परमेश्वर प्रेम है - God is Love .
1Peter4:7-12 ---
7 हे प्रियों, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्वर से है: और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से जन्मा है; और परमेश्वर को जानता है।
8 जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।
9 जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं।
10 प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर ने प्रेम
किया; पर इस में है, कि उस ने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा।
11 हे प्रियो, जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए।
12 परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा; यदि हम आपस में प्रेम रखें, तो परमेश्वर हम में बना रहता है; और उसका प्रेम हम में सिद्ध हो गया है।
God’s Love and Ours
7.Dear friends, let us love one another, for love comes from God.
Everyone who loves has been born of God and knows God.
8. Whoever does not love does not know God, because God is love.
9. This is how God showed his love among us: He sent his one and only Son into the world that we might live through him.
10.This is love: not that we loved God, but that he loved us and sent his Son as an atoning sacrifice for our sins.
11. Dear friends, since God so loved
our sins.
11. Dear friends, since God so loved us, we also ought to love one another.
12. No one has ever seen God; but if we love one another, God lives in us and his love is made complete in us.
वचनों का व्याख्यान
प्रेम -
प्रेम एक अहसास है।प्रेम अनेक भावनाओं का , रवैयों का मिश्रण है जो पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर विस्तारित है ।प्रेम एक मजबूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है।ये किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी माना जा सकता है। खुद के प्रति या किसी जानवर के प्रति, या किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्रेम कह सकते हैं।
प्राचीन ग्रीकों(यूनानियों) ने 04 प्रकार के प्रेम को पहचाना है - रिश्तेदारी, दोस्ती, रोमानी इच्छा (प्रेम प्रसंगयुक्त,Romantic) और दिव्य प्रेम (ईश्वरीय, Divine)।
1Co13:4--7 -
4 प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
6 कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है।
7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
1Co13:13 -
13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।
1. मनुष्य के प्रति परमेश्वर के प्रेम के संबंध में- Deut7:12-13 ( आज्ञा पालन की आशीषें) 12 और तुम जो इन नियमों को सुनकर मानोगे और इन पर चलोगे, तो तेरा परमेश्वर यहोवा भी करूणामय वाचा को पालेगा जिसे उसने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर बान्धी थी;
13 और वह तुझ से प्रेम रखेगा, और तुझे आशीष देगा, और गिनती में बढ़ाएगा; और जो देश उसने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर तुझे देने को कहा है उस में वह तेरी सन्तान पर, और अन्न, नये दाखमधु, और टटके तेल आदि, भूमि की उपज पर आशीष दिया करेगा, और तेरी गाय-बैल और भेड़-बकरियों की बढ़ती करेगा।
Jn3:16 (यीशु मसीह,संसार का मुक्तिदाता)-
16 क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
17 परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।
2.मनुष्य की भक्ति परमेश्वर के प्रति -
Ps91:14( परमेश्वर हमारा रक्षक) --
14 उसने जो मुझ से स्नेह किया है, इसलिये मैं उसको छुड़ाऊँगा; मैं उसको ऊँचे स्थान पर रखूँगा, क्योंकि उसने मेरे नाम को जान लिया है।
1Co8:3 -
3 परन्तु यदि कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्वर पहिचानता है।
3. पुरूष व स्त्री के पवित्र प्रेम संबंध में -
Prov5:18-19 -
18 तेरा सोता धन्य रहे; और अपनी जवानी की पत्नी के साथ आनन्दित रह,
19 प्रिय हरिणी वा सुन्दर सांभरनी के समान उसके स्तन सर्वदा तुझे संतुष्ट रखे, और उसी का प्रेम नित्य तुझे आकषिर्त करता रहे।
Ecc2:4-5 -
4.वेश्या के साथ अशुध्द यौन संबंध में --
Jer4:30 -
