I. पतरस का परिचय |
1. Peter=> a rock or stone. |
2. शमौन पतरस यीशु के आरम्भिक विश्वासियों में से एक था।अपने भाई के समान सभ्भवत: वह भी यूहन्ना बपतिस्ता का चेला उस समय तक बना रहा जब तक कि स्वयं ने उनका परिचय यीशु से न कराया था। |
3. उन दोनों में से, जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे,एक शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास था। उसने पहले अपने सगे भाई शमौन से मिलकर उससे कहा, " हम को ख्रीस्त, अर्थात मसीह मिल गया।"- Jn1:40-41. Ac1:15,21-22 |
4.यीशु ने पतरस में अगुवाई करने की विशेषताओं को तुरन्त पहिचानकर उसे एक नया नाम पतरस या कैफा दिया जिसका अर्थ है चट्टान।इन दोनों नामों के अर्थ यूनानी और अरामी भाषा में चट्टान है। --Jn1:42. |
5.यीशु से पतरस की भेंट यरदन की घाटी में हुई थी। ---Jn1:28-29,35. |
6. अधिक दिन न बीते थे कि गलील में फिर भेंट होने पर पतरस अपने पैतृक व्यवसाय को छोड़ कर यीशु के आरम्भिक चेलों में सम्मिलित हो गया। ---Mt4:18-22. |
7.जब यीशु ने अपने 12 चेलों को चुना और प्रेरित ठहराया तो पतरस का नाम इस सूची में सबसे आगे था। ---Mt10:2. |
8.पतरस का निवास-- यूहन्ना ( योना) नाम के व्यक्ति का पुत्र पतरस गलील की झील के किनारे के बैतसैदा का रहनेवाला था। ---Mt16:17.Jn1:42.44.21:15. |
9.उसका या उसकी पत्नी के माता पिता का एक घर झील के पास के एक नगर कफरनहूम में भी था जो बाद में यीशु के कार्यक्षेत्र का केंद्र बन गया था। ---Mk1:21.29-30.2:1. |
10.पतरस का व्यवसाय --- पतरस और अन्द्रियास झील से मछली पकड़ने का धन्धा करते थे।इस व्यवसाय में उनकी साझेदारी याकूब और यूहन्ना नाम के दो भाईयों के साथ थी। --- Mt4:18.Lk5:10. |
11.शिक्षा देने में निपुण --- ये सब व्यक्ति यीशु के प्रेरित बन गए थे। यद्यपि उन्होंने यहूदी आराधनालयों में कभी शिक्षा नहीं पाई थी फिर भी यीशु के साथ रहने के कारण उनमें शिक्षक के गुण थे और वे शिक्षा देने में कुशल हो गए थे। ----Ac4:13. |
12 . नेतृत्व करने की क्षमता -- आरम्भ ही से पतरस ने अपने आप को उत्साही, विश्वास में दृढ़ और निर्णय लेकर तुरन्त कार्य करने वाला प्रमाणित किया। ○यीशु जानता था कि पतरस में कई ऐसे गुण हैं जिनके द्वारा वह बाद एक साहसी और सामर्थी अगुवा बन सकता है। ---Mk14:29.66-72.Lk22:31-34. |
13.यीशु द्वारा प्रदत्त विशेष उत्तरदायित्व -- यीशु की सेवा के बढ़ने के साथ पतरस, याकूब और यूहन्ना इस छोटे झुण्ड में प्रसिद्ध हो गए और यीशु ने इन्हें विशेष उत्तरदायित्व और विशेषाधिकार सौंपा। ----Mk5:37.9:12.14:33. |
14.12 चेलों का अगुवा --- पतरस इन 12 चेलों का अगुवा और इनकी ओर से बोलने वाला हो गया। ---Mk1:36-37.10:27-28.Lk12:41 Jn6:67-68.13:24.21:2-3. |
15 .यीशु ने पतरस के उत्तर को स्वीकारा-- एक बार जब यीशु ने अपने चेलों से प्रश्न करके जानना चाहा कि क्या वे उसे मसीह मानते हैं तब ऐसा प्रतीत होता है कि यीशु ने इस छोटे झुण्ड की ओर से पतरस के उत्तर को स्वीकार किया।पतरस को उत्तर देते हुए यीशु ने इन चेलों से कहा कि वे ऐसी नींव बनेंगे जिस पर वह अपनी अजेय कलीसिया का निर्माण करेगा। ---Mt16:13-18.Eph2:20. |
16.परीक्षा के समय में असफल -- परन्तु जब पतरस की परीक्षा का महान अवसर आया तो उसने यीशु का 03 बार इन्कार किया। ----Lk22:61-62. यीशु का दर्शन उपरान्त भक्ति - भाव उजागर --- |
