07.12.2024 (शनिवार) - 1 ला अडवेंट सप्ताह
2 कुरिन्थियों 1:12-24 - पौलुस की कुरिन्थ-यात्रा स्थगित [पौलुस का यात्रा-योजना में परिवर्तन ]
[12]क्योंकि हम अपने विवेक की इस गवाही पर घमण्ड करते हैं, कि जगत में और विशेष करके तुम्हारे बीच, हमारा चरित्र परमेश्वर के योग्य ऐसी पवित्रता और सच्चाई सहित था, जो शारीरिक ज्ञान से नहीं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह के साथ था।
[13]हम तुम्हें और कुछ नहीं लिखते, केवल वह जो तुम पढ़ते या मानते भी हो, और मुझे आशा है कि अन्त तक भी मानते रहोगे।
[14]जैसा तुम में से कितनों ने मान लिया है, कि हम तुम्हारे घमण्ड का कारण है; वैसे तुम भी प्रभु यीशु के दिन हमारे लिये घमण्ड का कारण ठहरोगे।
[15]और इस भरोसे से मैं चाहता था कि पहिले तुम्हारे पास आऊं; कि तुम्हें एक और दान मिले।
[16]और तुम्हारे पास से होकर मकिदुनिया को जाऊं और फिर मकिदूनिया से तुम्हारे पास आऊँ, और तुम मुझे यहूदिया की ओर कुछ दूर तक पहुंचाओ।
[17]इसलिये मैं ने जो यह इच्छा की थी तो क्या मैं ने चंचलता दिखाई? या जो करना चाहता हूं क्या शरीर के अनुसार करना चाहता हूं, कि मैं बात में हां, हां भी करूं; और नहीं, नहीं भी करूं?
[18]परमेश्वर सच्चा गवाह है, कि हमारे उस वचन में जो तुम से कहा हां और नहीं दोनों पाई नहीं जातीं।
[19]क्योंकि परमेश्वर का पुत्र यीशु मसीह जिसका हमारे द्वारा अर्थात् मेरे और सिलवानुस और तीमुथियुस के द्वारा तुम्हारे बीच में प्रचार हुआ; उस में हां और नहीं दोनों न थीं; परन्तु, उस में हां ही हां हुई।
[20] क्योंकि परमेश्वर की जितनी प्रतिज्ञाएं हैं, वे सब उसी में हां के साथ हैं: इसलिये उसके द्वारा आमीन भी हुई, कि हमारे द्वारा परमेश्वर की महिमा हो।
[21]और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ़ करता है, और जिस ने हमें अभिषेक किया वही परमेश्वर है।
[22]जिस ने हम पर छाप भी कर दी है और बयाने में आत्मा को हमारे मनों में दिया॥
[23]मैं परमेश्वर को गवाह करता हूं, कि मै अब तक कुरिन्थुस में इसलिये नहीं आया, कि मुझे तुम पर तरस आता था।
[24]यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं क्योंकि तुम विश्वास ही से स्थिर रहते हो।
Paul’s canceled journey to Corinth
12 For our boasting is about this: the testimony of our conscience that in simplicity and godly sincerity, not with fleshly wisdom, but by the grace of God, we have had our behaviour in the world, and more abundantly toward you.
13 For we are writing nothing to you except what you read or understand. And I trust you will understand, even to the end,
14 as also you have understood us in part, that we are going to be your reason for boasting, just as you are going to be our reason for boasting, in the day of the Lord Jesus.
15 And in this confidence I intended to come to you first, that you might benefit a second time,
16 and to come to you on the way to Macedonia, and to come again from Macedonia to you, and to be sent by you on my way to Judea.
17 So when I planned this, did I do so lightly? or in making plans do I plan according to the flesh, so that with me there will be “yes, yes” and “no, no”?
18 But as surely as God is faithful, our word to you was not “yes” and “no”.
19 For the Son of God, Jesus Christ, who was preached among you by us, by me and Silvanus and Timothy, was not “yes” and “no”, but in him was “yes”.
20 For all the promises of God in him are “yes”, and in him “Amen”, for the glory of God through us.
21 Now he who establishes us together with you in Christ, and has anointed us, is God,
22 who has also sealed us, and given the Spirit as a pledge in our hearts.