30 और तू जब उजड़ेगी तब क्या करेगी? चाहे तू लाल रंग के वस्त्र पहिने और सोने के आभूषण धारण करे और अपनी आंखों में अंजन लगाए, परन्तु व्यर्थ ही तू अपना शृंगार करेगी। क्योंकि
तेरे मित्र तुझे निकम्मी जानते हैं; वे तेरे प्राणों के खोजी हैं।
Hosea2:12-13 -
12 और मैं उसकी दाखलताओं और अंजीर के वृक्षों को, जिनके विषय वह कहती है कि यह मेरे छिनाले की प्राप्ति है जिसे मेरे यारों ने मुझे दी है, उन्हें ऐसा उजाडूंगा कि वे जंगल से हो जाएंगे, और वन-पशु उन्हें चर डालेंगे।
13 और वे दिन जिन में वह बाल देवताओं के लिये धूप जलाती, और नत्थ और हार पहिने अपने यारों के पीछे जाती और मुझ को भूले रहती थी, उन दिनों का दण्ड मैं उसे दूंगा, यहोवा की यही वाणी है।
5. पारिवारिक सदस्यों के साथ पवित्र प्रेममय संबंध में -
Ge22:2 ( अब्राहम के परीक्षा में पड़ने का वर्णन) -
2 उसने कहा, अपने पुत्र को अर्थात अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग ले कर मोरिय्याह देश में चला जा, और वहां उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा।
Ruth 4:15(बोअज और उसके वंशज) -
15 और यह तेरे जी में जी ले आनेवाला और तेरा बुढ़ापे में पालनेवाला हो, क्योंकि तेरी बहू जो तुझ से प्रेम रखती और सात बेटों से भी तेरे लिये श्रेष्ट है उसी का यह बेटा है।
6. मित्र या शत्रु से दया के व्यवहार के संबंध में -
Lev19:17-18 -
17 अपने मन में एक दूसरे के प्रति बैर न रखना; अपने पड़ोसी को अवश्य डांटना नहीं, तो उसके पाप का भार तुझ को उठाना पड़ेगा।
18 पलटा न लेना, और न अपने जाति भाइयों से बैर रखना, परन्तु एक दूसरे से अपने समान प्रेम रखना; मैं यहोवा हूँ।
1Sa18:1,16 -
1 जब वह शाऊल से बातें कर चुका, तब योनातान का मन दाऊद पर ऐसा लग गया, कि
योनातान उसे अपने प्राण के बराबर प्यार करने लगा।
16 परन्तु इस्राएल और यहूदा के समस्त लोग दाऊद से प्रेम रखते थे; क्योंकि वह उनके देखते आया जाया करता था।
Mt5:43-46 (शत्रुओं से प्रेम) -
43 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।
44 .परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो।
45 जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनो पर
अपना सूर्य उदय करता है, और धमिर्यों और अधमिर्यों दोनों पर मेंह बरसाता है।
46 क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखने वालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या फल होगा? क्या महसूल लेने वाले भी ऐसा ही नहीं करते?
Jn11:3 (लाज़र) -
3 सो उस की बहिनों ने उसे कहला भेजा, कि हे प्रभु, देख, जिस से तू प्रीति रखता है, वह बीमार है।
7.आनन्द या संतोष प्राप्त करने की इच्छा के संबंध में -
Prov20:13 -
13 नींद से प्रीति न रख, नहीं तो दरिद्र हो
जाएगा; आंखें खोल तब तू रोटी से तृप्त होगा।
1Ti6:10 (धन का लोभ) -
10 क्योंकि रूपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटक कर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।
जहाँ बाइबल प्रेम के बारे में शिक्षा देती है, वहाँ प्रेम का अर्थ इच्छा से होता है, भावना से नहीं।इस प्रकार के प्रेम में केवल अनियंत्रित भावना नहीें वरन् स्वेच्छा से व्यवहार करना निहित होता है । इस प्रकार के प्रेम की विशेषता परमेश्वर तथा मनुष्यों दोनों में होती है।
बाइबल की आज्ञा है कि लोग आपस में प्रेम रखें । प्रेम की आज्ञा "नयी" है, क्योंकि प्रभु यीशु मसीह में परमेश्वर के प्रेम का रहस्य प्रगट किया है -- (1Jn2:8 का टीप)।
बाइबल उन्हें आज्ञा देती है कि चाहे उन्हें जैसा भी क्यों न लगे वे एक निश्चित रीति से व्यवहार करें।
मसीही प्रेम का अर्थ यह नहीं है कि कोई व्यक्ति अपने मन में दूसरे व्यक्ति के लिए प्रेम की भावना उपजाए।परन्तु यह है कि वह जैसा प्रेम की भावना से कार्य करना चाहिए उसके अनुसार कार्य करे।उसे ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि परमेश्वर का प्रेम उसके जीवन में राज्य करता है और चाहता है कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ही व्यक्ति अपना कार्य करे। जितना अधिक वह दूसरे के लिए प्रेम से कार्य करता है उतना ही अधिक वह उसके मन में प्रेम की भावना को बढ़ाता है।
परमेश्वर प्रेम है (परमेश्वर का प्रेम ) -
प्रेम, परमेश्वकार का सबसे श्रेष्ठ गुण है और यही गुण हमें सबसे ज्यादा उसकी तरफ खींचता है।बाइबल बतलाती है कि " परमेश्वर प्रेम है " -- 1Jn4:8.
