04042023-
विश्वास में दृढ़ बने रहो - 2 थिस्सलुनीकियों 2:13-17
[13]पर हे भाइयो, और प्रभु के प्रिय लोगो चाहिये कि हम तुम्हारे विषय में सदा परमेश्वर का धन्यवाद करते रहें, कि परमेश्वर ने आदि से तुम्हें चुन लिया; कि आत्मा के द्वारा पवित्र बन कर, और सत्य की प्रतीति करके उद्धार पाओ।
[14]जिसके लिये उसने तुम्हें हमारे सुसमाचार के द्वारा बुलाया, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा को प्राप्त करो।
[15]इसलिये, हे भाइयों, स्थिर रहो; और जो जो बातें तुम ने क्या वचन, क्या पत्री के द्वारा हम से सीखी है, उन्हें थामे रहो।
[16]हमारा प्रभु यीशु मसीह आप ही, और हमारा पिता परमेश्वर जिसने हमसे प्रेम रखा, और अनुग्रह से अनन्त शान्ति और उत्तम आशा दी है।
[17]तुम्हारे मनों में शान्ति दे, और तुम्हें हर एक अच्छे काम, और वचन में दृढ़ करे।
Stand Firm - 2Thessalonians2:13-17.
13 But we ought always to thank God for you, brothers loved by the Lord, because from the beginning God chose you to be saved through the sanctifying work of the Spirit and through belief in the truth.
14 He called you to this through our gospel, that you might share in the glory of our Lord Jesus Christ.
15 So then, brothers, stand firm and hold to the teachings we passed on to you, whether by word of mouth or by letter.
16 May our Lord Jesus Christ himself and God our Father, who loved us and by his grace gave us eternal encouragement and good hope,
17 encourage your hearts and strengthen you in every good deed and word.
पृष्ठभूमि –
सिकन्दर महान् के यूनानी साम्राज्य की स्थापना के पश्चात् (चौथी शताब्दी ई.पू.) यूनानियों ने बहुत से सुन्दर नगर बनाए। इनमें से एक नगर सिकन्दर महान् के अपने राज्य मकिदुनिया का थिस्सलुनीके था। जब यूनानी साम्राज्य बाद में रोमियों द्वारा हटा दिया गया तब मेसिडोनिया रोमी प्रान्त बन गया जिसमें थिस्सलुनीके राजनैतिक केन्द्र था। थिस्सलुनीके नगर, रोमी साम्राज्य में मकिदुनिया प्रान्त का राजधानी था। यह नगर रोम से एशिया माइनर को जानेवाले मुख्य मार्ग पर था। थिस्सलुनीके उत्तरी यूनान में एक बड़ा नगर एवं एक व्यस्त बंदरगाह था जो थरमिक खाड़ी में स्थित था। थिस्सलुनीके को ई.पू.316 में सिकन्दर महान् के एक सेनापति ने बनवाया था, जिसने नगर का नाम सिकन्दर की पत्नी, थिस्सलुनीके के नाम पर रखा। यह नगर व्यापार का एक मुख्य केंद्र भी था। पौलुस के समय में यहां की जनसंख्या लगभग 200,000 के थी, जिसमें यहूदियों की एक बस्ती भी सम्मिलित थी जहां उनका अपना एक सभा-घर था (प्रेरि.17:1)। यह नगर यूनानियों और मिस्रियों के देवी-देवताओं की आराधना का केन्द्र भी था।
फिल्लिपी नगर से आने के बाद पौलुस ने यहूदियों के अत्यधिक विरोध के होते हुए भी वहां एक कलीसिया की स्थापना की थी। यह कलीसिया अधिकतर ग़ैर-यहूदियों से बनी थी (प्रेरि.17:1-7; 1थिस्स.1:9)। यद्यपि पौलुस ने थिस्सलुनीके में रहते हुए अपने जीवन निर्वाह का स्वयं प्रयत्न किया (1थिस्स.2:9; 2थिस्स.3:7-8), फिर भी उसने मेसिडोनिया की एक कलीसिया अर्थात् फिलिप्पी से अतिरिक्त सहायता प्राप्त की थी (फिली.4:6)।
थिस्सलुनीकियों को पहली एवं दूसरी पत्री लिखने का उद्देश्य -
1थिस्सलुनीकियों की पत्री – थिस्सलुनीके के कुछ अनुयायियों के सामने स्पष्ट तौर पर यह प्रश्न था कि उन अनुयायियों का क्या होगा जो मसीह के दोबारा आने से पहले मर चुके थे (प्रायः इसे पुनरागमन कहा गया है)। अतः पौलुस ने इस प्रश्न का उत्तर 1थिस्स.4:13-18 में सम्मिलित किया जैसा कि लिखा है –
[13] हे भाइयों, हम नहीं चाहते, कि तुम उनके विषय में जो सोते हैं, अज्ञान रहो; ऐसा न हो, कि तुम औरों की नाईं शोक करो जिन्हें आशा नहीं।
