|| यीशु ने कहा, "देखो, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ। मेरा पुरस्कार मेरे पास है और मैं प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों का प्रतिफल दूँगा। मैं अल्फा और ओमेगा; प्रथम और अन्तिम; आदि और अन्त हूँ।" Revelation 22:12-13     
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दमिश्क में शाऊल द्वारा धर्म- प्रचार


 
20 वह कई दिन उन चेलों के साथ जो दमिश्क में थे।और वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा कि वह परमेश्वर का पुत्र है। 
21 सब सुनने वाले चकित होकर कहने लगे, "क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो यरुशलेम में उन्हें जो इस नाम को लेते थे, नष्ट करता था; और यहां भी इसी लिये आया था कि उन्हें बांधकर प्रधान याजकों के पास ले आए ?" 
22 परन्तु शाऊल और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे - देकर कि मसीह यही है, दमिश्क के रहने वाले यहूदियों का मुंह बंद करता रहा। 
23 जब बहूत दिन बीत गए, तो यहूदियों ने मिलकर उसे मार डालने का षड़यंत्र रचा। 
24 परन्तु उनका षड़यंत्र शाऊल को मालूम हो गया। वे तो उसे मार डालने के लिए रात दिन फाटको पर घात में लगे रहते थे। 
25 परन्तु रात को उसके चेलों ने उसे टोकरे में बैठाया, और शहरपनाह पर से लटकाकर उतार दिया।- Acts 9:20-25. 

Explanatory Notes >>
बहूत से यहूदियों के दो नाम थे - एक इब्रानी और यूनानी।शाऊल का यूनानी नाम पौलुस था - लेखक ने इस स्थान के बाद पौलुस नाम का ही प्रयोग किया है- Ac.13:9.
 
जन्म:- दक्षिण- पूर्व एशिया माइनर के तरसुस में शाऊल का जन्म हुआ था। तरसुस , किलिकिया की राजधानी है। जन्म से ही उसे महत्वपूर्ण रोमी नागरिकता प्राप्त थी। Ac.16:37.22:26-28. 
 
उसने अपने पालन- पोषण के समय से ही यूनानी और इब्रानी भाषाएँ बोलना तथा लिखना-पढ़ना अच्छी रीति से सीख लिया था - Ac.21:37.40. 
 
शिक्षा:- यूनानी प्रभाव के कारण उसमें क्रमानुसार और ठीक ठीक विचार करने की क्षमता थी और इब्रानी प्रभाव के कारण उसके चरित्र में नैतिकतापूर्ण धार्मिकता थी। Php.3:6. उसने फरीसियो की कट्टर परम्परा वाली शिक्षा पायी।उसका मुख्य शिक्षक प्रसिध्द रब्बी गमलियल था। Ac.22:3.23:6.26:5 सभी नवयुवकों की तरह उसने भी व्यवसाय की शिक्षा पाई अर्थात उसने तम्बू बनाना सीखा - Ac.18:3.
 
मसीह विरोधी:- यहूदी व्यवस्था के प्रति उत्साही होने के कारण शाऊल के मन में मसीहियों के प्रति विरोध जाग उठा।उसने सोचा कि स्तिफनुस यहूदी व्यवस्था का विरोधी है अतः वह मृत्युदंड पाने के योग्य है - Ac.6:13.7:58.8:1.php.3:6. उसने यहूदी महासभा ( सनहेद्निन) का सहयोग पाकर मसीहियों को यातनाएं देना आरम्भ कर दिया और वह मसीही स्त्री- पुरुषों सबको बन्दी बनाने लगा - Ac.8:3.9:1-2.26:10-11.Ga1:13. 1Ti1:13. 
 
दमिश्क में मन - परिवर्तन:- दमिश्क, यरुशलेम से करीब 150 मील(241 कि. मी.) की दूरी पर स्थित था। यह पश्चिमी एशिया के प्राचीनतम शहर बहुत ही सुंदर है जो सीरिया देश की राजधानी है।यह शहर उत्तरी यरुशलेम पर स्थित है और यरूशलेम से 133 मील दूरी है। मसीहियों को बन्दी बनाने के लिए दमिश्क जा रहा था तब ऐसा दर्शन पाया कि उसका सम्पूर्ण जीवन पूर्णतः बदल गया।यीशु के व्यक्तिगत दर्शन ने शाऊल पर प्रकट किया कि यीशु अब जीवित हैं - Ac 9:3-5. 22:14.26:8.15.1Co.9:1. 
 
मन - परिवर्तन की तिथि-करीबन 32: ई. सन् 
शाऊल/पौलुस की मृत्यु:- 65 ई. सन् 
यीशु की मृत्यु :- लगभग 30 ई. सन् 
परमेश्वर आश्चर्यकर्म के द्वारा मसीह के विरोधी का मन परिवर्तन करके उसे मसीहियत का दूत बना दिया।1Co15:8-10.Eph3:8. 1Ti1:12-17. 
 
