27042024 – जुविलाते (ललकारों) सप्ताह अर्थात् ललकारो।
भजन संहिता 66:1 - हे सारी पृथ्वी के लोगों, परमेश्वर के लिये जयजयकार करो;
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लूका 24:36-53 –
यीशु का चेलों का दिखाई देना –
[36] वे ये बातें कह ही रहे थे कि वह आप ही उनके बीच में आ खड़ा हुआ; और उनसे कहा, “तुम्हें शान्ति मिले।”
[37] परन्तु वे घबरा गए और डर गए, और समझे कि हम किसी भूत को देख रहे हैं।
[38] उसने उनसे कहा, “ क्यों घबराते हो ? और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं?
[39] मेरे हाथ और मेरे पांव को देखो कि मैं वही हूं। मुझे छूकर देखो, क्योंकि आत्मा के हड्डी मांस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।”
[40] यह कहकर उस ने उन्हें अपने हाथ पांव दिखाए।
[41] जब आनन्द के मारे उनको प्रतीति न हुई, और आश्चर्य करते थे, तो उसने उनसे पूछा; “क्या यहां तुम्हारे पास कुछ भोजन है?”
[42] उन्होंने उसे भूनी मछली का टुकड़ा दिया।
[43] उसने लेकर उनके साम्हने खाया।
[44] फिर उसने उनसे कहा, ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।
[45] तब उसने पवित्र शास्त्र बूझने के लिये उनकी समझ खोल दी।
[46] और उनसे कहा, यों लिखा है; कि मसीह दु:ख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा।
[47] और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा।
[48] तुम इन सब बातें के गवाह हो।
[49] और देखो, जिसकी प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, मैं उसको तुम पर उतारूंगा और जब तक स्वर्ग से सामर्थ न पाओ, तब तक तुम इसी नगर में ठहरे रहो।
[50] तब वह उन्हें बैतनिय्याह तक बाहर ले गया, और अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीष दी।
[51] और उन्हें आशीष देते हुए वह उन से अलग हो गया और स्वर्ग से उठा लिया गया।
[52] और वे उसको दण्डवत करके बड़े आनन्द से यरूशलेम को लौट गए।
[53] और लगातार मन्दिर में उपस्थित होकर परमेश्वर की स्तुति किया करते थे।
Jesus Appears to the Disciples
36 While they were still talking about this, Jesus himself stood among them and said to them, “Peace be with you.”
37 They were startled and frightened, thinking they saw a ghost. 38 He said to them, “Why are you troubled, and why do doubts rise in your minds? 39 Look at my hands and my feet. It is I myself! Touch me and see; a ghost does not have flesh and bones, as you see I have.”
40 When he had said this, he showed them his hands and feet. 41 And while they still did not believe it because of joy and amazement, he asked them, “Do you have anything here to eat?” 42 They gave him a piece of broiled fish, 43 and he took it and ate it in their presence.
44 He said to them, “This is what I told you while I was still with you: Everything must be fulfilled that is written about me in the Law of Moses, the Prophets and the Psalms.”
45 Then he opened their minds so they could understand the Scriptures. 46 He told them, “This is what is written: The Christ will suffer and rise from the dead on the third day, 47 and repentance and forgiveness of sins will be preached in his name to all nations, beginning at Jerusalem. 48 You are witnesses of these things. 49 I am going to send you what my Father has promised; but stay in the city until you have been clothed with power from on high.”
The Ascension
50 When he had led them out to the vicinity of Bethany, he lifted up his hands and blessed them. 51 While he was blessing them, he left them and was taken up into heaven. 52 Then they worshiped him and returned to Jerusalem with great joy. 53 And they stayed continually at the temple, praising God.