17 . यीशु के पुनरुत्थान पश्चात दर्शन -- अतः यीशु ने पुनरुत्थान के पश्चात पतरस पर विशेष ध्यान दिया।उसने अन्य शिष्यों को दर्शन देने से पहिले पतरस को दर्शन दिया।और बाद में पतरस ने प्रभु के प्रति अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति सब लोगों के सामने की। ---Lk24:34.1Co15:5.Mk16:7. |
18.आरभ्मिक कलीसिया--- |
(1)कलीसिया के आरम्भिक दिनों में पतरस में बहुत बदलाव आया।वह महत्वपूर्ण झगड़ों को सुलझाने में अगुवों के समान काम करता था और वह मुख्य प्रचारक भी था। ----Ac1:15.5:3.9,2:14,3:12,8:20. |
(2)परन्तु बाद में वह यीशु के प्रति भक्ति के कारण परखे जाने पर कभी असफल नहीं हुआ।वह मसीह के जी उठने की जीवित सामर्थ्य में विश्वास रखता था। ---Ac2:33,3:6.16,4:10.29-30. |
(3)जब उसे यहूदी अधिकारियों के समक्ष घसीटा गया तो उसने उन्हें निर्भीकता से उत्तर दिया और यीशु के प्रति अपनी पूर्ण स्वामिभक्ति का परिचय दिया। ---Ac4:8-13,19-20,5:18-21,29-32, 40-42. |
(4)एक बार प्रान्त के गवर्नर ने उसकी हत्या की योजना बनाई परन्तु वह कलीसिया के लोगों की प्रार्थनाओं के कारण वहाँ से बिना हानि उठाए निकल गया। ---Ac12:1-17, 1Pe2:21-23,4:19. |
(5)गैरयहूदियों के प्रति पतरस के स्वभाव के बदलने का एक कारण उस पर पौलुस का प्रभाव था।ये दोनों व्यक्ति यरुशलेम में पौलुस के मन - परिवर्तन के 03 वर्ष पश्चात फिर मिले। |
(6)यद्यपि पतरस अपनी सेवा का विशेष क्षेत्र यहूदियों में मानता था।फिर भी उसने सीरिया के अन्ताकिया की गैरयहूदी कलीसिया का भ्रमण किया और वहाँ के गैरयहूदी मसीहियों के साथ स्वतन्त्रता से भोजन किया।जब यहूदी कट्टरवादियों ने खाने-पीने सम्बन्धी यहूदी व्यवस्था का उल्लंघन करने के विरोध में उसकी आलोचना की तो वह गैरयहूदियों के पास लौट आया।इस पर पौलुस ने इस व्यवहार के लिए सबके सामने झिड़का और पतरस ने अपनी भूल स्वीकार कर लिया। ---Gal2:7, 11-14. |
(7)जब यरुशलेम में कलीसिया के अगुवों ने कलीसिया के गैरयहूदियों के सम्बन्ध में विचार-विमर्श किया तब पतरस ने सबके सामने निर्भीकता से पौलुस का साथ दिया। ---Ac15:7-11. |
19.Letters of Peter-- |
1)पहिली पत्री--(भयंकर सताव से बचाने )
(a) ई.सन्-54-58 में रोमी सम्राट नीरो का शासनकाल था और मसीहियों पर सब जगह सताए बढ़ रहा था। पत्री लिखते समय पतरस रोम में था। यह राज्य का मध्य भाग था और यही वह भाग था जिसे मसीही लोग बेबीलोन कहते थे क्योंकि इसी स्थान पर परमेश्वर के लोगों को सबसे बुरी रीति से सताया जाता था।
(i)1Pe5:13. पौलुस को कुछ ही समय पहिले दण्डित किया गया था।
(ii)2Ti4:6. और पतरस का विचार था कि इस से भी भयंकर सताव पड़ने वाला है--की जानकारी देकर मसीहियों को बचाने के उद्देश्य से पत्र लिखा। ✔यह काला सागर की सीमा पर स्थित एशिया माइनर के उत्तरी प्रान्त के मसीहियों को सम्बोधित किया गया था। |
(2) दूसरी पत्री---(झूठे नबियों से सतर्क )
(a)पतरस ने प्रथम पत्री को लिखने के लगभग 01 वर्ष पश्चात उन्ही लोगों को दूसरा पत्र लिखा।संभवतः इस दरम्यान पतरस रोम में कैद था।और मृत्युदंड की आशा रखता था।जिसकी भविष्यवाणी यीशु ने लगभग 30 वर्ष पहिले कर दी थी। ---2Pe1:13-15,Jn21:18-19.
