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शुध्द और अशुध्द [Clean and Unclean]
मरकुस 7:15,18-19,20-23 -
[15]ऐसी तो कोई वस्तु नहीं जो मनुष्य में बाहर से समाकर अशुद्ध करे; परन्तु जो वस्तुएं मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं।
[18]उस ने उन से कहा; क्या तुम भी ऐसे ना समझ हो? क्या तुम नहीं समझते, कि जो वस्तु बाहर से मनुष्य के भीतर जाती है, वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकती?
[19]क्योंकि वह उसके मन में नहीं, परन्तु पेट में जाती है, और संडास में निकल जाती है यह कहकर उस ने सब भोजन वस्तुओं को शुद्ध ठहराया।
[20]फिर उस ने कहा; जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।
[21]क्योंकि भीतर से अर्थात् मनुष्य के मन से, बुरी बुरी चिन्ता, व्यभिचार।
[22]चोरी, हत्या, पर स्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं।
[23]ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।
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