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यीशु ने कहा , "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता ।" - योहन्ना 14:6. Jesus answered, “I am the way and the truth and the life. No one comes to the Father except through me. - John 14:6 .
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यीशु ही मार्ग है !
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मार्ग [ यीशु की शिक्षा] -
बाइबल, हमें लोगों के व्यवहार और जीवन बिताने की रीति को उनका 'मार्ग' या 'चलना' बतलाती है।ये दोनों ही अभिव्यक्तियाँ एक दूसरे से संबंधित है। लोग अपने मार्ग में अपने चलन से बढ़ते हैं -
Lev26:23-24 -
1Ki6:12 -
2Ki20:3 -
Prov8:20 ; 20:7 -
Ac9:31 -
Eph2:10 ; 5:2 -
1Jn2:11 -
चलना :---
बाइबल बार -बार 'चलना' शब्द का प्रयोग करके लोगों के उस जीवन में परिवर्तन का अन्तर बतलाती है कि मसीही होने से पूर्व उनका जीवन कैसा था और फिर मसीह में नया जीवन पाकर उनका जीवन कैसा हो गया -
Ro6:4 -
Eph2:1-2; 5:8 -
Col3:7-8 -
उनका नया जीवन देह के द्वारा नही वरन् आत्मा के द्वारा नियन्त्रित था -
Ro8:4 -
Ga5:16,25 -
इस जीवन की विशेषता स्वार्थ से नहीं वरन् प्रेम से जानी जाती है -
Ro14:15,19 -
और यह जीवन अपने आस-पास की दृश साम्रगी से नहीं वरन् उस व्यक्ति से प्रभावित होता है जिसमें वह विश्वास करता है -
Jn12:35 -
2Co5:7 -
यह पाप का आज्ञाकारी नहीं वरन् परमेश्वर की सहभागिता में जीवन बिताता है -
1Jn1:6-7 -
और यह अपने साथियों के नमूने के अनुसार नहीं वरन् मसीह के जीवन के नमूने के अनुसार होता है -
1Jn2:6,11 -
2Jn6 -
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आरम्भिक कलीसिया के समय मसीहियत को 'पथ' या मार्ग कहा जाता था -
Ac9:2; 19:2,23; 22:4; 24:14,22 -
इसका कारण सम्भवत: यह था कि मसीही लोग अपने नए जीवन को "प्रभु का मार्ग या जीवन का मार्ग या उध्दार का मार्ग" कहते थे -
j Mt7:13-14 -
Lk20:21 -
Jn1:23 ; 14:6 -
Ac 16:17 -
यह प्रयोग पुराना नियम के विश्वासियों में भी साधारण रूप से प्रचलित था -
Ps16:11; 18:21 ; 30:32 ;27:11 -
इसलिए कि परमेश्वर का मार्ग , सत्य , जीवन और सत्य आनन्द की ओर ले जाता था अत: उस मार्ग का अर्थ परमेश्वर की इच्छा और परमेश्वर की आज्ञाएँ हो सकता था -
Job21:14 -
Ps37:23-24; 119:27,37 -
Jer5:4 -
Mt22:16 -
Ro11:33 -
Rev15:3 -
यह शब्द भी साधारणतः व्यक्ति के जीवन के व्यवहार को बतला सकता है। उस विचार से प्राय: धार्मिकता के मार्ग और दुष्टता के मार्ग में अन्तर किया जा सकता है -
Ps1:1,6; 37:5 -
Prov 4:18-19 ; 14:12 -
Jer7:3 -
Ro3:16 -
1Co12:31 -
James5:20-
यीशु ही मार्ग है ! परमेश्वर पिता के पास पहुँचने का एकमात्र मार्ग यीशु मसीह ही है ।
मार्ग (TheWay)=यीशु की आज्ञा एवं शिक्षा !
यीशु की आज्ञाएँ और शिक्षाओं को पालन करना व मानना ही हमारे जीवन का पथ प्रदर्शक व मार्गदर्शक है।
यीशु मसीह की आज्ञाएँ (Commands);--
इस प्रकार धर्म-ग्रन्थ में लिखा है -
1.सबसे बड़ी आज्ञा( पहली आज्ञा ) -
यीशु ने कहा, अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हदय ,अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो। - Mt.22:37.