(b)जब उसने सुना कि झूठे शिक्षक कलीसिया में गड़बड़ी फैला रहे हैं तब उसने तुरन्त इस पत्र को भेजकर लोगों को इन झूठे शिक्षकों से सतर्क रहने का आग्रह किया। |
(20.) पतरस की मृत्यु-- ✔परम्परागत रीति से माना जाता है कि पतरस को रोम में ई. सन् 65-69 के मध्य क्रूस पर उलटा लटकाकर प्राणदण्ड दिया गया था।प्रेरितों के प्रमुख शमौन केफा का उल्टा सूली पर चढ़ाए जाने का उनका अनुरोध इसी उद्देश्य से था कि "प्रतीकात्मक रूप से यीशु के पैरों के स्थान को चूमते हुए" मरना। |
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II.यीशु के जीवन काल में पतरस का चरित्र-चित्रण |
1 . बुलाहट- |
(1)Jn1:40-42---जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे,और उन दोनों में से एक शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास था।41 उसने प्रातः अपने भाई शमौन से मिलकर कहा, "हमें मसीह" (अर्थात ख्रीस्त) मिल गये हैं।42 और वह उसे यीशु के पास ले गया।यीशु ने उसे देखकर कहा, " तुम यूहन्ना के पुत्र शमौन हो ।तुम कैफा कहलाओगे ।
(2)Mt4:19-20---18गलील के समुद्र के किनारे टहलते हुए यीशु ने दो भाईयों को देखा-- शमौन, जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को।वे समुद्र में जाल डाल रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।19 यीशु ने उनसे कहा," मेरे पीछे चले आओ।मैं तुम्हें मनुष्यों के मुए बनाऊँगा।"20 वे तुरन्त अपने जाल छोड़कर उनके पीछे हो लिये। |
2. प्रेरित --Mt10:2--12 प्रेरितों के नाम इस प्रकार है--
1 . शमौन, जो पतरस कहलाता है, और उसका भाई
2अन्द्रियास; जब्दी का पुत्र
3याकूब और उसका भाई
4 यूहन्ना;
5 फिलिप्पुस और
6बरतुल्मै ;
7 थोमा और
8 महसूल लेनेवाला मत्ती;
9हलफई का पुत्र
10 याकूब और
11 तद्धै ;
12शमौन कनानी और यहूदा इस्कारियोती, जिसने यीशु को पकड़वाया।... |
3 . समुद्र पर चलना-
Mt14:28-31- पतरस ने उत्तर दिया, "प्रभु ! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की आज्ञा दीजिए"।29 यीशु ने कहा, "आ जाओ"।पतरस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए यीशु की ओर बढ़ा; 30 किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा, तो चिल्ला उठा,"प्रभु ! मुझे बचाइए"।3 1 यीशु ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, "अल्पविश्वासी ! तुम्हें सन्देह क्यों हुआ ? |
4 . यीशु में विश्वास--
Mt16:13-20-- यीशु ने कैसरिया फिलिपी प्रदेश पहुँच कर अपने शिष्यों से पूछा, "मानव पुत्र कौन है, इसके विषय में लोग क्या कहते हैं ? " 14 उन्होंने उत्तर दिया, "कुछ लोग कहते हैं--यूहन्ना बपतिस्ता ; कुछ कहते हैं--एलियस; और कुछ लोग कहते हैं---यिर्मयाह अथवा नबियों में से कोई "।15 इस पर यीशु ने कहा, "और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूं ?"16 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, "आप मसीह हैं, आप जीवन्त ईश्वर के पुत्र हैं"।17 इस पर यीशु ने उस से कहा, " शमौन, योना के पुत्र! तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुष्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रगट किया है।18 मैं तुम से कहता हूँ कि तुम पतरस अर्थात चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा और अधोलोक के फाटक इसके सामने टिक नहीं पायेंगे।19 मैं तम्हें स्वर्गराज्य की कुंजियां प्रदान करुगाँ। तुम पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।" 20 इसके बाद यीशु ने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि तुम लोग किसी को भी यह नहीं बताओ कि मैं मसीह हूँ।