परमेश्वर के मन में मनुष्य के प्रति जो प्रेम होता है वह पूर्णतः उसकी सार्वभौमिक इच्छा के अनुसार होता है । उसके प्रेम का कारण यह नहीं है कि लोगों में ऐसा कोई गुण है जिसके वे प्रेम किए जाने के योग्य है, परन्तु वह मनुष्यों से इसलिए प्रेम करता है क्योंकि वह उन्हें प्रेम के लिए स्वेच्छा से चुनता है।
Deut7:7-8 ( प्रभु के अपने लोग) -
7 यहोवा ने जो तुम से स्नेह करके तुम को चुन लिया, इसका कारण यह नहीं था कि तुम गिनती में और सब देशों के लोगों से अधिक थे, किन्तु तुम तो सब देशों के लोगों से गिनती में थोड़े थे;
8 यहोवा ने जो तुम को बलवन्त हाथ के द्वारा दासत्व के घर में से, और मिस्र के राजा फिरौन
के हाथ से छुड़ाकर निकाल लाया, इसका यही करण है कि वह तुम से प्रेम रखता है, और उस शपथ को भी पूरी करना चाहता है जो उसने तुम्हारे पूर्वजों से खाई थी।
Jer31:3 -
3 यहोवा ने मुझे दूर से दर्शन देकर कहा है। मैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूँ; इस कारण मैं ने तुझ पर अपनी करुणा बनाए रखी है।
Ro5:8 (परमेश्वर से मेल ) -
8 परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।
Eph1:4 -
4 जैसा उस ने हमें जगत की उत्पति से पहिले उस में चुन लिया, कि हम उसके निकट प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों।
Eph2:4-5 (मृत्यु से जीवन की ओर) -
4 परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उस ने हम से प्रेम किया।
5 जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।)
1Jn3:1 - देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएँ, और हम हैं भी: इस कारण संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि उस ने उसे भी नहीं जाना।
प्रभु यीशु मसीह में यह स्पष्ट देखा गया जिससे अपने जीवन भर पीड़ित लोगों की सहायता की और अपनी मृत्यु के द्वारा असहाय पापियों का उध्दार किया। मनुष्य का उध्दार परमेश्वर के प्रेम से उत्पन्न होता है और इस प्रेम की पुर्ण अभिव्यक्ति हमें यीशु मसीह के क्रूस पर दिखाई देती है।यीशु मसीह परमेश्वर के प्रेम को पूर्णतः अभिव्यक्त कर सकता था क्योंकि पिता के साथ उसका निजी संबंध है इसलिए वे एक दूसरे के साथ प्रेम की एकता में बन्धे हुए हैं।
प्रेम के अन्तर्गत दिव्य स्वभाव की इतनी अधिक विशेषताएँ है कि बाइबल स्पष्ट घोषणा करती है कि परमेश्वर प्रेम है।परमेश्वर जो कुछ भी कहता और करता है उससे उसका प्रेम प्रगट होता है --
1Jn4:8 ,16 -
8 जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।
16 और जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, उस को हम जान गए, और हमें उस की प्रतीति है; परमेश्वर प्रेम है: जो प्रेम में बना रहता है, वह परमेश्वर में बना रहता है; और परमेश्वर उस में बना रहता है।