2. दूसरी आज्ञा इसी के सदृश -
अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। - Mt.22 : 39.
3. यीशु की निजी आज्ञा -
मैं तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ - तुम एक दूसरे को प्यार करो। जिस प्रकार मैंने तुम लोगों को प्यार किया, उसी प्रकार तुम भी एक दूसरे को प्यार करो। यदि तुम एक दूसरे को प्यार करोगे तो उसी से सब लोग यह जान जायेंगे कि तुम मेरे शिष्य हो। - Jn.13:34-35.
4. जीवन में प्रवेश करने का मार्ग -- आज्ञाओं का पालन करना---
Mt.19:19 -
हत्या मत करो।
व्यभिचार मत करो।
चोरी मत करो।
झूठी गवाही मत दो।
अपने माता-पिता का आदर करो, और
अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।
5. छोटा कटेकिसम का 10 आज्ञा का पालन तथा परमेश्वर ने मूसा नबी के द्वारा शैने पर्वत से सामाजिक नैतिक व्यवस्था के सुधार के लिए दिया गया है - का पालन करें ।- Ex20:12-17.
यीशु नाम के द्वारा उद्धार -
Acts 4:12 -
11 यह वही पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना और वह कोने के सिरे का पत्थर हो गया।
12 और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें।
आत्मिक बलिदान चढ़ाना -
1Pe2:4 -
3 यदि तुम ने प्रभु की कृपा का स्वाद चख लिया है।
4 उसके पास आकर, जिसे मनुष्यों ने तो निकम्मा ठहराया, परन्तु परमेश्वर के निकट चुना हुआ, और बहुमूल्य जीवता पत्थर है।
5 तुम भी आप जीवते पत्थरों की नाईं आत्मिक घर बनते जाते हो, जिस से याजकों का पवित्र समाज बन कर, ऐसे आत्मिक बलिदान चढ़ाओ, जो यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर को ग्राह्य हों।
यीशु ,स्वर्ग का मार्ग दिखाने के लिए स्वर्ग से उतरा -
Jn3;13 -
12 जब मैं ने तुम से पृथ्वी की बातें कहीं, और तुम प्रतीति नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूँ , तो फिर क्योंकर प्रतीति करोगे?
13 और कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है।
14 और जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊंचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊंचे पर चढ़ाया जाए।
15 ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्त जीवन पाए॥
निष्पाप -
Heb4:15 -
15 क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; वरन वह सब बातों में हमारी नाईं परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला।
पापों से प्रायश्चित करना -
1Jn2:2 -
1 हे मेरे बालकों, मैं ये बातें तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात धार्मिक यीशु मसीह।
2 और वही हमारे पापों का प्रायश्चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन सारे जगत के पापों का भी।
3 यदि हम उस की आज्ञाओं को मानेंगे, तो इस से हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं।
सच्चाई को पहिचानना-
Heb10:26-
26 क्योंकि सच्चाई की पहिचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझ कर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं।
व्यवस्था को पूरा करने आया -
Mt5:17-
17 यह न समझो, कि मैं व्यवस्था था भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूं।
18 लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूं, क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
19 इसलिये जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सब से छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उन का पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।
दासत्व से छुटकारा -
Heb2:14-15 -
14 इसलिये जब कि लड़के मांस और लोहू के भागी हैं, तो वह आप भी उन के समान उन का सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात शैतान को निकम्मा कर दे।
15 और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फंसे थे, उन्हें छुड़ा ले।
यीशु ही एकमात्र मध्यस्थ है -
1Ti2:5 -
4 वह यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहिचान लें।
5 क्योंकि परमेश्वर एक ही है: और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है।
6 जिस ने अपने आप को सब के छुटकारे के दाम में दे दिया; ताकि उस की गवाही ठीक समयों पर दी जाए।
यीशु नाम सब नामों में श्रेष्ठ है -
Php2:9 -
6 जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की
वस्तु न समझा।
7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
8 और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
9 इस कारण परमेश्वर ने उस को अति महान भी किया, और उस को वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है 10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
न्यायकर्ता -
Mt7:21-27 -
21 जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।
22 उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?