[14] क्योंकि यदि हम प्रतीति करते हैं, कि यीशु मरा, और जी भी उठा, तो वैसे ही परमेश्वर उन्हें भी जो यीशु में सो गए हैं, उसी के साथ ले आएगा।
[15] क्योंकि हम प्रभु के वचन के अनुसार तुम से यह कहते हैं, कि हम जो जीवित हैं, और प्रभु के आने तक बचे रहेंगे तो सोए हुओं से कभी आगे न बढ़ेंगे।
[16] क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्वर की तुरही फूंकी जाएगी, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहिले जी उठेंगे।
[17] तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उन के साथ बादलों पर उठा लिए जाएंगे, कि हवा में प्रभु से मिलें, और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे।
[18] सो इन बातों से एक दूसरे को शान्ति दिया करो।
उसने उन्हें फिर यह सलाह दी कि मसीह के आने की बाट हर समय जोहते रहें(1थिस्स.5:1-11)।
2थिस्सलुनीकियों की पत्री –
पौलुस ने थिस्सलुनीकियों को जो पत्र लिखा था उसे थिस्सलुनीकियों ने ठीक से नहीं समझा था अतः मसीह के पुनरागमन के विषय पर स्पष्टतः उनमें गलतफहमी थी। पौलुस ने कहा था कि मसीह अचानक आयेगा, उसके इस कथन को लोगों ने गलती से यह समझा कि वह तुरन्त आयेगा। उन्होंने समझा कि यदि यह सच है तो जीवन निर्वाह के लिए कार्य करने से क्या लाभ। अतः उन्होंने कार्य करना बन्द कर दिया और वे आलसी बनकर बैठ गए। पौलुस ने उन्हें इसी कारण अपना दूसरा पत्र लिखकर उनकी इसी प्रकार की अन्य गलतफहमियों को दूर किया।
थिस्सलुनीकियों की दूसरी पत्री, थिस्सलुनीकियों की प्रथम पत्री के लिखे जाने के कुछ ही समय पश्चात् लिखी गई थी। पौलुस अब भी कोरिन्थ में था,(वह कोरिन्थ में डेढ़ वर्ष तक रहा, प्रेरि.18:11) और उसने सम्भवतः अपने पहले पत्र से होनेवाली गलतफहमी के बारे में सुनकर तुरन्त दूसरा पत्र लिखा था।
थिस्सलुनीके की कलीसिया के कुछ सदस्य परेशान थे, क्योंकि लोग यह कह रहे थे कि मसीह का पुनरागमन तो हो चुका था और वे इस अवसर को खो चुके थे। परन्तु पौलुस उन्हें बताता है कि मसीह के आने पर क्या होगा।
•दुष्ट और अविश्वासी दण्ड पायेंगे (2थिस्स.2:12)।
•जो मसीह के आज्ञाकारी हैं वे बचाए जायेंगे (2थिस्स.2:13)।
• थिस्सलुनीकियों से कहा गया था कि सुसमाचार फैलाने के लिए वे प्रार्थना करें (2थिस्स.3:1-5)।
• और उन्हें चेतावनी दी जाती है कि वे पौलुस की शिक्षा पर ध्यान लगाएं तथा आलसी बनने से बचें (2थिस्स.3:6-13)।
2Thess.2:13 – पर हे भाइयो, और प्रभु के प्रिय लोगो चाहिये कि हम तुम्हारे विषय में सदा परमेश्वर का धन्यवाद करते रहें, कि परमेश्वर ने आदि से तुम्हें चुन लिया; कि आत्मा के द्वारा पवित्र बन कर, और सत्य की प्रतीति करके उद्धार पाओ।
I. परमेश्वर को सदैव धन्यवाद देना – परमेश्वर के लोगों के जीवन की विशेषता इससे प्रकट होती है कि ---
1. वे परमेश्वर को सदैव हर बात के लिए और हर एक परिस्थिति में धन्यवाद देते हैं (इफि.5:19-20,फिलि.4:6,1थिस्स.5:18)।
2. उन्हें परमेश्वर से प्राप्त होनेवाली आत्मिक और भौतिक आशीषों के लिए धन्यवाद देते हैं (कुल.1:12; 1तीमु.4:3-4)।
3. और अपने तथा अन्य लोगों के जीवनों के लिए धन्यवाद देना चाहिये (प्रेरि.28:15; 2थिस्सु.1:3;2:13)।
धन्यवाद देना, प्रशंसा, प्रार्थना और आराधना का एक भाग है (भजन95:1-7;116:17; कुल.4:2; प्रका.7:12;11:17)।
4. विश्वासियों को सदैव स्मरण रखना चाहिए कि उन्हें परमेश्वर द्वारा दी गई प्रत्येक आशीष के लिए उसे धन्यवाद देना चाहिए। इसके लिए सदैव धन्यवाद देकर अपनी प्रार्थना कर सकते हैं (भजन30:12;92:1-4;103:1-5; फिलि.4:6; कुल.4:2; 1तीमु.2:1)।
5. उन्हें व्यवहारिक रूप से परमेश्वर के प्रति धन्यवादित होना चाहिए कि उसने अपने प्रेम के कारण उन्हें चुन लिया है (2थिस्सु.2:13-14)।
6. उन्हें अपने अनुग्रह का भागीदार बनाया है (1कुरि.1:1-4)।
