|| यीशु ने कहा, "देखो, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ। मेरा पुरस्कार मेरे पास है और मैं प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों का प्रतिफल दूँगा। मैं अल्फा और ओमेगा; प्रथम और अन्तिम; आदि और अन्त हूँ।" Revelation 22:12-13     
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पवित्र मार्ग


 

 


 

                                    "पवित्र मार्ग"("परमेश्वर बचाने के लिये आयेगा")
यशायाह 35:3 -10 
3 ढीले हाथों को दृढ़ करो और थरथराते हुए घुटनों को स्थिर करो। 
4 घबरानेवालों से कहो; हियाव बान्धो, मत डरो! देखो, तुम्हारा परमेश्वर पलटा लेने और प्रतिफल देने को आ रहा है। हाँ, परमेश्वर आकर तुम्हारा उद्धार करेगा।
5 तब अन्धों की आँखे खोली जाएँगी और बहिरों के कान भी खोले जाएँगे; 
6 तब लंगड़ा हरिण की सी चौकडियाँ भरेगा और गूँगे अपनी जीभ से जयजयकार करेंगे। क्योंकि जंगल में जल के सोते फूट निकलेंगे और मरूभूमि में नदियाँ बहने लगेंगी।
7 मृगतृष्णा ताल बन जाएगी और सूखी भूमि में सोते फूटेंगे; और जिस स्थान में सियार बैठा करते हैं उसमें घास और नरकट और सरकण्डे होंगे।
8 और वहाँ एक सड़क अर्थात् राजमार्ग होगा, उसका नाम पवित्र मार्ग होगा; कोई अशुद्ध जन उस पर से न चलने पाएगा; वह तो उन्हीं के लिये रहेगा और उस मार्ग पर जो चलेंगे वह चाहे मूर्ख भी हों तौभी कभी न भटकेंगे। 
9 वहाँ सिंह न होगा और न कोई हिंसक जन्तु उस पर न चढ़ेगा न वहाँ पाया जाएगा, परन्तु छुड़ाए हुए उस में नित चलेंगे। 
10 और यहोवा के छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए सिय्योन में आएंगे; और उनके सिर पर सदा का आनन्द होगा; वे हर्ष और आनन्द पाएँगे और शोक और लम्बी साँस का लेना जाता रहेगा।
Isaiah 35:3-10 -
3 Strengthen the feeble hands, steady the knees that give way;
4 say to those with fearful hearts, “Be strong, do not fear; your God will come,  he will come with  vengeance with divine retribution he will come to save you.”
5 Then will the eyes of the blind be opened  and the ears of the deaf  unstopped.
6 Then will the lame leap like a deer,  and the mute tongue shout for joy.Water will gush forth in the wilderness and streams in the desert.
7 The burning sand will become a pool,  the thirsty ground bubbling springs.In the haunts where jackals once lay, grass and reeds and papyrus will grow.
8 And a highway will be there; it will be called the Way of Holiness; it will be for those who walk on that Way.The unclean will not journey on it;   wicked fools will not go about on it.
9 No lion will be there, nor any ravenous beast; they will not be found there.But only the redeemed  will walk there,
10  and those the Lord has rescued  will return.They will enter Zion with  singing;  everlasting joy will crown their heads.Gladness and joy will overtake them, and sorrow and sighing will flee away.

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                                                 वचनों का व्याख्यान
वचन की ऐतिहासिक पृष्टभूमि -
 740 ई.पू.(740 - 680 ई.पू.) यशायाह भविष्यवक्ता अपनी भविष्यवाणी कार्यक्रम किया था। उसी वर्ष में राजा उज्जियाह का मृत्यु भी हुआ था।और बाद में राजाओं - योताम, आहाज, हिजकिय्याह और मनश्शै के दिनों तक कार्य करता रहा - Isa1:1; 6:1.

 राजा आहाज के स्थान पर जब यहूदा का राजा हिजकिय्याह बना तब यशायाह नबी इस वचन अर्थात् भविष्यवाणी को लिखा।- Isa35:1-10. 

 735 ई.पू.में आहाज राजा गद्दी पर बैठा। आहाज की नीतियों के कारण यहूदा देश की आर्थिक स्थिति बिगाड़ गई थी। हिजकिय्याह 716- 687 ई.पू. तक राज्य किया और अर्थव्यवस्था को शक्ति मिली। इसी कार्यकाल में यशायाह भविष्यवाणी को लिखा। यशायाह भविष्यवक्ता के समय तक इस्राएली राष्ट्र 02 राज्यों में बँट गया था -
(1) उत्तरी राज्य की राजधानी सामरिया = इस्राएल।
(2) दक्षिणी राज्य की राजधानी यरूशलेम = यहूदा।

 यशायाह नबी यरंशलेम का निवासी था। वह यहूदा के राजदरबार में विदेशी मामलों के संबंध में एक सलाहकार के रूप में पदस्थ था।

यशायाह नबी अविश्वासियों के मध्य में परमेश्वर पर दृढ़ विश्वास बनाए रखने के लिए अपने शिष्यों के दल को शिक्षा दिया और प्रशिक्षित करके उत्साहित किया।

राजा हिजकिय्याह अपने शासनकाल में यहूदा की राजनैतिक और धार्मिक नीतियों में परिवर्तन किया और उसने अश्शूर को कर  न देकर उससे विद्रोह किया - 2Ki18:7. ऐसा करने में उसने मिस्र सैन्य शक्ति का सहायता लिया। यशायाह नबी ने उसके इस कार्य का विरोध किया।

यहूदा को विदेशी सैन्य शक्ति पर भरोसा नहीं, वरन् परमेश्वर पर भरोसा रखने की आवश्यकता थी।

यहूदा के पतन तथा दण्ड का एक कारण सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्रों का राजा हिजकिय्याह द्वारा बुरा नेतृत्व था -Isa28.

701ई. पू. यरूशलेम के घिराव और फिर आश्चर्यजनक रीति से उसके छुटकारे के द्वारा परमेश्वर ने प्रदर्शित किया कि यहूदा को अपनी सुरक्षा के लिए विदेशों की राजनैतिक सन्धियों की आवश्यकता नही है - Isa29.

मिस्र पर उसका भरोसा रखना मुर्खता है - Isa30.