23 तब मैं उन से खुलकर कह दूँगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करने वालों, मेरे पास से चले जाओ।
24 इसलिये जो कोई मेरी ये बातें सुनकर उन्हें
मानता है वह उस बुद्धिमान मनुष्य की नाईं ठहरेगा जिस ने अपना घर चट्टान पर बनाया।
25 और मेंह बरसा और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उस की नेव चट्टान पर डाली गई थी।
26 परन्तु जो कोई मेरी ये बातें सुनता है और उन पर नहीं चलता वह उस निर्बुद्धि मनुष्य की नाईं ठहरेगा जिस ने अपना घर बालू पर बनाया।
27 और मेंह बरसा, और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं और वह गिरकर सत्यानाश हो गया॥
आत्मा जीवनदायक है -
Jn6:63 -
62 और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहाँ वह पहिले था, वहां ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा?
63 आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं: जो बातें मैं ने तुम से कहीं हैं वे आत्मा है, और जीवन भी हैं।
64 परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते: क्योंकि यीशु तो पहिले ही से जानता था कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं और कौन मुझे पकड़वाएगा।
Jn3:14-15 -
यीशु स्वर्ग का द्वार है -
Jn10:7 -
7 तब यीशु ने उन से फिर कहा, मैं तुम से सच
सच कहता हूं, कि भेड़ों का द्वार मैं हूं।
8 जितने मुझ से पहिले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ों ने उन की न सुनी।
9 द्वार मैं हूं: यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया जाया करेगा और चारा पाएगा।
10 चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।
11 अच्छा चरवाहा मैं हूं; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है।
जीवन की रोटी -
Jn6:35 -
35 यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा।
पुनरुत्थान और जीवन -
Jn11:25 -
25 यीशु ने उस से कहा, पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।
Ac4:12 -
पापों से क्षमा -
Ac13:38-39 -
38 इसलिये, हे भाइयो; तुम जान लो कि इसी के द्वारा पापों की क्षमा का समाचार तुम्हें दिया जाता है।
39 और जिन बातों से तुम मूसा की व्यवस्था के द्वारा निर्दोष नहीं ठहर सकते थे, उन्हीं सब से हर एक विश्वास करने वाला उसके द्वारा निर्दोष ठहरता है।
अन्धकार में ज्योति -
1Jn2:12 -
10 जो कोई अपने भाई से प्रेम रखता है, वह ज्योति में रहता है, और ठोकर नहीं खा सकता।
11 पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अन्धकार में है, और अन्धकार में चलता है; और नहीं जानता, कि कहां जाता है, क्योंकि अन्धकार ने उस की आंखे अन्धी कर दी हैं॥
12 हे बालकों, मैं तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि उसके नाम से तुम्हारे पाप क्षमा हुए।
अनन्त जीवन का पहचान -
Jn17:3 -
2 क्योंकि तू ने उस को सब प्राणियों पर अधिकार दिया, कि जिन्हें तू ने उस को दिया है, उन सब को वह अनन्त जीवन दे।
3 और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जाने।
यीशु पर विश्वास से धार्मिकता -
Ro3:22 -
21 पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की वह धामिर्कता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं।
22 अर्थात परमेश्वर की वह धामिर्कता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने
वालों के लिये है; क्योंकि कुछ भेद नहीं।
23 इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।
24 परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं।
यीशु में अनन्त जीवन है -
Jn6:67-69 -
65 और उस ने कहा, इसी लिये मैं ने तुम से कहा था कि जब तक किसी को पिता की ओर यह वरदान न दिया जाए तक तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।
66 इस पर उसके चेलों में से बहुतेरे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले।
67 तब यीशु ने उन बारहों से कहा, क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?
68 शमौन पतरस ने उस को उत्तर दिया, कि हे प्रभु हम किस के पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।
69 और हम ने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।
70 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, क्या मैं ने तुम बारहों को नहीं चुन लिया? तौभी तुम में से एक व्यक्ति शैतान है। ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
यीशु ही सत्य है !