23 Moreover I call God as a witness for my soul, that to spare you I did not come again to Corinth.
24 Not that we have power over your faith, but we are working with you for your joy, for by faith you stand.
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प्रस्तावना-
लेखक – पौलुस। तिथि – 56 ईसवी।
नया नियम में यह लिपिबद्ध है, कि पौलुस ने तीन मिश्नरी अर्थात् प्रचार यात्राओं को एशिया माइनर और यूरोप में मसीह के सन्देश को फैलाने के लिए किया था। प्रेरित पौलुस एक सच्चा यहूदी था।उसका जन्म दक्षिण -पूर्व एशिया माइनर के तरसुस में हुआ था (प्रेरि.9:11;22:3, फिलि.3:5)। जन्म ही से उसे महत्वपूर्ण रोमी नागरिकता प्राप्त थी (प्रेरि.16:37;22:26-28)। वह सुशिक्षित था, वह यूनानी और इब्रानी भाषाएं बोलना तथा लिखना-पढ़ना अच्छी तरह से सीख लिया था (प्रेरि.21:37,40)। उसका मुख्य शिक्षक प्रसिद्ध रब्बी गमलिएल था (प्रेरि.22:3,23:6, 26:5)। मसीही विश्वास में आने के पूर्व प्रेरित पौलुस का नाम शाऊल था। मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान के पश्चात् यरूशलेम में रहते हुए, उसने मसीही कलीसिया को नष्ट करने के लिए अपने सर्वोत्तम प्रयास को किया। उसने यहाँ तक कि प्रथम शहीद स्तिफनुस की हत्या में भी भाग लिया था (प्रेरितों के काम 7:55–8:4)।
पहली पत्री लिखने के बाद पौलुस ने कुरिन्थुस की उतावलीपूर्ण और दुःखदायी यात्रा करना आवश्यक समझा, क्योंकि जो समस्याएं पहली पत्री के लिखे जाने का कारण बनीं थीं, उनका समाधान नहीं हुआ था –
2 कुरिन्थियों 2:1,12-14 -
[1]मैंने अपने मन में यही ठान लिया था कि फिर तुम्हारे पास उदास होकर न आऊं।
[12]और जब मैं मसीह का सुसमाचार, सुनाने को त्रोआस में आया, और प्रभु ने मेरे लिये एक द्वार खोल दिया।
[13]तो मेरे मन में चैन न मिला, इसलिये कि मैं ने अपने भाई तितुस को नहीं पाया; सो उन से विदा होकर मैं मकिदुनिया को चला गया।
[14]परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय के उत्सव में लिये फिरता है, और अपने ज्ञान का सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है।
2 कुरिन्थियों 13:1-2-
[1]अब तीसरी बार तुम्हारे पास आता हूं: दो या तीन गवाहों के मुंह से हर एक बात ठहराई जाएगी।
[2]जैसे जब दूसरी बार तुम्हारे साथ था, सो वैसे ही अब दूर रहते हुए उन लोगों से जिन्होंने पहिले पाप किया, और सब लोगों से अब पहिले से कहे देता हूं, कि यदि मैं फिर आऊंगा, तो नहीं छोडूंगा।
यात्रा के बाद उन्होंने इस कलीसिया को एक कठोर और शोकमय पत्र लिखा। इस पत्र का उल्लेख उसने 2:4 में किया है, परन्तु यह पत्र खो चुका है। तीतुस ने यह पत्र पहुंचाया था। त्रोआस को लौटते समय पौलुस, तीतुस से मिलने के लिए प्रतीक्षा नहीं कर सका। वह शीघ्रता से मकिदुनिया चला गया, जहां तीतुस ने यह शुभ समाचार दिया कि कलीसिया अन्ततः पौलुस के विरूद्ध अपने विद्रोहीपन के विषय पछतावा कर चुकी थी। मकिदुनिया से पौलुस ने कुरिन्थयों की दूसरी पत्री को लिखा, इसके बाद वह कलीसियाओं की अपनी अंतिम अभिलिखित यात्रा के लिए चला गया – प्रेरितों के काम 20:1-4 -
[1]जब हुल्लड़ थम गया, तो पौलुस ने चेलों को बुलवाकर समझाया, और उन से विदा होकर मकिदुनिया की ओर चल दिया।
[2]और उस सारे देश में से होकर और उन्हें बहुत समझाकर, वह यूनान में आया।
[3]जब तीन महीने रहकर जहाज पर सीरिया की ओर जाने पर था, तो यहूदी उस की घात में लगे, इसलिये उस ने यह सलाह की कि मकिदुनिया होकर लौट आए।
[4]बिरीया के र्पुरूस का पुत्र सोपत्रुस और थिस्सलूनीकियों में से अरिस्तर्खुस और सिकुन्दुस और दिरबे का गयुस, तिमुथियुस, और आसिया का तुखिकुस और त्रुफिमुस आसिया तक उसके साथ हो लिए।
उद्देश्य – यह पत्री त्रि-उध्देश्यीय थी –
इस पत्री में हम पौलुस के जीवन की कई व्यक्तिगत् और आत्म चरित्र संबंधी झलक पाते हैं।
- पौलुस के सेवकाई के प्रति कलीसिया की अनुकूल प्रतिक्रिया के लिए तथा हर्ष व्यक्त करने के लिए – 2Co.1-7.