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प्रस्तावना –
लूका 24:36-43- इसमें संत लूका रचित सुसमाचार के अध्याय-24 यीशु मसीह के पुनरुत्थित जीवन, उनका दर्शन एवं स्वर्गारोहण के बारे में वर्णन हैं। प्रभु यीशु बार-बार अपने दुःख-भोग और पुनरुत्थान के बारे में अपने शिष्यों को बताते रहे। लेकिन वे कभी भी समझ नहीं पाए। इसलिए प्रभु की मृत्यु के तीसरे दिन वे कब्र में प्रभु को देखने गए। खाली कब्र को देखकर भी उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था। इसलिए स्वर्गदूत उन्हें प्रभु के पुनरुत्थान का सन्देश देते हैं।
इम्माउस जाने वाले शिष्यों को दर्शन – संत लूका रचित सुसमाचार के अनुसार पुनर्जीवित प्रभु यीशु, एम्माउस जाने वाले शिष्यों को दर्शन देते हैं। ये दोनों प्रेरित नहीं थे। वे विचार विमर्श कर रहे थे कि प्रभु यीशु मसीह मृतकों में से सचमुच जी उठा है। इसी दरम्यान में पुनरुत्थित प्रभु यीशु, उनके साथ हो लेता है और यीशु के दु:खभोग,क्रूसीकरण तथा पुनरुत्थान के संबंध में धर्मग्रंथ में लिखे वचनों के अर्थ समझाते हैं। रोटी तोड़ते समय दोनों शिष्य प्रभु को पहचान लेते हैं और पुनर्जीवित यीशु उनकी दृष्टि से ओझल हो जाते हैं।
पुनर्जीवित यीशु अपने प्रेरितों और अन्य शिष्यों को दर्शन देते हैं। जिस शरीर को माँ मरियम से धारण किये थे, उसी में वे जीवित रहे, कार्य किये, दुःख भोगे, मरे और पुनर्जीवित हुए। और इसी शरीर में अपने पिता के दाहिने विराजमान हैं। येरूसालेम में शुरू हुआ यह सुसमाचार, येरूशलेम, यहूदिया, सामरिया तथा संसार के कोने-कोने में फैलता चला आ रहा है।
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वचन का व्याख्यान
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I. ब्यारी की कोठरी में यीशु का शिष्यों को दर्शन (v36-43) -
पुनरुत्थान दिन के संध्या के समय में यहूदियों के भय और डर के मारे 11प्रेरितगण व अन्य शिष्य कोठरी में बन्द थे। यीशु के क्रुसीकरण से पुनरुत्थान तक इन 03 दिनों में घटित एतिहासिक घटनाओं में यीशु के कष्ट, दु:ख, क्रूस मृत्यु के बारे में चिंतित, व्यथित एवं परेशान थे। उस समय पुनर्जीवित प्रभु यीशु मसीह उनके बीच में उपस्थित हुए और डरे, सहमें और घबराए हुए 11प्रेरितगणों व शिष्यों को अपनी आशीष वचन से आशीषित किया और कहा - तुम्हें शांति मिले। जब किसी व्यक्ति की भौतिक जीवन में बीमारी या स्वस्थ्य की गड़बड़ियां हों, गंभीर बीमारी हों, शोकित हों, दुखित हों, परेशानी हों,तभी हम प्रभु यीशु मसीह का शांतिदायक आशीष वचन की आशा करते हैं। प्रभु यीशु मसीह मृत्यु को हराकर जी उठने के बाद में प्रेरितों व शिष्यों को अपना दर्शन दिए। और उनके जीवन में एक पुनरुत्थान की आशा एवं आनन्द व सामर्थ्य दिया।
• वे से तात्पर्य 11प्रेरितों व अन्य शिष्यों की उपस्थिति से है।
Luke 24:36-
मरकुस 16:14 - पीछे वह उन ग्यारहों को भी, जब वे भोजन करने बैठे थे दिखाई दिया, और उनके अविश्वास और मन की कठोरता पर उलाहना दिया, क्योंकि जिन्होंने उसके जी उठने के बाद उसे देखा था, इन्होंने उनकी प्रतीति न की थी।
यूहन्ना 20:19-24-
[19]उसी दिन जो सप्ताह का पहिला दिन था, सन्ध्या के समय जब वहां के द्वार जहां चेले थे, यहूदियों के डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले।
[20]और यह कहकर उस ने अपना हाथ और अपना पंजर उन को दिखाए: तब चेले प्रभु को देखकर आनन्दित हुए।
[21]यीशु ने फिर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं।
[22]यह कहकर उस ने उन पर फूंका और उन से कहा, पवित्र आत्मा लो।
[23]जिन के पाप तुम क्षमा करो वे उन के लिये क्षमा किए गए हैं जिन के तुम रखो, वे रखे गए हैं।
[24]परन्तु बारहों में से एक व्यक्ति अर्थात् थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, जब यीशु आया तो उनके साथ न था।