7. उनमें विश्वास, आशा और प्रेम की भावना भरी है (कुल.1:3-5)।
8. और उन्हें सुसमाचार प्रचार करने का कार्य सौंपा है (2कुरि.1:11; फिलि.1:4-5)।
9. परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद देकर मसीही लोग पाप के प्रभाव को रोकते हैं (इफि.5:4)।
परमेश्वर को धन्यवाद न देकर वे उसे वह महिमा देने से चूक जाते हैं जो उसे अवश्य मिलनी चाहिए (लूका 17:16-18)।
II. आत्मा से पवित्र बन कर उद्धार पाऍं – स्वाभाविक रूप से मनुष्य पाप में मृतक और परमेश्वर के दण्ड के अधीन है तथा वह अपने आपको बचाने असमर्थ है। केवल पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा ही लोग पापों से शुद्ध होकर आत्मिक जीवन को पा सकते हैं।
यूहन्ना 3:6 - क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है।
यूहन्ना 6:63 - आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं: जो बातें मैं ने तुम से कहीं हैं वे आत्मा है, और जीवन भी हैं।
यूहन्ना 16:7-11 -
[7] तौभी मैं तुम से सच कहता हूं, कि मेरा जाना तुम्हारे लिये अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊं, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊंगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा।
[8] और वह आकर संसार को पाप और धामिर्कता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा।
[9] पाप के विषय में इसलिये कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते।
[10] और धामिर्कता के विषय में इसलिये कि मैं पिता के पास जाता हूं,
[11] और तुम मुझे फिर न देखोगे: न्याय के विषय में इसलिये कि संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है।
1 कुरिन्थियों 6:11 - और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्मा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।
इफिसियों 2:1-4
[1] और उस ने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे।
[2] जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है।
[3] इनमें हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे।
[4] परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उस ने हम से प्रेम किया।
तीतुस 3:3-6 -
[3] क्योंकि हम भी पहिले, निर्बुद्धि, और आज्ञा न मानने वाले, और भ्रम में पड़े हुए, और रंग रंग के अभिलाषाओं और सुखविलास के दासत्व में थे, और बैरभाव, और डाह करने में जीवन निर्वाह करते थे, और घृणित थे, और एक दूसरे से बैर रखते थे।
[4] पर जब हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की कृपा, और मनुष्यों पर उसकी प्रीति प्रगट हुई।
[5] तो उस ने हमारा उद्धार किया: और यह धर्म के कामों के कारण नहीं, जो हम ने आप किए, पर अपनी दया के अनुसार, नए जन्म के स्नान, और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ।
[6] जिसे उस ने हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा हम पर अधिकाई से उंडेला।
पवित्र आत्मा विश्वासियों को नया जीवन देने के पश्चात् उनके साथ अटूट संबंध बनाए रखता है और पवित्र आत्मा उनमें सदैव निवास करता है।
रोमियो 8:9-11-
[9]परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं।
[10]और यदि मसीह तुम में है, तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्मा धर्म के कारण जीवित है।
[11]और यदि उसी का आत्मा जिस ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया तुम में बसा हुआ है; तो जिस ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी मरनहार देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है जिलाएगा।
1 कुरिन्थियों 6:19 - क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्रात्मा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो?