परमेश्वर के क्रोध और न्याय को ध्यान में रखने से यदि हमें प्रेम के संबंध में उपरोक्त बातें समझने में कठिनाई होती है तो इसका कारण यह हो सकता है कि हमने प्रेम के स्वभाव को भली भाँति नहीं समझा है।परमेश्वर का प्रेम न्याय और धार्मिकता से रहित असंगत प्रेम नहीं है परन्तु यह ऐसा दृढ़ व्यवहार है जिसमें अपनी सृष्टि की भलाई के लिए अभिलाषा निहित होती है।परमेश्वर का प्रेम उचित बात के लिए ऐसा तीव्र है कि वह प्रत्येक अनुचित बात को देखकर अपनी धार्मिकता के क्रोध से उसकाविरोध करता है।परमेश्वर का क्रोध उसके प्रेम का परिणाम है --
1Jn1:5 - जो समाचार हम ने उस से सुना, और तुम्हें सुनाते हैं, वह यह है; कि परमेश्वर ज्योति है: और उस में कुछ भी अन्धकार नहीं।
Heb1:13 - और स्वर्गदूतों में से उसने किस से कब कहा, कि तू मेरे दाहिने बैठ, जब कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों के नीचे की पीढ़ी न कर दूँ ?
पापी को परमेश्वर क्षमा करना चाहता है, परन्तु क्योंकि वह प्रेमी परमेश्वर है इसलिए वह पाप को तुच्छ नहीं जानता। वह इसको अनदेखा नहीं कर सकता।उसका पाप को क्षमा करने का कार्य उसके प्रेम पर आधारित है और इसमें पाप को ताड़ना देना सम्मिलित है। इसी समय क्योंकि वह प्रेमी परमेश्वर है इसलिए वह उध्दार का एक मार्ग प्रस्तुत करता है जिससे कि पापियों को अपने पाप का दण्ड न उठाना पड़े। उसने यीशु मसीह के रूप में देहधारण करके अर्थात् मनुष्य बनकर और क्रूस पर दण्ड सहकर इस कार्य को पूरा कर दिया -- Jn1:14-18, 3:16. Ro5:8, Gal2:20, 1Jn4:10.
इसी प्रेम के कारण परमेश्वर अपनी सन्तान को ताड़ना देकर सुधारता है जिससे वे लोग ऐसे बन जाएँ जैसा वह अपनी उत्तम बुध्दि के अनुसार उन्हें देखना चाहता है।परमेश्वर का प्रेम मनुष्य के प्रति अधिकार सहित प्रेम है, इसके प्रत्युत्तर में मनुष्य अपना प्रेम परमेश्वर की आज्ञापालन करके प्रकट कर सकता है - Jn14:15,21; 16:27; 1Jn2:4-5; 4:9; 5:23.
परमेश्वर की ताड़ना हमें भली नहीं परन्तु दुःखदायी प्रतीत हो सकता है परन्तु परमेश्वर को ताड़ना देने से मना करने का अर्थ है कि उसे अधिक प्रेम करने से रोकना - Heb12:5-11.
प्रेम अपने प्रेमी से सिध्दता देखना चाहता है और वह इससे कुछ कम से सन्तुष्ट नहीं होता -- Eph5:25-27; James4:5.
मसीहियों को अपने प्रति होनेवाले व्यवहार को परमेश्वर के प्रेम की अभिव्यक्ति समझना चाहिए और उसे अपने लिए परमेश्वर का उद्देश समझना चाहिए परमेश्वर का अपने पुत्र को हमारे लिए देना एक आश्वासन है कि उसके और भी वरदान उसके प्रेम की अभिव्यक्ति होंगे -
Ro8:28,32.
उसका प्रेम अनन्त और असीम है। विश्वास को जीवन और मृत्यु में भी इस प्रेम से कोई अलग नहीं कर सकता है - Jer31:3, Ro8:35-39.