- वहां के विश्वासियों को यहूदा के मसीहियों के दान के प्रति उनकी समर्पणता का स्मरण दिलाने के लिए – 2Co. 8-9. और
- पौलुस के प्रेरिताई अधिकार की रक्षा करने के लिए – 2Co.10-1
इस प्रकार, हम देखते हैं कि पौलुस की प्रचार-यात्राओं का निष्कर्ष यह है कि – मसीह के द्वारा पापों की क्षमा के लिए परमेश्वर के अनुग्रह की घोषणा करना। परमेश्वर ने पौलुस की सेवकाई को अन्यजातियों को सुसमाचार पहुँचाने और कलीसिया को स्थापित करने के लिए उपयोग किया। कलीसियाओं को लिखे हुए उसके पत्र, नए नियम में लिपिबद्ध हैं, जो आज भी कलीसियाई जीवन और धर्मसिद्धान्तों को समर्थन देते हैं। यद्यपि उसने सब कुछ को बलिदान कर दिया, तथापि पौलुस की प्रचार – यात्राओं का मूल्य बहुत अधिक है (फिलिप्पियों 3:7-11)।
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वचन का व्याख्यान
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2Co1:12 – क्योंकि हम अपने विवेक की इस गवाही पर घमण्ड करते हैं, कि जगत में और विशेष करके तुम्हारे बीच, हमारा चरित्र परमेश्वर के योग्य ऐसी पवित्रता और सच्चाई सहित था, जो शारीरिक ज्ञान से नहीं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह के साथ था।
विवेक से तात्पर्य - विवेक, मन की वह शक्ति है जिससे भले-बुरे का ज्ञान होता है तथा जिसमें अच्छे और बुरे को पहचानने की शक्ति होती है।
अपने विकल्पों के बारे में सचेत रहना और कार्य करने से पहले सोचना। विवेक, संयम की शक्ति है, विवेकशील व्यक्ति अनावश्यक जोखिम नहीं उठाते और ऐसी बातें नहीं करते या कहते जिनका उन्हें बाद में पछतावा हो।
रोमियो 2:15 - वे व्यवस्था की बातें अपने अपने हृदयों में लिखी हुई दिखते हैं और उनके विवेक भी गवाही देते हैं, और उनकी चिन्ताएं परस्पर दोष लगाती, या उन्हें निर्दोष ठहराती है।
तीतुस 1:15 - शुद्ध लोगों के लिये सब वस्तु शुद्ध हैं, पर अशुद्ध और अविश्वासियों के लिये कुछ भी शुद्ध नहीं: वरन् उनकी बुद्धि और विवेक दोनों अशुद्ध हैं।
इब्रानियों 9:14 - तो मसीह का लोहू जिसने अपने आप को सनातन आत्मा के द्वारा परमेश्वर के साम्हने निर्दोष चढ़ाया, तुम्हारे विवेक को मरे हुए कामों से क्यों न शुद्ध करेगा, ताकि तुम जीवते परमेश्वर की सेवा करो।
Ac23:1,1Thes2:10, Heb13:18, 2Co2:17, 1Co1:17, James3:14,15.
शारीरिक ज्ञान – पौलुस उस मानवीय ज्ञान को संबोधित कर रहा है जो परमेश्वर के ज्ञान पर विश्वास नहीं करता है या परमेश्वर के उद्देश्यों का अनुसरण नहीं करता है। पौलुस का विवेक और कार्य लोकप्रिय मानवीय ज्ञान से निर्देशित नहीं थे। इसके बदले वह परमेश्वर की करूणा से मार्गदर्शन पाता था। पौलुस के लिये संसार का तात्पर्य उन सब बातों से था जो परमेश्वर के विरूद्ध हैं (रोमि.12:2, गला.4: 3,1कुरि.6:14)
2Co1:13 – हम तुम्हें और कुछ नहीं लिखते, केवल वह जो तुम पढ़ते या मानते भी हो, और मुझे आशा है कि अन्त तक भी मानते रहोगे।
संत पौलुस ने प्रभु यीशु मसीह के जीवन का परिचय और यीशु मसीह की शिक्षा के बारे में प्रचार-प्रसार किया। यीशु मसीह की शिक्षाएं, जैसे कि – सबसे बड़ी आज्ञा – Mt.22:37-39; स्वर्णिम नियम- Mt.7:12; नई आज्ञा- Jn.13:34; विश्वास- Jn3:16; प्रार्थना- mt ; क्षमा- Mt.18:21-22; शत्रुओं से प्रेम- Mt.5:44; दृष्टांत, चमत्कार, व्यवस्था आदि-आदि के विषय में प्रचार किया। फलस्वरूप उसने देश और जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर सब स्थानों पर कलीसिया स्थापित की और ऐसा करने से उसने परमेश्वर के भक्तों के परम्परागत् विचारों को बदल दिया। मसीह की शिक्षा को अन्त तक पढ़ने या मानने की सलाह देता है ।
1 कुरिन्थियों 1:8 - वह तुम्हें अन्त तक दृढ़ भी करेगा, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के दिन में निर्दोष ठहरो।