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सत्य [ यीशु का पुनरुत्थान]-
बाइबल में 'सत्य' शब्द के कई अर्थ है इसमें से कुछ वर्तमान में भी प्रयोग में आते हैं। एक व्यक्ति या वस्तु को इस अर्थ में सत्य कहा जा सकता है कि वह झूठ का उल्टा है अर्थात् जो झूठा नहीं है वह सत्य है -
Deu13:14 -
Prov12- Ro9:1 - यह सत्य वह है जो झूठ का विलोम है -
Ge42:16 -
Php1:18 -
1Jn3:18 -
जो वस्तु छाया या तस्वीर के विरूध्द है, वास्तविक है उसे भी सत्य कहा जा सकता है -
Jn1:9; 15:1 -
Heb9:24 -
बाइबल में 'सत्य' शब्द का प्रयोग प्रायः ईमानदार सच्चा और विश्वासयोग्य के लिए किया गया है -
Ge24:49; 47:29 -
Ps57:10 -
Rev22:6 -
परमेश्वर सत्य है -
ये सभी अर्थ किसी न किसी प्रकार परमेश्वर के लिए लागू होते हैं -
Ps19:9 -
Jer10:9-10; 42:5 -
Micah6:20 -
Ro3:4 -
1Th1:9 -
Rev16:7 -
सत्य परमेश्वर का स्वभाव है। वह मूल सत्य है अर्थात् वह प्रत्येक वस्तु का मूल स्त्रोत है -
Jn1:3-4,14; 8:26 -
Ro1:25 -
परमेश्वर ने देहधारण की; वह यीशु मसीह बना। अतः यीशु मनुष्य की देह में सत्य हे -
Jn14:6 -
Eph4:21 -
Rev3:7 -
जैसा 'पुराना नियम' परमेश्वर के सत्य के बारे में कहता है या इसी से सम्बन्धित शब्द "आमीन" परमेश्वर के लिए कहता है -
Isa65:16 -
उसी प्रकार "नया नियम" यीशु को आमीन से सम्बन्धित बतलाता है। यीशु ही में परमेश्वर का सत्य सिध्दता से अभिव्यक्त किया गया है और उसी के द्वारा परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ सिध्दता से पूरी होती है -
Jn1:17 -
2Co1:20 -
Rev3:14 -
यीशु ने बार बार सत्य की साक्षी दी और जो उसे जानने के लिए आते हैं वे सत्य को जानने के लिए आते हैं।उसी के द्वारा वे पाप के बन्धन से स्वतन्त्र होते हैं, और सच्चे परमेश्वर के जीवित सम्बन्ध में आते हैं और परमेश्वर का पवित्र आत्मा उनमें निवास करता है -
Jn8:32; 14:17; 16:13; 17:3 -
2Jn1:2 -
यीशु द्वारा कहा गया सत्य लोगों को बचाता है क्योंकि यह यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर की पूर्ण उध्दार की क्रिया का प्रतिनिधित्व करता है। यीशु का जीवन और उसकी शिक्षा परमेश्वर के सत्य के प्रकटीकरण और उसके पूरा होने की ओर संकेत करती थी -
Jn1:17; 8:32,4-46; 17:17,19; 18:37 -
इससे स्वाभाविक रूप से "सत्य" का अर्थ यह हुआ कि मसीही शिक्षा पूर्णतः सत्य की शिक्षा है -
2Co4:2 -
Gal2:5; 5:7 -
Eph1:13 -
1Ti2:4 -
2Ti2:15 -
"पुराना नियम" के सत्य के शब्द के अर्थ के समान परमेश्वर के प्रकट वचन को भी सत्य कहा जा सकता है -
Ps25:5; 86:11; 119:142 -
मसीही स्वभाव -
सत्य उन लोगों के जीवनों के हर पहलू में दिखाई देना चाहिए जो उसके अधीन हो जाते हैं, जो स्वयं सत्य है-
Ge18:21-
Ps26:3 -
Jn3:21 -
2Co13:8 -
Eph4:15,25; 6:14 -
Tit1:2 -
Heb6:18 -
3Jn:4 -
सत्य के प्रति आज्ञाकारी होने के कारण उन्हें सत्य के प्रति पूरी ईमानदारी सच्चाई और विश्वासयोग्यता के साथ स्वामिभक्त भी होना चाहिए -
1Co5:8 -
2Co4:2 -
Gal 4:16 -
1Pe1:22 -