हिजकिय्याह के दिनों के यरूशलेम से दृश्य परिवर्तित होकर बेबीलोन में यहूदियों की बंधुवाई का हो जाता है। बेबीलोन सामर्थी हुआ और उसने 612 ई. पू. में अश्शुर को जीत लिया। फिर उसने 605 से 587 ई. पू. तक यहूदा पर बार बार आक्रमण किया और अन्त में 582 ई. पू. यरूशलेम को नाश करके वह लोगों को बंधुवाई में ले गया।

फारस का राजा कुस्रु उस क्षेत्र के राज्यों को एक के बाद एक करके अपने हाथ  ले रहा था और 539 ई• पू• में बेबीलोन को जीतकर यहूदियों को उनके देश में लौटने की अनुमति दी।

परमेश्वर ने अपनी प्रजा को आश्वसन दिया कि वह सर्वशक्तिमान है; यद्दपि उसने उन्हें बंधुवाई में जाने दिया फिर भी वह उन्हें सम्मान के साथ उनके देश में लौटा ले आएगा।

अश्शूर के छूटकारे के अतिरिक्त नबी ने ऐसे धार्मिकता के राज्य को देखा जहाँ यहूदा का प्रशासन एक राजा परमेश्वर की विधि के अनुसार करेगा - Isa32. वर्तमान संकट जिसमें अश्शूर को हराकर परमेश्वर ने यहूदा को आशीषित किया - Isa33. यह भविष्य में आनेवाले जगत के अंतिम महान न्याय की छाया था जबकि परमेश्वर सब शत्रुओं करके -Isa34. अपने विश्वासी लोगों को आशीषित करेगा -
Isa35.

जब यहूदी बाबूल की बँधुवाई में थे तो शुध्द उपासना पर सख्त पांबदी लगी हुई थी। वहाँ न तो मंदिर था, न वेदी और न ही याजकों का कोई प्रबन्ध था। प्रतिदिन चढ़ाए जानेवाले बलिदान बंद हो गए थे।

582 ई.पू. में यहूदा पर बेबीलोन का आक्रमण हुआ और यहूदा, बेबीलोन की बंधुवाई में ले लिया।

 740-680 ई.पू. तक यशायाह नबी का भविष्यवाणी का कार्यकाल।

716-687 ई.पू.के मध्य में भविष्यवाणी के 
वचन को लिखा। यहूदियों के बंधुवाई में जाने से पुर्व राजा हिजिकिय्याह के शासनकाल में लिखा गया। 

539 ई.पू.में फारस के राजा कुस्रू के द्वारा यहूदियों का बंधुवाई से रिहाई हुआ।

900 ई.पू. के बाद से अश्शूर, एक शक्तिशाली राज्य बना।

612 ई.पू.में अश्शूर का राज्य समाप्त हो गया और बेबीलोन साम्राज्य के अधिपत्य/ अधीन हो गया।

582 ई.पू.में यहूदा, बेबीलोन की बंधुवाई में हो गया।

539 ई.पू.में फारस का राजा कुस्रू , बेबीलोन 
को हराकर, यहूदी बंधुवाई को अपने देश यरूशलेम जाने की अनुमति दिया।
 558-530 ई.पू. तक कुस्रू का शासनकाल।

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Isa35:1-10 का सारांश -
यह अध्याय, सहस्राब्दिक राज्य के विषय बाईबल में दिए गए महानतम विवरणों में से एक है, सहस्राब्दिक राज्य का समय वह समय होगा जो अध्याय 34 में वर्णित न्यायों के बाद आएगा।

Isa35:1-2  का सार -
यह देश, मरूस्थली क्षेत्रों (अराबा) समेत, अत्याधिक उपजाऊ हो जाएगा।
लबानोन -  बाइबल बताती है कि प्राचीनकाल का लबानोन बहुत ही फलदायक देश था। उसमें हरे-भरे घने जंगल और देवदार के विशाल पेड़ भी थे। इसलिए उसकी तुलना   "अदन वाटिका " से की गयी है।
Ps29:5 -   यहोवा की वाणी देवदारों को तोड़ डालती है; यहोवा लबानोन के देवदारों को भी तोड़ डालता है।
Ps72:16 -   देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्न होगा; जिसकी बालें लबानोन के देवदारों की नाईं झूमेंगी; और नगर के लोग घास की नाईं लहलहाएंगे।
Ezk28:11-13 -
11.फिर यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, 
12 हे मनुष्य के सन्तान, सोर के राजा के विषय में विलाप का गीत बनाकर उस से कह, परमेश्वर यहोवा यों कहता है, तू तो उत्तम से भी उत्तम है; तू बुद्धि से भरपूर और सर्वांग सुन्दर है। 
13 तू परमेश्वर की एदेन नाम बारी में था; तेरे पास आभूषण, माणिक, पद्मराग, हीरा, फीरोज़ा, सुलैमानी मणि, यशब, नीलमणि, मरकद, और लाल सब भांति के मणि और सोने के पहिरावे थे; तेरे डफ और बांसुलियां तुझी में बनाई गईं थीं; जिस दिन तू सिरजा गया था; उस दिन वे भी तैयार की गई थीं। 

शारोन -  शारोन अपने झरनों और बाँज या 
बलूत के जँगलों के लिए मशहूर था।
 कर्मेल -  कर्मेल अपनी दाख की बारियों, फलों के बागों और फूलों से ढकी वादियों के लिए जाना जाता था।

Isa35:3-4 का सार -
यशायाह अपने समय के लोगों को प्रोत्साहित करते हुए कहता है कि वे परमेश्वर द्वारा भविष्य के विषय की गई प्रतिज्ञों के प्रकाश में एक दूसरे को उत्साहित करें।   

Isa35:5-6 का सार -
काफी बड़ी संख्या में लोग शारीरिक चंगाई का अनुभव करेंगे।
यीशु ने आध्यात्मिक और शारीरिक दोनों तरीकों से रोगियों को चंगा किया।

Isa35:6-7 का सार -
भूमि भली-भांति सिंचित होगी।
मरूभूमि में इतना पानी होगा कि उसमें कछार की घास और सरकण्डे उगेंगे।

Isa35:8-10 का सार -
छुड़ाए हुए लोग यरूशलेम में आराधना करने हेतु जाते समय पवित्र मार्ग पर सुरक्षित चलेंगे I                     --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