Eph3:18-19(मसीह का प्रेम) -
18 सब पवित्र लोगों के साथ भली भांति समझने की शक्ति पाओ; कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है।
19 और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है, कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ।
परमेश्वर के गुण -
1. सरलता :-> अमिश्रित,जठिलताहीन, अविभाज्य।
2. एकता :-> परमेश्वर एक है।
3. असीमितता -> जिनका न पतन है न अन्त।
4. सनातन :-> वह जो समय की चाल से स्वतंत्र है।
5. अपरिवर्तनीय :-> परमेश्वर न बदलता है और न बदल सकता है।
6. सर्वव्यापकता(सर्वाधिकारिता) :-> परमेश्वर सब जगह है।
7. सार्वभौमिकता :-> परमेश्वर ही सर्वोच्च शासक है।
8. सर्वज्ञता :-> सब वास्तविक और संभावित बातों को परमेश्वर जानता है।
9. सर्वसामर्थता :-> समस्त सामर्थ।
10. न्याय :-> नैतिक निष्पक्षता।
11. प्रेम :-> परमेश्वर अपने स्वयं की इच्छा के प्रदर्शन में सर्वोच्च भलाई को ढूँढ़ता है।
12. सत्य:-> परमेश्वर के द्वारा निरूपित सब बातों में एकमति एवं अनुरूपता।
13. स्वाधीनता :-> अपनी सृष्टि से स्वतंत्रता।
14. पवित्रता :-> अलग किया हुआ और शुध्द।
मनुष्य का प्रेम -
मनुष्य का यह कर्त्तव्य है कि वह परमेश्वर से अपने सम्पूर्ण मन व अस्तित्त्व से प्रेम रखें।
उसे परमेश्वर के प्रति भक्ति की भावना रखनी चाहिए तथा उसकी आज्ञाओं का पालन करना चाहिए - Deut6:5,10:12 ; Ps18:1-3 ; Mt22:37.
इस प्रकार की भक्ति और आज्ञापालन के फलस्वरूप वह परमेश्वर के प्रेम के अर्थ को और अधिक समझेगा और परमेश्वर की संगति के महान आनन्द का अनुभव करेगा - Ps116:1-4; Jn14:21-23 ; 1Co2:9; 8:3; 1Pe1:8; 1Jn4:7,12, 19.
परमेश्वर के प्रति प्रेम कभी कभी कठिनाइयाँ उत्पन्न कर सकता है। जब लोग अन्य बातों,इच्छाओं और अभिलाषाओं से अधिक परमेश्वर के प्रति भक्तिभाव रखते हैं तो कुछ समस्याएँ व कठिनाइयाँ उठ खड़ी होती है - Mt6:24, 10:37-39, 1Jn2:15-17.
सच्चे प्रेम में त्याग निहित होता है - Eph 5:25, Ro14:15, 1Co13:4-7.
परमेश्वर से सम्बन्ध रखने के लिए विश्वास और आज्ञापालन भी वैसी ही प्रथम आवश्यकता है जैसे प्रेम। यदि लोग दावा करते हैं कि वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं तो वे अपने आपको धोखा देते हैं - Jn14:15,24; Gal5:6; James2:5.
इसी प्रकार यदि वे परमेश्वर से प्रेम करने का
दावा करते हैं और अपने पड़ोसी से प्रेम नहीं करते तो अपने आपको धोखा देते हैं -Ro13:10; 1Jn3:10,17; 4:8,20.
मसीहियों को दूसरों की भी वैसी ही प्रेमपूर्वक चिन्ता करनी चाहिए जैसी वे अपनी चिन्ता करते हैं - Mt22:39; Php2:4.
प्रेम उन लोगों की विशेषता है जिनमें परमेश्वर का आत्मा निवास करता है क्योंकि जब वे मसीह में परमेश्वर का उध्दार ग्रहण करते हैं तो पवित्र आत्मा उनमें परमेश्वर का प्रेम भर देता है -
Jn15:9-10; Ro5:5; Ga5:22; Eph3:17-19 ; Eph5:12 .
मसीहियों को सब के साथ ऐसा प्रेम करना चाहिए और अपनी साथी मसीहियों के प्रति इसे विशेष रूप से करना चाहिए - Jn13:34; 15:12-17; Ga6:10; 1Pe3:8; 1Jn3:16-17.
इस प्रकार का प्रेम प्रमाणित करता है कि वे सचमुच मसीही हैं और यह उन्हें आत्मिक उन्नति में सहायता पहुँचाता है - Jn4:12,17.