दमिश्क में धर्म - प्रचार पौलुस के भाषण:- अन्ताखिया ;आर्थेस;मिलेतुस में अध्यक्षों से विदा ; यरुशलेम की जनता के सामने ; रोमी राज्यपाल के सामने ; राजा अग्रिप्पा के सामने. ..
पौलुस का पत्र :-1.Ro.2.1Co.3.2Co.4.Gal.5.Eph.6.Php.7.Col.8.1Th.9.2Th.10.1Ti.11.2Ti.12.Tit.13.Phm.
पौलुस पर अत्याचार :- 2Co11:16-33 Ac13:50;14:19-20 16:23.
कष्टमय जीवन :- 2Co6:4-10. 4:8-11.
पौलुस के जीवन का प्ररेणा- स्त्रोत- मसीह पौलुस ने प्रभु को देखा- 1Co9:1. मसीह ने मुझे अपने अधिकार में ले लिया - Php3:12 मैं मसीह के साथ क्रूस पर मर गया हूँ। मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित है- Gal2:19-20 
 
समस्त सृष्टि में कोई या कुछ उन्हें मसीह से अलग नहीं कर सकता -Ro8:39
पौलुस का दिव्य दर्शन- 2 Co12:1-10. 
 
1.कुल (पैतृक) परम्परा --- Ac21:39> पौलुस ने कहा, " मैं तो तरसुस का यहूदी मनुष्य हूँ ! किलिकिया के प्रसिध्द नगर का निवासी हूँ।मैं तुझसे विनती करता हूँ कि मुझे लोगों से बातें करने दें। Php3:5> आठवें दिन मेरा खतना हुआ इस्राएल के वंश, और बिन्यामीन के गोत्र का हूँ ; इब्रानियों का इब्रानी हूँ ;व्यवस्था के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूँ। 
 
2 . विश्वासियों को सताया---
Ac 7:58> और उसे नगर के बाहर निकल कर उस पर पथराव करने लगे। गवाहों ने अपने कपड़े शाऊल नामक एक जवान के पाँवों के पास उतार कर रख दिए।
Ac 8:1.3> उसी दिन यरुशलेम की कलीसिया पर बड़ा उपद्रव आरम्भ हुआ और प्ररितों को छोड़ सब के सब यहूदिया और सामरिया देशों में तितर बितर हो गए। 2 कुछ भक्तों ने स्तिफनुस को कब्र में रखा और उसके लिये बड़ा विलाप किया। 3.शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा था; और घर- घर घुसकर पुरुषों और स्त्रियों को घसीट - घसीटकर बन्दीगृह में डालता था। 
Ac 9:1.2> शाऊल जो अब तक प्रभु के चेलों को धमकाना और घात करने की धुन में था, महायाजक के पास गया।2 और उससे दमिश्क के आराधनालयों के नाम पर इस अभिप्राय की चिट्ठियाँ मांगी कि क्या पुरुष क्या स्त्री, जिन्हें वह इस पंथ पर पाए उन्हें बांधकर यरुशलेम ले आए। 1Co15 : 9> क्योंकि मैं प्ररितों में सब से छोटा हूँ, वरन् प्रेरित कहलाने के योग्य भी नहीं, क्योंकि मैं ने परमेश्वर की कलीसिया को सताया था। 
 
3.मन परिवर्तन एवं बुलाहट ----
Ac.9:18.19> और तुरन्त उसकी आँखों से छिलके-से गिरे और वह देखने लगा, और उठकर बपतिस्मा लिया; 19 फिर भोजन करके बल पाया। 
 
4 . नाम परिवर्तन---
Ac 13:9> तब शाऊल ने जिसका नाम पौलुस भी है, पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो उसकी ओर टकटकी लगाकर देखा और कहा,10 "हे सारे कपट और सब चतुराई से भरे हुए शैतान की सन्तान, सकल धर्म के बैरी, क्या तू प्रभु के सीधे मार्गो को टेढ़ा करना न छोड़ेगा? 
 
5 . यरुशलेम की महासभा--
Ac 15:26> ये ऐसे मनुष्य हैं जिन्होंने अपने प्राण हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम के लिये जोखिम में डाले हैं। 
 
6 . सुसमाचार प्रचार (मिशनरी) यात्रा--
Ac 13:1....
Ac15:36.... 
Ac 18:23.... 
 
7.बंधुवाई एवं कैद----
Ac 21:33> तब पलटन के सरदार ने पास आकर उसे पकड़ लिया; और दो जंजीरों से बांधने की आज्ञा देकर पूछने लगा, "यह कौन है और इसने क्या किया है । 
Ac 22:24 > तो पलटन के सरदार ने कहा," इसे गढ़ में ले जाओ, और कोड़े मारकर जांचों, कि मैं जानूँ कि लोग किस कारण उसके विरोध में ऐसा चिल्ला रहे हैं। 
Ac 28:31>और जो उसके पास आते थे,उन सब से मिलता रहा और बिना रोक-टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा। 
 
8 . प्रत्युत्तर---Ac 22:1>"हे भाइयो और पितरो, मेरा प्रत्युत्तर सुनो, जो मैं अब तुम्हारे सामने प्रस्तुत करता हूँ......
Ac 24:10.....
Ac 26:2.....
Ac 25:10-11. ... 
 