[25]जब और चेले उससे कहने लगे कि हमने प्रभु को देखा है: तब उसने उनसे कहा, जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद न देख लूं, और कीलों के छेदों में अपनी उंगली न डाल लूं, और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूं, तब तक मैं प्रतीति नहीं करूंगा॥
[26]आठ दिन के बाद उसके चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उनके साथ था, और द्वार बन्द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, तुम्हें शान्ति मिले।
[27]तब उसने थोमा से कहा, अपनी उंगली यहां लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।
Luke 24:39- कभी-कभी बड़ी कीलें उस व्यक्ति कलाईयों तथा पांवों में ठोंक दी जाती थी जिसे क्रूस पर मृत्यु दण्ड के लिए चढ़ाना होता था। यीशु चाहता था कि उसके जख्मों को देखें ताकि उन्हें ज्ञात हो जाए कि वह कौन था।
इस बात के प्रमाण कि प्रभु यीशु की उपस्थिति आत्मा के रूप में नहीं थी -
•उनके हाथों और पावों पर घावों के निशान,
•उन्हें स्पर्श किया जा सकता था, और
•उनके द्वारा भोजन किए जाने की सक्षमता (पद 43;प्रेरि.10:41)। छूकर, 1यूह.1:1 में भी यही शब्द आया है।
1यूहन्ना1:1 – उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था, जिसे हमने सुना, और जिसे अपनी आंखों से देखा, वरन् जिसे हमने ध्यान से देखा; और हाथों से छूआ।
24:43- •इस प्रकार एक अन्य ढंग से उसने बताया कि वह सिर्फ आत्मा नहीं था।
•एक भूत भोजन नहीं करता।
विजयी पुनरुत्थान के लिए मनुष्य की आशा का आधार यीशु मसीह का पुनरुत्थान है (यहू.11:25; 1कुरि.15:20; 45-49) अपने सेवाकाल के समय यीशु ने बार बार स्पष्ट किया कि न केवल उसे मरना है परन्तु उसे मृत्यु के पश्चात् जीवित भी होना है (मर.8:31,9:9,31; यूह.2:19-21) यीशु के स्पष्ट कथन के पश्चात् भी उसके चेलों ने उसके क्रुसीकरण और पुनरुत्थान की बात नहीं समझी।
फिर भी यीशु के पुनरुत्थान के पश्चात् उसकी देह के साथ कुछ भिन्नता थी। किसी किसी अवसर पर उसका भौतिक दिखावा बदला हुआ प्रतीत होता था क्योंकि उसके मित्र भी उसे पहिले नहीं पहिचान पाए थे (लूका 24:30-31; 36-37; यहू.20:14-15; 21:4:12)। अन्य अवसरों पर वे उसे तुरन्त पहिचान गए (मत्ती28:9; यूह.20:26-28।
यीशु अपनी पुनरुत्थान की देह में साधारण भौतिक कार्य कर सकता था (लूका24:41-43. परन्तु पुनरुत्थित यीशु मसीह अपनी इच्छा के अनुसार दिखाई दे सकता था और ओझल भी हो सकता था। यध्दपि वह अपने शिष्यों के साथ अदृश्य रुप से रहता था फिर भी वह अपनी इच्छा के अनुसार दिखाई दे सकता था (लूका 24:31; यहून्ना 20:19,26, मत्ती18-12) ।
यीशु के पुनरुत्थान ने उन प्रेरितों को जो घबराए और डरे हुए थे परिवर्तित करके आश्वस्त और साहसी बना दिया (प्रेरितों 2:14,36; 4:13,18:20,29-31;5:27-29)
II. मसीहा के विषय में बाइबल में भविष्यवाणियां (v44-46)-
Luke 24:44- यहूदी पवित्र शास्त्र 03 भागों से बना है:
1.मूसा की व्यवस्था (पुराना नियम के सूची क्रम 01 से 05 प्रथम पांच पुस्तकें)
2.भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें( पुराना नियम के सूची क्रम 23 से 39 पुस्तकें) तथा इसी में इतिहास की पुस्तकें (पुराना नियम के सूची क्रम 06 से 17) सम्मिलित है।
3.भजनों के पुस्तक ( पुराना नियम के सूची क्रम 18 से 22 पुस्तकें ) सम्मिलित है।
यह यहूदी दृष्टिकोण से पुराना नियम का एक सामान्य विभाजन है।
लूका 24:44-
उसके कष्टों और मृत्यु और मृतकों में से पुनरुत्थान के विषय में कहा गया है– उत्पत्ति 3:15, यशा.53:1-12, दानिएल 3:26, होशे 6:2, भजन22:1,31, भजन 16:10. और इसमें वह इस बात का उल्लेख करता है जो उसने अपने शिष्यों से कहीं थी – मत्ती16:21,मत्ती17:22,23, मत्ती 20:19 और
मत्ती 3:13-15
[13]उस समय यीशु गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास उस से बपतिस्मा लेने आया।
[14]परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, कि मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यक्ता है, और तू मेरे पास आया है?