Jn6:67-69--इसलिए यीशु ने 12 वों से कहा,"क्या तुम लोग भी चले जाना चाहते हो? "68 शमौन पतरस ने उन्हें उत्तर दिया, "प्रभु! हम किसके पास जायें! आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का सन्देश है।69 हम विश्वास करते और जानते हैं कि आप ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष हैं। |
5 . विशेष अधिकार --
Mt16:16-19--
Jn21:15-19--जलपान के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, " शमौन, यूहन्ना के पुत्र।क्या इनकी अपेक्षा तुम मुझे अधिक प्यार करते हो ?"उसने उन्हें उत्तर दिया, "जी हाँ, प्रभु ! आप जानते हैं कि मैं आपको प्यार करता हूँ।उन्होंने पतरस से कहा, मेरे मेमना को चरिओ"।16 यीशु ने दूसरी बार उस से कहा, "शमौन, यूहन्ना के पुत्र ! क्या तुम मुझे प्यार करते हो ? उसने उत्तर दिया, " जी हाँ, प्रभु ! आप जानते हैं कि आप को प्यार करता हूँ । उन्होंने पतरस से कहा, "मेरी भेड़ों को चराओ"।17 यीशु ने तीसरी बार उससे कहा, " शमौन, यूहन्ना के पुत्र ! क्या तुम मुझे प्यार करते हो ?" पतरस को इस से दु:ख हुआ कि उन्होंने तीसरी बार उस से यह पूछा, 'क्या तुम मुझे प्यार करते हो 'और उसने यीशु से कहा, "प्रभु ! आप को तो सब कुछ मालूम है।आप जानते हैं कि मैं आपको प्यार करता हूँ ।" यीशु ने उस से कहा, " मेरी भेड़ों को चराओ । 18" मैं तुम से यह कहता हूँ-- जवानी में तुम स्वयं अपनी कमर कसकर जहाँ चाहते थे, वहाँ घूमते -फिरते थे; लेकिन बुढ़ापे में तुम अपने हाथ फैला दोगे और दूसरा व्यक्ति तुम्हारी कमर कसकर तुम्हें वहाँ ले जायेगा, जहाँ तुम जाना नहीं चाहते।" 19 इन शब्दों से यीशु ने संकेत किया कि किस प्रकार की मृत्यु से पतरस द्वारा ईश्वर की महिमा का विस्तार होगा।यीशु ने अन्त में पतरस से कहा, " मेरा अनुसरण करो "। |
6 . मंदिर का कर--
Mt17:24-27--जब वे कफरनहूम आये थे, तो मन्दिर का कर उगाहने वालों ने पतरस के पास आ कर पूछा, " 25 क्या तुम्हारे गुरु मन्दिर का कर नहीं देते ?"उसने उत्तर दिया, "देते हैं"।जब पतरस घर पहुंचा तो उसके कुछ कहने से पहले ही यीशु ने पूछा, "शमौन ! तुम्हारा क्या विचार है ? दुनिया के राजा किन लोगों से चुंगी या कर लेते है -अपने ही पुत्रों से या परायों से ?" 26 पतरस ने उत्तर दिया, "परायों से"।इस पर यीशु ने उस से कहा, " तब तो पुत्र कर से मुक्त है।27 फिर भी हम उन लोगों को बुरा उदारहण न दें; इसलिए तुम समुद्र के किनारे जा कर बंसी डाओ।जो मछली पहले फंसेगी, उसे पकड़ लेना और उसका मुहं खोल देना।उस में तुम्हें एक सिक्का मिलेगा। उसे ले लेना और मेरे तथा अपने लिए उनको दे देना।" |
7 . प्रतिवाद और यीशु की डांट--
Mt16:22-23:- पतरस यीशु को अलग ले गया और उन्हें यह कहते हुए समझाने लगा, " ईश्वर ऐसा न करे।प्रभु ! यह आप पर कभी नहीं बीतेगी।"23 इस पर यीशु ने मुड़कर, पतरस से कहा, " हट जाओ, शैतान ! तुम मेरे रास्ते में बाधा बन रहे हो। तुम ईश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो।" |
8.अस्वीकरण की भविष्यवाणी---
Mt26:33-35:- इस पर पतरस ने यीशु से कहा, " आपके कारण चाहे सभी विचलित हो जायें, किन्तु मैं कभी विचलित नहीं होऊँगा "।34 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "मैं तुम से, यह कहता हूँ--इसी रात को, मुर्गे बांग देने से पहले ही, तुम मुझे 03 बार अस्वीकार करोगे"।35 पतरस ने उनसे कहा, "मुझे आपके साथ चाहे मरना ही क्यों न पड़े, मैं आप को कभी अस्वीकार नहीं करुगाँ।और सब शिष्यों ने यही कहा। |