Isa35:1 - जंगल और निर्जल देश प्रफुल्लित होंगे, मरूभूमि मगन हो कर केसर की नाईं फूलेगी; 
                       
Isa41:18-19 -
17 जब दीन और दरिद्र लोग जल ढूँढ़ने पर भी न पाएँ और उनका तालू प्यास के मारे सूख जाए; मैं यहोवा उनकी बिनती सुनूँगा, मैं इस्राएल का परमेश्वर उनको त्याग न दूँगा
18 मैं मुण्डे टीलों से भी नदियाँ और मैदानों के बीच में सोते बहऊँगा; मैं जँगल को ताल और निर्जल देश को सोते ही सोते कर दूँगा। 
19 मैं जंगल में देवदार, बबूल, मेंहदी, और जलपाई उगाऊंगा; मैं अराबा में सनौवर, तिधार वृक्ष, और सीधा सनौबर इकट्ठे लगाऊंगा; 

Isa55:12-13 -
12 क्योंकि तुम आनन्द के साथ निकलोगे, और शान्ति के साथ पहुंचाए जाओगे; तुम्हारे आगे आगे पहाड़ और पहाडिय़ाँ गला खोल कर जयजयकार करेंगी, और मैदान के सब वृक्ष आनन्द के मारे ताली बजाएंगे। 
13 तब भटकटैयों की सन्ती सनौवर उगेंगे; और बिच्छु पेड़ों की सन्ती मेंहदी उगेगी; और इस से यहोवा का नाम होगा, जो सदा का चिन्ह होगा और कभी न मिटेगा।

Isa40:5 -
5 तब यहोवा का तेज प्रगट होगा और सब प्राणी उसको एक संग देखेंगे; क्योंकि यहोवा ने आप ही ऐसा कहा है॥ 

Isa60:13 -
13 लबानोन का वैभव अर्थात सनौबर और देवदार और सीधे सनौबर के पेड़ एक साथ तेरे पास आएंगे कि मेरे पवित्रस्थान को सुशोभित करें; और मैं अपने चरणों के स्थान को महिमा दूँगा। 

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Isa35:2 - वह अत्यन्त प्रफुल्लित होगी और आनन्द के साथ जयजयकार करेगी। उसकी शोभा लबानोन की सी होगी और वह कर्मेल और शारोन के तुल्य तेजोमय हो जाएगी। वे यहोवा की शोभा और हमारे परमेश्वर का तेज देखेंगे।

Isa35:3 - ढीले हाथों को दृढ़ करो और थरथराते हुए घुटनों को स्थिर करो। 

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यशायाह नबी 35वें अध्याय के पद संख्या 3 एवं 4 के वचनों में यहूदी बंधुओं के लिए खुशी का संदेश/पैगाम मिलता है।भविष्यवक्ता यहूदी जाति के लिए एक उज्जवल भविष्य की घोषणा कर रहा है, जो अपने पापों का प्रायश्चित कर चुकी है और वह जो कुछ कहता है, उसे पूरे यकीन के साथ कहता है और उम्मीद बँधाता है। भविष्यवाणी करने के 02सदियों बाद, जब यहूदी बँधुए गुलामी से आजाद होनेवाले थे तब 
उन्हें ऐसे ही विश्वास और उम्मीद की जरूरत थी। यशायाह की भविष्यवाणी के जरिये, यहोवा परमेश्वर उनका मनोबल/ हौसला बुलंद करते हुए कहता है -- ढीले हाथों को दृढ़ करो और थरथराते हुए घुटनों को स्थिर करो।                         

1.दृढ़ बने रहें और जीवन की चुनौतियों का सामना कर सके-

संसार में हम जीते वक्त कुछ ऐसी चुनौतियों का सामना करते हैं जो हमारे अन्दर असुरक्षा और चिंता की भावना को उत्पन्न करती है जैसे -- दुनियाँ की इस दौर में आये दिन नये-नये फैशन, मायावी प्रलोभन के साधन, मोबाईल फोन, गाड़ी इत्यादि।और दुनिया के चकाचौंध में जवान 
अक्सर उलझन में पड़ जाते है और कभी कभी वे समझ नहीं पाते कि सही क्या है और गलत क्या।

 हाल ही में कुछ लोग मसीही रास्ते पर चलना शुरू किया है और उनके मन में कुछ बातों को लेकर शंका भी उत्पन्न हुई हों।

कई लोग जो दृढ़ हैं और बरसों से परमेश्वर की सेवा भक्ति से करते आएँ हैं; वे भी शायद परीक्षा की दौर से गुजर रहे हों क्योंकि जैसा उन्होंने सोचा था वैसा अब तक कुछ नहीं हुआ है। ऐसा महसूस करना कोई नयी बात नहीं है। मूसा , अय्युब और दाऊद जैसे यहोवा के बहुत से भक्त सेवकों ने भी कई बार खुद को ऐसी ही कशमकश में पाया था ---

Nu11:14-15 (मूसा) -
14 मैं अकेला इन सब लोगों का भार नहीं सम्भाल सकता, क्योंकि यह मेरी शक्ति के बाहर है। 
15 और जो तुझे मेरे साथ यही व्यवहार करना है, तो मुझ पर तेरा इतना अनुग्रह हो, कि तू मेरे प्राण एकदम ले ले, जिस से मैं अपनी दुर्दशा न देखने पाऊँ।

Job 3:1-4 (अय्यूब) :-
1 इसके बाद अय्यूब मुंह खोल कर अपने जन्मदिन को धिक्कारने 
2 और कहने लगा, 
3 वह दिन जल जाए जिस में मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिस में कहा गया, कि बेटे का गर्भ रहा। 
4 वह दिन अन्धियारा हो जाए! ऊपर से ईश्वर उसकी सुधि न ले, और न उस में प्रकाश होए।

Ps55:4 ->विश्वासघाती के लिये प्रार्थना -
1 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुंह न मोड़! 
2 मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; मैं चिन्ता के मारे छटपटाता हूं और व्याकुल रहता हूं। 
3 क्योंकि शत्रु कोलाहल और दुष्ट उपद्रव कर रहें हैं; वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, और क्रोध में आकर मुझे सताते हैं॥ 
4 मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है, और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है। 
5 भय और कंपकपी ने मुझे पकड़ लिया है, और भय के कारण मेरे रोंए रोंए खड़े हो गए हैं। 
6 और मैं ने कहा, भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता! 