2Co1:14 – जैसा तुम में से कितनों ने मान लिया है, कि हम तुम्हारे घमण्ड का कारण है; वैसे तुम भी प्रभु यीशु के दिन हमारे लिये घमण्ड का कारण ठहरोगे।
प्रभु का दिन –
1.सामान्यत: प्रभु का दिन को रविवार या विश्राम-दिन मानते हैं जो ईसाई धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन है, इस दिन परमेश्वर की आराधना की जाती है।
2.प्रभु यीशु के दिन से प्रेरित पौलुस का आशय - प्रभु यीशु मसीह के बादलों से वापस लौटने के दिन से है अर्थात् प्रभु यीशु का दूसरा आगमन से है।
वचन के सन्दर्भ में उदाहरणार्थ -
प्रेरितों के काम 2:20 - प्रभु के महान और प्रसिद्ध दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धेरा और चान्द लोहू हो जाएगा।
1 थिस्सलुनीकियों 5:2 - क्योंकि तुम आप ठीक जानते हो कि जैसा रात को चोर आता है, वैसा ही प्रभु का दिन आने वाला है।
2 पतरस 3:10 - परन्तु प्रभु का दिन चोर की नाईं आ जाएगा, उस दिन आकाश बड़ी हड़हड़ाहट के शब्द से जाता रहेगा, और तत्व बहुत ही तप्त होकर पिघल जाएंगे, और पृथ्वी और उस पर के काम जल जाऐंगे।
मलाकी 4:5 - देखो, यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले, मैं तुम्हारे पास एलिय्याह नबी को भेजूंगा।
यहेजकेल 13:5 - तुम ने नाकों में चढ़ कर इस्राएल के घराने के लिये भीत नहीं सुधारी, जिस से वे यहोवा के दिन युद्ध में स्थिर रह सकते।
2Co1:15 – और इस भरोसे से मैं चाहता था कि पहिले तुम्हारे पास आऊं; कि तुम्हें एक और दान मिले।
1Co4:19, Ro1:11,15:29
और इस भरोसे के साथ मैं यह सोचता था ..... प्रेरित पौलुस कहता है कि मेरे प्रति आपके स्नेह से पूरी तरह आश्वस्त होकर, कि मैं आप में से बहुतों के हृदय-परिवर्तन का कारण बना हूँ, और आप मुझे वचन के एक विश्वासयोग्य और सच्चे सेवक के रूप में मानते हैं, और आप मसीह के दिन मेरे लिए हर्ष का कारण हैं, मैं इच्छुक था, और मैंने निश्चय कर लिया था, और ऐसा वादा किया था,
इससे पहले कि मैं तुम्हारे पास आऊँ ; जब मैंने अपना पहला पत्र तुम्हारे पास भेजा था, या अब से पहले, या इससे पहले कि मैं मकिदुनिया गया था; और जो मैं अब कह रहा हूँ वह मेरे मन की सच्ची मंशा थी; मैंने वास्तव में सोचा था कि मैंने वही किया है जिसकी मेरी ऐसी इच्छा थी: और इसमें मेरा दृष्टिकोण था,
ताकि तुम्हें दूसरा दान (लाभ) हो ; जिसका अर्थ कुछ लोगों के अनुसार, पहला लाभ यह है कि जब वह उनके पास से होकर मकिदुनिया जाएगा, और दूसरा लाभ यह है कि जब वह वहां से उनके पास वापस आएगा, जैसा कि निम्नलिखित पद में बताया गया है; या यों कहें कि, जैसा कि पहला लाभ जो उन्हें उससे और उसकी सेवकाई के अधीन मिला, वह उनका मन-परिवर्तन था, इसलिए यह दूसरा लाभ उनके चरित्र निर्माण, विश्वास में उनकी दृढ़ता, अनुग्रह में उनकी वृद्धि, और आध्यात्मिक ज्ञान में उनकी उन्नति का कारण बन सकता है।
तुम्हारे पास आऊं - पौलुस ने दो बार कुरिन्थुस जाने की योजना बनाई थी(1कुरि.16:1-9)। जब एशिया माइनर और यूनान की अन्य कलीसियाओं से आर्थिक दान की भेंट लेकर जा रहा था। उसने उनसे भेंट करने के विचार को बदल दिया क्योंकि वह नहीं चाहता था कि जिस प्रकार का जीवन वे जी रहे थे, इसके लिये उसे डांटना पड़े (1:23-24)।
2Co1:16 – और तुम्हारे पास से होकर मकिदुनिया को जाऊं और फिर मकिदूनिया से तुम्हारे पास आऊँ, और तुम मुझे यहूदिया की ओर कुछ दूर तक पहुंचाओ।
पौलुस उनसे दो बार मिलना चाहता था, मकिदुनिया जाते समय और मकिदुनिया से वापस लौटते समय भी, परन्तु उसने अपनी योजना बदल दी। इस परिवर्तन को उसके विरोधियों ने अनिश्चितता और अनात्मिकता का नाम दिया (शरीर के अनुसार,पद 17), पौलुस दोषारोपणों का खण्डन करता है।
Ac19:21,1Co16:5-7, Ac15:3, Ro15:26, 1Co16:6,11.
2Co1:17 – इसलिये मैं ने जो यह इच्छा की थी तो क्या मैं ने चंचलता दिखाई? या जो करना चाहता हूं क्या शरीर के अनुसार करना चाहता हूं, कि मैं बात में हां, हां भी करूं; और नहीं, नहीं भी करूं?