9.मलखस का कान उड़ाता है--
Jn18:10:-- उस समय शमौन पतरस ने अपनी तलवार खींच ली और प्रधानयाजक के नौकर पर चला कर उसका दाहिना कान उड़ा दिया।उस नौकर का नाम मलखुस था। |
10.पतरस का अस्वीकरण--
Mt26:69-75:-- पतरस उस समय बाहर प्रांगण में बैठा हुआ था।एक नौकरानी ने पास आकर उससे कहा, " तुम भी तो यीशु गलीली के साथ थे" 70किन्तु उसने सब के सामने अस्वीकार करते हुए कहा, " मैं नहीं समझता कि तुम क्या कह रही हो"।71 इसके बाद पतरस फाटक की ओर निकल गया, किन्तु एक दूसरी नौकरानी ने उसे देख लिया और वहाँ के लोगों से कहा, " यह व्यक्ति यीशु नाज़री के साथ था"।72 उसने शपथ खा कर फिर अस्वीकार किया और कहा, " मैं उस मनुष्य को नहीं जानता"।73 इसके थोड़ी देर बाद आसपास खड़े लोग पतरस के पास आये और बोले, " निश्चय ही तुम भी उन्हीं लोगों में से एक हो।यह तो तुम्हारी बोली से ही स्पष्ट है"।74 तब पतरस कोसने और शपथ खा कर कहने लगा कि मैं उस मनुष्य को जानता ही नहीं।ठीक उसी समय मुर्गे ने बांग दी।75 पतरस को यीशु का यह कहना याद आया-- मुर्गे के बांग देने से पहले ही तुम मुझे 03 बार अस्वीकार करोगे, और वह बाहर निकल कर फूट - फूट कर रोया। |
11. यीशु की कब्र के पास--
Jn20:3-10:--पतरस और दूसरा शिष्य क़ब्र की ओर चल पड़े।4 वे दोनों साथ-साथ दौड़े। दूसरा शिष्य पतरस को पिछ करके पहले क़ब्र पर पहुंचा।5 उसने झुक कर यह देखा कि छालटी की पट्टियाँ पड़ी हुई हैं, किन्तु वह भीतर नहीं गया।6 शमौन पतरस उसके पीछे - पीछे चल कर आया और क़ब्र के अन्दर गया।उसने देखा कि पट्टियाँ पड़ी हुई हैं 7 और यीशु के सिर पर जो अंगोछा बंधा था, वह पट्टियों के साथ नहीं, बल्कि दूसरी जगह तह किया हुआ अलग पड़ा हुआ है।8 तब वह दूसरा शिष्य भी, जो क़ब्र के पास पहले आया था, भीतर गया।उसने देखा और विश्वास किया, 9 क्योंकि वे अब तक धर्मग्रंथ का वह लेख नहीं समझ पाये थे जिसके अनुसार उनका जी उठना अनिवार्य था।10 इसके बाद शिष्य अपने घर लौट गये। Lk24:12:--- |
12.पुनर्जीवित यीशु का संदेश--
Mt16:17:--इस पर यीशु ने उस से कहा, " शमौन पतरस के पुत्र ! तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुष्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रगट किया है। |
13. यीशु का दर्शन-
Lk24:34 . जो यह कह रहे थे, "प्रभु सचमुच जी उठे हैं और पतरस को दिखाई दिये हैं।
Jn21:1-14. |
14 .पतरस की मृत्यु/शहीद--
Jn21:18-22:-- "मैं तुम से यह कहता हूँ - जवानी में तुम स्वयं अपनी कमर कस कर जहां चाहते थे, वहाँ घूमते - फिरते थे; लेकिन बुढ़ापे में तुम अपने हाथ फैला दोगे और दूसरा व्यक्ति तुम्हारी कमर कसकर तुम्हें वहाँ ले जायेगा, जहाँ तुम जाना नहीं चाहते । " 19 इन शब्दों से यीशु ने संकेत किया कि किस प्रकार की मृत्यु से पतरस द्वारा ईश्वर की महिमा का विस्तार होगा । यीशु ने अन्त में पतरस से कहा, " मेरा अनुसरण करो " । 20 पतरस ने मुड़ कर उस शिष्य को पीछे- पीछे आते देखा, जिसे यीशु प्यार करते थे और जिसने ब्यारी के समय उनकी छाती पर झुक कर पूछा था, 'प्रभु ! वह कौन है जो आप को पकड़वायेगा ? 21 पतरस ने उसे देख कर यीशु से पूछा, "प्रभु ! इनका क्या होगा ?"22 यीशु ने उसे उत्तर दिया, "यदि मैं चाहता हूँ कि यह मेरे आने तक रह जाये तो इस से तुम्हें क्या ? तुम मेरा अनुसरण करो।" |