मसीहियों के पास परमेश्वर का सत्य है परन्तु इस कारण वे यह दावा नहीं कर सकते कि उनके अपने सिध्दांत और विचार पूर्ण अधिकृत है।मनुष्य का मस्तिष्क सीमित है और सब लोगों के समान वह पाप से प्रभावित है। केवल परमेश्वर ही सम्पूर्ण सत्य स्वामी है -
1Co8:2 -
Isa55:8-9 -
Ro11:33-34 -
सत्य (The Truth)
यीशु की क्रूस-मृत्यु ही हमारे उद्धार व मुक्ति का स्त्रोत है । यीशु की क्रूस-मृत्यु पर विश्वास करके ही हम अनन्त जीवन की सत्य को जानने पाते है जो हमें परमेश्वर पिता के स्वर्ग राज्य तक पहुँचाने का प्रतिज्ञा करता है।
1.सच सच कहना -
Prov.12:17,19 -
17 जो सच बोलता है, वह धर्म प्रगट करता है, परन्तु जो झूठी साक्षी देता, वह छल प्रगट करता है।
18 ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच विचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।
19 सच्चाई सदा बनी रहेगी, परन्तु झूठ पल ही भर का होता है।
2.बुराई से घृणा - Isa59:14,15 -
14 न्याय तो पीछे हटाया गया और धर्म दूर खड़ा रह गया; सच्चाई बाजार में गिर पड़ी और सीधाई प्रवेश नहीं करने पाती।
15 हाँ, सच्चाई खोई, और जो बुराई से भागता है सो शिकार हो जाता है॥ यह देखकर यहोवा ने बुरा माना, क्योंकि न्याय जाता रहा,
3.सच से मत डिगो - Gal2:5 -
5 उन के आधीन होना हम ने एक घड़ी भर न माना, इसलिये कि सुसमाचार की सच्चाई तुम में
बनी रहे।
4.सत्यता की खोज में लगे रहो - 2Ti3:7 - 1 पर यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। 2 क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालने वाले, कृतघ्न, अपवित्र। 3 दयारिहत, क्षमारिहत, दोष लगाने वाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी।
4 विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं वरन सुखविलास ही के चाहने वाले होंगे।
5 वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे; ऐसों से परे रहना।
6 इन्हीं में से वे लोग हैं, जो घरों में दबे पांव घुस आते हैं और छिछौरी स्त्रियों को वश में कर लेते हैं, जो पापों से दबी और हर प्रकार की अभिलाषाओं के वश में हैं।
7 और सदा सीखती तो रहती हैं पर सत्य की पहिचान तक कभी नहीं पहुंचतीं।
8 और जैसे यन्नेस और यम्ब्रेस ने मूसा का विरोध किया था वैसे ही ये भी सत्य का विरोध करते हैं: ये तो ऐसे मनुष्य हैं, जिन की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है और वे विश्वास के विषय में निकम्मे हैं।
5.हर बातों में सावधान रहें - 2Ti 4:4 :-
3 क्योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा
उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे।
4 और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे।
5 पर तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर।
6. Jn14:6 -मार्ग और सच्चाई और जीवन :-
6 यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।
यीशु ही सत्य है ! यीशु हमारे पापों का बोझ अपने ऊपर उठाकर क्रूस पर अपना प्राण न्यौछावर कर दिया ताकि हम बच जायें।
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यीशु ही जीवन है !