2 तीमुथियुस 1:14 -और पवित्र आत्मा के द्वारा जो हम में बसा हुआ है, इस अच्छी थाती की रखवाली कर।
1 यूहन्ना 3:24 - और जो उस की आज्ञाओं को मानता है, वह उस में, और वह उन में बना रहता है: और इसी से, अर्थात उस आत्मा से जो उस ने हमें दिया है, हम जानते हैं, कि वह हम में बना रहता है।
1 यूहन्ना 4:13 - इसी से हम जानते हैं, कि हम उस में बने रहते हैं, और वह हम में; क्योंकि उस ने अपने आत्मा में से हमें दिया है।
अतः मसीहियों के लिए कहा जा सकता है कि वे पवित्र आत्मा में निवास करते हैं -
रोमियो 8:9 – परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं।
वे आत्मा रखते हैं, वे आत्मा के द्वारा चलाए जाते हैं -
रोमियो 8:14 - इसलिये कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं।
और वे आत्मा के द्वारा जीवित रहते हैं -
गलातियों 5:25 - यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें भी।
पवित्र आत्मा परमेश्वर का जाप है अर्थात् उन पर परमेश्वर के स्वामित्व का चिन्ह है। वह उनमें आत्मविश्वास देता है कि वे परमेश्वर के सन्तान है और वे उसकी अनन्त आशीषों के वारिस भी है।
रोमियो 8:15-17 -
[15]क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कह कर पुकारते हैं।
[16]आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं।
[17]और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, वरन् परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं॥
III. सत्य की प्रतीति करके उद्धार पाऍं –
सत्य परमेश्वर का स्वाभाव है।वह मूल सत्य है अर्थात् वह प्रत्येक वस्तु का मूल स्रोत है-
यूहन्ना 14:6 - यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।
यूहन्ना 4:21 - यीशु ने उस से कहा, हे नारी, मेरी बात की प्रतीति कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे न यरूशलेम में।
प्रकाशितवाक्य 3:7 - और फिलेदिलफिया की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो पवित्र और सत्य है, और जो दाऊद की कुंजी रखता है, जिस के खोले हुए को कोई बन्द नहीं कर सकता और बन्द किए हुए को कोई खोल नहीं सकता, वह यह कहता है, कि।
यीशु में ही परमेश्वर का सत्य सिध्दता से अभिव्यक्त किया गया है और उसी के द्वारा परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं सिध्दता से पूरी होती है –
यूहन्ना 1:17 - इसलिये कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई; परन्तु अनुग्रह, और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुंची।
2 कुरिन्थियों 1:20 - क्याकि परमेश्वर की जितनी प्रतिज्ञाएं हैं, वे सब उसी में हां के साथ हैं: इसलिये उसके द्वारा आमीन भी हुई, कि हमारे द्वारा परमेश्वर की महिमा हो।
प्रकाशितवाक्य 3:14 - और लौदीकिया की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो आमीन, और विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह है, और परमेश्वर की सृष्टि का मूल कारण है, वह यह कहता है।
यीशु ने बार बार सत्य की साक्षी दी और जो उसे जानने के लिए आते हैं वे सत्य को जानने के लिए आते हैं। उसी के द्वारा वे पाप के बन्धन से स्वतंत्र होते हैं और सच्चे परमेश्वर के जीवित सम्बन्ध में आते हैं और परमेश्वर का पवित्र आत्मा उनमें निवास करता है-
यूहन्ना 8:32 - और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।
यूहन्ना 14:17 – अर्थात् सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है: तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा।
यीशु द्वारा कहा गया सत्य लोगों को बचाता है क्योंकि यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर की पूर्ण उद्धार की क्रिया का प्रतिनिधित्व करता है। अतः मसीही शिक्षा पूर्णतः सत्य की शिक्षा है।
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2Thess.2:14 – जिसके लिये उसने तुम्हें हमारे सुसमाचार के द्वारा बुलाया, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा को प्राप्त करो।