परमेश्वर की कलीसिया का आधार प्रेम है और इसी प्रकार यह प्रेम के द्वारा बढ़ती है। मसीहियों में प्रेम की एकता दुनिया के सम्मुख यह प्रमाण होगा कि मसीहियत के दावे सच्चे हैं - - Jn17:20-23.
यद्यपि परमेश्वर चाहता है कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें फिर भी लोगों को इसे कानूनी आवश्यकता के समान नहीं समझना चाहिए।उन्हें सच्चाई के साथ उचित व्यवहार करना चाहिए, चाहे उनमें किसी विशेष व्यक्ति के प्रति प्रेम की भावना न हो फिर भी उन्हें उससे अच्छा करना चाहिए - Ex23:4-5; Lev19:17-18. Ro12:9; 1Co13:4-7; 1Ti1:5.
हमारे भले कार्य भी यदि वे सच्चे प्रेम के कारण न किए जाएँ तो वे परमेश्वर की दृष्टि में निरर्थक हो सकते हैं - 1Co13:1-3; Rev2:2-4.
दृढ़ प्रेम -
पुराना नियम में वह विशेष प्रेम जो परमेश्वर इस्राएल से रखता था उसे इब्रानी शब्द "कसद" कहा गया है । इसका अनुवाद दृढ़ प्रेम, निरन्तर प्रेम, तरस, दयालुता व करूणा आदि भी किया गया है -
Ge32:10
Ge39:21- पर यहोवा यूसुफ के संग संग रहा, और उस पर करूणा की, और बन्दीगृह के दरोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई।
Ps100:5 - क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करूणा सदा के लिये, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
Ps118:1-3-
1 हे जाति जाति के सब लोगों यहोवा की स्तुति करो! हे राज्य राज्य के सब लोगो, उसकी प्रशंसा करो!क्योंकि उसकी करूणा हमारे ऊपर प्रबल हुई है; और यहोवा की सच्चाई सदा की है याह की स्तुति करो! यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है!
2 इस्राएल कहे, उसकी करूणा सदा की है।
3 हारून का घराना कहे, उसकी करूणा सदा की है।
Isa54:10- चाहे पहाड़ हट जाएँ और पहाडिय़ाँ टल जाएँ, तौभी मेरी करूणा तुझ पर से कभी न हटेगी, और मेरी शान्तिदायक वाचा न टलेगी, यहोवा, जो तुझ पर दया करता है, उसका यही वचन है।
Hosea2:19-
Micca7:18-
यह "कसद"-- यह विश्वासयोग्य भक्ति, यह सच्चा प्रेम - इसकी इच्छा परमेश्वर अपने लोगों से सबसे अधिक करता है -
Hosea6:6 -
6 क्योंकि मैं बलिदान से नहीं, स्थिर प्रेम ही से प्रसन्न होता हूँ, और होमबलियों से अधिक यह चाहता हूँ कि लोग परमेश्वर का ज्ञान रखें।
यह प्रेम के उस गुण को भी प्रकट करता है जिसे परमेश्वर अपने लोगों में देखना चाहता है जिसके द्वारा वे दूसरों से प्रेम करें -
Prov3:3-4 -
3 कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएँ; वरन उन को अपने गले का हार बनाना, और अपनी हृदय रूपी पटिया पर लिखना।
4 और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनों का अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा।
Hosea12:6 - इसलिये तू अपने परमेश्वर की ओर फिर; कृपा और न्याय के काम करता रह, और अपने परमेश्वर की बाट निरन्तर जोहता रह।
Micca6:8 - हे मनुष्य, वह तुझे बता चुका है कि अच्छा क्या है; और यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले ?