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जीवन [The Life = अनन्त जीवन ] -
परमेश्वर सब जीवन का स्त्रोत और नियन्त्रक है। वह अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिये इसे अस्तित्व में लाता, बनाए रखता व सम्भालता तथा इसका अन्त भी करता है -
Ge2:7 -
Nu16:22 -
Deu32:39 -
Job34:14-15 -
Ps36:9 -
Ecc12:7 -
Mt10:28 -
Lk12:20 -
1Ti6:13 -
मानवीय जीवन विशेष रूप से पवित्र है क्योंकि मनुष्य का अस्तित्व परमेश्वर के स्वभाव के अनुसार है। इसलिए इस्राएली व्यवस्था के अनुसार जो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की हत्या कर देता था वह परमेश्वर द्वारा दिए गए जीवन के वरदान के लिए अयोग्य समझा जाता था इसलिये उसे मृत्यु दण्ड दिया जाता था -
Ge9:5-6 -
Nu35:33 -
व्यवस्था के अनुसार जब लोग भोजन हेतु भी किसी पशु को जान से मारते थे तब भी उन्हें उचित रीति से मानना पड़ता था कि प्राण या जीवन का स्वामी परमेश्वर है -
मनुष्य का जीवन -
यद्यपि मनुष्य के भौतिक जीवन और उसके आत्मिक जीवन में अन्तर करना साधारण बात है फिर भी परमेश्वर की इच्छा यह है कि मनुष्य के जीवन के सभी पहलुओं में एकता और सामन्जस्य हो।परमेश्वर चाहता है कि मनुष्य अपने भौतिक जीवन का पूरा-पूरा आनन्द उठाएँ। परन्तु ऐसा वह अपने ही साथ उचित सम्बन्ध में करें -
Deu8:1,3; 30:15-20 - Ps16:9-11 -
Ecc5:18-20; 9:9-10 -
वह जीवन को मनुष्य के लिये उचित है वह ऐसा है जिसमें भौतिक और आत्मिक जीवन के पहलू अपनी पूर्णता एकता में पाते हैं।
परन्तु पाप ने मनुष्य के चरित्र को ऐसा बिगाड़ दिया है कि जैसा इसे होना चाहिए था वैसा यह अब नहीं है। पाप के कारण मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन मृत्यु की शक्ति से प्रभावित हो गया है।इसका परिणाम यह हुआ कि मनुष्य मृत्यु दण्ड के अधीन हो गया है और आत्मिक रूप से पहिले की तरह मृतक समान है -
Ro5:12; 6:23 -
Eph2:1; 4:18 -
वह परमेश्वर से अलग कर दिया गया है और इसलिए वह सच्चे आत्मिक जीवन से भी अलग कर दिया गया है अर्थात् उस जीवन से जो वास्तव में अनन्त जीवन है -
1Ti6:19 -
बाइबल मनुष्य के जीवन के बारे में दो पहलुओं पर शिक्षा देती है -
Ge25:7; 27:46 -
Jn5:40; 6:33 -
परन्तु ये दोनों पहलू न तो एक दूसरे का विरोध करते हैं और न तो एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हैं। वह जीवन जिसे कोई व्यक्ति इस पृथ्वी पर भौतिक अस्तित्व में निर्वाह करता है वह उस समय इसका नया अर्थ पाता है जबकि उसका "नया जन्म" हो जाता है।तब वह परमेश्वर से वरदान स्वरूप मुफ्त में आत्मिक जीवन पाता है -
Jn1:13; 3:5-6 -
Eph2:5 -
तब वह जीवन को इसके सच्चे रूप में पाता है; और वह नए अस्तित्व के साथ जीवन आरम्भ करता है -
Mk8:35 -
Jn12:25 -
यद्यपि भौतिक जीवन में मनुष्य के लिए मृत्यु एक साधारण अनुभव है फिर भी विश्वासी लोग परमेश्वर से अलग नहीं किए जाएँगे -
Jn8:51 -