फिर भी , उनके जीने के तरीके से एक बात बिल्कुल साफ थी कि वे यहोवा को भक्ति दिखाने में दृढ़ थे। उनकी अच्छी मिसाल हमें दृढ़ बने रहने की हिम्मत देती है। मगर दूसरी तरफ शैतान यानी इब्लीस चाहता है कि हम अनन्त जीवन की दौड़ से पीछे हट जाएँ।

2. यहोवा चाहता है कि हम दृढ़ बने रहें --
यदि हम यहोवा के विश्वास में बने रहेंगे, तो हमें दृढ़ बने रहने के लिये हमेशा मदद करेगा। भजनकार दाऊद ने कई मुश्किल हालात का सामना किया, किन्तु उसने परमेश्वर पर से अपना भरोसा कभी नहीं खोया। जिस वजह से वह भजन गा सका -

Ps40:2 - स्तुति का एक गीत - 
2 उसने मुझे सत्यानाश के गड़हे और दलदल की कीच में से उबारा, और मुझ को चट्टान पर खड़ा करके मेरे पैरों को दृढ़ किया है। 
1Ti6:12 -
12 विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले, जिस के लिये तू 
बुलाया, गया, और बहुत गवाहों के साम्हने अच्छा अंगीकार किया था। 
यहोवा हमें दृढ़ बने रहने और आधायात्मिक जंग जीतने के लिये साधन भी मुहैया कराता है।
 Eph6:10-17 -
10 निदान, प्रभु में और उस की शक्ति के प्रभाव में बलवन्त बनो। 
11 परमेश्वर के सारे हथियार बान्ध लो; कि तुम शैतान की युक्तियों के साम्हने खड़े रह सको। 
12 क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं। 
13 इसलिये परमेश्वर के सारे हथियार बान्ध लो, कि तुम बुरे दिन में साम्हना कर सको, और सब कुछ पूरा करके स्थिर रह सको। 
14 सो सत्य से अपनी कमर कसकर, और धार्मीकता की झिलम पहिन कर। 
15 और पांवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिन कर। 
16 और उन सब के साथ विश्वास की ढाल लेकर स्थिर रहो जिस से तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको। 
17 और उद्धार का टोप, और आत्मा की तलवार जो परमेश्वर का वचन है, ले लो। 

 3.मसीही काम करते हुये दृढ़ रहिए ->
जिन्दगी की दौड़ में सही रफ्तार से आगे बढ़ते रहने का एक तरीका है --- स्वर्ग राज्य के प्रचार कार्य में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा लेना।
हमारी मसीही सेवा एक ऐसा अनमोल  तरीका है जिससे हमारा दिल और दिमाग परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में और अनन्त जीवन का वरदान पाने में लगा रहता है। इस संबंध में प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थ के मसीसियों उत्साहित किया।
1Co15:58 -  सो हे मेरे प्रिय भाइयो, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।

 4. भ्रात-प्रेम में स्थिर रहें --
1Pe2:17 - सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्वर से डरो, राजा का सम्मान करो।
 धर्मी अय्यूब को देख पाते हैं कि उसने दूसरे लोगों की किस तरह से मदद की थी।यहाँ तक कि उसे झूठा दिलासा देनेवाले एलीपज़ ने यह माना कि -
Job4:4- एलीपज़ का तर्क -
4. गिरते हुओं को तूने अपनी बातों से सम्भाल लिया , और लड़खड़ाते हुए लोगों को तूने बलवन्त किया।                   हम में से हर एक की जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों की मदद करें ताकि वे धीरज के साथ परमेश्वर की सेवा में लगे रहें।हम अपने भाई-बहनों के साथ उस तरह व्यवहार कर सकते है, जैसा कि इस पद में 
बताया गया है - ढीले हाथों को दृढ़ करो और थरथराते हुए घुटनों को स्थिर करो - Isa35:3.

Ro 1:11-
11 क्योंकि मैं तुम से मिलने की लालसा करता हूं, कि मैं तुम्हें कोई आत्मिक वरदान दूं जिस से तुम स्थिर हो जाओ। 
 Php 4:1-
1 इसलिये हे मेरे प्रिय भाइयों, जिन में मेरा जी लगा रहता है जो मेरे आनन्द और मुकुट हो, हे प्रिय भाइयो, प्रभु में इसी प्रकार स्थिर रहो।
 1Th 3:1-3 -
1 इसलिये जब हम से और भी न रहा गया, तो हम ने यह ठहराया कि एथेन्स में अकेले रह जाएँ। 
2 और हम ने तीमुथियुस को जो मसीह के सुसमाचार में हमारा भाई, और परमेश्वर का सेवक है, इसलिये भेजा, कि वह तुम्हें स्थिर करे; और तुम्हारे विश्वास के विषय में तुम्हें समझाए। 
3 कि कोई इन क्लेशों के कारण डगमगा न जाए; क्योंकि तुम आप जानते हो, कि हम इन ही के लिये ठहराए गए हैं। 
 Col 2:5-
5 क्योंकि मैं यदि शरीर के भाव से तुम से दूर हूं, तौभी आत्मिक भाव से तुम्हारे निकट हूं, और तुम्हारे विधि-अनुसार चरित्र और तुम्हारे विश्वास की जो मसीह में है दृढ़ता देखकर प्रसन्न होता हूँ।
1Th 3:7-8 -
7 इसलिये हे भाइयों, हम ने अपनी सारी सकेती और क्लेश में तुम्हारे विश्वास से तुम्हारे विषय में शान्ति पाई। 
8 क्योंकि अब यदि तुम प्रभु में स्थिर रहो तो हम जीवित हैं। 

2Pe 1:12-
12 इसलिये यद्यपि तुम ये बातें जानते हो, और जो सत्य वचन तुम्हें मिला है, उस में बने रहते हो, तौभी मैं तुम्हें इन बातों की सुधि दिलाने को सर्वदा तैयार रहूँगा। 

Mt 9:6 -
35 और यीशु सब नगरों और गांवों में फिरता रहा और उन की सभाओं में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। 
36 जब उस ने भीड़ को देखा तो उस को लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे।

5. परमेश्वर का प्रतिज्ञा - स्थिर करता है --
 परमेश्वर ने प्रतीज्ञा किया है कि उसके राज्य में हमारा भविष्य उज्जवल होगा और यह आशा 
हमें दृढ़ रहने में मदद देती है- Heb6:19. और इस बात का पक्का यकीन है कि परमेश्वर हमेशा अपने प्रतिज्ञाओं को पूरा करता है, हमें जागते रहकर, विश्वास में स्थिर रहने की प्रेरणा देता है - 1Co16:13; Heb3:6.                           