सुसमाचार शब्द ग्रीक(Greek) शब्द Euangelion (यूएंजेलियन) से आया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “अच्छी खबर”। साधारण शब्दों में सुसमाचार का अर्थ शुभ सन्देश से है। परम्परागत रीति से नया नियम की चार पुस्तकें ही सुसमाचार कहलाती है, क्योंकि उनमें सुसमाचार या शुभ-सन्देश का वर्णन है और उन पुस्तकों में मनुष्यों के उद्धारक प्रभु यीशु मसीह के आगमन का शुभ-संदेश प्रस्तुत करती है।
जब परमेश्वर के पुराना नियम के लोग अर्थात् इस्राएली लोग बेबीलोन की बन्धुवाई में थे तब परमेश्वर ने उनके लिए घोषणा की कि मैं छुड़ाकर तुम्हारे देश में तुम्हें पहुंचा दूंगा तब यह उनके लिए एक अच्छा समाचार था (यशा.40:9,52:7; 61:1-2)
जब यीशु लोगों को शैतान के बन्धन से छुड़ाने के लिए आया और उसने उन्हें नया जीवन दिया तो यह भी एक अच्छा समाचार था (लूका4:16-19)
नए नियम में, यह इस घोषणा को संदर्भित करता है कि यीशु अपने जीवन, मृत्यु और मृतकों में से पुनरुत्थान के माध्यम से हमारी दुनिया में परमेश्वर का राज्य (ईश्वर का शासन) लाए हैं।
प्रभु यीशु मसीह ने जिस सुसमाचार की घोषणा की,वह पुराने नियम के इस्राएलियों को दी जाने वाली प्रतिज्ञाएं थीं जो अब उसमें पूरी हुई थी। परमेश्वर का प्रतिज्ञात राज्य अब आ गया था और उन सब लोगों के लिए उद्धार प्रस्तुत था जो अपने पापों से पश्चाताप करके क्षमा के लिए उस पर भरोसा रखने को तैयार थे(मर.1: 14-15)।
आरम्भ के मसीही प्रचारकों जैसे – पतरस, यूहन्ना,स्तिफनुस और पौलुस ने इसी सुसमाचार का प्रचार किया था। परन्तु यीशु का सुसमाचार प्रचार उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान के दिनों तक था इसलिए मसीहियों ने उसका प्रचार उसकी मृत्यु और उसके पुनरूत्थान के बाद किया इसलिए उन्होंने यीशु के जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान पर की ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं पर बल दिया जिसका कोई इन्कार नहीं कर सकता था। ये वे सत्य थे जिन पर उनका सुसमाचार आधारित था (प्रेरि.2:22-42,3:12-26; 7:1-53; 13:17-41; 1कुरि.15:1-7)।
केवल एक ही सुसमाचार है (गला.1:6-9)। इसे परमेश्वर का सुसमाचार या परमेश्वर के अनुग्रह का सुसमाचार इस बात पर बल देने के लिए कहा जाता है क्योंकि इसका मूल स्रोत परमेश्वर और उसके अनुग्रह में है (प्रेरि.20:24; रोमि.15:16; 1थिस्स.2:2,8; 1तीमु.1:11)। यह मसीह का सुसमाचार या मसीह की महिमा का सुसमाचार इसलिए कहा जाता है जिससे कि प्रभावपूर्ण रीति से मालूम हो सके कि यह केवल यीशु मसीह के द्वारा लोगों तक पहुंचाया जाता है (रोमि.15:19; 2कुरि.2:12; 4:4; 9:13)। इसे परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार, उद्धार का सुसमाचार और शान्ति का सुसमाचार इस बात पर बल देने के लिए कहा जाता है कि जो लोग इस पर विश्वास करते हैं वे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करते और अनन्त उद्धार और शान्ति प्राप्त करते हैं (मत्ती9:35; इफि. 1:13, 6:15)।
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2Thess.2:15 – इसलिये, हे भाइयों, स्थिर रहो; और जो जो बातें तुम ने क्या वचन, क्या पत्री के द्वारा हम से सीखी है, उन्हें थामे रहो।
पुराना नियम के समय में इस्राएलियों के लिए परमेश्वर का वचन केवल लिखित या कहा हुआ वचन नहीं वरन् क्रियाशील वचन था।
परमेश्वर के क्रियाशील वचन के द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति हुई (उत्प.1:3,6,9,14,20,24,26; इब्रा.11:3; 2पत.3:5)।
परमेश्वर का वचन व्यर्थ नहीं होता। वह जो कुछ भी कहता है, वह अवश्य पूरा होता है (यशा.55:10-11)
नया नियम में यीशु को वचन कहा गया है (1यूह.1:1-3)।
नया नियम बतलाता है कि यह वचन व्यक्ति से अधिक महत्वपूर्ण है, यह वस्तु नहीं, परन्तु जीवित व्यक्ति के समान है। वह न केवल परमेश्वर के साथ है, परन्तु स्वयं परमेश्वर है। यह वचन यीशु मसीह है जो मनुष्य बना। (यूह.1:1-4,14; उत्प.1:1-3; कुलु.1:15-17; इब्रा.1:1-3; प्रका.19:13,16)।
लिखित और कहा हुआ वचन –