[15]यीशु ने उस को यह उत्तर दिया, कि अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धामिर्कता को पूरा करना उचित है, तब उस ने उस की बात मान ली।
मत्ती 5:17-18
[17]यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूं।
[18]लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूं, क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएं, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
2 कुरिन्थियों 5:21
[21]जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं॥
लूका 9:43-45
[43]तब सब लोग परमेश्वर के महासामर्थ से चकित हुए।
[44]परन्तु जब सब लोग उन सब कामों से जो वह करता था, अचम्भा कर रहे थे, तो उस ने अपने चेलों से कहा; ये बातें तुम्हारे कानों में पड़ी रहें, क्योंकि मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाने को है।
[45]परन्तु वे इस बात को न समझते थे, और यह उन से छिपी रही; कि वे उसे जानने न पाएं, और वे इस बात के विषय में उस से पूछने से डरते थे।
लूका 18:31-34
[31]फिर उस ने बारहों को साथ लेकर उन से कहा; देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और जितनी बातें मनुष्य के पुत्र के लिये भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखी गई हैं वे सब पूरी होंगी।
[32]क्योंकि वह अन्यजातियों के हाथ में सौंपा जाएगा, और वे उसे ठट्ठों में उड़ाएंगे; और उसका अपमान करेंगे, और उस पर थूकेंगे।
[33]और उसे कोड़े मारेंगे, और घात करेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।
[34]और उन्होंने इन बातों में से कोई बात न समझी: और यह बात उन में छिपी रही, और जो कहा गया था वह उन की समझ में न आया॥
व्यवस्थाविवरण 29:2-4
[2]फिर मूसा ने सब इस्त्राएलियों को बुलाकर कहा, जो कुछ यहोवा ने मिस्र देश में तुम्हारे देखते फिरौन और उसके सब कर्मचारियों, और उसके सारे देश से किया वह तुम ने देखा है;
[3]वे बड़े बड़े परीक्षा के काम, और चिन्ह, और बड़े बड़े चमत्कार तेरी आंखों के साम्हने हुए;
[4]परन्तु यहोवा ने आज तक तुम को न तो समझने की बुद्धि, और न देखने की आंखें, और न सुनने के कान दिए हैं
लूका 24:44-49-
उसने उनका मन खोल दिया – पुनरुत्थान के बाद की अपनी सेवकाई में, यीशु ने अपने शिष्यों के दिमाग को खोल दिया ताकि वे पवित्रशास्त्र को समझ सकें। यह वह कार्य है जिसे यीशु अपनी पवित्र आत्मा की उपस्थिति के माध्यम से करना जारी रखता है
लूका 9:22 - और उस ने कहा, मनुष्य के पुत्र के लिये अवश्य है, कि वह बहुत दुख उठाए, और पुरिनए और महायाजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें, और वह तीसरे दिन जी उठे।
यीशु ने शिष्यों की उन्नति के लिए धर्मग्रंथ की व्याख्या की (vv. 27, 44-47)।
लूका हमें बताता है कि ये वचन थे जो इथियोपियाई खोजे पढ़ रहे थे।फिलिप्पुस ने यीशु के बारे में सुसमाचार सुनाने के लिए इन वचन का प्रयोग में लाया (प्रेरितों 8:32-35)।
भजन 16:10 कहता है, "क्योंकि तू मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, और न अपने पवित्र को विनाश देखने देगा।" लूका ने इस पद को प्रेरितों के काम 2:27 में उद्धृत किया है; 13:35.
