|| यीशु ने कहा, "देखो, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ। मेरा पुरस्कार मेरे पास है और मैं प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों का प्रतिफल दूँगा। मैं अल्फा और ओमेगा; प्रथम और अन्तिम; आदि और अन्त हूँ।" Revelation 22:12-13     
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परमेश्वर की असीमित बुध्दिमता व अबोधगम्य


 
Romans11:33-36 -
33 आहा! परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं! 
34 प्रभु कि बुद्धि को किस ने जाना या उसका मंत्री कौन हुआ? 
35 या किसने पहिले उसे कुछ दिया है जिस का बदला उसे दिया जाए। 
36 क्योंकि उस की ओर से, और उसी के द्वारा, और उसी के लिये सब कुछ है: उस की महिमा युगानुयुग होती रहे: आमीन। 
Ro11:33-36Doxology(परमेश्वर की महिमा) 
33 Oh, the depth of the riches of the wisdom and knowledge of God! How unsearchable his judgments, and his paths beyond tracing out! 
34 “Who has known the mind of the Lord? Or who has been his counselor?” 
35“Who has ever given to God, that God should repay them?” 
36 For from him and through him and for him are all things. To him be the glory forever! Amen.
वचनों का व्याख्यान
Ro11:33-36 - 
यहूदियों और अन्यजातियों पर परमेश्वर की करूणा का विचार (पद) 32 क्योंकि परमेश्वर ने सब को आज्ञा न मानने के कारण बन्द कर रखा ताकि वह सब पर दया करे।) इस महान आशीष वचन को जन्म देता है ।
-Ro11:36 - परमेश्वर ही सभी 
(a)वस्तुओं का स्त्रोत (उसकी ओर से ) 
(b)संभालने वाले (उसी के द्वारा ) 
(c)और लक्ष्य (उसी के लिए ) है ।
परमेश्वर का -- 
- धन (वैभव)- 
-परमेश्वर ने भौतिक जगत की उत्पत्ति की और उसे मनुष्य के आनन्द के लिए दे दिया। परन्तु इसमें सदा यह खतरा है कि परमेश्वर द्वारा दिए गए वरदान का मनुष्य दुरूपर्योग करेगा। 
-बाइबल बतलाता हैं कि धन-सम्पति परमेश्वर की ओर से एक वरदान हो सकता है जिसका मनुष्य को आनन्द उठाना चाहिए। 
-धन-सम्पति का एक खतरा यह है कि यह मनुष्य में स्वतंत्रता की ऐसी भावना भर देता है जिससे कि लोग परमेश्वर में वैसा विश्वास नहीं करते जैसा उन्हें करना चाहिए।
-कुछ लोग धनी बनने की इतनी अधिक अभिलाषा रखते हैं कि उनकी धन-सम्पत्ति उनके लिए देवी-देवता के समान हो जाती है। ऐसी धन-सम्पत्ति से छुटकारा पाकर ही वे अनन्त जीवन पा सकते हैं। यध्दपि यीशु ने अपने शिष्यों से धन-सम्पत्ति छोड़ने के लिए नही कहा फिर भी उसने परमेश्वर के प्रति भक्ति या दूसरों के प्रति चिन्ता के बदले धन के प्रति लालसा रखने के खतरे से सावधान किया।
बुध्दि (Wisdom)- 
-परमेश्वर की मनुष्य के प्रति एक इच्छा यह है कि लोग सीखें और व्यवहारिक ज्ञान में विकसित हो जिससे कि वे बुध्दिमानी और ईमानदारी के साथ रह सकें। इस प्रकार उनका जीवन उपयोगी होगा और इससे परमेश्वर प्रसन्न होगा तथा उनको व दूसरो को लाभ होगा। 
-व्यवहारिक और परमेश्वर केन्दित- 
✔परमेश्वर सच्ची बुध्दि का स्त्रोत है और वह इसे इसके खोजनेवालों को देता है। 
-इस सम्मान के बिना बुध्दि, स्वार्थी और संसारिक होगी और इसकी विशेषता अभक्तिपूर्ण व्यवहार जैसे ईर्ष्या और छल होगा। 
-परमेश्वर तथा मनुष्य की बुध्दि- 
✔यध्दपि परमेश्वर उस सम्पूर्ण बुध्दि का मूल है जो मनुष्य के पास है परन्तु फिर भी मनुष्य की बुध्दि सीमित है। परमेश्वर की बुध्दि असीम है।यह अनन्त है इसलिए मनुष्य की समझ से परे है। अपनी बुध्दि के द्वारा परमेश्वर ने सृष्टि की उत्पत्ति की और वह बुध्दि के ही द्वारा इसे नियंन्त्रित करता है उसके उध्दार की योजना जो पापियों के लिए है उससे लोगों तथा स्वर्दूतों को उसकी बुध्दि का पता चलता है कि वह अनन्त है। 
-उध्दार में परमेश्वर की बुध्दि यीशु मसीह में अर्थात् उसके जीवन और उसकी मृत्यु में अभिव्यक्त हुई।