जैसा कि हम पवित्र शास्त्र में पाते हैं कि परमेश्वर की ओर से बोलने वाले लोग नबी कहलाते थे और उनकी घोषणा परमेश्वर के लोगों के लिए अधिकार सहित परमेश्वर का वचन था(यशा.1:2-4,18; यिर्म.23:22, यहेज.1:3, होशे.4:1; योएल1:1, आमोस1:3; इब्रा.1:2)। इसी प्रकार नया नियम के प्रेरितों द्वारा सुसमाचार प्रचार परमेश्वर के वचन की घोषणा थी (प्रेरि.4:31,13:44; इफि.1:13, कुलु.1:5,6; 1पत.1:23,25)।
कहा हुआ वचन लिखित वचन भी बन गया और यीशु के व्यक्तिगत वचन के समान यह भी जीवित और क्रियाशील है। यह आज भी जीवित और क्रियाशील है और वचन के सुनने तथा पढ़ने वालों के मनों में और जीवनों में परमेश्वर का कार्य करता है (इब्रा.4:12)।
अतः हमें प्रभु यीशु मसीह की आज्ञाओं एवं नियमों को मानते हुए उनके विधिओं पर चलना है। विशेषकर प्रभु यीशु मसीह की सबसे बड़ी आज्ञा (मत्ती22:37,39) एवं नई आज्ञा (यूह.13:34) का पालन करना सर्वोपरि है। हमें यीशु मसीह को प्रभु जानकर उस पर विश्वास रखते हुए उनके शिक्षाओं को थामे रहना है,और उनके वचन में स्थिर रहना है ताकि हम परमेश्वर की दया, करूणा और अनुग्रह का पात्र बन सकें।
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2Thess.2:16 - हमारा प्रभु यीशु मसीह आप ही, और हमारा पिता परमेश्वर जिसने हमसे प्रेम रखा, और अनुग्रह से अनन्त शान्ति और उत्तम आशा दी है।
अनुग्रह = दिव्य आशीर्वाद। सौम्य रवैया और एहसान देने या रियायतें देने की इच्छा।
पर्यायवाची = कृपा, दान, क्षमादान, उदारता और दया हैं।
जो हम पाने के योग्य नहीं हैं, वह हमें परमेश्वर की अनुग्रह (कृपा) से प्रदत्त की गई हो अर्थात् हमारे स्वयं के योग्यता के अभाव के बावजूद परमेश्वर का एक असीम कृपा से किसी वस्तु, व्यक्ति, पद, अधिकार व मान-सम्मान आदि के मिलने से है।
बाइबल में ‘अनुग्रह’ शब्द का पहला प्रयोग उत्पत्ति 6:8 में मिलता है: “परन्तु नूह ने यहोवा की दृष्टि में अनुग्रह पाया।“ इब्रानी शब्द ‘हनान’ को अक्सर “दयालु होना” या “दया करना” के रूप में अनुवादित किया जाता है।
शब्द “अनुग्रह” नए नियम में कई बार प्रकट होता है, यूनानी शब्द “चारिस” का अनुवाद अक्सर अनुग्रह के रूप में किया जाता है। यह एक ऐसा शब्द है जो ईश्वर की परोपकारिता, दया और मानवता के प्रति अनुग्रह को समाहित करता है।
भजन संहिता 6:2 में भजनकार कहता है, “हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं सूख रहा हूं; हे यहोवा, मुझे चंगा कर, क्योंकि मेरी हड्डियाँ दुख रही हैं।”
निर्गमन 34:6-7 कार्य में अनुग्रह और दया की एक और झलक देता है।
भजन 145:8-9 प्रभु के इन सौम्य गुणों को खूबसूरती से व्यक्त करता है:
प्रभु दयालु और कृपालु हैं, क्रोध करने में धीमे हैं और दयालु हैं।
यहोवा सब के लिये भला है, और उसकी करूणा उसके सब कामों पर है।
इफिसियों 2:8-10 -
[8]क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्वर का दान है।
[9]और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।
[10]क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया।
अनुग्रह परमेश्वर का एक मुफ्त दान है। लोग परमेश्वर से बार-बार विद्रोह करते हैं परन्तु फिर भी परमेश्वर अपने अनुग्रह के कारण उन लोगो को बार-बार क्षमा करने के लिए तैयार रहता है जो पापों से पश्चाताप करते हैं (निर्ग.34:6, रोमि.5:20)।
लोगों का छुटकारा व्यवस्था की आज्ञा का पालन करने या बलिदान चढ़ाने से कभी नहीं हुआ (रोमि.3:24-26,गला.3:17-22)। परन्तु लोगों को उनके पापों से एक ही विधि से छुटकारा मिला और वह है, परमेश्वर का अनुग्रह, और यह छुटकारा उन्होंने विश्वास के द्वारा प्राप्त किया (इफि.2:8)।
प्रभु यीशु मसीह स्वयं ही परमेश्वर के अनुग्रह का सबसे बड़ा प्रकटीकरण है (यूह.1:14) उसने उस अनुग्रह को न केवल अपने जीवन में के द्वारा प्रकट किया (यूह.1:17; 2कुरि.8:9)। वरन् उसने इसे क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा भी प्रकट किया (रोमि.3:24-25; गला.2:21; इब्रा.2:9)। यीशु की मृत्यु के द्वारा परमेश्वर उन सब लोगों के पाप क्षमा करता है जो अपने पापों से पश्चाताप करके उस पर भरोसा रखते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर उनके साथ मेल मिलाप करता है और उन्हें धर्मी ठहराता है (रोमि.3:23-24; 4:5; 5:2; 1कुरि.1:4; तीतु.2:11; 3:4-5)।