यशायाह 53:7-8 –
[7]वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुंह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय वा भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुंह न खोला।
[8]अत्याचार कर के और दोष लगाकर वे उसे ले गए; उस समय के लोगों में से किस ने इस पर ध्यान दिया कि वह जीवतों के बीच में से उठा लिया गया? मेरे ही लोगों के अपराधों के कारण उस पर मार पड़ी।
• होशे 6:2 कहता है, “दो दिन के बाद वह हमें पुनर्जीवित करेगा। तीसरे दिन वह हमें उठा खड़ा करेगा, और हम उसके साम्हने जीवित रहेंगे।” यह वह पद हो सकता है जिसका उल्लेख यीशु ने लूका 24:46 में किया है।
• लूका11:29-32 में, यीशु योना के चिन्ह को संदर्भित करता है। (मत्ती12:40)।
• यशायाह 49:6 कहता है, "मैं तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति होने के लिये दूंगा, कि तू पृय्वी की छोर तक मेरा उद्धार ठहरे।" लूका ने इस पद को लूका 2:32 में उद्धृत किया है; प्रेरितों 1:8; 13:47.
• योएल 2:28-32 कहता है, "ऐसा होगा कि जो कोई यहोवा का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा," जिसे लूका ने प्रेरितों के काम 2:21 में उद्धृत किया है।
• अन्य पुराने नियम के ग्रंथ जिनका उपयोग यीशु ने शिष्यों के दिमाग को खोलने के लिए किया होगा उनमें भजन 22 शामिल हैं; 31:5; 69; 110:1; 118:22-26 और यशायाह 11:10.
III.पश्चाताप एवं पाप क्षमा का प्रचार (v47-48) –
“और उसके नाम से यरूशलेम से लेकर सभी राष्ट्रों में पश्चाताप और पापों की क्षमा का प्रचार किया जाना चाहिए”
संत लूका हमें इस पद में यह बतलाना चाहता है कि, प्रभु यीशु मसीह के आदेश के अनुसार अपने नाम से अर्थात् प्रभु यीशु मसीह के नाम से ही मन फिराव (पश्चाताप) और पापों की क्षमा का प्रचार करें, घोषणा करें (लूका 24:46-47 )। यह मुक्ति का संदेश इतना महत्वपूर्ण है कि पश्चाताप और पापों की क्षमा के सुसमाचार की प्रचार करते समय सचमुच यीशु नाम का उपयोग करने के लिए निर्देशित किया है। क्योंकि यीशु के क्रूस बलिदान के माध्यम से ही पापों की क्षमा का प्रादुर्भाव हुआ है ।
यीशु ने प्रत्येक मनुष्य के प्रत्येक पाप का दंड चुकाया (इब्रानियों 7:27)। उसने हमारे लिए अनन्त जीवन की गारंटी दी है, साथ ही साथ परमेश्वर तक सीधी एवं अबाधित पहुंच मार्ग भी तैयार किया (इफिसियों 2:18; 3:12)।
पाप क्षमा के लिए पश्चाताप आवश्यक है, और क्षमा प्राप्त करने की शर्त सच्चा पश्चाताप है। पहले क्रम में हमेशा "पश्चाताप और पापों की क्षमा" रहेगा। बिना पश्चाताप के हमें क्षमा नहीं मिल सकता है। हम पाप को केवल "अधर्म" के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जैसा 1यूहन्ना 3:4 में लिखा है "जो कोई पाप करता है, वह व्यवस्था का विरोध करता है; ओर पाप तो व्यवस्था का विरोध है"।
"किसी के मन को बेहतरी के लिए बदलना, अपने पिछले पापों के प्रति घृणा के साथ दिल से संशोधन करना।"
यीशु ने स्वर्ग के राज्य को इस धरती पर लोगों के करीब लाना शुरू किया और अपने शिष्यों को भी ऐसा करने के लिए कहा। मत्ती 4:17 में यीशु ने यह कहते हुए प्रचार करना आरम्भ किया, "पश्चाताप करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।" इसी तरह यूहन्ना बपतिस्ता ने भी यहूदिया के जंगल में यह प्रचार करने लगा कि "पश्चाताप करो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।"और लूका 10:9 में लिखा है कि वहां के बीमारों को चंगा करो और उनसे कहो, "परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है"।