प्रेरित पौलुस कहता है कि यात्रा-योजना में मेरा परिवर्तन करना - क्या यह दर्शाता है कि मैं अपना मन नहीं बना सका ? क्या मैं एक सांसारिक मनुष्य की तरह हूं जो एक समय में हां और नहीं कहता है? 1कुरिन्थियों 16.5 में पौलुस ने कुरिन्थुस जाने की प्रतिज्ञा की थी। अपनी दूसरी (जो खो गई) पत्री में (पहले और दूसरे कुरिन्थियों के मध्य की पत्री) उसने कुछ अलग लिखा होगा, जिससे यह प्रतीत हुआ होगा कि पौलुस एक ही समय में हां और नहीं कह रहा है। उसकी वर्तमान सेवकाई यात्रा इफिसुस से त्रोआस से मकिदुनिया और मकिदुनिया से कुरिन्थुस की थी।
मत्ती 5:37 - परन्तु तुम्हारी बात हां की हां, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इस से अधिक होता है वह बुराई से होता है।
याकूब 5:12 - पर हे मेरे भाइयो, सब से उत्तम बात यह है कि तुम न तो स्वर्ग की, न पृथ्वी की, न किसी और वस्तु की शपथ खाओ; पर तुम्हारी बात हां की हां हो, और बात नहीं की नहीं; ऐसा न हो कि तुम दण्ड के योग्य ठहरो।
आम तौर पर, सच्चे मसीहियों को शपथ खाने की ज़रूरत नहीं होती। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे यीशु की आज्ञा मानते हैं, जिसने कहा: “तुम्हारी हाँ का मतलब हाँ ही हो।” उसका मतलब था कि एक इंसान को अपनी बात पर कायम रहना चाहिए। यीशु ने उस आज्ञा की शुरूआत में कहा: “कभी भी शपथ न खाना।” उसने यह बात कई लोगों की उस आदत की निंदा करते हुए कही जो रोज़मर्रा की बातचीत में बार-बार कसम खाने की होती है, जबकि वे जो कहते हैं उसे करने का उनका कभी इरादा नहीं होता। अपने इरादे ज़ाहिर करने के लिए एक साधारण हाँ या न से ज़्यादा “बढ़कर” बोलने से ऐसे लोग यह ज़ाहिर कर सकते हैं कि वे वाकई भरोसे के लायक नहीं हैं और इस तरह “दुष्ट” के बहकावे में हैं। मत्ती 5:33-37.
उस समय यहूदी स्वर्ग, धरती, यरूशलेम और यहाँ तक कि अपने मुखिया की कसम खाते थे। ऐसा करने से, परिणाम एक बुरे उद्देश्य के लिए होता है।
याकूब 1:26 - यदि कोई अपने आप को भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उस की भक्ति व्यर्थ है।
इफिसियों 4:29 - कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उस से सुनने वालों पर अनुग्रह हो।
भजन संहिता 50:19 - तू ने अपना मुंह बुराई करने के लिये खोला, और तेरी जीभ छल की बातें गढ़ती है।
नीतिवचन 21:23 - जो अपने मुंह को वश में रखता है वह अपने प्राण को विपत्तियों से बचाता है।
अर्थात् जो कोई अपने मुँह और जीभ की रक्षा करता है, वह अपनी आत्मा को विपत्तियों से बचाता है (नीतिवचन 21:23)।
जीभ धोखा भी दे सकती है और झूठी गवाही भी दे सकती है (रोमियों 3:13)।
इसका एक अच्छा उदाहरण पतरस है, जिसने इनकार किया और शपथ खाई कि वह यीशु को नहीं जानता (मत्ती 26:70-74)।
जब शरीर हावी न हो, तो मुँह और जीभ का इस्तेमाल अच्छे कामों के लिए किया जा सकता है, ताकि वे परमेश्वर के लिए एक अभिव्यक्ति बन सकें। लेकिन, इसका इस्तेमाल शाप देने, धोखा देने, झूठी गवाही देने और निंदा करने के लिए भी किया जा सकता है। ऐसे में, हमें खुद को प्रशिक्षित करना चाहिए कि हम इसका इस्तेमाल शारीरिक तरीके से न करें। (2Co10:2,11:18)
2Co1:18 –परमेश्वर सच्चा गवाह है, कि हमारे उस वचन में जो तुम से कहा हां और नहीं दोनों पाई नहीं जातीं।
1 कुरिन्थियों 1:9 - परमेश्वर सच्चा है; जिस ने तुम को अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह की संगति में बुलाया है।
2 कुरिन्थियों 2:17 - क्योंकि हम उन बहुतों के समान नहीं, जो परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं; परन्तु मन की सच्चाई से, और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं।
1 यूहन्ना 5:6-11 में कहा गया है, “और इसकी गवाही आत्मा ही देता है, क्योंकि आत्मा ही सत्य है”.