अनन्त शान्ति (Eternal Encouragement) -
परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना, अनन्त जीवन पाना या उद्धार पाना है। जैसे परमेश्वर के राज्य का अनुभव विश्वासी अब करता है और भविष्य में इससे भी अधिक पूर्णता के साथ करेगा। अतः वह अनन्त जीवन में प्रवेश कर चुका है परन्तु वह मसीह के पुनः आगमन पर इसकी पूर्णता का अनुभव प्राप्त करेगा।
यूहन्ना 5:25,29
[25]मैं तुम से सच सच कहता हूं, वह समय आता है, और अब है, जिस में मृतक परमेश्वर के पुत्र का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएंगे।
[29]जिन्हों ने भलाई की है वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्हों ने बुराई की है वे दंड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे।
इसी प्रकार वह अब उद्धार पा चुका है परन्तु वह मसीह के आगमन पर उद्धार की पूर्णता का अनुभव करेगा
इफिसियों 2:8 - क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है।
इब्रानियों 9:28 – वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ और जो लोग उस की बाट जोहते हैं, उन के उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप के दिखाई देगा।
अनन्त जीवन परमेश्वर के राज्य का जीवन है, यह भविष्य के राज्य का जीवन है परन्तु इसलिए कि परमेश्वर का राज्य मनुष्यों के मध्य आ गया है। अतः लोगों के पास इस समय भी अनन्त जीवन है
मत्ती 25:34 - तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, हे मेरे पिता के धन्य लोगों, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है।
यूहन्ना 3:3,5,15 -
[3]यीशु ने उस को उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।
[5]यीशु ने उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।
[15]ताकि जो कोई विश्वास करे उस में अनन्त जीवन पाए।
यूहन्ना 5:24 - मैं तुम से सच सच कहता हूं, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजने वाले की प्रतीति करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।
उत्तम आशा(Good Hope) -
परमेश्वर में सच्चे विश्वास का एक लक्षण आशा है। इस प्रकार की आशा उस आशा से भिन्न है जिसे लोग साधारणतः समझते हैं। यह किसी वस्तु की कोरी आशा नहीं है परन्तु यह एक दृढ़ विश्वास है जो परमेश्वर में रखा जाता है।
मसीहियों के लिए यीशु मसीह के पुनरागमन की बड़ी आशा है जबकि वे उद्धार की परिपूर्णता को प्राप्त करेंगें और मसीह के साथ महिमा के नये युग में प्रवेश करेंगें
1कुरिन्थियों 15:19-23-
[19]यदि हम केवल इसी जीवन में मसीह से आशा रखते हैं तो हम सब मनुष्यों से अधिक अभागे हैं॥
[20]परन्तु सचमुच मसीह मुर्दों में से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ।
[21]क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया।
[22]और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।
[23]परन्तु हर एक अपनी अपनी बारी से; पहिला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग।
इफिसियों 1:18 - और तुम्हारे मन की आंखें ज्योतिर्मय हों कि तुम जान लो कि उसके बुलाने से कैसी आशा होती है, और पवित्र लोगों में उस की मीरास की महिमा का धन कैसा है।
कुलुस्सियों 1:27 - जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है।
अतः मसीहियों के लिए मसीह के पुनरागमन की आशा का अर्थ उत्साहपूर्वक उसकी प्रतीक्षा करना है और इस आशा का आधार मसीह की प्रायश्चित वाली मृत्यु और उसका गौरवपूर्ण पुनरूत्थान है।
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2Thess.2:17 - तुम्हारे मनों में शान्ति दे, और तुम्हें हर एक अच्छे काम, और वचन में दृढ़ करे।
मनों में शान्ति दे (Encourage your Heart) –
प्रेरित पौलुस थिस्सलुनीकियों के दुसरी पत्र के माध्यम से सांत्वना देता है जो पहले से ही सताव के कारण क्लेश में थे और चिन्ता में थे कि उन्हें परमेश्वर के वचन से हृदयों को प्रोत्साहित करता है। आशय है कि हम मसीहीजन किसी परिस्थितिजन्य निराश और पराजित हो जाते हैं तो परमेश्वर के वचन में ध्यान करें।