ज्ञान (Knowledge)--- 
(a) पार्थिव--

--1Co1:19-20; 26-27-- 
19 क्योंकि लिखा है, कि मैं ज्ञानवानों के ज्ञान को नाश करूंगा, और समझदारों की समझ को तुच्छ कर दूंगा। 
20 कहां रहा ज्ञानवान? कहां रहा शास्त्री? कहां इस संसार का विवादी? क्या परमेश्वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया? 
26 हे भाइयो, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए। 
27 परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है, कि ज्ञान वालों को लज्ज़ित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्ज़ित करे। 
✔1Co2: 5,13-- 
5 इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो॥ 
13 जिन को हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला मिला कर सुनाते हैं। 
--1Co3:18-20-- 
18 कोई अपने आप को धोखा न दे: यदि तुम में से कोई इस संसार में अपने आप को ज्ञानी समझे, तो मूर्ख बने; कि ज्ञानी हो जाए। 
19 क्योंकि इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है, जैसा लिखा है; कि वह ज्ञानियों को उन की चतुराई में फंसा देता है। 
20 और फिर प्रभु ज्ञानियों की चिन्ताओं को जानता है, कि व्यर्थ हैं। 
✔James3:3,16-- 
3 जब हम अपने वश में करने के लिये घोड़ों के मुंह में लगाम लगाते हैं, तो हम उन की सारी देह को भी फेर सकते हैं। 
16 इसलिये कि जहां डाह और विरोध होता है, वहां बखेड़ा और हर प्रकार का दुष्कर्म भी होता है। ईश्वर द्वारा प्रदत्त ज्ञान- 
✔मिथ्या ज्ञान-- 
-1Ti6:20-21- 
20 हे तीमुथियुस इस थाती की रखवाली कर और जिस ज्ञान को ज्ञान कहना ही भूल है, उसके अशुद्ध बकवाद और विरोध की बातों से परे रह। 
21 कितने इस ज्ञान का अंगीकार करके, विश्वास से भटक गए हैं॥ तुम पर अनुग्रह होता रहे॥ 
(a)ईश्वर का ज्ञान-- ईश्वर पूर्ण, पवित्र, सर्वज्ञ और सर्वव्य्पी है। 
(b)यीशु मसीह का ज्ञान-- मसीह में "प्रज्ञा तथा ज्ञान की सम्पूर्ण निधि निहित है। 
(c)मसीह में अलौकिक ज्ञान। 
--Mt13:54-- 
54 और अपने देश में आकर उन की सभा में उन्हें ऐसा उपदेश देने लगा; कि वे चकित होकर कहने लगे; कि इस को यह ज्ञान और सामर्थ के काम कहां से मिले? 
--Lk2:40,47,52-- 
40 और बालक बढ़ता, और बलवन्त होता, और बुद्धि से परिपूर्ण होता गया; और परमेश्वर का अनुग्रह उस पर था। 
47 और जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे। 
52 और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया॥

