; न हठी, न क्रोधी, न पियक्कड़, न मार पीट करने वाला, और न नीच कमाई का लोभी।
[8]पर पहुनाई करने वाला, भलाई का चाहने वाला, संयमी, न्यायी, पवित्र और जितेन्द्रिय हो।
8 - पर पहुनाई करने वाला, भलाई का चाहने वाला, संयमी, न्यायी, पवित्र और जितेन्द्रिय हो।
1 तीमुथियुस 3:3,8 -
[3]पियक्कड़ या मार पीट करने वाला न हो; वरन कोमल हो, और न झगड़ालू, और न लोभी हो।
[8]वैसे ही सेवकों को भी गम्भीर होना चाहिए, दो रंगी, पियक्कड़, और नीच कमाई के लोभी न हों।
इफिसियों 5:8 - क्योंकि तुम तो पहले अन्धकार थे परन्तु अब प्रभु में ज्योति हो, सो ज्योति की सन्तान की नाईं चलो।
1Ti4:3,5:23, 2Ti3:1-3, Ge3:6, 1Ki8:46-50, Deu32:4, 2Pe3:9, Ex34:6.
संयम का अभ्यास एक अच्छा अनुशासन है। वास्तव में, आत्म-नियन्त्रण उन गुणों में से एक है, जो पवित्र आत्मा एक विश्वासी के जीवन में उत्पन्न करता है - Gal 5:22–23. जब हम संयम में नहीं रहते हैं - जब हमारे अपने जीवन के एक निश्चित क्षेत्र में आत्म-नियन्त्रण की कमी होती है – जो यह संकेत दे सकता है कि हम उस क्षेत्र में परमेश्वर को पूरी तरह से कार्य करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। हमें पराजय में नहीं जीना चाहिए। परमेश्वर अपनी सन्तान की निन्दा नहीं करता - Ro 8:1.और हमें प्रत्येक पाप के ऊपर जय प्राप्त हुई है - Ac13:38-39. इसी के साथ, पवित्र आत्मा हमें आत्म-नियन्त्रण देना चाहता है। जब हम परमेश्वर को "जीवित बलिदान" Ro 12:1.के रूप में आत्मसमर्पण करते हैं, तो वह उन आवश्यकताओं को पूरा करेगा जिनसे हम स्वयं से ही सन्तुष्टि प्राप्ति करने का प्रयास कर रहे हैं 1Ti 6:17 अच्छे चरवाहे का अनुसरण करने वाली भेड़ों के पास"कोई घटी नहीं रहती" है - Ps23:1.
संसार शरीर की अभिलाषा को पूरा करने का आग्रह करता है और झूठ को आगे बढ़ाता है कि जो हमें चाहिए वह अधिक प्रसन्नता, अधिक सामान, अधिक मनोरंजन, आदि है। जो हमें वास्तव में चाहिए, वह परमेश्वर है। परमेश्वर ने हमें उसकी आवश्यकताओं और उसकी इच्छा के अनुसार रूपरेखित किया - Mt4:4. अन्य सभी वस्तुओं संयम में होनी चाहिए।
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पाप पर विजय का प्रबन्ध[Gal5:24-26]
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✓Gal5:24 - पौलुस ने तब बाद में समझाया कि विश्वासियों (वे जो कि मसीह यीशु के हैं) को पापमय स्वभाव के प्रति उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ा दिया है। इसका अर्थ स्वयं के क्रूसित होने का नहीं या कि स्वयं की तपस्या नहीं है तथापि यह पवित्र आत्मा के बपतिस्मे के माध्यम से मसीही, मसीह के साथ उसके मृत्यु और पुनरूत्थान के साथ पहिचाने गये। पौलुस ने घोषणा की कि यही उसका अनुभव था - गलातियों 5:2 - देखो, मैं पौलुस तुम से कहता हूं, कि यदि खतना कराओगे, तो मसीह से तुम्हें कुछ लाभ न होगा।
और सभी विश्वासियों का भी रोमियो 6:1-6 -
[1]सो हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें, कि अनुग्रह बहुत हो?
[2]कदापि नहीं, हम जब पाप के लिये मर गए तो फिर आगे को उस में क्योंकर जीवन बिताएं?
[3]क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्मा लिया।
[4]सो उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें।
[5]क्योंकि यदि हम उस की मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएंगे।
[6]क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उसके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया, ताकि पाप का शरीर व्यर्थ हो जाए, ताकि हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें।
कुलुस्सियों 2:11 -
[11]उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता, अर्थात मसीह का खतना, जिस से शारीरिक देह उतार दी जाती है।
कुलुस्सियों 3:9 -
[9]एक दूसरे से झूठ मत बोलो क्योंकि तुम ने पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतार डाला है।
जबकि सह क्रूसीकरण क्रूस पर हुआ है, यह विश्वासियों के लिए प्रभावशाली तब हो जाता है जब उनका धर्मांतरण होता है। इसका यह अर्थ नहीं कि उनका पापमय स्वभाव छूट जाता है या क्रियाविहीन बन जाता है, परन्तु यह कि उस पर निर्यात हो चुका है, एक तथ्य जिसे विश्वासियों को स्तरीय मानना चाहिये -
रोमियो 6:11-12 -
[11]ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो।
[12]इसलिये पाप तुम्हारे मरनहार शरीर में राज्य न करे, कि तुम उस की लालसाओं के आधीन रहो।
तो पापमय जीवन की, भावनाओं और अभिलाषाओं के ऊपर विजय मसीह के द्वारा उपलब्ध की गई है, उसकी मृत्यु में। विश्वास को निरंतर इस सतर्कता को पकड़े रहना चाहिये अन्यथा एक विश्वासी को स्वत: प्रयास से विजय प्राप्त करने का प्रलोभन हो सकता है।
✓Gal5:25-26- पौलुस ने पुनः गलातियों को संरक्षण कराया कि पापमय स्वभाव के स्वर्गीय न्याय के अतिरिक्त पवित्र आत्मा के व्यक्तित्व में एक स्वर्गीय सक्षमता भी है। उसने विश्वासी को नये जन्म के द्वारा जीवित बनाया है -
यूहन्ना 3:5-6 -
[5]यीशु ने उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।
[6]क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है।
तो हर एक विश्वासी को आत्मा के द्वारा कदम मिलाने को उत्साहित किया है - गलातियों 6:16
[16]और जितने इस नियम पर चलेंगे उन पर, और परमेश्वर के इस्त्राएल पर, शान्ति और दया होती रहे।
एक सच्चे मसीही को जीवन के हर कदम पर पवित्र आत्मा के निर्देशन में सक्षमता को प्रमाणित करना चाहिये, ताकि विश्वासी धोखा खाकर, एक दूसरे को भड़काकर और ईर्ष्या नहीं करने पाएं।
गलातियों 5:19-21 -
[19]शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन।
[20]मूर्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म।
[21]डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इन के जैसे और और काम हैं, इन के विषय में मैं तुम को पहिले से कह देता हूं जैसा पहिले कह भी चुका हूं, कि ऐसे ऐसे काम करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।
यह गलातिया कलीसिया में यहूदी वादियों की गलती से उनके विभाजन से आकर्षित होता है -
गलातियों 5:15,19-21-
[15]पर यदि तुम एक दूसरे को दांत से काटते और फाड़ खाते हो, तो चौकस रहो, कि एक दूसरे का सत्यानाश न कर दो।
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