इब्रानियों 4:12-16 में कहा गया है, “परमेश्वर का वचन तो सजीव और क्रियाशील है, वह किसी दोधारी तलवार से भी अधिक पैना है”.
2Co1:19 – क्योंकि परमेश्वर का पुत्र यीशु मसीह जिसका हमारे द्वारा मेरे और सिलवानुस और तीमुथियुस के द्वारा तुम्हारे बीच में प्रचार हुआ; उस में हां और नहीं दोनों न थीं; परन्तु, उस में हां ही हां हुई।
Mt4:3,16:16,26:63, Ac15:22, 1Thes1:1, 2Thes1:1, 1Pe5:12, Heb13:8.
परमेश्वर का पुत्र – परमेश्वर का पुत्र पदवी उस राजा को दी गई थी जिसे परमेश्वर ने इस्राएली लोगों पर राज्य करने के लिये चुना था (भ.सं.2: 6-8)। यीशु को परमेश्वर के पुत्र कहने द्वारा पौलुस यह दावा कर रहा है कि यीशु वही है जिसे नये इस्राएल पर राज्य करने के लिये परमेश्वर ने चुना है
सिलवानुस और तीमुथियुस - यह संभवतः उस सिलास को संबोधित करता है जिसके बारे प्रेरित 15:32 में कहा गया है कि वह एक नबी था। पौलुस की तरह, सीलास एक रोमी नागरिक था (प्रेरि.16:37)। और वह पौलुस के साथ बाद की उसकी यात्राओं में गया जब पौलुस और बरनबास अलग हो गये थे (प्रेरि.15:37-39)।
1Co1:20 – कि परमेश्वर की जितनी प्रतिज्ञाएं हैं, वे सब उसी में हां के साथ हैं: इसलिये उसके द्वारा आमीन भी हुई, कि हमारे द्वारा परमेश्वर की महिमा हो।
वे सब उसी में हां के साथ के साथ हैं अर्थात् परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं निश्चित रूप से पूर्ण होती है। इन प्रतिज्ञाओं की हां,मसीही में है। उसके द्वारा आमीन भी हुई अर्थात् हम आमीन कहकर अपनी सहमति देते हैं।
आमीन शब्द का अर्थ है, “ऐसा ही हो” या “ऐसा ही होगा”. यह एक प्राचीन इब्रानी शब्द है जिसका इस्तेमाल यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्मों में किया जाता है. आमीन शब्द का इस्तेमाल प्रार्थना के अंत में किया जाता है. इसे गंभीर अनुमोदन या सहमति व्यक्त करने के लिए बोला जाता है. आमीन शब्द का इस्तेमाल धार्मिक परिवेश के बाहर भी किया जा सकता है.
आमीन शब्द के अन्य अर्थ: तथास्तु, एवमस्तु, ईश्वर या ख़ुदा करे, ऐसा ही हो।
Ro:8, Heb13:8. 1Co14:16, Rev3:14
2Co1:21 – और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ़ करता है, और जिस ने हमें अभिषेक किया वही परमेश्वर है।
1Co1:8, 1Jn2:20,27, Mt3:13-19, Ac10:38, Lev8:12,21:10, Num35:25, Ps133:2-3.
एक तुच्छ आरोप का उत्तर देते हुए – कि वह कुरिन्थ की यात्रा करने की अपनी यात्रा योजनाओं में स्वार्थी रूप से ढिलाई बरत रहा है – पौलुस ने इस बारे में एक भव्य घोषणा की है कि कैसे मसीह परमेश्वर की सभी योजनाओं और वादों के लिए “हाँ” है।
अभिषेक की उत्पत्ति चरवाहा के द्वारा व्यवहार में लाए जाने वाले एक अभ्यास से है। जूँए और अन्य कीड़े अक्सर भेड़ों के ऊन में चले आते हैं, और जब वे भेड़ के सिर के पास आते हैं, तो वे भेड़ों के कानों में घुसकर भेड़ों को मार सकते थे। इसलिए, प्राचीन समय के चरवाहों ने भेड़ों के सिर पर तेल डालते थे। इससे ऊन में फिसलन बन जाती थी, जिससे कीड़ों का भेड़ के कानों के पास आना असम्भव बन जाता था, क्योंकि इससे कीड़े नीचे गिर जाते थे। यहीं से, अभिषेक, आशीष, सुरक्षा और सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया।
“अभिषेक” के लिए यूनानी शब्द कारियो है, जिसका अर्थ “तेल के साथ मलना या रगड़ना” और, अपने निहितार्थ के द्वारा, “धार्मिक सेवा या पद के लिए दृढ़ीकृत करना”; और एलीप्हो, जिसका मतलब है “अभिषेक करने” से है। बाइबल के समय में, लोगों को परमेश्वर की आशीष की प्राप्ति या उस व्यक्ति के जीवन पर बुलाहट को दर्शाने के लिए तेल से अभिषेक किया जाता था (निर्गमन 29:7; निर्गमन 40:9; 2 राजा 9:6; सभोपदेशक 9:8; याकूब 5:14)। एक व्यक्ति को एक विशेष उद्देश्य के लिए अभिषेक किया जाता था जैसे कि — एक राजा, भविष्यद्वक्ता, एक निर्माण कार्य को करने के लिए इत्यादि। आज तेल के साथ एक व्यक्ति को अभिषेक करने में कुछ भी गलत नहीं है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि अभिषेक का उद्देश्य पवित्रशास्त्र की सहमति में है। अभिषेक को “जादू की औषधि” के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। तेल में कोई शक्ति नहीं है। यह तो केवल ईश्वर है, जो एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए एक व्यक्ति को अभिषेक कर सकता है। यदि हम तेल का उपयोग करते हैं, तो यह परमेश्वर क्या कर रहा है, को दर्शाने का एक प्रतीक मात्र है।
1Co1:22 – जिस ने हम पर छाप भी कर दी है और बयाने में आत्मा को हमारे मनों में दिया।
छाप- चिह्न, निशान, मुहर का निशान, Trade Mark, Brand, Hallmark.