सभी राष्ट्रों के लिए यीशु नाम से पश्चाताप और पापों की क्षमा का प्रचार की उद्घोषणा यरूशलेम से शुरू होनी है (v. 47), लेकिन यह यरूशलेम तक सीमित नहीं होगी। शिष्यों को "यरूशलेम में, सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी के कोने-कोने में" यीशु का गवाह बनना है (प्रेरितों 1:8)। कलीसिया का अपना काम यरूशलेम में शुरू करता है, लेकिन यीशु इसे पहले की तरह अंदर की ओर खींचने या समेटने के बजाय बाहर की ओर दुनिया के देशों की ओर प्रसारित करता है।
यहां ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यरूशलेम मुक्ति के संदेश का केंद्र है। यहूदिया वह प्रांत है जिसमें यरूशलेम स्थित है। सामरिया निकटवर्ती प्रांत है। और अंततः सारी दुनिया यीशु और उसके द्वारा प्रदान किये गये उद्धार के बारे में जानेगी।
आरंभिक उद्घोषणा यरूशलेम में पिन्तेकुस्त के दिन पतरस के उपदेश (प्रेरितों 2) के साथ होगी, जिसमें पद 46-47 के तीन महान विषयों पर जोर दिया जाएगा:
• मसीहा की पीड़ा और मृत्यु (प्रेरितों 2:23, 36)
• तीसरे दिन उसका पुनरुत्थान (प्रेरितों 2:24, 31-36)
• सभी राष्ट्रों के लिए पश्चाताप और क्षमा की घोषणा (प्रेरितों 2:17, 21, 38-39)।
आप इन बातों के गवाह हैं (ग्रीक: मार्टर्स - मार्टुरिया से- एक गवाह, जो गवाही देता है)(v48)। गवाह ( मार्टुरियन ) वह व्यक्ति होता है जिसने कुछ देखा है और मामले के तथ्यों की गवाही दे सकता है। यही स्थिति इन शिष्यों के साथ थी, जिन्होंने यीशु को अपनी आँखों से देखा था। वे पुनरुत्थान के बाद यीशु को देखने की गवाही दे सकते थे (v36-49)। वे उसे स्वर्ग में चढ़ते हुए देखने की गवाही भी दे सकते थे (v50-53)।
IV.पवित्र-आत्मा देने की प्रतिज्ञा (v49) -
24:49- यीशु पवित्र आत्मा के बारे में कह रहा है। प्रेरितों के काम-2 में यह पाया जाता है कि यह प्रतिज्ञा किस प्रकार पिन्तेकुस्त के दिन सत्य सिद्ध हुई (प्रेरि.1:1-11)।
पवित्र आत्मा- लूका तथा प्रेरितों के काम दोनों में ही पवित्र आत्मा बहुत महत्वपूर्ण है जो कि संसार में परमेश्वर के सामर्थ्य के रूप में कार्यरत है। पवित्र आत्मा बहुत से अद्भुत कार्य करता है, जैसे कि कुमारी मरियम का गर्भधारण। पवित्र आत्मा लोगों की अगुवाई करता (लूका 4:1,14, प्रेरि.8:29,39) तथा उन्हें विशेष सामर्थ्य देता है, जैसे कि यीशु के बारे में प्रचार करने की क्षमता (प्रेरि.2:1-11)। पवित्र आत्मा ने प्रेरितों को प्रचार करने तथा कलीसिया को बढ़ाने और दृढ़ करने में सहायता देने का साहस दिया था(प्रेरि.9:31)
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V.यीशु का स्वर्गारोहण (v50-53)-
Luke24:50:-- बैतनिय्याह जैतून के पहाड़ की ढलान पर है। लूका 24:50 में यह सन्दर्भ है कि बैतनिय्याह वह जगह थी जहां से यीशु स्वर्ग पर उठा लिया गया था। जैतून का पहाड़ लगभग ढाई मील लंबी पहाड़ी श्रंखला है जो केंद्रों घाटी तथा यरूशलेम के पूर्व में स्थित है।यह यरुशलेम के मंदिर क्षेत्र से लगभग 300 से 500 फुट ऊपर को उठी है।
बैतनिय्याह तक, अथवा बैतनिय्याह की ओर।
Luke 24:51:- लूका अपनी पुस्तक में मसीह के स्वर्गारोहण का विस्तृत विवरण देता है (प्रेरित 1:9)। "अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीर्वाद दिया" (v50a)। यह पुरोहितों का आशीर्वाद है. अपनी मृत्यु से पहले याकूब द्वारा अपने बेटों को आशीर्वाद देने (उत्पत्ति 49) और मूसा द्वारा अपनी मृत्यु से पहले इस्राएलियों को आशीर्वाद देने (व्यवस्थाविवरण 33) के मॉडल का अनुसरण करते हुए, यीशु अपने प्रस्थान की तैयारी करते समय अपने शिष्यों को आशीर्वाद देते हैं।