परमेश्वर के कुछ प्रतिज्ञाओं को पूरा होने में देर हो रही है और यह हमारे विश्वास की परीक्षा हो सकती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम सावधान रहें कि कहीं हम किसी झूठी शिक्षा से बहक न जाएँ और अपनी आशा न खो बैठे - Col1:23; Heb13:9.

 उन इस्राएलियों का बुरा उदाहरण हमारे लिये एक चेतावनी है जिनका नाश हो गया था क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के प्रतिज्ञाओं पर विश्वास नहीं किया - Ps78:37. उनकी तरह बनने के बजाय, आइए हम दृढ़ रहे और इन अंतिम दिनों में वक्त की नज़ाकत को समझते हए परमेश्वर की सेवा करते रहें।

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 Isa 35:4 -   घबराने वालों से कहो, हियाव बान्धो, मत डरो! देखो, तुम्हारा परमेश्वर पलटा लेने और प्रतिफल देने को आ रहा है। हाँ, परमेश्वर आकर तुम्हारा उद्धार करेगा।
                       
 डर = ईश्वर का डर।
1. पुराना नियम में "डर" पर अपेक्षाकृत अधिक बल दिया है।पुराना नियम में यह शब्द "डर" का आशय "आतंक" नहीं बल्कि परमेश्वर के प्रति श्रध्दा और उसकी आज्ञाओं के पालन की तत्परता का वाचक है -- ईश्वर से डरते रहो, आज्ञाओं का पालन करते रहो।
Deut7:2 -> और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे द्वारा हरा दे, और तू उन पर जय प्राप्त कर ले; तब उन्हें पूरी रीति से नष्ट कर डालना; उन से न वाचा बान्धना, और न उन पर दया करना। 
2. नया नियम के बहुसंख्यक स्थलों पर भी परमेश्वर का डर उसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ जैसे -
 Mt 10:28 (किससे डरें) -
28 जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उन से मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है। 
 Lk18:2-4(अधर्मी न्यायाधीश और विधवा) 
2 कि किसी नगर में एक न्यायी रहता था; जो न परमेश्वर से डरता था और न किसी मनुष्य की परवाह करता था। 
3 और उसी नगर में एक विधवा भी रहती थी: जो उसके पास आ आकर कहा करती थी, कि मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दई से बचा। 
4 उस ने कितने समय तक तो न माना परन्तु 
अन्त में मन में विचारकर कहा, यद्यपि मैं न परमेश्वर से डरता, और न मनुष्यों की कुछ परवाह करता हूँ। 
 Lk 23:40(मन फिरानेवाला कुकर्मी) --
40 इस पर दूसरे ने उसे डांटकर कहा, क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है। 
Lk1:50(मरियम का स्तुति गान) -
50 और उस की दया उन पर, जो उस से डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है। 
2Co5:11(परमेश्वर से मेल मिलाप) --
11 सो प्रभु का भय मानकर हम लोगों को समझाते हैं और परमेश्वर पर हमारा हाल प्रगट 
है; और मेरी आशा यह है, कि तुम्हारे विवेक पर भी प्रगट हुआ होगा। 
 उक्त वाक्यांश "श्रध्दालु भक्तों पर" का शाब्दिक अनुवाद है - "ईश्वर से डरने वालों पर"
 यूहन्ना का कहना है कि " प्रेम में भय नहीं होता, पूर्ण प्रेम भय को दूर कर देता है।" ------ Jn 4:18.

 यीशु बारम्बार कहते हैं -- "डरो मत।"
 Mt14:27(यीशु का पानी पर चलना) --
27 यीशु ने तुरन्त उन से बातें की, और कहा; ढाढ़स बान्धो; मैं हूँ ; डरो मत।

 Lk5:10 (प्रथम चेलों को बुलाया जाना) --
10 और वैसे ही जब्दी के पुत्र याकूब और 
यूहन्ना को भी, जो शमौन के सहभागी थे, अचम्भा हुआ: तब यीशु ने शमौन से कहा, मत डर: अब से तू मनुष्यों को जीवता पकड़ा करेगा। 

Lk12:32(स्वर्गीय धन) ----
32 हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे। 

3.फिर भी प्रभु का भय हम में बना रहता है -        2Co5:11 -
11 सो प्रभु का भय मानकर हम लोगों को समझाते हैं और परमेश्वर पर हमारा हाल प्रगट है; और मेरी आशा यह है, कि तुम्हारे विवेक पर भी प्रगट हुआ होगा। 

 हम "डरते काँपते" अपने मुक्ति के कार्य में लगे रहें --Php2:12 -
12 सो हे मेरे प्यारो, जिस प्रकार तुम सदा से आज्ञा मानते आए हो, वैसे ही अब भी न केवल मेरे साथ रहते हुए पर विशेष करके अब मेरे दूर रहने पर भी डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य पूरा करते जाओ। 
प्रभु पर "श्रध्दा रखते" परिपूर्णता तक पहुँचने का प्रयत्न करते रहें --
 2Co7:1 -
1 सो हे प्यारो जब कि ये प्रतिज्ञाएं हमें मिली हैं, 
तो आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।
 Eph5:21 -
21 और मसीह के भय से एक दूसरे के आधीन रहो।
1Pe2:17 -
17 सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्वर से डरो, राजा का सम्मान करो।
भय से मुक्ति (Freedom from fear)
नया नियम -
1. Jn14:27 (पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा) -
27 मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ , अपनी शान्ति 
तुम्हें देता हूँ ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। 

2. Ro8:15 (पवित्र आत्मा के द्वारा जीवन) -
15 क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कह कर पुकारते हैं। 

3. 2Ti1:7(धन्यवाद और प्रोत्साहन) -
7 क्योंकि परमेश्वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है। 