Ro8:38-39 -
मसीही विश्वासी की भौतिक मृत्यु को एक अस्थायी 'नींद' के समान समझा जाता है। मसीह के लौटने पर परमेश्वर उसे पुनः जीवित कर देगा और फिर मृत्यु का उस पर कोई अधिकार न होगा -
Jn11:11,25-26 -
1Co15:20-26,51-57 -
अनन्त जीवन -
जीवन अपने सबसे उच्च रूप में अनन्त जीवन है -
1Ti6:13,15-16,19 -
इस जीवन को बाइबल अनन्त कहने में इसकी लम्बाई नहीं वरन् इसके गुण पर बल देती है। अनन्त शब्द मूलतः यूनानी भाषा के 'आयु' या 'युग' शब्द से आता है।अनन्त जीवन वह जीवन है जो आने वाले युग में मिलेगा।यह जीवन भौतिक और क्षणिक जीवन के विपरीत अनन्त और आत्मिक जगत का जीवन है -
Jn4:10,13-14; 6:27,35,40 -
अवश्य वह युग समाप्त न होगा -
Jn6:51; 8:51 -
परन्तु महत्वपूर्ण बात यह होगी कि यह ऐसा युग होगा जबकि परमेश्वर के साथ मनुष्य अपने उस सम्बन्ध का आनन्द उठाएगा जिसके लिए वह बनाया गया है। वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार उस जीवन का आनन्द उठाएगा -
Jn6:63 -
Jn10:10 -
Jn17:3 - Eph2:1,5-6 -
Php1:21 -
इस अनन्त जीवन का स्रोत परमेश्वर में है।वास्तव में यह परमेश्वर के स्वभाव की एक विशेषता है। इसे मसीह के द्वारा मुष्यों पर प्रकट किया गया है और मसीह के द्वारा यह सम्भव हुआ है और यह केवल मसीह के द्वारा मनुष्यों को मिल सकता है -
Jn1:4 -
Jn5:26 -
Jn14:6 -
Col3:4 -
1Jn5:20 -
मनुष्य अपने प्रयत्नों से अननत जीवन नहीं पा सकता। यह पूर्णतः परमेश्वर द्वारा दान के रूप में प्राप्त होता है-
Jn10:28 -
Ro6:23 -
1Jn5:11 -
परन्तु परमेश्वर इस दान को केवल उन्हें देता है जो अपने पापों से पश्चात्ताप करते हैं और विश्वास के द्वारा अपने आप को यीशु के लिए समर्पित कर देते हैं -
Jn3:16 -
Jn11:25 -
Jn17:3 -
Jn20:31 -
Ac11:18 -
1Jn5:12 -
परमेश्वर चाहता है कि लोग उस अनन्त जीवन में विश्वास रखें और आश्वस्त रहें जिसे वह लोगों को देता है। जिन लोगों के पास अनन्त जीवन है उनके पास उध्दार है , जिनके पास नहीं है वे दण्ड के अधीन है -
Jn3:18,36 -
Jn5:24 -
1Jn5:13 -
पाप और मृत्यु से प्रभावित जगत का एक भाग होने के कारण विश्वासी को भौतिक मृत्यु से होकर निकलना पड़ सकता है परन्तु वह कभी ऐसी मृत्यु से नहीं मरेगा जिसका विशेष महत्व होता है -
Jn11:25-26 -
उसके पास अब अनन्त जीवन है -
Jn5:24 -
Eph2:1 -
1Jn3:14 -
वह आनेवाले समय में ऐसे जीवन की पूर्णता की आशा कर सकता है।यीशु के आगमन पर विश्वासीगण मृतकों में से जिला उठाए जाएँगें कि वे पुनरूत्थान के महिमामय जीवन, सिध्दता, सामर्थ और अमरता का आनन्द उठाएँ -
Mt25:46 -
Jn5:28-29 -
Jn6:40 -
Ro2:7 -
Ro6:22 -
1Co15:42-44 -
2Co5:4 -
2Ti1:10 -
यीशु का यह वचन है -
Jn11:25-26 -
25 पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ , जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा। 26 और जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा।- Jn 11:25-26.