प्रेम , दूसरों के प्रति -
Deut6:5(महा आज्ञा) -
5 तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना।
Deut7:9(प्रभु के अपने लोग) -
9 इसलिये जान रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा ही परमेश्वर है, वह विश्वासयोग्य ईश्वर है; और जो उस से प्रेम रखते और उसकी आज्ञाएं मानते हैं
उनके साथ वह हजार पीढ़ी तक अपनी वाचा पालता, और उन पर करूणा करता रहता है;
Ps31:23(परमेश्वर में भरोसे की प्रार्थना) -
23 हे यहोवा के सब भक्तों उससे प्रेम रखो! यहोवा सच्चे लोगों की तो रक्षा करता है, परन्तु जो अहंकार करता है, उसको वह भली भांति बदला देता है।
Ps73:25-26(परमेश्वर का न्याय) -
25 स्वर्ग में मेरा और कौन है? तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता।
26 मेरे हृदय और मन दोनों तो हार गए हैं, परन्तु परमेश्वर सर्वदा के लिये मेरा भाग और मेरे हृदय की चट्टान बना है।
Mk12:29-33(सबसे बड़ी आज्ञा) -
29 यीशु ने उसे उत्तर दिया, सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है; हे इस्राएल सुन; प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है।
30 और तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।
31 और दूसरी यह है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना: इस से बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।
32 शास्त्री ने उस से कहा; हे गुरू, बहुत ठीक! तू ने सच कहा, कि वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं।
33 और उस से सारे मन और सारी बुद्धि और सारे प्राण और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमों और बलिदानों से बढ़कर है।
Lk 11:42(शास्त्रियों और फरीसियों की भर्त्सना) -
42 पर हे फरीसियों, तुम पर हाय ! तुम पोदीने और सुदाब का, और सब भांति के साग-पात का दसवां अंश देते हो, परन्तु न्याय को और परमेश्वर के प्रेम को टाल देते हो: चाहिए तो था कि इन्हें भी करते रहते और उन्हें भी न छोड़ते।
Ro5:5(परमेश्वर से मेल ) -
5 और आशा से लज्ज़ा नहीं होती, क्योंकि पवित्र
आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है।
1Co8:3 -
3 परन्तु यदि कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्वर पहिचानता है।
1Co16:21-22 (अंतिम आदेश) -
21 मुझ पौलुस का अपने हाथ का लिखा हुआ नमस्कार: यदि कोई प्रभु से प्रेम न रखे तो वह स्त्रापित हो।
22 हमारा प्रभु आनेवाला है।
2Th3:5(प्रार्थना करने का अनुरोध) -
5 परमेश्वर के प्रेम और मसीह के धीरज की ओर प्रभु तुम्हारे मन की अगुवाई करे॥
2Ti1:7(झूठे शिक्षकों के विरूध्द चेतावनी)-
7 क्योंकि परमेश्वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है।
1Jn4:19-5:3(भ्रातृप्रेम) -
19 हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।
20 यदि कोई कहे, कि मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूं; और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है: क्योंकि जो अपने भाई से, जिस उस ने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता।
21 और उस से हमें यह आज्ञा मिली है, कि जो कोई अपने परमेश्वर से प्रेम रखता है, वह अपने
भाई से भी प्रेम रखे।
1Jn5:1-3 -
1 जिसका यह विश्वास है कि यीशु ही मसीह है, वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है और जो कोई उत्पन्न करने वाले से प्रेम रखता है, वह उस से भी प्रेम रखता है, जो उस से उत्पन्न हुआ है।
2 जब हम परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, और उस की आज्ञाओं को मानते हैं, तो इसी से हम जानते हैं, कि परमेश्वर की सन्तानों से प्रेम रखते हैं।
3 और परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएँ कठिन नहीं।
Ex20:6(आज्ञापालन) -
6 और जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हजारों पर करूणा किया करता हूँ।
Deut10:12( परमेश्वर की माँग) -
12 और अब, हे इस्राएल, तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और उसके सारे मार्गों पर चले, उस से प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करे।
Joshua20:5 -
5 और यदि खून का पलटा लेनेवाला उसका पीछा करे, तो वे यह जानकर कि उसने अपने
पड़ोसी को बिना जाने, और पहिले उस से बिना बैर रखे मारा, उस खूनी को उसके हाथ में न दें।
Joshua22:5 -
5 केवल इस बात की पूरी चौकसी करना कि जो जो आज्ञा और व्यवस्था यहोवा के दास मूसा ने तुम को दी है उसको मानकर अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो, उसके सारे मार्गों पर चलो, उसकी आज्ञाएँ मानों, उसकी भक्ति मे लौलीन रहो, और अपने सारे मन और सारे प्राण से उसकी सेवा करो।
Jn16:27 -
27 क्योंकि पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है, इसलिये कि तुम ने मुझ से प्रीति रखी है, और
यह भी प्रतीति की है, कि मैं पिता कि ओर से निकल आया।
यह यूहन्ना के महानतम स्थलों में से एक है। परमेश्वर प्रेम है - 1Jn4:8,16.