छाप, सुरक्षा को दर्शाता है और बयाना, एक निश्चयता है कि परमेश्वर अपने प्रतिज्ञाओं को पूर्ण करेंगे ।
मसीही विश्वासी के मनों में पवित्र आत्मा को “छाप” और “ब्याने” के रूप में उद्धृत किया गया है (2 कुरिन्थियों 1:22; 5:5; इफिसियों 1:13-14; 4:30)। पवित्र आत्मा उसके लोगों के ऊपर परमेश्वर की छाप है, हमारे ऊपर उसके अपने होने का उसका दावा है। “बयाने” का अनुवाद अर्रोहाबोन से हुआ है, जिसका अर्थ “एक प्रतिज्ञा” से है, अर्थात् खरीददारी या सम्पत्ति का एक अंश पहले से ही बची हुई राशि को दिए जाने की सुरक्षा के लिए दे दिया गया है। विश्वासियों को आत्मा का वरदान हमारी स्वर्गीय मीरास का बयाना है, जिसकी प्रतिज्ञा मसीह ने की है और जिसे क्रूस के ऊपर हमारे लिए सुरक्षित कर लिया गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आत्मा ने हम पर छाप लगा दी है इसलिए हमें हमारे उद्धार का आश्वासन है। परमेश्वर की इस छाप को कोई भी नहीं तोड़ सकता है।
पवित्र आत्मा विश्वासियों को “प्रथम किश्त” के रूप में इस आश्वासन के साथ दिया गया है कि परमेश्वर की सन्तान होने के नाते हमारी पूरी मीरास को भी हमें दे दिया जाएगा। पवित्र आत्मा हमें इस पुष्टि के साथ दिया गया है कि हम परमेश्वर से सम्बन्धित हैं, जो हमें उसके आत्मा को एक वरदान के रूप में प्रदान करता है, ठीक वैसे ही जैसे वह अनुग्रह और विश्वास के वरदान को हमें प्रदान करता है (इफिसियों 2:8-9)। आत्मा के वरदान के द्वारा, परमेश्वर हमें नवीनीकृत और पवित्र करता है। वह हमारे मनों में उन भावनाओं, आशाओं और इच्छाओं को उत्पन्न करता है, जो यह प्रमाण हैं कि हमें परमेश्वर के द्वारा स्वीकृत कर लिया गया है, यह कि हम उसकी गोद ली हुई सन्तान हैं, यह कि हमारी आशा वास्तविक है, और यह कि हमारा छुटकारा और उद्धार निश्चित रीति से उसी तरीके का है, जैसे कि एक वसीयत या एक समझौते के मुहरबन्द किए जाने की गारंटी होती है। परमेश्वर हमें उसका पवित्र आत्मा एक निश्चित प्रतिज्ञा के रूप में देता है कि हम अब सदैव उसके हैं और अन्तिम दिन में बचा लिए जाएँगे।
आत्मा की उपस्थिति का हमारे मनों में कार्यरत् होना इसका प्रमाण है, जो पश्चाताप, आत्मा के फल को (गलातियों 5:22-23), परमेश्वर के आदेश और इच्छा की पुष्टि को, प्रार्थना और प्रशंसा और उसके लोगों के लिए प्रेम को उत्पन्न करता है। ये बातें प्रमाण हैं कि पवित्र आत्मा ने हमारे मनों को नवीनीकृत कर दिया है और यह कि मसीही विश्वासी छुटकारे के दिन के लिए मुहरबन्द कर दिए गए हैं।
इस कारण यह पवित्र आत्मा और उसकी शिक्षाओं और उसकी मार्गदर्शन प्रदान करने वाली सामर्थ्य है, कि हम पर छुटकारे के दिन तक छाप लगाई गई, पाप और कब्र से स्वतन्त्र और पूर्ण किए गए और हमारी पुष्टि की गई है। क्योंकि हमारे मनों में उसके आत्मा की छाप लगाई गई है, इसलिए हम भविष्य में हमारे एक सुरक्षित स्थान के होने के आनन्द के साथ इस विश्वास के साथ कह सकते हैं, जो कल्पना से परे की महिमा को थामे हुए है।
इफिसियों 1:13-14 -
[13]और उसी में तुम पर भी जब तुम ने सत्य का वचन सुना, जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है, और जिस पर तुम ने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी।
[14]वह उसके मोल लिए हुओं के छुटकारे के लिये हमारी मीरास का बयाना है, कि उस की महिमा की स्तुति हो।
परमेश्वर का अपने विश्वासियों को अपनी आत्मा देना, उनके लिए यह गारंटी है कि वह उन्हें वह मीरास भी देगा जिसका उसने वादा किया है। 2Co1:22 – Jn 3:33, Ro:16, Ro 8:17,23; 2Co5:5, Eph1:14
यह उनके अन्तिम उद्धार की ईश्वर-प्रदत्त प्रतिज्ञा है। जैसे कि ईश्वर की आत्मा हम में है वैसे ही यह भी निश्चित है कि हम कभी नहीं खोएंगे। Jn 6:37-40;10:27-29; 17:11-12; Ro5:9-10; 8:28-39.