1आदम की रचना - Ge 2:7 -
7 और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।
2.कर्मों का फल - Lk16:25 :-
25 परन्तु इब्राहीम ने कहा; हे पुत्र स्मरण कर, कि तू अपने जीवन में अच्छी वस्तुएँ ले चुका है, और वैसे ही लाजर बुरी वस्तुएँ : परन्तु अब वह यहां शान्ति पा रहा है, और तू तड़प रहा है।
26 और इन सब बातों को छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गड़हा ठहराया गया है कि जो यहाँ से उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सकें, और न कोई वहाँ से इस पार हमारे पास आ सके।
3.Immorality(अनैतिकता )
Heb7:16 -
15 और जब मलिकिसिदक के समान एक और ऐसा याजक उत्पन्न होने वाला था।
16 जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ के अनुसार नियुक्त हो तो हमारा दावा और भी स्पष्टता से प्रगट हो गया।
17 क्योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है, कि तू मलिकिसिदक की रीति पर युगानुयुग याजक है।
18 निदान, पहिली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई।
19 (इसलिये कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं कि) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिस के द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं।
20 और इसलिये कि मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई।
21 (क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उस की ओर से
नियुक्त किया गया जिस ने उसके विषय में कहा, कि प्रभु ने शपथ खाई, और वह उस से फिर ने पछताएगा, कि तू युगानुयुग याजक है)।
4.Conduct or manner of life -
Ro6:4 -
3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्मा लिया
4 सो उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें।
5 क्योंकि यदि हम उस की मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएंगे।
6 क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उसके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया, ताकि पाप का शरीर व्यर्थ हो जाए, ताकि हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें।
5. आध्यात्मिक जीवन या पापमुक्ति (Spiritual life or salvation ) -
Jn3:16,17,18 -
16 क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
17 परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।
18 जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहर चुका; इसलिये कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।
19 और दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे।
20 क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति
से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए।
21 परन्तु जो सच्चाई पर चलता है वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।
Jn3:36 -
36 जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।
6 Eternal life (अनन्त जीवन) -
Mt19:16,17 -
16 और देखो, एक मनुष्य ने पास आकर उस से कहा, हे गुरू; मैं कौन सा भला काम करूँ, कि अनन्त जीवन पाऊँ?
17 उस ने उस से कहा, तू मुझ से भलाई के विषय में क्यों पूछता है? भला तो एक ही है; पर यदि तू जीवन में प्रवेश करना चाहता है, तो आज्ञाओं को माना कर।
18 उस ने उस से कहा, कौन सी आज्ञाएँ ? यीशु ने कहा, यह कि हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना।
19 अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।
20 उस जवान ने उस से कहा, इन सब को तो मैंने माना है अब मुझ में किस बात की घटी है ?
21 यीशु ने उस से कहा, यदि तू सिद्ध होना चाहता है; तो जा, अपना माल बेचकर कंगालों को दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा; और आकर मेरे पीछे हो ले।
22 परन्तु वह जवान यह बात सुन उदास होकर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था ।
Jn3:15 -
12 जब मैंने तुम से पृथ्वी की बातें कहीं, और तुम प्रतीति नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूँ , तो फिर क्योंकर प्रतीति करोगे ?
13 और कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वही जो
स्वर्ग से उतरा, अर्थात मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है।
14 और जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊंचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊंचे पर चढ़ाया जाए।
15 ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्त जीवन पाए॥
7. परमेश्वर सम्पूर्ण जीवन का मूल स्त्रोत है (God & Christ absolute source & cause of all life) -
Jn1:4 -
1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।
2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था।
3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।
4 उस में जीवन था; और वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी।
5 और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया।
Jn5:26 ,39 -
26 क्योंकि जिस रीति से पिता अपने आप में जीवन रखता है, उसी रीति से उस ने पुत्र को भी यह अधिकार दिया है कि अपने आप में जीवन रखे।
27 वरन उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है।
37 और पिता जिस ने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है।
38 और उसके वचन को मन में स्थिर नहीं रखते क्योंकि जिसे उस ने भेजा उस की प्रतीति नहीं करते।
39 तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है।
40 फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।
41 मैं मनुष्यों से आदर नहीं चाहता।
Jn11:25 -
25 यीशु ने उस से कहा, पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ , जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।
26 और जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा,
Jn12:50 -
46 मैं जगत में ज्योति होकर आया हूं ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अन्धकार में न रहे।
47 यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी
ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूं।
48 जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उस को दोषी ठहराने वाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा।
49 क्योंकि मैं ने अपनी ओर से बातें नहीं कीं, परन्तु पिता जिस ने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है, कि क्या क्या कहूँ और क्या क्या बोलूँ
50 और मैं जानता हूं, कि उस की आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिये मैं जो बोलता हूं, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूँ । -------------------------------------------------------✝ ✝ ✝--------------------------------------------------------