प्रेम परमेश्वर का सर्वोत्तम गुण है। परमेश्वर को वे ही जान सकते हैं जो प्रेम में जीवन व्यतीत करते हैं - 1Jn4:16.
परन्तु यदि उसने पहिले हमसे प्रेम न किया होता तो हम न तो यह जान पाते कि उससे कैसे प्रेम करें और न ही उससे प्रेम करने में सक्षम होते - 1Jn4:19.
यदि हम आपस में प्रेम रखें तो परमेश्वर हमारे साथ रहता है और उसका प्रेम ।हममें सिध्द व परिपक्व होता जाता है - 1Jn4:12.
1Jn4:10- प्रायश्चित शब्द का अर्थ --
प्रायश्चित करें या पाप-शोधन करें।प्रायश्चित,परमेश्वर के क्रोध का मसीह की मृत्यु से शान्त होने की ओर संकेत करता है -
Ro3:25 -
25 उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित्त ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से आनाकानी की; उन के विषय में वह अपनी
धामिर्कता प्रगट करे।
1Jn2:2 -
2 और वही हमारे पापों का प्रायश्चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन सारे जगत के पापों का भी।
पाप-शोधन, उस बलिदान के द्वारा पाप के दूर किये जाने पर बल देता है जिसने परमेश्वर को सन्तुष्ट किया। पाप, परमेश्वर के साथ सामान्य संबंधों में बाधा डालता है, पाप-शोधन, पाप को हटाकर संबंध को पुनर्स्थापित करता है।
1Jn4:12 - परमेश्वर को कभी किसी ने नहीें देखा ---- के संबंध में निम्न तथ्य है -
Jn1:18 - परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया।
Jn4:24 - परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसके भजन करने वाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें।
परमेश्वर को उसके तत्त्व में उसके आत्मा के रूप में किसी मनुष्य ने कभी नहीं देखा।परन्तु परमेश्वर ने दृश्य रूप धारण किया, जिसे कुछ मनुष्यों ने पुराना नियम के समय में देखा -
Ge32:30 -
30 तब याकूब ने यह कह कर उस स्थान का
नाम पनीएल रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है।
Ex24:9-10 -
9 तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्त्राएलियों के सत्तर पुरनिए ऊपर गए,
10 और इस्त्राएल के परमेश्वर का दर्शन किया; और उसके चरणों के तले नीलमणि का चबूतरा सा कुछ था, जो आकाश के तुल्य ही स्वच्छ था।
Judges13:22 -
22 तब मानोह ने अपनी पत्नी से कहा, हम निश्चय मर जाएंगे, क्योंकि हम ने परमेश्वर का दर्शन पाया है।
Isa6:1 -
1 जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया।
Dan7:9 -
9 मैं ने देखते देखते अन्त में क्या देखा, कि सिंहासन रखे गए, और कोई अति प्राचीन विराजमान हुआ; उसका वस्त्र हिम सा उजला, और सिर के बाल निर्मल ऊन सरीखे थे; उसका सिंहासन अग्निमय और उसके पहिये धधकती हुई आग के से देख पड़ते थे।
और प्रभु यीशु मसीह में मनुष्यों ने परमेश्वर को देखा - Jn14:8-9.
मसीह, जीवन देते हैं -Jn1:12-
12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।
मसीह, प्रकट करते है - Jn1:14,18 -
14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।
18 परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया।
मसीह, अनुग्रह और सच्चाई देते हैं - Jn1:16-17 -
16 क्योंकि उस की परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात अनुग्रह पर अनुग्रह।
17 इसलिये कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई; परन्तु अनुग्रह, और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुंची।
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