पवित्र आत्मा -
पवित्र आत्मा, परमेश्वर का एक हिस्सा है और त्रिएत्व का एक अंग है।
पवित्र आत्मा, परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि वह हमें अनंत जीवन की पूर्णता देगा।
पवित्र आत्मा, हमारे मनों में भावनाओं, आशाओं, और इच्छाओं को पैदा करता है।
पवित्र आत्मा की उपस्थिति से हम पर छुटकारे के दिन तक छाप लगाई गई है।
आत्मा को हमारे मनों में दिया – पौलुस पवित्र आत्मा को संबोधित कर रहा है। 1कुरिन्थियों12:14 में, पौलुस वर्णन करता है कि कैसे पवित्र आत्मा व्यक्तिगत् रुप से अनुयायियों को विशेष वरदान देता है ताकि मसीह की सम्पूर्ण देह, कलीसिया, सशक्त हो सके।
2Co1:23 – मैं परमेश्वर को गवाह करता हूं, कि मै अब तक कुरिन्थुस में इसलिये नहीं आया, कि मुझे तुम पर तरस आता था।
Ro:9, Gal1:20, 2Co1:1, 1Co4:21, 2Co 2:1-3.
अब, क्या आप उस असली वजह के लिए तैयार हैं जिसकी वजह से मैं कोरिंथ में आपसे मिलने नहीं आया? जैसा कि परमेश्वर मेरे गवाह हैं, मैं सिर्फ़ इसलिए नहीं आया क्योंकि मैं आपको तकलीफ़ से बचाना चाहता था। मैं आपके प्रति विचारशील था, उदासीन नहीं, चालाक नहीं।
1Co1:24 – यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं क्योंकि तुम विश्वास ही से स्थिर रहते हो।
यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं, प्रेरिताई अधिकार ने पौलुस को ऐसा कोई अधिकार नहीं दिया था -
1पतरस 5:1-3 –
[1]तुम में जो प्राचीन हैं, मैं उन की नाईं प्राचीन और मसीह के दुखों का गवाह और प्रगट होने वाली महिमा में सहभागी होकर उन्हें यह समझाता हूं।
[2]कि परमेश्वर के उस झुंड की, जो तुम्हारे बीच में हैं रखवाली करो; और यह दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच-कमाई के लिये नहीं, पर मन लगा कर।
[3]और जो लोग तुम्हें सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार न जताओ, वरन् झुंड के लिये आदर्श बनो।
तुम विश्वास ही से स्थिर रहते हो, अर्थात् पौलुस के नियंत्रण के द्वारा नहीं परन्तु उनके स्वयं के विश्वास के द्वारा।
2Co4:5,11:20,1Pe5:3,Ro11:20, 1Co15:1.
निष्कर्ष -
प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थियों के आरोपों का खंडन किया है। इन आरोपों में यह दावा शामिल था कि पौलुस ने कुरिन्थियों से मिलने की अपनी घोषित योजनाओं के प्रति ईमानदारी, खुलेपन, या प्रतिबद्धता नहीं दिखाई। बल्कि संत पौलुस ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उसने और उसके सहकर्मियों ने ईमानदारी और पारदर्शिता से काम किया है. पौलुस ने कुरिन्थियों को यह भी बताया कि उसने उनके लिए अपनी यात्रा को स्थगित कर दिया है। 2 कुरिन्थियों 1:24 के वचन से आशय है, कि प्रेरित पौलुस कुरिन्थियों के आनंद के लिए उनके साथ मिलकर काम करना चाहता था। साथ ही संत पौलुस चाहता था कि कुरिन्थ के मसीही स्वयं अपने विश्वास में दृढ़ बनें।
प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थियों को सांत्वना देने के लिए परमेश्वर की स्तुति की, उन मसीहियों की पीड़ा को मसीह की पीड़ा से जोड़ा ताकि उन लोगों को सांत्वना मिले और वे आत्मिक उन्नति की ओर आगे बढ़ सकें।
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