4. Heb2:14-15(हमारा उध्दारकर्ता) -
14 इसलिये जब कि लड़के मांस और लोहू के 
भागी हैं, तो वह आप भी उन के समान उन का सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी, अर्थात शैतान को निकम्मा कर दे। 
15 और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फंसे थे, उन्हें छुड़ा ले। 

5.Heb13:5-6(मसीही जीवन जीने के निर्देश) -
5 तुम्हारा स्वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उस ने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। 
6 इसलिये हम बेधड़क होकर कहते हैं, कि प्रभु, 
मेरा सहायक है; मैं न डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है।

6.1Jn4:18 (परमेश्वर प्रेम है) -
18 प्रेम में भय नहीं होता, वरन सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है, क्योंकि भय से कष्ट होता है, और जो भय करता है, वह प्रेम में सिद्ध नहीं हुआ। 
पुराना नियम -
1.Ps27:1,5 (परमेश्वर मेरी ज्योति, मेरा उध्दार) -
1 यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं ? 
5 क्योंकि वह तो मुझे विपत्ति के दिन में अपने 
मण्डप में छिपा रखेगा; अपने तम्बू के गुप्त स्थान में वह मुझे छिपा लेगा, और चट्टान पर चढ़ाएगा। 

2.Ps34:4 (परमेश्वर की भलाई के लिये उसकी स्तुती) -
4 मैं यहोवा के पास गया, तब उसने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया। 

3.Ps46:1-3(परमेश्वर हमारा शरणास्थान) -          1 परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलने वाला सहायक। 

2 इस कारण हम को कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाएं; 
3 चाहे समुद्र गरजे और फेन उठाए, और पहाड़ उसकी बाढ़ से कांप उठें।

4.Ps56:3-4(परमेश्वर में भरोसे के लिये प्रार्थना) -
3 जिस समय मुझे डर लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा। 
4 परमेश्वर की सहायता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा, परमेश्वर पर मैं ने भरोसा रखा है, मैं नहीं डरूंगा। कोई प्राणी मेरा क्या कर सकता है ? 

5.Ps91:5-6(परमेश्वर हमारा रक्षक) -
5 तू न रात के भय से डरेगा, और न उस तीर से जो दिन को उड़ता है, 
6 न उस मरी से जो अन्धेरे में फैलती है, और न उस महारोग से जो दिन दुपहरी में उजाड़ता है।

6.Prov1:33(बुध्दि की पुकार) -
33 परन्तु जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा।

7.Prov3:24(युवकों को सलाह) -
24 जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा, जब तू लेटेगा, तब सुख की नींद आएगी।

8.Isa41:10(इस्राएल को परमेश्वर का आश्वासन) -
10 मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूं, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूं; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय 
दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा।

9.Jer1:8(यिर्मयाह का बुलाया जाना) -
8 तू उनके मुख को देखकर मत डर, क्योंकि तुझे छुड़ाने के लिये मैं तेरे साथ हूँ, यहोवा की यही वाणी है। 

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Isa35:5-7 -
5 तब अन्धों की आंखे खोली जाएंगी और बहिरों के कान भी खोले जाएंगे; 
6 तब लंगड़ा हरिण की सी चौकडिय़ां भरेगा और गूंगे अपनी जीभ से जयजयकार करेंगे। क्योंकि 
जंगल में जल के सोते फूट निकलेंगे और मरूभूमि में नदियां बहने लगेंगी 
7 मृगतृष्णा ताल बन जाएगी और सूखी भूमि में सोते फूटेंगे; और जिस स्थान में सियार बैठा करते हैं उस में घास और नरकट और सरकण्डे होंगे।
                       
Isa29:18 -
18 उस समय बहिरे पुस्तक की बातें सुनने लेगेंगे, और अन्धे जिन्हें अब कुछ नहीं सूझता, वे देखने लेगेंगे। 
Isa32:3 -
1 देखो, एक राजा धर्म से राज्य करेगा, और 
राजकुमार न्याय से हुकूमत करेंगे। 
2 हर एक मानो आंधी से छिपने का स्थान, और 
बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया। 
3 उस समय देखने वालों की आंखें धुंधली न होंगी, और सुनने वालों के कान लगे रहेंगे।
यीशु मसीह के चमत्कार (Miracle)
उद्देश्य -
 यीशु अपने चमत्कारों को इसका प्रमाण मानते थे कि उन्हें परमेश्वर से विशेष अधिकार प्राप्त है -- Mt9:6.

 कि वह मसीह है - Mt11:4-5.

और यह कि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है -- Mt12:28.

 उनके चमत्कारों का उद्देश्य है -- शिष्यों में -- Jn2:11; Jn11:15. एवं लोगों में -- Jn5:36; 10:38; 11:42. यह विश्वास उत्पन्न करना कि वह परमेश्वर के यहाँ से आये हैं।

यहूदियों को इसलिए दोषी माना गया है कि उन्होंने चमत्कार देखकर भी यीशु में विश्वास नहीं किया।

चमत्कारों का विवरण -- 29AD- Spring - Later in the year - Winter - October.

I.अपदूतों(दुष्टात्माओं) का निष्कासन -
1.कफरनहूम में -दुष्टात्माग्रस्त व्यक्ति को चंगा करना - Mk1:28.
2. गदरेनियों के देश में - दुष्टात्माग्रस्त मनुष्यों को चंगा करना - Mt8:21-28.
3. बहुसंख्यक अपदूतग्रस्त - Mt8:16,4:24; Mk1:39; Lk6:18,7:21.

II.अपदूत-निष्कासन और रोगमुक्ति (अपदूतग्रस्त और रोग से ससंयु्त रूप से पीड़ित) --
4. एक गूँगा-अपदूतग्रस्त को चंगा करना -- Mt9:32-34.
5. दुष्टात्माग्रस्त बालक को चंगा करना -- Mt17:14-21.
6. सब्त के दिन कुबड़ी स्त्री को चंगा करना -- Lk13:10-17.