9 . रोम की अंतिम यात्रा---
Ac27:28>थाह लेने पर उन्होंने 20पुरसा गहरा पाया, और थोड़ा आगे बढ़कर फिर थाह ली तो 15पुरसा पाया। परमेश्वर के पुत्र---यीशु के विषय में यह शब्द परमेश्वर के विशेष कृपापात्र के अर्थ में आया है।
Mt27:54 > तब सूबेदार और जो उसके साथ यीशु का पहरा दे रहे थे, भूकम्प और जो कुछ हुआ था उसे देखकर अत्यंत डर गये और कहा, "सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था। 
 
 यीशु ही मसीह है -- के विशेष गुण--
1.Omnipotent(अनन्त सामर्थ्य)--Php3:20-21--पर हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम एक उध्दारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहाँ से आने की बाट जोह रहे हैं 21वह अपनी शक्ति के उस प्रभाव के अनुसार जिसके द्वारा वह सब वस्तुओं को अपने वश में कर सकता है, हमारी दीन-हीन देह का रुप बदलकर, अपनी महिमा की देह के अनुकूल बना देगा। 
 
2.Omniscient(अलौकिक ज्ञान)---Col2:2-3---ताकि उनके मनों में शान्ति हो और वे प्रेम से आपस में गठे रहें, और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्थात्‌ मसीह को पहचान लें जिसमें बुध्दि और ज्ञान के सारे भण्डार छिपे हुए हैं। 
 
3 . Creator(सृष्टिकर्त्ता)----2Cor2:14--परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो जो मसीह में सदा हमको जय के उत्सव में लिये फिरता है, और अपने ज्ञान की सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलता है। Col1:16-17---क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हों अथवा पृथ्वी की देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन,क्या प्रभुताएं, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई है।17 वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती है। Heb1:2---इन दिनों में हमसे पुत्र के द्वारा बातें की, जिसे उसने सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया और उसी के द्वारा उसने सारी सृष्टि की रचना की है। 
 
4.Savior(उध्दारकर्ता)----Jn1:3--सबकुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ, और जो कुछ उत्पन्न हुआ है उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई। उसमें जीवन था और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था।ज्योति अन्धकार में चमकती है, और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया। 
 
5.Judge of Mankind(न्यायकर्ता)-- Ac4:12--किसी दूसरे के द्वारा उध्दार नही; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा उध्दार पा सकें। 
 
6.Eternal(अनन्त काल)---2Co5:10---क्योंकि अवश्य है कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के सामने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हों पाए। 
 
7.Holy(पवित्र)---Micah5:2---हे बैतलहम एप्राता, यदि तू ऐसा छोटा है कि यहूदा के हजारों में गिना नहीं जाता, तौभी तुझ में से मेरे लिए एक पुरुष निकलेगा, जो इस्राएलियों में प्रभुता करनेवाला होगा; और उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन् अनादिकाल से होता आया है। 
 
8.Perfect(पूर्ण, पवित्र, सर्वज्ञ)--Ac3:14---तुमने उस पवित्र और धर्मी का इन्कार किया और विनती की कि एक हत्यारे को तुम्हारे लिये छोड़ दिया जाए। 
 
9.Forgives sin(पाप क्षमा)--Heb7:28--क्योंकि व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्त करती है, परन्तु उस शपथ का वचन जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्त करता है जो युगायुग के लिये सिध्द किया गया है। 
 
10. Gives Eternal Life---Mt. 9:6--परन्तु इसलिये कि तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है।तब लकवे के रोगी से कहा, "उठ, अपनी खाट उठा, और अपने घर चला जा। 
 
11. Rewards Humans---Mt.16:27--मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा, और उस समय वह हर एक को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल देगा। 
 
12.Greatest Name--Php 2:9--इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और पृथ्वी के नीचे हैं वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। 11 और परमेश्वर पिता को महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर लें कि यीशु मसीह ही प्रभु है। 
 
13.Has Charge of the Angles--2Th1:7--और तुम्हें, जो क्लेश पाते हो,हमारे साथ चैन दे; उस समय जब कि प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्वर्ग से प्रगट होगा। 
 
14.Home is Heaven---Jn3:13--कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है। Php 3:20--पर हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम एक उध्दारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहाँ से आने की बाट जोह रहे हैं। 
 
15.Resurrects the Dead--Jn 6:40--क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है कि जो कोई पुत्र को देखे और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अंतिम दिन फिर से जिला उठाऊंगा पौलुस का विश्वास- मसीह परमेश्वर है-Ro9:5-पुरखे भी उन्हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ।सबके ऊपर परम परमेश्वर युगानुयुग धन्य हो। 
 
16. Sanctifies People---Jn 17:19--और उनके लिए मैं अपने आप को पवित्र करता हूँ, ताकि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएँ। 
 
17.To be Worship---Rev5:12-13--और वे ऊंचे शब्द से कहते थे,"वध किया हुआ मेमना ही सामर्थ्य और धन और ज्ञान और शक्ति और आदर और महिमा और धन्यवाद के योग्य है।

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