अपने हृदयों को सांत्वना दो
थिस्सलुनिकी वासी जो पहले से ही क्लेश व पीड़ा में थे, उनके लिए 2थिस्सलुनिकियों के लेखन के माध्यम से प्रेरित पौलुस प्रार्थना करते हैं कि उन्हें शान्ति मिले। परमेश्वर का वचन सदैव हमारे हृदयों को प्रोत्साहित करता है । जब ईसाई निराश और पराजित हो जाते हैं, तो उन्हें वचन में ध्यानमग्न होना चाहिए।
“इसलिये इन बातों से एक दूसरे को शान्ति दो ”
1 थिस्सलुनीकियों 4:16-18 -
[16]क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्वर की तुरही फूंकी जाएगी, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहिले जी उठेंगे।
[17]तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उन के साथ बादलों पर उठा लिए जाएंगे, कि हवा में प्रभु से मिलें, और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे।
[18]सो इन बातों से एक दूसरे को शान्ति दिया करो॥
हर अच्छे काम और शब्द में (Every Good Deed & word)
प्रेरित पौलुस थिस्सलुनिकियों को सांत्वना देना और स्थापित करना चाहता है कि वह "हर अच्छे शब्द और कार्य" में रहे। हममें से बहुत से लोग बात करने में तो अच्छे हैं लेकिन चलने में अच्छे नहीं हैं। प्रेरित पौलुस चाहता है कि हमारी चाल हमारी बातचीत से मेल खाए । हमारे बारे में कोई यह न कहे, "वह अच्छी- अच्छी बातें करता है, परन्तु उसका कार्य उसके बोली-वचन के अनुसार बिल्कुल भी मेल नहीं है
सिध्दांत: हमारी चाल हमारी बातचीत से मेल खानी चाहिए; हमें दोनों में प्रोत्साहन और स्थिरता की आवश्यकता है।
हम प्रार्थना करें कि परमेश्वर हमारे कलीसिया में ईसाइयों को "सांत्वना और मजबूती" प्रदान करेंगे कि उनके बातचीत और चाल-चलन ईसाई धर्म के अनुरूप हो। हमारे होंठ और जीवन, बात करना और चलना, "शब्द और काम" एक दूसरे से मेल खाने चाहिए। उनके बीच एकरूपता होनी चाहिए; अन्यथा उसके साथ हमारा तालमेल नहीं रहेगा।
हम प्रत्येक दिन अपने जीवन से एक शिक्षा पाते हैं। जैसे ही दूसरे लोग हमें देखते हैं, वे हमें अच्छी तरह से जानते हैं। वे देखते हैं कि हम समस्याओं पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। वे जानना चाहते हैं कि क्या हम जिस बात पर विश्वास करते हैं उसी के अनुरूप जीते हैं।
भजन संहिता 19:14 - "हे यहोवा, हे मेरे बल और मेरे छुड़ानेवाले, मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे साम्हने ग्रहण योग्य ठहरें।"
वचन में दृढ़ करे (Strengthen in word)
प्रेरित पौलुस थिस्सलुनिकियों को वचन में स्थिर बनाना चाहता है कि उनके हृदय विश्वास में दृढ़ रहें ( 1 थिस्सलुनीकियों 3:13 )। कुछ लोग विश्वास में डगमगा गए और अस्थिर थे, इसलिए उन्हें अपनी आत्मा को वचन से जोड़े रखने की आवश्यकता थी। जो लोग वचन में स्थिर नहीं हैं वे गलत शिक्षा के मार्ग पर चले जाते हैं। जब परमेश्वर के बच्चे अँधेरे में भटकते हैं तो वे उनके लिए बहुत कम उपयोगी होते हैं।
उन्होंने थिस्सलुनीके के ईसाइयों के लिए ईमानदारी से प्रार्थना की, और पुत्र परमेश्वर और पिता परमेश्वर दोनों से इन विश्वासियों के दिलों को सांत्वना देने और प्रोत्साहित करने और उन्हें हर अच्छे काम में और उनके द्वारा कही गई हर बात में दृढ़ करने और स्थिर करने के लिए कहा।
हम अक्सर परमेश्वर की महिमा के लिए अपने द्वारा किए गए अच्छे कार्यों के बारे में विचार-विमर्श करते हैं, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे शब्द कितने प्रभावशाली हो सकते हैं। धन्यवाद देना, एक हर्षित अभिनन्दन करना, या प्रोत्साहन देना आदि का एक सरल शब्द किसी के लिए बहुत मायने रख सकती है, और उनके हृदय को बहुत मधुर बना सकती है।
आइए हम परमेश्वर के वचन को ध्यान से देखें, पढ़ें, समझें, सीखें, लिखें और चिन्हांकित करें और हृदय के अंतरतम् से मन्थन करें या किसी समस्या या सिद्धांत के लिए किया जाने वाला गंभीर विचार-विमर्श व चिंतन करें। हम अपने प्रभु यीशु मसीह और स्वर्गिक परमेश्वर पिता की स्तुति के लिए हर अच्छे काम और वचन में दृढ़ बनें एवं स्थिर रहें कि हमें अनन्त शान्ति और प्रोत्साहन मिले।
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