III. रोगियों को चंगा करना --
7. कफरनहूम में 02 अन्धों को दृष्टिदान --Mt9:27-31.
8. बैतसैदा में 01 अन्धे को चंगा करना -- Mk8:22-26.
9. जन्म के अन्धे(जन्मान्ध) को दृष्टिदान -- Jn9:1-12.
10. यरीहो के 02 अन्धों को दृष्टिदान -- Mt20:29-34.
11. कफरनहूम में अर्धागरोगी(लकवे) को चंगा करना --Mt9:1-8.
12. यरूशलेम में 38 वर्ष के रोगी(अर्धागरोगी) को चंगा करना -Jn5:1-18.
13. कफरनहूम में कोढ़ी को चंगा करना --Mt8:1-4.
14.10 कोढ़ी यरूशलेम जाते हुए सामरिया और गलील के बीच किसी गाँव में - Lk17:11-19.
15. सूखे हाथ वाले मनुष्य को चंगा करना (सब्त के दिन आराधनालय में) - Mt12:9-14.
16. जलन्धर का रोगी (जलोदर पीड़ित) सब्त के दिन फरीसी के घर में - Lk14:2-4.
17. 12 वर्ष से लहू बहने का रोगी स्त्री को (रक्तस्रावी स्त्री) चंगा करना - Mt9:20-22.
18. बहरे और गूंगे व्यक्ति को चंगा करना - Mt7:31-37.
19. ज्वर से पीड़ित पतरस की सास को चंगा 
करना - Mt8:14-15.
20. शतपति(सूबेदार) का नौकर/सेवक को लकवा रोग से चंगा करना - Mt8:5-13.
21. पदाधिकारी(राजकर्मचारी) के पुत्र को    ग  गलील के काना रहकर, कफरनहूम में बीमार से पीड़ित पुत्र को चंगा करना - Jn4:46-54.
22. कनानी स्त्री की बेटी को दुष्टात्मा से चंगाई करना - Mt15:21-28.
23. प्रधानयाजक का नौकर मलखुस के कान को छूकर चंगा करना - Lk22:51.
24. बहुसंख्यक रोगी - Mt8:16-17; Mt4:23-24; Mt15:29-31; Mt14:34-36; Mt9:35; Mt21:14; Mt14:14; Mt12:15; 
Mt11:5.

IV. मुरदो को जिलाना -
25. यहूदियों के आराधना का एक अधिकारी(जैरूस) की मृत लड़की का हाथ पकड़ा और वह जी उठी - Mt9:18-19,23-26.
26.नाईन नगर के विधवा की मृत जवान पुत्र की अर्थी को छुआ और कहा," हे जवान, मैं तुझसे कहता हूँ , उठ ! तब वह मुरदा उठ बैठा और बोलने लगा - Lk7:11-17.
27.लाज़र को जिलाया - Jn11:32-44.

V.अन्य चमत्कार -
28. आँधी(तुफान) को शान्त करना - Mt8:23-27.
29. 05 रोटी और 02 मछली को लेकर स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और 5000 पुरूषों (स्त्री और बालकों को खानवालों की गिनती में नहीं लिया) को खिलाया, सब खाकर तृप्त हुए और बचे हुये टुकड़ों से भरी हुई 12 टोकरियाँ उठाई - Mt14:13-21.
30. 07 रोटी और थोड़ी सी मछली से 4000 पुरूषों को खिलाया और बचे हुए 07 टोकरे उठाए - Mt15:32-39.
31. झील(समुद्र) पर चलना - Mt14:22-33.
32. मन्दिर का कर - Mt17:24-27.
33. अंजीर का पेड़ (फल रहित) -Mt21:18-22.
34. गलील के काना में पानी को दाखरस(अंगूरी) में बदलना - Jn2:6-10.
35. तिबिरियास झील के किनारे चेलों (शमौन पतरस व साथी) पर प्रगट होकर मछलियाँ पकड़वाना - Jn21:6.
36. गन्नेसरत की झील में मछलियाँ पकड़वाना - - Lk5:6-7.
37. बहुसंख्यक चमत्कार - Jn2:23, 20:30-31; Ac2:22.

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 Isa35:8 -  और वहां एक सड़क अर्थात राजमार्ग होगा, उसका नाम पवित्र मार्ग होगा; 
कोई अशुद्ध जन उस पर से न चलने पाएगा; वह तो उन्हीं के लिये रहेगा और उस मार्ग पर जो चलेंगे वह चाहे मूर्ख भी हों तौभी कभी न भटकेंगे। 
                           
पवित्रता -  स्वच्छता, उपासना(बिनती-प्रार्थना) में शुध्दता और दूषित वस्तुओं/चीजों से अलग रखा गया है।

परमेश्वर की पवित्रता -  वह नैतिक रूप से पूरी तरह सिध्द है, उसके जैसा पवित्र दूसरा कोई नहीं है।
 यहोवा पवित्र परमेश्वर है, वह अपने आराधकों(उपासकों) से यह चाहता है कि वे शारीरिक,नैतिक और आध्यात्मिक रूप से शुध्द रहें। बाइबल हमें बतलाती है कि जैसा कि 1Pe1:16 -"पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।"

यदि हम परमेश्वर की आराधना/उपासना शुध्द तरीके से करें और उसके साथ सदैव संगति(करीबी रिश्ता) बनाये रखेंगे, तभी हम उसकी नजरों में पवित्र ठहरेंगे।

वहाँ एक " पवित्र मार्ग " होगा --
537 ई. पू.
यहोवा ने अपने लोगों को बाबुल की बंधुआई से छुड़ाने और अपने देश में फिर से बसाने की भविष्यवानी, यशायाह नबी के द्वारा की गयी थी। बहाली(रिहाई) की उस भविष्यवाणी में यह प्रतिज्ञा दी गयी थी :-- " वहाँ एक सड़क अर्थात् राजमार्ग होगा उसे " पवित्र मार्ग " कहा जाएगा --Isa35:8. ये शब्द दिखाते हैं कि यहोवा ने न सिर्फ यहूदियों के लिए अपने देश लौटने का मार्ग खोला, बल्कि यात्रा(सफर) भर उनकी रक्षा व सुरक्षा करने का भरोसा भी दिलाया।