"वह उनके पास से चला गया, और स्वर्ग पर उठा लिया गया" (v51b)। यीशु का स्वर्गारोहण एक परिचित पुराने नियम के मॉडल का अनुसरण करता है:
• उत्पत्ति 5:24-
और हनोक परमेश्वर के साथ साथ चलता था; फिर वह लोप हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया।
• 2 राजा 2:9-11-
[9]उनके पार पहुंचने पर एलिय्याह ने एलीशा से कहा, उस से पहिले कि मैं तेरे पास से उठा लिये जाऊं जो कुछ तू चाहे कि मैं तेरे लिये करूं वह मांग; एलीशा ने कहा, तुझ में जो आत्मा है, उसका दूना भाग मुझे मिल जाए।
[10]एलिय्याह ने कहा, तू ने कठिन बात मांगी है, तौभी यदि तू मुझे उठा लिये जाने के बाद देखने पाए तो तेरे लिये ऐसा ही होगा; नहीं तो न होगा।
[11]वे चलते चलते बातें कर रहे थे, कि अचानक एक अग्नि मय रथ और अग्निमय घोड़ों ने उन को अलग अलग किया, और एलिय्याह बवंडर में हो कर स्वर्ग पर चढ़ गया।
पृथ्वी पर यीशु का मिशन उसके दूसरे आगमन तक पूरा हो गया है। हालाँकि, वह अपने शिष्यों (भविष्य के शिष्यों सहित) को नहीं छोड़ रहे हैं। वह स्वर्गीय लोकों में अपना उचित स्थान पुनः प्राप्त कर रहा है, जहाँ पिता उसे ऊँचा उठाएँगे और “उसे वह नाम देंगे जो हर नाम से ऊपर है; कि जो स्वर्ग में हैं, जो पृथ्वी पर हैं, और जो पृथ्वी के नीचे हैं, वे सब यीशु के नाम पर घुटने टेकें, और परमपिता परमेश्वर की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार करे कि यीशु मसीह ही प्रभु है” (फिलिप्पियों 2:9-11)।
इसलिए यीशु का स्वर्गारोहण न केवल पवित्र आत्मा के आगमन की प्रस्तावना है, बल्कि उसे अपने शिष्यों को स्वर्गीय आशीर्वाद प्रदान करने के लिए पुनर्स्थापित भी करता है।
लूका और मरकुस स्वर्गारोहण का विवरण देने वाले एकमात्र सुसमाचार हैं, और मरकुस का विवरण उसके लंबे अंत का हिस्सा है, जिसे संभवतः बाद में जोड़ा गया था। मत्ती का सुसमाचार यीशु के स्वर्गारोहण का उल्लेख किए बिना महान आदेश देने के साथ समाप्त होता है (मत्ती 28:16-20)। यूहन्ना रचित सुसमाचार में एक लंबा विदाई खंड है, लेकिन स्वर्गारोहण का विवरण नहीं दिया गया है।
हालाँकि, लूका दो विवरण देता है - यहाँ स्वर्गारोहण का एक संक्षिप्त विवरण और प्रेरितों 1:6-11 में एक लंबा विवरण। दोनों के बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं-
• सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, लूका के सुसमाचार में पुनरुत्थान की शाम को यीशु का आरोहण होता हुआ प्रतीत होता है, जबकि उसके प्रेरितों के कार्य में यीशु पुनरुत्थान के बाद चालीस दिनों की अवधि के लिए शिष्यों को दिखाई देता है (प्रेरितों 1:3)।
"और बड़े आनन्द के साथ यरूशलेम लौट आए" (v52b)। केवल कुछ श्लोक पहले, वे यीशु को भूत समझकर डर गए थे (v37)। जब यीशु उन्हें स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वह कौन है, वह उनसे क्या अपेक्षा करता है, और वह उनके मुक्ति के संदेश को कैसे सशक्त करेगा, तो वे कितनी जल्दी भय से आनंद की ओर बढ़ जाते हैं।
Luke24:53- यह वह मंदिर है जिसे हेरोदेस महान ने बनाया था। इसका कार्य ई.पू.20 में आरम्भ हुआ था तथा यीशु के समय तक जारी था (यूह.2:20)। मंदिर एक बड़े पत्थर के चबूतरे, जिसका आधार चक्र लगभग एक मील था, पर स्थापित किया गया था।हेरोदेस की बनाई हुई दीवार की नींव के कुछ बड़े पत्थर अभी भी लगे हुए हैं, परन्तु मन्दिर को पूरी तरह से उस समय ध्वस्त कर दिया गया था, जब रोमियों ने तीतुस के राज्यकाल में, यरूशलेम को ई.पू.70 में अपने अधिकार में ले लिया था।
मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान ने पाप और मृत्यु को जीत लिया अतः मसीह में विश्वास करनेवाले पाप और मृत्यु से उद्धार की आशा रख सकते हैं (रोमियो. 4:24-25;6:8-18;8:11; 1कुरि.15:26,54-57) और उद्धार को निश्चित कर दिया और वे इन सब बातों के गवाह ठहरे।
यह सुसमाचार मंदिर में जकर्याह के सामने एक देवदूत के प्रकट होने और यूहन्ना बपतिस्ता के जन्म की घोषणा करने के साथ शुरू हुआ (1:5-25) और मंदिर में शिशु यीशु की प्रस्तुति पर शिमोन की खुशी और अन्ना की प्रशंसा के बारे में बताया (2:22) -38). "इस प्रकार सुसमाचार समाप्त होता है क्योंकि यह मंदिर में भगवान के लोगों की स्तुति और आशीर्वाद के साथ शुरू हुआ था"।
यीशु की मृत्यु उसके अपने पापों के कारण नहीं हुई, वह तो निष्पाप था। परन्तु अन्य लोगों के पापों के कारण हुई। अतः मृत्यु उसे अपने अधिकार में न रख सकी। वह मृत्यु के पश्चात् जी उठा जिससे कि सब पर यह प्रमाणित हो जाए कि परमेश्वर पिता उसके सम्पूर्ण कार्य से प्रसन्न है। यीशु ने पाप के लिए पूरा प्रायश्चित किया था और अब वह विजयी प्रभु, मसीह और उद्धारकर्ता था (प्रेरि.2:24-36,3:13; रोमि.1:4,4:25, 1कुरि.15: 3-4, फिलि.2:8-11,इब्रा.2:14-15)।
फिर भी पुनरुत्थान के पश्चात् यीशु की देह ऐसी देह नहीं थी जिसमें फिर से जीवन डाल दिया हो। यह महिमामय ‘आत्मिक’ देह पूर्णतः नए अस्तित्व वाली थी जिसमें उसका पुनरुत्थान हुआ और एक दिन सभी विश्वासियों को ऐसी ही देह मिलेगी (1कुरि.15:20-23,42-49)।
1 कुरिन्थियों 15:20-23, 42-49 -
[20]परन्तु सचमुच मसीह मुर्दों में से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ।
[21]क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया।
[22]और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।
[23]परन्तु हर एक अपनी अपनी बारी से; पहिला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग।
1 कुरिन्थियों 15:42-49 -
[42]मुर्दों का जी उठना भी ऐसा ही है। शरीर नाशमान दशा में बोया जाता है, और अविनाशी रूप में जी उठता है।
[43]वह अनादर के साथ बोया जाता है, और तेज के साथ जी उठता है; निर्बलता के साथ बोया जाता है; और सामर्थ के साथ जी उठता है।
[44]स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्मिक देह जी उठती है: जब कि स्वाभाविक देह है, तो आत्मिक देह भी है।
[45]ऐसा ही लिखा भी है, कि प्रथम मनुष्य, अर्थात आदम, जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम, जीवनदायक आत्मा बना।
[46]परन्तु पहिले आत्मिक न था, पर स्वाभाविक था, इस के बाद आत्मिक हुआ।
[47]प्रथम मनुष्य धरती से अर्थात मिट्टी का था; दूसरा मनुष्य स्वर्गीय है।
[48]जैसा वह मिट्टी का था वैसे ही और मिट्टी के हैं; और जैसा वह स्वर्गीय है, वैसे ही और भी स्वर्गीय हैं।
[49]और जैसे हम ने उसका रूप जो मिट्टी का था धारण किया वैसे ही उस स्वर्गीय का रूप भी धारण करेंगे॥
"वह उन्हें बैतनिय्याह तक ले गया" (पद्य 50ए)। बेथनी यरूशलेम से लगभग दो मील पूर्व में स्थित है। यह मरियम, मार्था और लाजर का घर है - और यहीं पर यीशु लाजर को मृतकों में से वापस लाए थे (यूहन्ना 12:1-8)।
“और वे निरन्तर मन्दिर में परमेश्वर की स्तुति और आशीर्वाद करते रहते थे। आमीन” (v. 53)
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