मन (इच्छा/विचार) - अथाह
मार्ग - अगम 
✔प्रभु की बुध्दि --
✔ प्रभु को देने के बदले में पाने की आशा --
Ro11:33-- 
The Riches(धन)-- 
✔1. Ro2:4- परमेश्वर की कृपा - 
4 क्या तू उस की कृपा, और सहनशीलता, और धीरज रूपी धन को तुच्छ जानता है और क्या यह नहीं समझता, कि परमेश्वर की कृपा तुझे मन फिराव को सिखाती है?
2.Ro9:23- 
23 और दया के बरतनों पर जिन्हें उस ने महिमा के लिये पहिले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की।
✔3.Ro10:12- जाति व धर्म का भेद नहीं- 
12 यहूदियों और यूनानियों में कुछ भेद नहीं, इसलिये कि वह सब का प्रभु है; और अपने सब नाम लेने वालों के लिये उदार है। 
13 क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।
4.Ro11:12-
✔5. Eph1:7-8- लोहू के द्वारा छुटकारा- 
7 हम को उस में उसके लोहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है। 
8 जिसे उसने सारे ज्ञान और समझ सहित हम पर बहुतायत से किया। 
✔6.Eph2:7- मसीह की कृपा- 
7 कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए। 
8 क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। 
7.Eph3:8.16- 
✔8.Php4:19- घटी को पूरी करता-
19 और मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा।
9.Col1:27- 
27 जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है।
✔ईश्वरीय गुण और योजना- 
Isa55:1-7- 
1 अहो सब प्यासे लोगो, पानी के पास आओ; और जिनके पास रूपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रूपए और बिना दाम ही आकर ले लो। 
2 जो भोजनवस्तु नहीं है, उसके लिये तुम क्यों रूपया लगाते हो, और जिस से पेट नहीं भरता उसके लिये क्यों परिश्रम करते हो? मेरी ओर मन लगाकर सुनो, तब उत्तम वस्तुएं खाने पाओगे और चिकनी चिकनी वस्तुएं खाकर सन्तुष्ट हो जाओगे। 
3 कान लगाओ, और मेरे पास आओ; सुनो, तब तुम जीवित रहोगे; और मैं तुम्हारे साथ सदा की वाचा बान्धूंगा अर्थात दाऊद पर की अटल करूणा की वाचा। 
4 सुनो, मैं ने उसको राज्य राज्य के लोगों के लिये साक्षी और प्रधान और आज्ञा देने वाला ठहराया है। 
5 सुन, तू ऐसी जाति को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और ऐसी जातियां जो तुझे नहीं जानतीं तेरे पास दौड़ी आएंगी, वे तेरे परमेश्वर यहोवा और इस्राएल के पवित्र के निमित्त यह करेंगी, क्योंकि उसने तुझे शोभायमान किया है॥ 
6 जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो; 
7 दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा।
Ro11:34- 
✔Isa40:13-14- 
13 किस ने यहोवा की आत्मा को मार्ग बताया वा उसका मन्त्री हो कर उसको ज्ञान सिखाया है? 
14 उसने किस से सम्मति ली और किस ने उसे समझाकर न्याय का पथ बता दिया और ज्ञान सिखा कर बुद्धि का मार्ग जता दिया है? 
✔1Co2:16- 
16 क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखलाए? परन्तु हम में मसीह का मन है॥
Ro11:35- 
✔Job35:7- 
7 यदि तू धमीं है तो उसको क्या दे देता है; वा उसे तेरे हाथ से क्या मिल जाता है? 
✔Job41:11- 
11 किस ने मुझे पहिले दिया है, जिसका बदला मुझे देना पड़े! देख, जो कुछ सारी धरती पर है सो मेरा है।
Ro11:36- God the Father- 
✔1Co11:12- 
12 क्योंकि जैसे स्त्री पुरूष से है, वैसे ही पुरूष स्त्री के द्वारा है; परन्तु सब वस्तुएं परमेश्वर से हैं। 
God the Son-
✔1Co8:6- 
6 तौभी हमारे निकट तो एक ही परमेश्वर है: अर्थात पिता जिस की ओर से सब वस्तुएं हैं, और हम उसी के लिये हैं, और एक ही प्रभु है, अर्थात यीशु मसीह जिस के द्वारा सब वस्तुएं हुईं, और हम भी उसी के द्वारा हैं। 
✔Col1:16- 
16 क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। 
✔Heb2:10- 
10 क्योंकि जिस के लिये सब कुछ है, और जिस के द्वारा सब कुछ है, उसे यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुंचाए, तो उन के उद्धार के कर्ता को दुख उठाने के द्वारा सिद्ध करे।
सदा परमेश्वर की महिमा करे -
✔Father 1.Ro16:27- 
27 उसी अद्वैत बुद्धिमान परमेश्वर की यीशु मसीह के द्वारा युगानुयुग महिमा होती रहे। आमीन। 
2.Eph3:21-
21 कलीसिया में, और मसीह यीशु में, उस की महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन। 
3.Php4:20- 
20 हमारे परमेश्वर और पिता की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन। 
4.1Pe4:11- 
11 यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले, मानों परमेश्वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे; तो उस शक्ति से करे जो परमेश्वर देता है; जिस से सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो: महिमा और साम्राज्य युगानुयुग उसी की है। आमीन॥ 
5. 1Pe5:11- 
11 उसकी शक्ति अनन्त है। 
6.Jude25- 
25 उस अद्वैत परमेश्वर हमारे उद्धारकर्ता की महिमा, और गौरव, और पराक्रम, और अधिकार, हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जैसा सनातन काल से है, अब भी हो और युगानुयुग रहे। आमीन। 
✔7.Rev5:13- 
13 फिर मैं ने स्वर्ग में, और पृथ्वी पर, और पृथ्वी के नीचे, और समुद्र की सब सृजी हुई वस्तुओं को, और सब कुछ को जो उन में हैं, यह कहते सुना, कि जो सिंहासन पर बैठा है, उसका, और मेम्ने का धन्यवाद, और आदर, और महिमा, और राज्य, युगानुयुग रहे। 
8. Rev7:12- 
12 हमारे परमेश्वर की स्तुति, और महिमा, और ज्ञान, और धन्यवाद, और आदर, और सामर्थ, और शक्ति युगानुयुग बनी रहें। आमीन। 
✔Son 1Ti1:17- 
17 अब सनातन राजा अर्थात अविनाशी अनदेखे अद्वैत परमेश्वर का आदर और महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन॥ 
✔2Ti4:18- 
18 और प्रभु मुझे हर एक बुरे काम से छुड़ाएगा, और अपने स्वर्गीय राज्य में उद्धार कर के पहुंचाएगा: उसी की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।
✔2Pe3:18- 
18 पर हमारे प्रभु, और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाओ। उसी की महिमा अब भी हो, और युगानुयुग होती रहे। आमीन।
Rev1:16- 
16 और वह अपने दाहिने हाथ में सात तारे लिए हुए था: और उसके मुख से चोखी दोधारी तलवार निकलती थी; और उसका मुंह ऐसा प्रज्वलित था, जैसा सूर्य कड़ी धूप के समय चमकता है। Amen-
Ro1:25- 
25 क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन।

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