आज हमारे लिये भी यहोवा परमेश्वर ने " पवित्र मार्ग " खोला है। हम मसीहियों को बड़े बाबुल से अर्थात् दुनिया भर में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्म के चुंगल से छुड़ाया है। हम झूठी शिक्षा के बहकावें में नहीं हैं और शुध्द तरीके से परमेश्वर की उपासना करने लगे हैं। आज परमेश्वर की कलीसिया में शुध्दता और शांति पायी जाती है।हम परमेश्वर की संगति कर पाते हैं और उसके सम्मुख आते हैं और परमेश्वर के साथ अच्छा सम्बन्ध स्थापित करने में दृढ़ता की ओर आगे बढ़ते हैं।

 Lk12:32(स्वर्गीय धन) -
32 हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे। 

Jn10:16(यीशु अच्छा चरवाहा) -
16 और मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे उन का भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा। 

Rev7:9(एक बड़ी भीड़) - 
9 इस के बाद मैं ने दृष्टि की, और देखो, हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था श्वेत वस्त्र पहिने, और अपने हाथों में खजूर की डालियां लिये हुए सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी हैै!                                                         

यह मार्ग उन सभी के लिये खुला है जैसा Ro12:1 में लिखा है -- इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। 

" अशुध्द जन उस पर न चलने पाएगा "                    यहूदियों का यरूशलेम लौटने का मकसद था, यहोवा की शुध्द उपासना को फिर से कायम करना। इसलिए जो लोग स्वार्थी थे, पवित्र वस्तुओं का आदर नहीं करते थे या आध्यात्मिक तरीके से अशुध्द थे, वे " पवित्र मार्ग " पर चलने बिल्कुल भी लायक नहीं थे। बंधुवाई से लौटनेवाले यहूदियों के लिए यह बहुत ही आवश्यक था कि वे यहोवा के ऊँचे नैतिक स्तरों को मानें।

 2Co7:1--> सो हे प्यारो जब कि ये प्रतिज्ञाएं हमें मिली हैं, तो आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।

 Gal5:19-21(अशुध्द जन) ->
19 शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन। 
20 मूर्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म। 
21 डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इन के जैसे और और काम हैं, इन के विषय में मैं तुम को पहिले से कह देता हूं जैसा पहिले कह भी चुका हूं, कि ऐसे ऐसे काम करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे। 

 Eph4:19 -> और वे सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें। 

 Php4:8(एकता, आनन्द और शांति) ->
8 निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, 
निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो। 

Col3:5 -> इसलिये अपने उन अंगो को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्ति पूजा के बराबर है।

शैतान की दुनिया न सिर्फ अशुध्द कामों की छूट देती है, बल्कि इन्हें बढ़ावा भी देती है। जब हमें ऐसे कामों के लिए लुभाया जाता है तो उसे ठुकराना हमारे लिए चुनौती हो सकती है। मगर हम मसीहियों को चाहिए कि वे अन्यजाति के लोगों के जैसे अपने मन की अनर्थ रीति पर न चलें।

 चाहे चुपके -चुपके या खुलेआम किए जानेवाले अशुध्द काम हों, अगर हम इनसे परे न रहें, तभी यहोवा हमें " पवित्र मार्ग " पर चलते रहने की इजाज़त देगा।

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 Isa35:9 -> वहाँ सिंह न होगा और न कोई हिंसक जन्तु उस पर न चढ़ेगा न वहाँ पाया जाएगा, परन्तु छुड़ाए हुए उसमें नित चलेंगे। 
                      
 सिंह = डाकू व लूटेरा।
हिंसक जन्तु = हत्यारा व क्रोधी।
छुड़ाए हुए = पाश्चतापी लोग।

परमेश्वर यहोवा जो पवित्र है - का अनुग्रह पाने के लिए, शायद कुछ लोगों को अपनी बातचीत(बोली) और अपने व्यवहार (चालचलन) में बड़े बड़े बदलाव करने पड़े हैं।
 

Isa11:6 (शांति का राज्य) -
6 तब भेडिय़ा भेड़ के बच्चे के संग रहा करेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साथ बैठा रहेगा, और बछड़ा और जवान सिंह और पाला पोसा हुआ बैल तीनों इकट्ठे रहेंगे, और एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा। 

Isa65:25(नया आकाश और नई पृथ्वी) -
25 भेडिय़ा और मेम्ना एक संग चरा करेंगे, और सिंह बैल की नाईं भूसा खाएगा; और सर्प का 
आहार मिट्टी ही रहेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई किसी को दु:ख देगा और न कोई किसी की हानि करेगा, यहोवा का यही वचन है।

Eph4:31(मसीह में नया जीवन) -
31 सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए। 
Col3:8 (पुराना जीवन और नया जीवन) -
8 पर अब तुम भी इन सब को अर्थात क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा, और मुंह से गालियां बकना ये सब बातें छोड़ दो। 

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Isa35:10 -  और यहोवा के छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए सिय्योन में आएंगे; और उनके सिर पर सदा का आनन्द होगा; वे हर्ष और आनन्द पाएंगे और शोक और लम्बी सांस का लेना जाता रहेगा।
                     
पवित्र परमेश्वर यहोवा की सेवा करना हमारे लिये बड़े सम्मान की बात है। यहोवा हमें जिस आध्यात्मिक राज्य में लाया है वह हमारे लिये बहुत अनमोल है। बेशक, यहोवा की दृष्टि में अपना चाल-चलन शुध्द बनाए रखना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है।

अब वह दिन दूर नहीं, जब समस्त संसार में " ईश्वर का राज्य " में बदल जाएगा। जो लोग  "परमेश्वर की राज्य" की आशा लगाए हुए हैं और परमेश्वर की शिक्षा पर चल रहे हैं उन्हें उसमें जीने की आशीष मिलेगी। आइए, हम लगातार परमेश्वर की स्तुती, प्रशंसा शुध्द मन से करें और उसके साथ सदैव संगति बनाएँ रखें।जैसा लिखा है - 

Isa35:1-2 -
1 जंगल और निर्जल देश प्रफुल्लित होंगे, मरूभूमि मगन हो कर केसर की नाईं फूलेगी; 
2 वह अत्यन्त प्रफुल्लित होगी और आनन्द के साथ जयजयकार करेगी। उसकी शोभा लबानोन की सी होगी और वह कर्मेल और 
शारोन के तुल्य तेजोमय हो जाएगी। वे यहोवा की शोभा और हमारे परमेश्वर का तेज देखेंगे॥ 

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